सेवा में,
माननीय प्रधानमंत्री जी,
माननीय गृहमंत्री
श्री किरेण रिजीजु, गृहराज्य मंत्री,
भारत सरकार
विषय: भोजपुरी/राजस्थानी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु कुछ साहित्यकारों,
लेखकों, राजनेताओं आदि की अनुचित माँग को स्वीकार न किया जाना।
संदर्भ: 1. हमारा समसंख्यक पत्र दिनांक-10.12.2014 तथा अनुस्मारक दिनांक 25.8.2015 तथा 07.6.2016
2. दि. 17.9.2016 के The Hindu में प्रकाशित गृहराज्य मंत्री (रिजीजु) का साक्षात्कार
महोदय,
आपको विदित होगा कि श्री अर्जुनराम मेघवाल और मनोज तिवारी आदि सांसदों के नेतृत्व में राजस्थानी और भोजपुरी के हिमायती कुछ राजनेता, सांसद, लेखक, साहित्यकार, राजस्थानी और भोजपुरी बोली को भाषा का दर्जा दिलाने और संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करवाने हेतु कुछ दिन पहले आप से मिले थे। इन विद्वानों/साहित्यकारों, लेखकों, राजनेताओं को यह पता नहीं है कि वे अपने छोटे से स्वार्थ के लिये कितना बड़ा अनर्थ करने जा रहे हैं।
उन्हें पता होना चाहिए कि जिन जनपदीय बोलियों के शब्दों के भंडार को लेकर, भारतेन्दु हरिश्चंद नें खड़ी बोली हिन्दी का रूप दिया, जो आज राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण भाषा(संघ की राजभाषा) के रूप में सुशोभित है, एवं जिसने देश में एक व्यापक जनाधार बना लिया है और जो भारत की एकता एवं अखण्डता के प्रतीक के रूप में धीरे-धीरे हर क्षेत्र में बोली व समझी जाने लगी है, उस खड़ी बोली हिन्दी में हिन्दी प्रदेशों की लगभग एक दर्जन बोलियाँ समाहित हैं और भारत सरकार के वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग ने अन्य क्षेत्रीय/प्रादेशिक भाषाओं के बहु प्रचलित शब्दों को अपनी शब्दावली में शामिल कर उसे और भी धनाड्य बना दिया है। किन्तु हिन्दी/भोजपुरी, राजस्थानी के कुछ स्वार्थी लेखक, साहित्यकार, राजनेता जो स्वयं भी अपने घर में भोजपुरी/राजस्थानी बोली का प्रयोग, शायद ही करते हैं, इस अनुचित मांग के पीछे हैं। इन लोगों ने आज तक भोजपुरी या राजस्थानी में कोई प्रयोजन मूलक साहित्य तक तैयार नहीं किया है और उनमें से न कोई पत्राचार, निजी कामकाज भोजपुरी या राजस्थानी में करता है।
यह मांग, यदि मंजूर कर ली गई तो सरकार के सामने भाषायी मांगों का भानुमती का पिटारा खुल जायेगा तथा देश में इनके अलावा कई दर्जन अन्य बोलियां भी, संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान पाने के लिये आंदोलित हो जायेंगी, जो हमारी भाषायी एकता व राष्ट्रीय अखण्डता को प्रभावित करेंगी। यूपीए सरकार ने आठवीं-अनुसूची में 38 बोलियां(अंग्रेजी सहित) को जोड़ने की तैयारी कर ली थी, क्योंकि वह बोलियों को भाषा की मान्यता दे कर देश में बिखराव पैदा करना चाहती थी, किन्तु सौभाग्य से श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में अब राजग की राष्ट्रवादी सरकार आ गई है, जो देश को भाषा/बोलियों के आधार पर तोड़ने की नहीं, जोड़ने की हिमायती है। किंतु ‘स्वतंत्र-वार्ता’ हैदराबाद, दिनांक 28.4.2016 में प्रकाशित समाचार से तो यही जान पड़ता है कि राजग सरकार, इन वोलियों को ही नहीं 38 वोलियों (विदेशी भाषा अंग्रेजी सहित) को 8 वीं अनुसूची में शामिल करने जा रही है । (कतरन पहलेसंलग्न) की जा चुकी है ।
17 सितम्बर 2016 के The Hindu में छपे गृहराज्य मंत्री (किरेण रिजीजु) के साक्षात्कार में खतरे की घंटी की सूचना दे दी गई है । हम इससे बिल्कुल भी नहीं है । फोटो प्रति संलग्न है ।
इस मांग का एक मात्र उद्देश्य, राजभाषा(राष्ट्रभाषा) हिन्दी को कमजोर करना है। दरअसल में राजस्थानी कोई भाषा ही नहीं है, वे मारवाड़ी बोली जो चार जिलों में बोली जाती हैं, को राजस्थानी भाषा कह कर भ्रम पैदा करते आरहे हैं। जैसे उत्तर प्रदेश में ब्रज, अवधी, बुंदेली,बघेली, भोजपुरी आदि बोलियाँ हैं, उसी तरह राजस्थान में ब्रज,ढुंढारी, मेवाड़ी, मारवाड़ी, हाडौती आदि बोलियाँ हैं, भाषा नहीं। यदि इन छोटी-छोटी बोलियों को आठवीं अनुसूची में शामिल करना ही है तो हिन्दी को उसमें से निकालकर राष्ट्रभाषा घोषित कर विशेष दर्जा दिया जाए।
अत: अनुरोध है कि महान साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चंद्र के प्रयासों की हत्या न होने पाये और देश में/प्रदेशों में बोलियों के नये आन्दोलन को खड़ा होने से बचाने के लिए, भोजपुरी और राजस्थानी को आठवीं अनुसूची में किसी भी हालत में शामिल न किया जाए।
(अतुल कोठारी)
सचिव- शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास
सहसंयोजक- शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति
दूरभाष :-011-25898023, 65794966
मोबाइल:-9868100445, 9971899773