समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
‘रॉयटर्स’ दुनिया भर में मीडिया की बड़ी मशहूर एजेंसी है, मीडिया के हलकों में बड़ा रुतबा है। इसलिए आसानी से कोई उसकी रिपोर्ट पर भरोसा भी कर लेता है। लेकिन जब कोई रिपोर्ट इंडियन मीडिया से जुड़ी हो और साफ साफ एकतरफा लगे तो सवाल बनता है। रॉयटर्स की तरफ से ये रिपोर्ट लिखी है राजू गोपालकृष्णन ने, रिपोर्ट की हैडलाइन का लब्बोलुआब है- भारतीय पत्रकार कहते हैं उन्हें धमकाया जाता है, बीजेपी या मोदी की आलोचना पर बहिष्कार कर दिया जाता है।
दिक्कत ये है कि इस रिपोर्ट में राजू गोपालकृष्णन या उनके सहयोगियों ने जिन पत्रकारों की प्रतिक्रिया छापी है सभी के सभी मोदी विरोधी माने जाते हैं, वो धमकाने का आरोप लगाएं या हत्या की आशंका का, वो एकतरफा ही लगेगा क्योंकि वो मोदी विरोधी खेमे के पत्रकार हैं। ऐसे में उन्हीं को भारतीय मीडिया न मानते हुए रॉयटर्स को ऐसे पत्रकारों की प्रतिक्रिया भी लेनी चाहिए थी, जो या तो तथाकथित राष्ट्रवादी हैं या मोदी समर्थक खेमे के हैं या फिर वो जिन्हें किसी खेमे से कोई लेना देना नहीं है, कम से कम उनकी लेखनी या सोशल मीडिया पर तो नहीं दिखता।
इस रिपोर्ट में जिन लोगों की प्रतिक्रिया ली गई हैं, उनमें शामिल हैं एनडीटीवी के मालिक प्रणॉय रॉय, टीओआई से जुड़ीं सागारिका घोष, ‘वायर’ के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन, एनडीटीवी के रवीश कुमार, कांग्रेस सरकार में प्रेस सेक्रेटरी रहे हरीश खरे आदि।
सागारिका की शिकायत है कि मुझे गैंगरेप और जाने से मारने की धमकियां मिल रही हैं, रवीश कुमार कहते हैं कि ये लोग मुझे फॉलो करते हैं, जब भी मैं कहीं जाता हूं 10 मिनट में वहां इकट्ठे हो जाते हैं। इन आरोपों के जवाब में बीजेपी की तरफ से जीएल नरसिंह राव इन आरोपों को खारिज करते हैं और मीडिया के एक धड़े पर बीजेपी विरोधी मानसिकता का आरोप लगाते हैं। कुल मिलाकर एक पत्रकार इन आरोपों का खंडन करता है वो है स्वप्न दास गुप्ता, जिनके बीजेपी से संसद में जाने के बाद अब कोई पत्रकारों में नहीं गिनता।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या केवल पत्रकारों के एक धड़े के आरोप और बीजेपी के जवाब से ही खबर हो गई? इससे ऐसा मैसेज जाता है जैसे यही पत्रकार पूरी मीडिया का प्रतिधिनित्व करते हैं। दूसरे धड़े के लोगों से इन आरोपों के बारे में बात क्यों नहीं की गई? क्या अरनब गोस्वामी, रजत शर्मा, सुधीर चौधरी, रोहित सरदाना, श्वेता सिंह आदि का रिएक्शन नहीं लिया जाना चाहिए था। हो सकता है आप इन पत्रकारों पर मोदी समर्थक होने का आरोप लगा दें, तो उन पत्रकारों का रिएक्शन क्यों नहीं लिया गया, जो कम से कम सोशल मीडिया पर या अपने शोज में किसी भी तरफ होने से बचते हैं।
ऐसे सभी पत्रकारों में ‘आजतक’ के सुप्रिय प्रसाद, ‘एबीपी न्यूज’ के मिलिंद खांडेकर, ‘टाइम्स नाउ’ के राहुल शिवशंकर, ‘इंडिया टुडे’ के राहुल कंवल समेत तमाम हिंदी, अंग्रेजी अखबारों के संपादक शामिल हैं। यानी पत्रकारों में अगर तीन धड़े माने जाएं तो इस रिपोर्ट में केवल एक धड़े के लोगों के आरोप ही शामिल किए गए हैं। चैनल मालिक का रिएक्शन भी लिया गया तो केवल एनडीटीवी का, जो सरकार से ईडी जांच से नाराज है। आखिर क्यों अरुण पुरी, विनीत जैन अभीक सरकार, अनुराधा प्रसाद, कार्तिकेय शर्मा आदि से बात नहीं की गई? क्योंकि ये लोग एकतरफा रिएक्शन नहीं देते।
रिपोर्ट में तीन पत्रकारों की हत्या की बात की गई है, लेकिन फोकस केवल गौरी लंकेश पर है, रिपोर्ट में उसी से जुड़ा फोटो भी है। रिपोर्ट मे पिछले 6 महीने में तीन संपादकों की बीजेपी विरोधी खबरों के चलते छुट्टी करने की बात भी लिखी है। जिनमें से केवल दो की ही चर्चा की है, पहली ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के एडिटर बॉबी घोष की, जो बीजेपी, आरएसएस को टारगेट करके हेट ट्रेकर नाम का एक कैम्पेन चलाने लगे थे, उन्होंने अगर दवाब में छोड़ा था तो हिम्मत करके खुलकर सरकार या मैनेजमेंट के खिलाफ सुबूतों के साथ बोलना चाहिए था, लेकिन वो आज तक खामोश हैं। दूसरे थे ‘ट्रिब्यून’ के संपादक हरीश खरे, इस रिपोर्ट में आरोप है कि आधार पर नेगेटिव खबर करने के चलते उन्हें हटाया गया। मैनेजमेंट का कहना है कि उस रिपोर्टर को हमने इनाम में पचास हजार रुपए भी दिए और खरे का कार्यकाल पूरा हो चुका था।
इस रिपोर्ट में कई इंटरनेशनल रिपोर्ट्स के हवाले से ये भी कहा गया है कि कैसे मीडिया फ्रीडम के मामले में इंडिया नीचे जा चुका है। जाहिर है ये रिपोर्ट्स भी मीडिया के अलग अलग धड़े ही बनाते रहे हैं, सो रॉयटर्स की इस रिपोर्ट की तरह उस पर भी सवाल उठते हैं। सबसे बड़ी और अहम बात ये है कि मोदी युग में ये साफ हो चुका है कि मीडिया में इस वक्त कम से कम तीन धड़े काम कर रहे हैं, एक जिन्हें मोदी से एलर्जी है, दूसरे वो जिन्हें मोदी का हर कदम राष्ट्र के हक में लगता है और तीसरे वो जिन्हें ना मोदी से एलर्जी है और ना ही राहुल से और वो सरकार के हर कदम को बारीकी से परखते हैं, अच्छे काम की तारीफ करते हैं और कमी पकड़ में आते ही सरकार को ठोक देते हैं। ऐसे में रॉयटर्स की ये रिपोर्ट केवल एक धड़े का ही प्रतिनिधित्व करते दिखाई देती है।
रायटर्स की ये रिपोर्ट नीचे दी गई लिंक पर पढ़ सकते हैं-
साभार-http://samachar4media.com से