दिग्गज क्रिकेटर सचिन तेंडुलकर का ही हाल ही में आयकर विभाग के साथ एक विवाद हो गया था। उन्होंने पुणे में अपना एक फ्लैट किराये पर देने की भरपूर कोशिश की, लेकिन कामयाबी हाथ नहीं लगी। इसलिए सचिन ने फ्लैट से हुई कमाई को नगण्य दिखाया। लेकिन आयकर विभाग का कहना था कि उन्हें अनुमान लगाना चाहिए कि उस फ्लैट का कितना किराया मिलता और उसी के मुताबिक आयकर अदा करना चाहिए। सचिन मुकदमा जीत गए। लेकिन अधिकतर लोगों के लिए इस तरह मुकदमा लडऩा आसान नहीं है।
ईवाई इंडिया के टैक्स पार्टनर और इंडिया मोबिलिटी लीडर अमरपाल चड्ढा कहते हैं, ‘साल भर से खाली फ्लैट के मामले में अदालत का फैसला भले ही सचिन के पक्ष में गया, लेकिन अदालतों ने इस मुद्दे पर विरोधाभासी फैसले दिए हैं कि अगर कोई फ्लैट पूरे वित्त वर्ष में खाली पड़ा रहा है तो उस पर रिक्ति भत्ता मिलना चाहिए या नहीं।’ उन्होंने कहा कि रिक्ति भत्ते का फायदा मांगना चुनौती भरा हो सकता है क्योंकि हो सकता है कि राजस्व अधिकारी आपके दावे या मांग को स्वीकार ही नहीं करें।
इस बारे में अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि सचिन ने अपने फ्लैट को किराये पर चढ़ाने के लिए ‘समुचित’ यानी अच्छी खासी कोशिश की थी। लेकिन समुचित प्रयास व्यक्ति पर निर्भर है और अलग-अलग मामले में इसकी व्याख्या अलग-अलग तरीके से की जा सकती है।
अगर किसी व्यक्ति के पास एक से अधिक मकान हैं और उनमें से एक मकान को वह किराये पर दे देता है तो उसे किराये से होने वाली कमाई पर आयकर देना होगा। लेकिन अगर मकान किराये पर नहीं चढ़ा है तो क्या होगा? उस सूरत में भी मकान मालिक को आयकर चुकाना होता है। उसके लिए आय की गणना यह मानकर की जाती है कि अगर उसने मकान किराये पर दिया होता तो उसे कितना किराया मिल रहा होता। आयकर विभाग ने खाली पड़ी संपत्तियों पर किराये की गणना के लिए एक तरीका निकाला है। नांगिया एडवाइजर्स की एसोसिएट डायरेक्टर मृदु मल्होत्रा कहती हैं, ‘इसके लिए तमाम पहलुओं पर विचार किया जाता है, जैसे संपत्ति कहां स्थित है, नगरपालिका ने उस संपत्ति की सालाना कीमत क्या तय की है, आसपास में उसी तरह की संपत्तियों का किराया कितना चल रहा है और उस संपत्ति का किराया कितना होता।’
अगर किसी व्यक्ति के पास कई संपत्तियां हैं तो वह उनमें से एक संपतित को अपने रहने के लिए इस्तेमाल हो रही संपत्ति मान सकता है और उसकी सालाना कीमत शून्य मान ली जाएगी। आरएसएम एस्ट्यूट कंसल्टिंग ग्रुप के संस्थापक सुरेश सुराना कहते हैं, ‘यह तय करने का अधिकार मकान मालिक के ही पास है कि कौन सी संपत्ति में वह खुद रह रहा है।’ बाकी संपत्तियां चाहे किराये पर चढ़ाई गई हों या खाली पड़ी हों, उनकी सालाना कीमत तय की जाएगी और देखा जाएगा कि उनसे कितना किराया मिलता और उसी आधार पर कर वसूला जाएगा।
अगर भाई-बहनों को विरासत में या वसीयत में कोई संपत्ति मिलती है तो उन्हें भी अनुमानित किराया चुकाना होता है। चड्ढïा ने कहा, ‘विरासत में संपत्ति पाने वाले लोगों को संपत्ति के मालिकाना हक में हिस्सेदारी के आधार पर अनुमानित किराया देना होगा।’ अगर किसी व्यक्ति के दो मकान हैं। एक में वह खुद रहता है और दूसरे में उसके माता-पिता या संबंधी रहते हैं, तब भी अनुमानित किराया देना होगा। एन ए शाह एसोसिएट्स में पार्टनर गोपाल बोहरा ने कहा, ‘कर के संदर्भ में दूसरे मकान के बारे में यह माना जाएगा कि उसे किराये पर दिया गया है।’
उनकी पुणे में दो संपत्तियां हैं। सफायर पार्क में उनका 60.60 लाख रुपये का एक फ्लैट है और दूसरा फ्लैट ट्रेजर पार्क में है, जिनकी कीमत 82.8 लाख रुपये है। उनका दूसरा फ्लैट 15,000 रुपये महीने पर 9 महीने के लिए किराये पर चढ़ा था। सचिन ने यह आय दिखाई थी। उन्होंने पहले फ्लैट पर नगण्य आय दिखाई थी क्योंकि बहुत ढूंढने पर भी उन्हें किरायेदार नहीं मिला। सचिन ने वे चि_िïयां दिखाईं, जो किरायेदार तलाशने के लिए उन्होंने डेवलपर को भेजी थीं। आयकर अधिकारी ने यह मानने से इनकार कर दिया कि उन्होंने किरायेदार तलाशने की भरसक कोशिश की थी। अधिकारी ने यह भी कहा कि सचिन ने पहले फ्लैट का किराया बहुत कम दिखाया था। उसने दोनों फ्लैटों से अनुमानित आय को उनकी कुल कीमत का 6 फीसदी यानी 8.60 लाख रुपये बताया। कर विभाग ने यह भी कहा कि इस बात के सबूत नहीं हैं कि सचिन ने चि_ïी बिल्डर को भेजी भी थीं या नहीं। बिल्डर का जवाब भी नहीं था।
आयकर अपीलीय पंचाट ने सचिन के पक्ष में फैसला दिया। आईटीएटी ने पाया कि सचिन ने किरायादार ढूंढने के लिए समुचित प्रयास किया था। साथ ही उसका यह भी कहना था कि अगर किसी ने 61.2 लाख रुपये का भारीभरकम कर चुकाया हो तो छोटी सी रकम बचाने के लिए वह झूठी चि_ïी नहीं दिखाएगा।
मुंबई के पंचाट ने कहा कि ‘संपत्ति किराये पर चढऩे’ की शब्दावली में इसे किराये पर चढ़ाने की मंशा भी शामिल है और इसका मतलब केवल संपत्ति के वास्तव में किराये पर चढऩा ही नहीं है। कोई ऐसी पूर्व परिभाषित गतिविधियां नहीं हैं जिन्हें समुचित प्रयास माना जा सकता है और आय कर कानून में यह पहलू शामिल नहीं है। यह व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करता है। कर विशेषज्ञों का कहना है कि मकान मालिक को संपत्ति किराये पर देने की कोशिश का सबूत देना पड़ता है। टैक्समैन डॉट कॉम के महाप्रबंधक नवीन वाधवा कहते हैं, ‘सबूतों में ब्रोकरों के साथ पत्राचार, अखबार में विज्ञापन और संपत्ति को ऑनलाइन ब्रोकिंग साइट पर सूचीबद्घ करवाना तथा इसमें किराये की रकम का उल्लेख करना शामिल है।’ सुराना का भी कहना है कि आपके पास पर्याप्त सबूत होने चाहिए कि आपने किरायेदार ढूंढने के लिए वास्तव में प्रयास किए थे।
किराया जो मकान मालिक को उस खाली घर पर मिल सकता है जिसमें वह खुद न रहा हो। इसकी गणना के लिए मकान मालिक को नगरपालिका द्वारा तय संपत्ति का वार्षिक दर योग्य मूल्य और आसपास की समान संपत्तियों पर मिलने वाले किराये पर विचार करने की जरूरत है।
अगर आप अपने मकान के लिए किरायादार नहीं ढूंढ पाते हैं तो आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आपने इसके लिए हरसंभव प्रयास किया है। कर लाभ का दावा करने के लिए आपको ब्रोकर नियुक्त करने और संपत्ति को वेबसाइट पर सूचीबद्घ कराने के सबूत देने होंगे। इस संबंध में हुए पत्राचार संभाल कर रखना होगा।
जब कर विभाग आपको खाली मकान पर कर भुगतान नहीं करने की अनुमति देता है, यह मानते हुए कि आपने किरायादार ढूंढने के लिए हरसंभव प्रयास किया था।
साभार – http://hindimedia.in से