राजनांदगांव। बहुआयामी सामाजिक और सांस्कृतिक सरोकारों से जुड़े दिग्विजय कालेज के प्रोफ़ेसर डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने कहा है लगातार बढ़ते तापमान और दिन-प्रतिदिन विकट होते जा रहे जल संकट से मुक्ति की पुकार सब तरफ सुनी जा सकती है। लेकिन, आश्चर्य की बात है कि पानी पर बात करने तो सभी तैयार हैं,पानी बचाने और उसका सही प्रबंधन करने के प्रश्न पर सीधी भागीदारी से लोग अक्सर लोग किनारा कर जाते हैं। लिहाज़ा, जीवन रूपी जल के जीवन के लिए भी हम सब मिलकर सार्थक पहल करें। हर व्यक्ति यदि अपने स्तर पर समझदारी का परिचय दे तो बूँद-बूँद से घट भरे की तर्ज़ पर पानी की समस्या हल की जा सकती है।
दुर्ग-भिलाई ट्विन सिटी की जलदूत जागरूकता कार्यशाला में अतिथि वक्ता के की आसंदी से प्रोफ़ेसर डॉ.जैन ने कहा कि जल के बिना जीवन की कल्पना अधूरी है। हम जानते हैं कि जल हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है, लेकिन यह भूल जाते हैं कि बेतरतीब इस्तेमाल का बेइन्तिहां हक़ हमें किसी ने नहीं दिया है। हम जल का दोहन करना तो जानते है, किन्तु उसके संरक्षण में हमारी रूचि जवाब देने लगती है। हम यह भी जानते हैं कि कुछ घंटे या कुछ दिनों तक भूखे तो रहा जा सकता सकता है, पर पानी पिए बगैर कुछ दिनों के बाद जीना भी मुमकिन नहीं है। फिर भी पानी की खबर लेने की परवाह करते हैं। अब समय आ गया कि हम जल से जग के नाते की गहराई को हम समझें।
डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने कहा आगे सलाह दी कि अब जल संसाधनों के प्रबंधन को हमें निजी जीवन ही नहीं, सामाजिक सरोकार से जोड़कर आगे कदम बढ़ाना होगा। पानी प्रकृति की सबसे अनमोल धरोहर है। वह विश्व सृजन और उसके संचालन का आधार है। मानव संस्कृति का आधार है। मानव सभ्यता का निर्माता है। पानी जीवन के लिए अनिवार्य है। पानी के बिना जीव जगत के अस्तित्व और साँसों के सफर की कल्पना बेकार है। याद रहे पानी न मिलेगा तो परिंदों की उड़ान पर भी सवालिया निशान लग जायेगा।वैसे भी लोग परिंदों के लिए पानी रखना भी भूल रहे हैं। इसलिए जरूरी है कि उड़ान के लिए पानी को ज़िंदा रखने की जरूरत हम कभी न भुलाएं। ‘बिन पानी सब सून’ की सीख की अधिक अनसुनी न करने में ही बुद्धिमानी है। पानी बहाने में नहीं, बचाने में सयानी है।