आगरा। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में अखिल भारतीय लोधी राजपूत टेलीफोन डायरेक्टरी के तत्वावधान में देह्तोरा ग्राम स्थित अखिल भारतीय लोधी राजपूत टेलीफोन डायरेक्टरी कार्यालय पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें डॉ. अनीता सिंह ने बतौर मुख्य अतिथि कार्यक्रम में शिरकत की। कार्यक्रम की शुरुआत अखिल भारतीय लोधी राजपूत टेलीफोन डायरेक्टरी की संरक्षक सुखदेवी और मुख्य अतिथि डॉ. अनीता सिंह ने सरस्वती मां के समक्ष दीप प्रज्वलित कर की। इस अवसर पर मुख्य अतिथि ने उपस्थितजतनों को महिला दिवस की महता बताई।
अखिल भारतीय लोधी राजपूत टेलीफोन डायरेक्टरी के ब्रह्मानंद राजपूत ने कहा कि महिला दिवस का बुनियादी अर्थ हर वर्ग की महिला के स्तर को ऊंचा उठाना है तथा उसकी आवाज को समाज के हर कोने तक मुखर करना है। उन्होने कहा कि सिर्फ नाम के लिए महिला दिवस मना लेना ही काफी नहीं है। सही मायने में महिला दिवस तब सार्थक होगा जब असलियत में महिलाओं को वह सम्मान मिलेगा जिसकी वे हकदार हैं। इसके साथ ही ब्रह्मानंद राजपूत ने कहा कि समाज को संकल्प लेना चाहिए कि समरसता की बयार भारत में बहे, भारत के किसी घर में कन्या भ्रूण हत्या न हो, मातृशक्ति अपनी गरिमा और गौरव का परिचय देगी। विश्व के मानस पटल पर प्रखर भारत की तस्वीर तभी प्रकट होगी जब हमारी माताएं-बहनें अपने गौरव को पहचानेंगी और राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभाएंगी।
भारत की नारियों को ब्रहमानंद राजपूत ने भारत की तस्वीर की संज्ञा देते हुये कहा कि भारत की इस तस्वीर को विश्व पटल पर साक्षात प्रकट करने के लिए भारत की आत्मा को समझना होगा। ब्रहमानंद राजपूत ने कहा कि हमारा समाज तभी तरक्की कर सकता है जब महिलाएं स्वावलंबी बनेंगी तथा पुरूषों के साथ हर क्षेत्र में कंधे-से-कंधा मिलाकर चलेंगी। ब्रह्मानंद राजपूत ने कहा कि पुराने समय में कहा जाता था कि “अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में दूध और आँखों में पानी” लेकिन अब समय बदल चुका है अब नारी सबल बन रही है। अब नारी को अबला कहना ठीक नहीं है। अब नारियों के लिये कहा जाना चाहिये कि “सबला नारी घर-घर तेरी यही कहानी अब तू बनेगी जीजाबाई और झांसी की रानी’’।
मुख्य अतिथि डॉ. अनीता सिंह ने महिलाओं के साथ हो रही छेडछाड पर प्रकाश डालते हुए कहा की एक स्त्री होते हुए ऐसा कहना वाकई दिल पर पत्थर रखने जैसा है, लेकिन आज के हालातों को देखकर तो यही कहा जा सकता है। मानती हूं कि सारे पुरुष और समाज के सभी लोग ऐसी सोच वाले नहीं होते और वे नारियों को वह सम्मान देते हैं जिनकी वे हकदार हैं, पर जिस तरह एक सड़ी हुई मछली सारे तालाब को गंदा कर डालती है उसी तरह ऐसा कुकृत्य करने वाले पुरुष सारे सभ्य वर्ग के लिए एक कलंक हैं। जिसे मिटाना इन्हीं सभ्य लोगों का कर्तव्य है।
इस अवसर पर सुखदेवी, मानसिंह राजपूत एडवोकेट, अरबसिंह राजपूत, प्रभाव सिंह, पवन, मोरध्वज, अनारदेवी, कम्पूरीदेवी, रामदुलारी, मीना, मुन्नीदेवी, फूलनदेवी, मीरा, ओमवती, लक्ष्मी, मीना, कल्लनदेवी, निर्मला, राधा, कमलेश, राजकुमारी, धारा, दुष्यन्त राजपूत, दीपक राजपूत, नीतेश राजपूत, राकेश राजपूत, जितेंद्र लोधी ,राजवीर सिंह सहित अधिक संख्या में महिलाओं की उपस्थिति थीं।