यस बैंक के फाउंडर राणा कपूर और सरकार व आरबीआई के बीच में काफी लंबे समय तक चूहे-बिल्ले का खेल चल रहा था। दरअसल, राणा कपूर बैंक के सीईओ पद से हटाए जाने के बाद लंदन चले गए थे। इसके बाद सरकार व आरबीआई ने उन्हें बुलाने के लिए जाल बुना। राणा को भारत आने के बाद लगा कि उनके चारों तरफ जांच एजेंसियों का शिकंजा कस रहा है तो वह फिर भागने की फिराक में थे, लेकिन उनके बंगले के गार्ड ने उनका खेल खराब कर दिया।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पिछले आठ महीनों में कम-से-कम तीन ऐसे मामले सामने आए, जब निवेशकों और यस बैंक के बीच में डील फाइनल होने वाली थी, लेकिन आखिरी समय में यह टल गई। इसे लेकर सरकार और आरबीआई को आशंका हुई कि ऐसा क्यों हो रहा है?
ऐसा कई बार होने की वजह से सरकार को लगा कि डील के फाइनल न होने के पीछे राणा कपूर का ही हाथ है। राणा कपूर ने सूत्रों के हवाले से सरकार व रिजर्व बैंक के पास बात पहुंचवाई कि वह यस बैंक में वापसी चाहते हैं। एक सरकारी सूत्र ने कहा, ‘जैसे ही डील फाइनल होने वाली होती, राणा से जुड़े लोग निवेशकों से मुलाकात करते और डील से दूर रहने को कहते।’
आखिरकार, लंदन में बैठे राणा कपूर तक आरबीआई ने बात पहुंचवाई कि यदि राणा वापस आते हैं तो यस बैंक में उनकी वापसी हो सकती है। जैसे ही राणा कपूर भारत लौटे, वैसे ही जांच एजेंसियां इस काम पर लग गईं कि कपूर वापस न जा पाएं। सूत्रों ने बताया कि कई मौकों पर राणा जांच एजेंसियों की रडार से दूर भी हो गए थे।
राणा कपूर एजेंसियों का शिकंजा कसने के बाद वापस जाने की फिराक में थे। इसी दौरान कपूर के वर्ली वाले बंगले के गार्ड ने ईडी अधिकारियों को इसकी सूचना दे दी। रिपोर्ट में बताया गया है कि राणा को महसूस होने लगा था कि सरकार और आरबीआई बैंक में उन्हें शामिल नहीं करने जा रही हैं।
सरकार के भीतर ही बहस शुरू हो गई कि राणा कपूर को गिरफ्तार किया जाना चाहिए या नहीं? बीतते समय के बीच सरकार ने बैंक के पुनर्गठन प्लान और राणा कपूर के खिलाफ कार्रवाई की हरी झंडी दे दी।
साभार- दैनिक हिंदुस्तान से