अल जजीरा पर राम माधव का साक्षात्कार लेने वाले मेहदी हसन भले ही आरएसएस के नागपुर दफ्तर की अपनी विजिट के दौरान अखंड भारत का नक्शा देखकर चकित रह गए हों, लेकिन हिंदू राष्ट्रवादियों के लिए अखंड भारत मुख्य मुद्दा है। 1950 और 1960 में भारतीय जनसंघ ने इस संबंध में कई प्रस्ताव पास किए थे जो इस मुद्दे से उनका जुड़ाव दर्शाता है। 1953 में जनसंघ की अखिल भारतीय महासभा ने घोषणा की थी कि, हम एक और संयुक्त भारत में विश्वास जताते हैं और अखंड भारत के आदर्श को पूरा करने के अपने नए प्रयासों के लिए संकल्प लेते हैं। 1965 में एक बार फिर से उम्मीद जताई गई कि एक दिन भारत और पाकिस्तान एक होंगे और अखंड भारत बनेगा।
वीडी सावरकर के अनुसार वह प्रत्येक व्यक्ति हिंदू है जो सिंधु नदी से लेकर समुद्र और हिमालय के नीचे की जमीन पर रहता है। इसकी सीमाएं इस तरह से बताई गई हैं कि दुनिया के किसी देश की सीमाओं का इस तरह प्राकृतिक निर्माण नहीं हुआ है। लेकिन सावरकर के लिए भारत केवल एक प्राकृतिक यूनिट नहीं है बल्कि यह हिंदुओं की इतनी पवित्र भूमि है जिसकी पवित्रता नदियों और पहाड़ों द्वारा भी जांची गई है। इसलिए भारत हिंदुओं के लिए न केवल मातृभूमि और पितृभूमि है बल्कि पुण्यभूमि भी है। इसलिए सावरकर की हिंदुओं की श्रेष्ठता एक ओर है और मुस्लिमों व ईसाइयों की ओर।’ उनके लिए भी हिंदुस्तान पितृभूमि ही है जिस तरह से हिंदुओं के लिए हैं लेकिन उनके लिए यह पवित्रभूमि नहीं है। उनकी पवित्र भूमि अरब या फिलीस्तीन है। उनके भगवान, विचार और आदर्श इस धरती के लाल नहीं हो सकते।’
आरएसएस ने हिंदू भूमि के इस विचार को सावरकर से अपनाया जो कि उसके सदस्यों की शाखा मैदान में रोजाना की प्रार्थना में नजर आता है: ‘ अपनी संतानों को हमेशा स्नेह देने वाली हे माता आपको प्रणाम। हे हिंदू भूमि मुझे तुमने खुशी से पाला पोसा है। यह शरीर तुम्हे समर्पित है।’ राष्ट्रीय भूमि का यह रहस्य बंटवारे के बाद और बढ़ गया। नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या का फैसला किया क्योंकि उसने भारत के बंटवारे के लिए उन्हें जिम्मेदार माना। उसने अपने केस के ट्रायल के दौरान यह बताया था। फांसी पर लटकाने से ठीक पहले उसने और नारायण आप्टे ने अखंड भारत अमर रहे का नारा लगाया। बंटवारे के बाद आरएसएस की सभी शाखाएं 14 अगस्त को भारत के एकीकरण के लिए अखंड भारत संकल्प दिवस मनाती है। आरएसएस के दूसरे चीफ एमएस गोलवलकर ने अपनी किताब बंच ऑफ थॉट्स में लिखा है कि, हमारे पुराण और ग्रंथ भी हमारे सामने हमारी मातृभूमि की विस्तृत छवि को प्रस्तुत करते हैं। अफगानिस्तान हमारा प्राचीन उपगणस्थन था। महाभारत के शल्य यहीं से आए थे। आधुनिक काबुल और कंधार प्राचीन समय में गांधार थे जहां से कौरवों की मां गांधारी आई थी। यहां तक कि र्इरान भी वास्तव में आर्यन था। इसके पूर्ववर्ती राजा रजा शाह पेहलवी इस्लाम के बजाय आर्यन मान्यताओं को मानते थे। पारसियों के पवित्र ग्रंथ जेंद अवेस्थ की ज्यादातर बातें अथर्व वेद से ली गई हैं। पूर्व की ओर आएं तो बर्मा हमारा प्राचीन ब्रह्मदेश था। महाभारत में जिस इरावत का वर्णन है वह वर्तमान इरावदी घाटी है। दक्षिण में लंका सबसे करीबी था और इसे कभी अलग नहीं माना गया।
मेहदी हसन ने आरएसएस दफ्तर में जो अखंड भारत का नक्शा देखा वह इतिहास और पौराणिक कथाओं से प्रभावित है। आधुनिक समय में पड़ोसी देश श्रीलंका और नेपाल में हिंदुओं की मौजूदगी इसी जीवनदर्शन का समर्थन करती है। इसी का नतीजा है कि 1983 में विश्व हिंदू परिषद की एकात्मता यात्रा काठमांडू से शुरु हुई जो रामेश्वरम तक चली। यह नागपुर में गंगासागर से सोमनाथ और हरिद्वार से कन्याकुमारी जाने वाली यात्राओं से मिली। अखंड भारत के नारे के फिर से उभरने से भारत और पाकिस्तान के रिश्तों पर भी बुरी असर पड़ सकता है। ऐतिहासिक रूप से इस मत के जरिए पाकिस्तान में भारत का डर बढ़ा और पाकिस्तानी शासकों ने इस डर को आगे बढ़ाया। 1961 में गोवा ऑपरेशन के बाद ‘डॉन’ के संपादकीय में दावा किया गया कि जो गोवा में हुआ वहीं खतरा पाकिस्तान के सामने भी है और जल्द ही भारत ऐसा कर सकता है। भारतीय अपने मन में सोचते हैं कि पाकिस्तान मूल रूप से अखंड भारत का ही हिस्सा है। छह साल बाद अपनी जीवनी में अयूब खान ने लिखा कि भारत सोचता था कि वह पाकिस्तान का जीत ले और उसे अपना गुलाम बना ले।
अल जजीरा को दिए अपने साक्षात्कार और बाद में सफाई में लिखे गए लेखों में राम माधव ने बताया कि अखंड भारत एक लोकप्रिय आंदोलन होना चाहिए न कि राजनीतिक निर्णय। वास्तव में भारत और पाकिस्तान के लोगों के बीच इतना कुछ आम है कि वे हिंदू, मुस्लिम और अन्य लोगों द्वारा तैयार की गई हजारों साल पुरानी सभ्यता को पुनर्जीवित कर सकते हैं। अखंड भारत प्रोजेक्ट के जरिए इस लक्ष्य को पाने में थोड़ी सी मदद मिल सकती है। पिछले महीने जब लाहौर में दोनों देशों के प्रधानमंत्री जब मिले तो ऐसा लगता है कि यही एजेंडा था। उम्मीद है कि पाकिस्तान में जिहादियों और भारत में विरोधियों के प्रयासों के बावजूद वे इस पर काम करेंगे।
– लेखक सेरी-साइंसेज पेरिस में सीनियर रिसर्च फेलो हैं और लंदन के किंग्स इंडिया इंस्टीट्यूट में भारतीय राजनीति और समाजशास्त्र के प्रोफेसर हैं। साथ ही कार्नेजी एंडॉमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में नॉन रेजिडेंट स्कॉलर हैं।
साभार-: http://www.jansatta.com/ से