नई दिल्ली। सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक नंदकिशोर नवल का कल रात देहवसान हो गया। वे 82 वर्ष के थे। हिंदी आलोचना में उनकी दर्जनों पुस्तकों ने महत्त्वपूर्ण आयाम जोड़े हैं। ‘समकालीन काव्य-यात्रा’, ‘मुक्तिबोध : ज्ञान और संवेदना’, ‘निराला और मुक्तिबोध : चार लंबी कविताएँ’, ‘दृश्यालेख’, ‘मुक्तिबोध और निराला : कृति से साक्षात्कार’ उनकी चर्चित किताबों में शामिल है। त्रैमासिक पत्रिका ‘आलोचना’ के सह-संपादक रहे एवं उन्होंने कई रचनावलियों का भी संपादन किया।
राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक पेज से लाइव बातचीत में आलोचक संजीव कुमार ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए उनके जीवन एवं रचनाक्रम के बारे में कई रोचक जानकारियां साझा कीं। उन्होंने कहा, “उस छोटी उम्र में, जब आपको ‘क़दम-क़दम पर चौराहे’ मिलते हैं और ‘एक पैर रखते ही हज़ारों राहें फूटती’ हैं, नवल जी के संपर्क ने मुझे आत्मानुशासन और योजनाबद्ध कार्य का मतलब समझने का अवसर दिया। अपने आलोचना-कर्म से भी और अभिधा में दिए गए मशवरों से भी, यह समझाया कि समकालीन और निकट अतीत की रचनाएं पढ़ने के साथ-साथ अपनी परंपरा से परिचित होना–मसलन, तुलसीदास और मैथिलीशरण गुप्त को पढ़ना–कितना ज़रूरी है।“
नंदकिशोर नवल को याद करते हुए लाइव बातचीत में आलोचक आशुतोष कुमार ने कहा कि, “नवल जी आलोचना में हमेशा पाठ की केन्द्रीयता पर जोर देने वाले आलोचक रहे। पाठ से विच्छिन्न सिद्धांत-चर्चा उनकी लिखी आलोचना को अप्रासंगिक बनाने के सिवा कुछ और नहीं कर सकती। निराला पर उनका काम निराला की पाठ-परम्परा को अनेक स्तरों पर समृद्ध करने वाला काम है।“
आशुतोष कुमार एवं संजीव कुमार वर्तमान में ‘आलोचना’ पत्रिका के संपादक भी हैं। उन्होंने राजकमल प्रकाशन समूह एवं समस्त पाठकों की ओर से नंदकिशोर नवल को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। समूह द्वारा वाट्सएप्प के जरिए रोज़ साझा की जा रही पुस्तिका ‘पाठ- पुन:पाठ’ में आज नंदकिशोर नवल की रचनाओं को थीम बनाकर, पाठकों के पढ़ने से साझा किया गया।