Saturday, November 23, 2024
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आपनी ही शर्तों पर जीवन जिया रोमेश जोशी ने

स्वभाव से स्वाभिमानी कलमकार को जिंदगी भर दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है। कई लोग इन दिक्कतों के आगे नतमस्तक हो जाते हैं तो कुछ टूटकर बिखर जाते हैं, मगर रोमेश जोशी अपनी शर्तों पर जीवन जीने वाले ऐसे विरले कलाकार थे जो न किसी के सामने झुके और न ही टूटे। जिंदगी को उन्होंने अपने नजरिए से जिया और भरपूर जिया।

3 फरवरी 1943 को उज्जैन में जन्में रोमेश जोशी का सोमवार दोपहर पूना में निधन हो गया। मगर उनके जैसे दृढ़ संकल्पित व्यक्ति सशरीर मौजूद न होते हुए भी यादों के झरोखों से हमेशा झांकते रहते हैं। मुझे याद है कि गुजरात में एक समाचार पत्र के संपादक के रूप में काम करते हुए जब मालिक ने उन्हें अपने ऊपर लेख लिखने के लिए कहा तो रोमेश ने ये कहकर साफ इनकार कर दिया कि ये मेरे पत्रकारिता धर्म के विरुद्ध है। इसलिए ये काम मैं नहीं करूंगा। इसके कुछ समय बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी मगर अपने सिद्धांत नहीं छोड़े।

व्यंग्य विधा में बनाई अलहदा पहचान

ख्यात लेखक शरद जोशी के छोटे भाई रोमेश ने शुरुआत में बड़े भाई के नक्श-ए-कदम पर चलते हुए व्यंग्य लिखने शुरू किए। बाद में इस विधा में अलहदा शैली विकसित कर अपनी अलग पहचान बनाई। ‘व्यंग्य की लिमिट” उनकी अनमोल कृति है। लेकिन मुझे इससे भी महत्वपूर्ण उनका उज्जैन के वरिष्ठ व्यंग्यकार शिव शर्मा के साथ लिखा उपन्यास ‘हुजुर-ए-आला” लगता है। जिसे 22 प्रकाशकों की संस्था द्वारा पुरस्कृत किया गया था। जनसंपर्क अधिकारी के रूप में उन्होंने कई जगह सेवाएं दीं मगर स्वतंत्र लेखन के लिए उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी। लेखन कार्य भी उन्होंने अपनी शर्तों पर किया। जब उन्होंने देखा कि कुछ प्रकाशक, लेखकों का शोषण कर रहे हैं तो तय कर लिया कि बिना पारिश्रमिक लिए वो किसी भी पत्रिका में नहीं लिखेंगे। अपने इस उसूल पर वो ताउम्र कायम रहे।

– सूर्यकांत नागर, वरिष्ठ साहित्यकार

निस्वार्थ मददगार ने संवार दीं कई जिंदगियां

रोमेश भैया जितने उम्दा कलमकार थे, उतने ही अच्छे ज्योतिष और वास्तु के जानकार भी थे। मगर उनका सबसे बड़ा गुण लोगों की निस्वार्थ मदद करना था। खास बात ये कि वो इसका कभी सार्वजनिक रूप से जिक्र नहीं करते थे। मुझे याद है कि उनकी गारंटी पर एक करीबी ने बैंक से लोन लिया था। वो नहीं चुका पाया। संपत्ति कुर्क होने की नौबत आई तो रोमेश भाई ने कहा कि गारंटी मैंने ली थी तो बाकी पैसा मैं दूंगा। इस तरह की कई घटनाएं हैं जब उन्होंने खुले हाथों से लोगों की मदद कर उनकी जिंदगी संवार दी।

– शैलेंद्र शुक्ला, रंगकर्मी और फिल्म निर्माता

रोमेश जोशी का ब्लॉग-
साभार- दैनिक नईदुनिया से

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