Thursday, November 28, 2024
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राष्ट्रनीति की शून्यता …

महोदय
यह हमारा दुर्भाग्य है कि मालदा में हुए भयंकर दंगे व पठानकोट पर हुआ आतंकवादी आक्रामण से राष्ट्र के विरुद्ध गहरे षड्यंत्र का पता चलने पर कोई भी नेता राजनीति करने नहीं आया।अफगानिस्तान के मज़ारे शरीफ व जलालाबाद में हमारे केन्द्रो पर भी उन्ही दिनों हुए जिहादियों के आक्रमणों से भी किसी को चिंता नहीं हुई पर अब जब हैदराबाद में परिस्थितिवश एक छात्र ने आत्मग्लानि से आत्महत्या कर ली तो नेताओं की उस पर राजनीति करने की होड़ लग गयी, क्यों ?

यह भी ध्यान रहें कि लगभग 4 माह पूर्व जब दादरी के विसहाडा में वर्ग विशेष के एक व्यक्ति की विवादित हत्या हुई तो साहित्यकारो,राजनेताओं व अनेक तथाकथित बुद्धिजीवियों का स्वार्थपूर्ण ज्ञान जाग गया था।

याद करो 2008 का बटाला हॉउस,जामिया नगर,दिल्ली का वह काण्ड जब बहादुर इन्सपेक्टर श्री मोहनचंद शर्मा का आतंकियो को मारते हुए बलिदान हुआ था तब भी कुर्सी के भूखे नेताओ ने आतंक का गढ़ ‘आजमगढ़’ में जाकर आतंकवादियों के लिए सहानभूति परोसी थी और जांबाज इंस्पेक्टर के बलिदान को संदेहात्मक बना दिया था।

हम स्वयं आत्मघाती क्यों होते जा रहे है ? क्या हम में देशद्रोहियों व देशभक्तो में अन्तर करने के ज्ञान का आभाव हो गया है या फिर धृतराष्ट्र के समान आँखों से अंधे और उससे भी आगे बढ़ कर कानों से बेहरे और मुहं से गूंगे होते जा रहें है।

यह हम सब का राष्ट्र है इस भावनात्मक व सकारात्मक तथ्य और सत्य से बच नहीं सकते।मातृभुमि की रक्षा करना हमारा जन्मसिद्ध व संवैधानिक अधिकार है तो फिर हम जिस प्रकार अपने परिवार के लिए समर्पित रहते है उसी प्रकार अपने समाज व राष्ट्र के प्रति समर्पण के लिए तत्पर क्यों नहीं होते ? लोकतांत्रिक व्यवस्था ने हमारे नेताओं को सत्ता के लोभ ने कर्तव्यविमुख कर दिया है और उनको राष्ट्रोत्थान से कोई सरोकार नहीं और न हीं उनको देशवासियों के मानवाधिकारों की कोई चिंता। ऐसे समय में महान आचार्य चाणक्य का स्मरण होता है जिनके राष्ट्र के प्रति सम्पूर्ण समर्पण व अद्भुत दूरदर्शिता ने राजनीति को राष्ट्रनीति में परिवर्तित किया था।जिनके विचारों की शक्ति व साहसिक नेतृत्व कौशल ने एक साधारण बालक को ‘सम्राट चन्द्रगुप्त’ बना दिया।ऐसे अतुलनीय राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत विष्णुगुप्त “चाणक्य” के समान राजनीतिज्ञों के अभाव से आज हमारा भारत शून्य हो चुका है।

आज के स्वार्थी व धूर्त राजनीतिज्ञों में कब चाणक्य के विचारों का बीज अंकुरित होगा और भारत पुनः अपना वैभव प्राप्त करके विश्व में अपने ज्ञान का प्रकाश बिखेरेगा यह प्रश्न काल के गर्भ में वर्षो से समाया हुआ है और अभी भी अनुत्तरित ही है ?

विनोद कुमार सर्वोदय
ग़ाज़ियाबाद।

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