Tuesday, December 24, 2024
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रोहिंग्या शरणार्थीः देश के खिलाफ एक नई साजिश

आखिर कौन हैं रोहिंग्या शरणार्थी? कहाँ से आये हैं, किधर बसाए गए हैं, हमें उनसे क्या समस्या है, क्या हमें उनकी मदद करनी चाहिए या फिर ये किसी साजिश के तहत भारत में बसाए जा रहे हैं? सम्भवतः ऐसे तमाम सवाल रोहिंग्या शरणार्थियों के नाम सुनते ही हमारे जेहन में आ जाते हैं। आइये आपको विस्तार से बताते हैं रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों के बारे में –

जैसा कि मानचित्र में आप देख सकते हैं, म्यांमार का अरकान(रखाइन) प्रान्त बांग्लादेश की सीमा से सटा हुआ है, इसी प्रान्त में रोहिंग्या मुस्लिम सबसे ज्यादा हैं। वैसे तो म्यांमार का कोई कानूनी धर्म नहीं है लेकिन फिर भी ये देश बौध्द धर्म को तबज्जो देता है और यहां की सरकार में चीन का हस्तक्षेप भी काफी ज्यादा रहता है। म्यांमार के नागरिकता कानून (1982) के हिसाब से रोहिंग्या मुस्लिम वहां के नागरिक नहीं माने जाते हैं क्योंकि ये वो मुसलमान थे जो बांग्लादेश से वहां पर घुसपैठ करके पहुंचे थे। बौध्द धर्म अपनी अहिंसा के लिए दुनियाँ में जाना जाता है फिर भी रोहिंग्या मुस्लिम और म्यांमार के बौद्ध लोगों के बीच बहुत झगड़े फसाद होते हैं। संभवतः इसके दो कारण हो सकते हैं, पहला ये कि किसी भी देश के नागरिक नहीं चाहेंगे कि उनके देश के संसधानों पर किसी और देश के शरणार्थी आकर राज करें और मूल निवासी ही उनसे वंचित रह जाएं। दूसरा कारण ये है कि शरणार्थी भी अहिंसक हों, नियम मानने वाले हों, जिस देश का नमक खाएं उसकी देशभक्ति करने वाले हों तो फिर भी ठीक है वरना कोई भी देश अपने देश में देशद्रोहियों का जमावड़ा नहीं लगाना चाहेगा। यही कारण है, तभी शान्तिप्रिय बौद्ध अनुयायी भी ऐसे लोगों को अपने देश में नहीं देखना चाहते। प्रवास भी क्षणिक होता है, जीवन पर्यंत जो रहना चाहता है उसको उसके मूल निवासियों की सभ्यता और संस्कृति से कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वैसे कायदे से देखा जाए तो मुस्लिम एकलौता ऐसा धर्म है जो किसी दूसरे धर्म को सम्मान नहीं देता, अपेक्षाकृत कट्टर भी होता है, इसके अनुयायी देश से बढ़कर मजहब को मानते हैं, शायद सबसे बड़ा कारण यही हो सकता है जिससे इतने साल म्यांमार में रहने के वावजूद रोहिंग्या मुस्लिम कभी वहां के मूल निवासियों के साथ समांजस्य नहीं बिठा पाए।

शायद आपको याद होगा, भारत में बोध-गया मन्दिर में एक बम विस्फोट हुआ था और तब हमलावर ने हमला करने का कारण बताया था कि बौद्ध धर्म को मानने वाले म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों की खातिर उसने बौद्ध मंदिर पर हमला किया है। बस यहां से शुरुआत होती है मजहबी पाखंड की, म्यांमार में कुछ हो रहा होगा तो आतंक भारत में फैलाया गया और भारत के मतान्ध राजनेता इसे “आतंक का कोई मजहब नहीं होता” उच्चारित करके निंद्रामग्न हो गए।

भारत और म्यांमार की सीमा के बीच पहाड़ और जंगलों की काफी अधिकता है, दौनों देशों में कुछ जन जातियां बंटी हुई हैं सीमापर जिसके लिए दौनों देशों के बीच ऐसा समझौता हो चुका है जिससे कि उन जनजातियों के लोग बिना पासपोर्ट के बॉर्डर पार कर सकते हैं। भारत की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी भूल यहीं से शुरू होती है, क्रिमिनल्स, आतंकी और शरणार्थी घुसपैठिये अधिकतर छोटी मोटी वारदातें करके बॉर्डर के पार आ जा सकते हैं। जंगलों की वजह से उसको पकड़ने में और बड़ी समस्या पैदा हो जाती है।

अब सवाल ये उठता है कि म्यांमार से रोहिंग्या मुस्लिम भगाये क्यों गए? सम्भवतः इसके प्रमुख कारण ये हो सकते हैं –

1. एक बार म्यांमार के मुस्लिम जेहादियों ने म्यांमार सुरक्षाबलों की चौकियों पर आतंकी हमला कर दिया था जिसके परिणामस्वरूप म्यांमार सुरक्षाबलों ने रोहिंग्या मुस्लिमों को निशाने पर लिया।

2. मजहबी पाखंड में अंधे होकर रोहिंग्या मुस्लिमों ने आतंक का रास्ता अपनाया जिसकी वजह से शांतिपूर्ण अहिंसक बौद्ध अनुयायियों वाले देश में भी विरोध उत्पन्न हुआ।

3. अपने विरोध का जताने के लिए मुस्लिमों ने अलग अलग देशों में भी कई हिंसक प्रदर्शन किए, भारत में बोध-गया में बम विस्फोट किया गया। अमर जवान ज्योति क्षतिग्रस्त की गई, कई हिंसक झड़पें हुई स्थानीय पुलिस के साथ। जिसके फलस्वरूप अंतरराष्ट्रीय दबाब म्यांमार पर आ गया और उसने और अधिक सख्ती से रोहिंग्या मुस्लिमों के विरोध को दबाना शुरू कर दिया और ज्यादा से ज्यादा रोहिंग्या मुस्लिमों ने बॉर्डर पार करके बांग्लादेश और भारत में अवैध रूप से घुसना शुरू कर दिया।

अब बांग्लादेश में जनसंख्या घनत्व पहले से काफी ज्यादा है, गरीबी अशिक्षा के दलदल में फंसा हुआ मुस्लिम बहुल बांग्लादेश भी रोहिंग्या मुसलमानों के लिए कोई खास मददगार न हो सका, लेकिन बांग्लादेश ने उन्हें एक जरिया जरूर दे दिया क्योंकि बहुत सारे बांग्लादेशी तत्कालीन अदूरदर्शी भारत सरकार के सामने भारत में अनाधिकृत रूप से प्रवेश कर रहे थे और ऐसे राज्यों में जा रहे थे जहां की सरकारें मुस्लिम तुष्टिकरण को तवज्जो दे रही थीं। ऐसे में इन लोगों को अनुकूल माहौल मिलता गया। रोहिंग्या मुस्लिमों ने थाईलैंड, लाओस, फिलीपींस, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भारत और इंडोनेशिया के रास्ते ऑस्ट्रेलिया तक पहुंचने की कोशिश भी की और तत्कालील उदार सरकारों ने अपने यहां शरण भी दी। ऑस्ट्रेलिया ने तो अपने यहां इंडोनेशिया से आने वाले रोहिंग्या मुसलमानों के आने पे रोक लगा दी, लेकिन इन सबके बीच भारत का रुख सबके निराशाजनक रहा। तत्कालीन भारत सरकार ने तो कभी खुलकर रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने की बात स्वीकारी और इसके विपरीत भारत में चुपके से उनको बसाने का अथक प्रयास भी किया।

अब सवाल ये है कि वो कौन से राज्य थे, वो कौन सी राजनैतिक पार्टियां थी जो इतने बड़े पैमाने पर हो रही घुसपैठ पर अपनी सहमति दे रही थीं? शुरुआत करते हैं उन राज्यों से जहां या तो कम्युनिस्ट सरकारें थी या फिर वो जो मुस्लिम तुष्टिकरण में पूर्णतः यकीन रखती थी। रोहिंग्या मुसलमान भारत सरकार की नाक के नीचे दिल्ली में झुग्गी झपड़ियों में बसे रहे, तत्कालीन सरकार ने उनके राशनकार्ड, आधारकार्ड तक बनवा दिए। हैदराबाद में रोहिंग्या मुस्लिमों को सबसे अनुकूल माहौल मिला, ओवैसी जैसे नेताओं ने भरसक प्रयास किया उनको भारतीय नागरिकों की भांति सारी सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएं। मुम्बई रोहिंग्या मुसलमानों का अगला सुरक्षित ठिकाना बना क्योंकि यहां पे काफी संख्या में बांग्लादेशी भारत के नागरिक बन कर रह रहे थे, भारतीय नागरिकों की तरह ही सारी सुविधाएं इस्तेमाल कर रहे थे। हमारे घृतराष्ट्र नेताओं ने मुस्लिम तुष्टिकरण वोट बैंक के लिए उनको आधारकार्ड से लेकर भारत के पासपोर्ट तक की सुविधाएं दिलवाई।

1990 कश्मीर दंगें में एक ओर जहां कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थी बनने को मजबूर हैं, मुस्लिम वोटबैंक के लिए नेताओं ने साजिश के तहत उनको कभी कश्मीर में वापस बसने नहीं दिया। कश्मीर में से लगभग सारे के सारे हिन्दू या तो मार दिए गए या फिर भगा दिए गए। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत कोई भी भारतीय जो कश्मीर का निवासी नहीं है, वहां जमीन नहीं ले सकता है लेकिन नेताओं ने रोहिंग्या मुसलमानों को जम्मू-कश्मीर में बसने दिया। आपकी जानकारी के किये इधर बता दूं, कश्मीर से अधिकतर हिन्दू मारकर भगा देने के उपरांत, केवल जम्मू ही ऐसी जगह है जो राज्य की शासन व्यवस्था में बराबर की सहयोगी है और यहां पर हिंदुओं की जनसँख्या मुस्लिमों से अधिक है, इसी वजह से अब तक जम्मू से कोई हिन्दू ही राज्य विधानसभा या संसद पहुंचता था लेकिन ये सब जानते हुए ही पूरी प्लानिंग के साथ रोहिंग्या मुस्लिमों को कश्मीर में नहीं बल्कि जम्मू में बसाया गया, उनके वोटर कार्ड बनवाये गए जिससे इलाके में मुस्लिमों का प्रभुत्व बढ़ाया जा सके। अलग कश्मीर की वकालत करने वाले अलगाववादी नेता इस मुद्दे पर चुप रहे लेकिन अनुच्छेद 34 और 370 की सलामती के लिए मुखर रहे, अगर ये साजिश न होती तो रोहिंग्या मुसलमान भी जम्मू-कश्मीर के निवासी नहीं थे तो उनके बसने पर कथित अलगाववादी नेताओं ने विरोध क्यों नहीं किया? भारत की बड़ी बड़ी पार्टियों के नेता इस मुद्दे पर चुप क्यों रहे? क्या उन्हें ये पता नहीं था कि भारत के संसाधनों पर पहला हक उन सवा सौ करोड़ लोगों का है जो यहां की अभी तक हुई प्रगति में सहायक रहे हैं उनका नहीं जो दो दिन पहले आकर बस जाएं और बेरोजगारी-अशिक्षा-आतंक में चार चांद लगाएं।

आधुनिक भारत में उन रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमानों को शरण देना जो अनधिकृत रूप से सीमापार करके आये हैं, सबसे बड़ी अदूरदर्शिता को सिद्ध करता है और ये भी सिद्ध करता है कि ये साजिश की जड़ें कहीं न कहीं कम्युनिस्ट विधाराधारा, मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति और इस्लामिक आतंकवाद से जुड़ी रही हैं। क्या भारत के नागरिक होने पर किसी नेता का ये कर्त्तव्य नहीं होता कि वो अपने देश के हित के बारे में सोचे? निम्नाकित बिंदुओं पर विचार कीजिये –

1. भारत में कितने लोग गरीबी रेखा ने नीचे रह रहे हैं, कितने लोगों को एक समय का खाना भी नसीब नहीं हो रहा? अशिक्षा से हमारा मुल्क अभी भी लड़ रहा है। क्या ऐसे में ये गैर-जिम्मेदार पाखंडी घुसपैठिये हमारे देश की समस्याएं और नहीं बढ़ाएंगे?

2. किसान आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि सरकार गरीबी रेखा ने नीचे रहने वाले लोगों के लिए अन्न का दाम जानबूझकर कम रखती है जिससे किसानों को उनकी फसलों के उचित दाम नहीं मिल पाते। कम्युनिस्ट और विपक्ष लगातार ये मुद्दा उठाता रहता है, मैं उनसे पूछना चाहूंगा ये बांग्लादेशी और रोहिंग्या शरणार्थी क्या गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले नहीं होंगे? क्या ये देश के किसानों की मौतों का जिम्मेदार नहीं बनेंगे? और ये सब समस्या विपक्ष की दी हुई है क्योंकि तत्कालीन सरकार इनकी ही थी जिन्होंने मुस्लिम तुष्टिकरण में रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को शरण दी।

3. दुनियाँ का सबसे युवा देश है भारत, अधिकतर युवा बेरोजगार हैं, ऐसे में क्या ये निकम्मे घुसपैठिये क्या हमारा रोजगार नहीं छीन लेंगे जिस पर सबसे ज्यादा हक हम लोगों का है क्योंकि हमारे पूर्वजों के खून पसीने की कमाई से ही आज हम यहां तक पहुंचे हैं।

4. तारीफ करनी होगी भारत दिलदार मुल्क है, हमने पारसियों को पनाह दी बदले में टाटा जैसे लोगों ने देश की तरक्की में भी बहुत योगदान दिया। जब दुनियाँ के कोने कोने में यहूदी मारे जा रहे थे तब हमने भारत में यहूदियों को खरोंच नहीं आने दी बदले में इजरायल आजतक इस बात का आभार मानता है और भारत को मातृभूमि कहता है, हरदम मदद करता है। लेकिन आप सोचिए क्या रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमान शरण देने के लायक हैं? नहीं! क्योंकि इनसे हमें अशिक्षा, बेरोजगारी, जनसंख्या विस्फोट, अपराध और आतंक जैसी समस्याओं से ही दो चार होना पड़ेगा और दूसरा ये लोग कभी भारत के देशभक्त नहीं होंगे। सदैव ये खतरा रहेगा कि कहीं देश की गुप्त सूचनाएं बेचकर देश की सुरक्षा में सेंध न लगा दें।

5. सबसे बड़ी बात ये है, रोहिंग्या और बंगलादेशी मुसलमानों के सम्बंध कई आतंकवादी संगठनों से हैं, पश्चिमबंगाल का जो हाल कम्युनिस्ट और तृण मूल कांग्रेस के राज्य में हुआ है आतंक का उससे जीता जागता उदाहरण नहीं हो सकता। बम बनाने की फैक्ट्री, असलहे और दंगें की खबरें तो आम बात हैं, इस प्रदेश की सरकार का भी इन लोगों को पूरा समर्थन प्राप्त है। रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ में सम्भवतः पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्व के राज्यों की सरकारों की अदूरदर्शिता रही होगी जिसका खामियाजा हम लोग आज भुगत रहे हैं। बोध-गया में रोहिंग्या मुसलमानों के लिए बम विस्फोट किये गए, अमर जवान ज्योति को क्षति-ग्रस्त किया गया, बंगाल में लगभग हर एक दो महीने में पूर्वनियोजित दंगे करवाये गए, असम में स्थानीय लोगों की जमीनें हड़पी गई लेकिन तत्कालीन सरकारें ये सब जानते हुए भी चुप रहीं। वजह केवल और केवल मुस्लिम तुष्टिकरण और कुछ नहीं।

अब तो शायद आप समझ ही गए होंगे कि कैसे किसी पूर्वनियोजित साजिश के तहत भारत में रोहिंग्या और बांग्लादेश के मुसलमानों की शरण दी गई। एक सपना जो औरंगजेब ने देखा था भारत को “दारुन-ए-हर्ब” से “दारुन-ए-इस्लाम” में बदलने का और उसी को साकार की कोशिश में केवल इस्लामी लोगों को शरण दी गई, मुस्लिम तुष्टिकरण में तत्कालीन सरकार या यूं कहें आज के विपक्ष ने ये साजिश में अपना यथासंभव योगदान दिया। एक ऐसा देश जिसमें अपने ही एक राज्य के नागरिक दूसरे राज्यों में शरणार्थी बने हुए हैं, उन कश्मीरी पंडितों के लिए इन नेताओं का दिल नहीं पसीजता? अनुच्छेद 370 केवल हम भारतीयों को कश्मीर में बसने से रोकने के लिए है रोहिंग्या मुसलमानों को नहीं? क्यों केवल हिन्दू अमरनाथ यात्रियों पर ही हमला होता है रोहिंग्या मुसलमानों पर नहीं? क्यों पाकिस्तान सीजफायर वोइलेशन जम्मू के हिन्दू बहुल इलाकों में ही करता है, कश्मीर के एक भी जिले में नहीं? क्यों पुलिस अफसर जिसके नाम मे पंडित है उसे भीड़ द्वारा मार दिया जाता है और इसमें तथाकथित इन्हीं ठेकेदारों को मोब-लिंचिंग नहीं दिखती? क्यों निर्भया केस का मुख्य आरोपी एक सिलाई मशीन देकर छोड़ दिया जाता है? क्यों आतंकवादी याकूब मेमन के लिए आधी रात में कोर्ट खुलवाया जाता है, वहीं क्यों कई लोग न्याय के लिए मर तक जाते हैं? क्यों आतंकवादी अफजल गुरु और कसाब को बचाने के लिए याचिकाएं दाखिल होती हैं? इन सबका एक ही जबाब है, देश एक बहुत बड़ी साजिश का शिकार है, जितने जल्दी समझ लेंगें हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए उतना बेहतर होगा।

अब जब भारत सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजने का मन बना ही लिया है तो इसमे मानवाधिकार संगठनों को आपत्ति है, यही Amnesty International उस समय घास चरने चला जाता है जब कश्मीरी पंडितों को मारकर अपने ही घरों से बेदखल कर दिया जाता है, इराक मे येजेड़ी महिलाओं पे ISIS का अत्याचार होता है या फिर पाकिस्तानी सेना बलूचों पर जुल्म करती है… तब न तो ये मानवता के दलाल दिखाई देते हैं न ही विकसित देशों के राजनेता जिन्हें बस दूसरे देशों में ही शरणार्थी ठिकाने लगाने होते हैं अपने देश में नहीं। कुछ लोगों को इससे भी आपत्ति है कि भारत ने 1950 मे तिब्बती शरणार्थियों को अपनाया, 1971-72 में बंगलादेशी शरणार्थियों को अपनाया तो रोहिंग्या मुसलमानों को क्यों वापस भेजा जा रहा है ? तो उनकी जानकारी के लिए बता दूं, भूतकाल में जो निर्णय लिया गया ज़रूरी नहीं वो सही ही हो, तिब्बत शरणार्थियों के भारत में आना पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू की अदूरदर्शिता का परिणाम था क्योंकि सरदार पटेल तो तिब्बत को भारत में पहले से ही मिलाना चाहते थे तब ऐसी किसी समस्या की सम्भावना ही न रहती। रही बात बांग्लादेशी शरणार्थियों की, तब बात दूसरी थी वही म्यांमार के रोहिंग्या मुस्लिमों से भारत का कोई नाता नहीं रहा कभी।

“Indian authorities are well aware of the human rights violations Rohingya Muslims have had to face in Myanmar and it would be outrageous to abandon them to their fates” — Spokesperson, Amnesty International.

“The government should explain why it is walking away from Rohingyas, where India could play a leadership role in resolving the challenging human rights situation which has forced lakhs to leave over the years, especially given India’s track record with Tibetans in the 1950s, Bangladeshis in the 1970s and Sri Lankans in the 1980s, and Afghans in the 1990s”— South Asia Director of Human Rights Watch

हम सब लोगों को अनाधिकृत रूप से रहे उन सभी घुसपैठियों का विरोध करना चाहिए जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारे संसाधनों का प्रयोग करके हम ही लोगों को अपने अधिकारों से वंचित कर रहे हैं और हमारे देश की तरक्की को बाधित कर रहे हैं।

सोशल मीडिया पर भी इसको लेकर बड़ी बहस शुरू हो चुकी हैं, आप सभी से निवेदन हैं कि इस आसन्न खतरे को देखते हुए इस बहस में हिस्सा ले और इन रोहिंगा लोगो को निकाल बाहर करने के लिए इस बहस में हिस्सा ले और सरकार पर दबाव बनाए।

साभार- https://epostmortem.wordpress.com/ से

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