दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में दिए गए एक फैसले के अनुसार पति द्वारा पत्नी का बलात्कार अपराध की श्रेणी में नहीं आता। एक युवती को नशीला पेय पिलाकर उससे विवाह करने और उसके साथ बलात्कार करने के 21 वर्षीय आरोपी युवक को अदालत द्वारा दोषमुक्त कर दिया। इस फैसले से कई विधिक और समाजशास्त्रीय सवाल खड़े हो गए हैं। क्या दिल्ली उच्च न्यायालय का यह फैसला इस सिद्धांत को प्रतिपादित करता है कि किसी भी अपराध की परिभाषा आरोपी और पीड़ित के रिश्ते पर निर्भर करती है? क्या किसी पुरूष द्वारा किसी महिला का उत्पीड़न इसलिए अपराध नहीं है, क्योंकि उनके बीच पति-पत्नी का रिश्ता है? बलात्कार और यौन संबंधों के अंतर को समझे बिना इस सिद्धांत को स्थापित करना महिलाओं के जीवन जीने के अधिकार को प्रभावित करता है।
यह स्पष्ट है कि पितृसत्तात्मक समाज में पुरूषों को महिलाओं की अपेक्षा ज्यादा अधिकार है। पितृसत्ता आधारित परिवार में बचपन से ही पुरूषों को शासक या सत्ताधारी के रूप में विकसित किया जाता है। इस स्थिति में विवाह के बाद पति-पत्नि के बीच के संबंध बराबरी के न होकर एक शासक और शासित के रूप में स्थापित हो जाते हैं, जिसमें स्त्री को पुरूष प्रधान समाज द्वारा स्थापित मूल्यों का पालन करना होता है। जब महिलाएं शासित होने से इंकार करती है तो उनके उत्पीड़न का सिलसिला शुरू हो जाता हैं। किन्तु उनके उत्पीड़न को मात्र इसलिए जायज नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि वह विवाहित है और उत्पीड़न करने वाला उसका पति है। तब भला पति द्वारा पत्नी के बलात्कार को कैसे जायज ठहराया जा सकता?
दिल्ली उच्च न्यायालय का यह फैसला कुछ कानूनी कमियों का नतीजा है, जिसके लिए सरकार उत्तरदायी है। दरअसल भारतीय दण्ड संहिता में वैवाहिक बलात्कार जैसी कोई अवधारणा है ही नहीं। यद्यपि भारत की संसद द्वारा घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम सहित कई ऐसे कानून बनाएं, जो महिलाओं को हिंसा की दशा में सुरक्षा और न्याय प्रदान करते हैं। किन्तु कुछ मुद्दों पर कानूनी विसंगतियां महिलाओं के सम्मान, सुरक्षा और समता के लिए बाधक बनी हुई है। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 375 के अनुसार 16 वर्ष से कम उम्र की पत्नी से किए बलात्कार को अपराध की श्रेणी में माना गया है। जबकि 16 वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी के साथ बलात्कार को अपराध नहीं माना गया है। यहां यह सवाल सामने आता है कि जब 18 वर्ष को वयस्कता की उम्र माना जाता है तो उससे कम उम्र की पत्नी के साथ होने वाले बलात्कार को अपराध के रूप में क्यों नहीं देखा जाता? भारतीय दण्ड संहिता में धारा 376(ए) भी कानूनी विसंगतियों की ओर इंगित करती है। इसके अंतर्गत पति से अलग रह रही स्त्री के साथ बलात्कार करने वाले पति को सात साल की सजा का प्रावधान है, जबकि धारा 376 के अंतर्गत किसी भी बलात्कारी को आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। यानी तलाकशुदा या पति से अलग रह रही पत्नी का पति द्वारा बलात्कार को हमारा कानून कम गंभीर मानता है।
यह सरकार में बैठे लोगों की पितृसत्तात्मक विचारधारा का नतीजा है कि एक जैसे अपराध के लिए आरोपी और पीड़ित के बीच रिश्तो के आधार पर दण्ड की मात्रा अलग-अलग तय की गई है। इसके साथ ही सरकार ने वैवाहिक बलात्कार को मानने वाला कोई भी कानूनी प्रयास अब तक नहीं किया। दिल्ली में 16 दिसम्बर 2012 के निर्भया कांड के बाद जस्टिस वर्मा कमेटी ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई अनुशंसाएं की और उसके आधार पर सरकार द्वारा आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक पारित किया गया। जस्टिस वर्मा ने वैवाहिक दुष्कर्म को भी अपराध की श्रेणी में रखते हुए उसके लिए दण्ड की अनुशंसा की, किन्तु गृह मंत्रालय ने विधि आयोग की 172 वीं रिपोर्ट का हवाला देते हुए वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने से इंकार कर दिया।
यह स्पष्ट है कि घरेलू हिंसा महिलाओं के जीवन जीने के अधिकार में सबसे बड़ी बाधा है और उसके चलते उनका शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य, पोषण एवं सम्पत्ति का अधिकार प्रभावित होता है। भारत सरकार द्वारा घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम की में यौन हिंसा को शामिल तो किया गया है, किन्तु आईपीसी में वैवाहिक बलात्कार के लिए दण्ड का कोई प्रावधान न होने से महिला को समझौते के लिए विवश होना पड़ता है। यूनाईटेड नेशंस पापुलेशन फंड द्वारा किए गए शोध के अनुसार भारत 15 से 49 वर्ष की दो तिहाई से अधिक महिलाओं को पति द्वारा यौन उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है।
यदि हम दुनिया के परिदृश्य पर नज़र डालें तो 52 देशों में वैवाहिक बलात्कार को अपराध मान गया है। इनमें अमेरिका के 18 राज्य और आस्ट्रेलिया के 3 राज्य शामिल है। साथ ही न्यूजीलैंड, कैनेडा, ईसराइल, फ्रांस, स्वीडन, डेनमार्क, नॉर्वे, सोवियत यूनियन, पोलैंड और चेकोस्लोवाकिया में भी वैवाहिक बलात्कार को अपराध माना गया है और उसके लिए कठोर दण्ड का प्रावधान है।
आज जबकि हमारे प्रधानमंत्री भारत को दुनिया में तेजी से विकसित हो रहे देश के रूप में पहचान बनाने के लिए प्रयासरत हैं। भारत में विज्ञान, तकनीकी और व्यापार-व्यवसाय का विकास भी तेजी से हो रहा है, ऐसे में महिलाओं के मामले में पुरातन सोच से बाहर निकलना जरूरी है। देश और उसके नागरिक आर्थिक रूप से कितने ही सशक्त क्यों न हो, जब तब महिलाएं अपने घरों में सुरक्षित नहीं होगी, तब तक समस्त विकास बेमानी होगा। अतः वैवाहिक बलात्कार की सचाई को स्वीकार कर उसे कानूनी रूप देना सरकार का उत्तरदायित्व है।
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– राजेन्द्र बंधु
-हाईकोर्ट एडव्होकेट, इन्दौर एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार
राज्य संयोजक : समान सेंटर फॉर जस्टिस एण्ड इक्वालिटी
प्रोग्राम एंकर : वीमन ऑन व्हील्स प्रोग्राम, इन्दौर
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