Saturday, November 23, 2024
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पाँच सालों में बैंको से 27 हजार करोड़ रु. गायब हो गए

बीते पांच सालों के दौरान पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर के बैंकों को धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े के चलते 27 हजार करोड़ रुपए का घाटा उठाना पड़ा है। इसमें से 24 हजार करोड़ रुपए का फर्जीवाड़ा सरकारी बैंकों में हुआ। खास बात यह है कि 27 हजार करोड़ रुपए के नुकसान का आंकड़ा भी केवल अनुमानित है जबकि हकीकत में यह नुकसान कई हजार करोड़ रुपए ज्यादा हो सकता है। अंग्रेजी अखबार डीएनए ने  आरटीआई से हासिल जानकारी से ये खुलासा किया है।    कुछ मामले ऐसे भी सामने आए जब बैंकों ने ग्राहकों को अपने द्वारा ही भेजे एसएमएस को नकार दिया और इससे ग्राहकों को भारी नुकसान हुआ। एक मामले में तो कैंसर मरीज को ही धोखा दे दिया गया जबकि दूसरे मामले में एक पेट्रोल पंप मालिक को बैंक ने 15 लाख रुपए का चूना लगा दिया।
 
निजी और सरकारी बैंकों ने धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े के करीब 11,500 मामलों की जानकारी रिज़र्व बैंक को दी है। ये मामले केवल एक लाख रुपए या उससे ऊपर की राशि की हेराफेरी से जुड़े हैं। इससे कम अमाउंट के घपले के बारे में तो ये बैंक आरबीआई को जानकारी ही नहीं देते। अगर धोखाधड़ी में गए छोटे अमाउंट को भी जोड़ लिया जाए तो टोटल काफी बढ़ जाएगा। अकेले SBI ने ही कुल 1124 मामलों की जानकारी RBI को दी जिनमें उसे 3,494 करोड़ रुपए का घाटा उठाना पड़ा।
पब्लिक सेक्टर के बैंकों को हुआ ज्यादा घाटा
 
सभी बैंकों को हुए 27 हजार करोड़ रुपए के जिस नुकसान की बात सामने आई है उसमें से 24 हजार करोड़ का नुकसान तो केवल पब्लिक सेक्टर के बैंकों को हुआ है। बाकी तीन हजार करोड़ रुपए का नुकसान प्राइवेट सेक्टर के बैंकों को उठाना पड़ा है। पब्लिक सेक्टर में SBI तो प्राइवेट सेक्टर में ICICI नुकसान उठाने में सबसे आगे हैं। प्राइवेट सेक्टर के बैंकों को 1776 मामलों में 1089 करोड़ रुपए का घाटा उठाना पड़ा।
 
क्या सफाई देते हैं बैंक
स्टै बैंक  के एक प्रवक्ता का इस बारे में कहना है कि शिकायतों के आधार पर तो आप कह सकते हैं कि मामले काफी ज्यादा हैं लेकिन सच्चाई ये है कि जिन मामलों की शिकायत की गई है उनका अमाउंट काफी कम है। इस प्रवक्ता ने कहा कि धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े के मामले कम होते जा रहे हैं क्योंकि बैंकों ने इन्हें रोकने के लिए टेक्नोलॉजी की मदद ली है। हालांकि ICICI बैंक ने इस बारे में कोई सफाई नहीं दी। खास बात यह है कि कुछ मामलों में कस्टमर्स को भी बैंकों को हुए इस घाटे का खामियाजा भुगतना पड़ा है जबकि बैंकों को तो हर मामले में ही नुकसान हुआ। साल 2012 में RBI ने सभी बैंकों को एक सर्कुलर जारी कर धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े को रोकने के लिए एक सख्त गाइनलाइन जारी की थी।
 
लोन में फर्जीवाड़े के सबसे ज्यादा मामले
 
बैंकों और ग्राहकों को अगर सबसे ज्यादा घाटा कहीं से उठाना पड़ता है तो वह लोन सेक्टर है। दरअसल, ऐसे हजारों मामले सामने आए हैं जब क्रिमिनल्स या फ्रॉड लोगों ने फर्जी डाक्युमेंट्स के आधार पर तगड़ा लोन लिया और बाद में वे भाग गए। हैरानी की बात यह है कि ऐसे कई मामलों में बैंक कर्मचारियों की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई, कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया गया। रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड की पूर्व सीईओ मीरा सान्याल का कहना है कि धोखाधड़ी करने वाले आजकल नए तरीके अपना रहे हैं खासकर, ऑनलाइन फ्रॉड के मामलों में टेक्नोलॉजी का गलत इस्तेमाल हो रहा है। उनके अनुसार, इसका एक बड़ा नुकसान ये होता है कि जब तक इन फ्रॉड के मामलों की जांच होती है तब तक उस कस्टमर को परेशान होना पड़ता है जिसने अपना अमाउंट खोया है।
 
बैंकों की भी गलती
 
सीबीआई द्वारा फ्रॉड के जिन कुछ बड़े मामलों की जांच की गई उनमें सामने आया कि बैंकों के कर्मचारियों और अधिकारियों की कई मामलों में मिलीभगत होती है क्योंकि वे डॉक्युमेंट्स का वेरीफिकेशन सही तरीके से नहीं करते। ये आंकड़ा भी आपको चौंकाने के लिए काफी है कि विभिन्न बैंकों के करीब 7 हजार कर्मचारियों की धोखाधड़ी के मामलों में शामिल होने के लिए जांच चल रही है। ऐसे ही एक मामले में सीबीआई ने जांच के दौरान इंडियन ओवरसीस बैंक के एक कर्मचारी को गिरफ्तार किया जिसके कारण बैंक को सात करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा।
आज तक नहीं मिले 15 लाख रुपए वापस
 
यूपी के बांदा में रहने वाले संतोष धांधरिया पेट्रोल पंप के मालिक हैं। 16 मार्च 2015 को उन्होंने इलाहबाद बैंक की एक ब्रांच 15 लाख रुपए जमा कराए कुछ दी देर में इसका sms भी उनके मोबाइल फोन पर आ गया। लेकिन उसी दिन शाम को उनके मोबाइल पर बैंक की तरफ से एक और sms आता है कि उनके अकाउंट से 15 लाख रुपए का ट्रांजेक्शन नहीं हुआ। परेशान संतोष बैंक पहुंचे तो बैंक अफसरों ने उनसे कहा कि उनके अकाउंट में 15 लाख रुपए कभी जमा ही नहीं किए गए। इसके बाद संतोष ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। संतोष का कहना है कि इस तरह की घोखाधड़ी से उन्हें तगड़ा झटका लगा है क्योंकि यह पैसा उन्होंने कड़ी मेहनत से कमाया था।
कैंसर पीडि़त पत्रकार के साथ भी धोखा
 
32 साल के नागार्जुन कोपुला पत्रकार हैं और लंग कैंसर से पीडि़त हैं। उनके दोस्तों ने उनके इलाज के लिए करीब 1 लाख 23 हजार रुपए इकट्ठा कर उनके अकाउंट में जमा किए। 3 मार्च 2015 को एसबीआई की ओर से उनके पास फोन आया जिसमें उनसे अकाउंट की डीटेल्स पूछी गईं। इसके बाद से इन 1 लाख 23 हजार रुपए का कोई अता-पता नहीं चला। उनके दोस्तों ने बैंक जाकर जानकारी ली लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ। कोपुला कहते हैं कि इस पैसे के चले जाने से अब उनका इलाज कैसे होगा, उन्हें इस बात की चिंता सताए जा रही है।
 
साभार- डीएनए से 

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