Saturday, November 23, 2024
spot_img
Homeकवितारामू की भैंस 

रामू की भैंस 

रामू की भैंस बड़ी मस्त थी,
कुटिया के पीछे खड़ी रहती थी।
कभी पूंछ उठाती, कभी कान हिलाती थी,
सैंकड़ों मन भूसा खा भ्यां-भ्यां करती थी।
दूध ताज़ा-ताज़ा देती थी,
दही,माखन, मिठाई बड़ी स्वादिष्ट बनती थी,
बत्तीसी चमका कभी बतीया भी लेती थी।
“काला अक्षर-भैंस बराबर”,
सुन उदास भी हो जाती थी।
दोष खुद में ढूंढने लग जाती थी।
सोच-सोच में भैंस बीमार पड़ गई,
दूध की लो हो गई छुट्टी।
रामू की खर्ची हो गई पाई-पाई,
वैद्य की दवाई जो काम आई।
भैंस हो गई फिर हट्टी-कट्टी,
गांव में फिर से छा गई मस्ती।

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार