चुनावी मैदान में पदार्पण करते ही शायद ही किसी ने इतना ध्यान बटोरा होगा, जितना इस समय पुरी लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के प्रत्याशी डॉक्टर संबित पात्रा बटोर रहे हैं.
चुनाव का परिणाम चाहे कुछ भी हो मगर इसमें कोई संदेह नहीं है कि उनकी अनोखी प्रचार शैली की चटखारे लेकर चर्चा हो रही है.
जब से वे चुनाव प्रचार में निकले हैं, तब से शायद ही कोई दिन गया होगा जब उनका कोई फ़ोटो या वीडियो सोशल मीडिया पर रोचक चर्चा का विषय न बना हो.
टीवी बहसों में आम तौर से गलाबंध में नज़र आनेवाले भाजपा के इस राष्ट्रीय प्रवक्ता को पुरी के लोग कभी धोती पहने हुए पाते हैं तो कभी खोरधा गमछा पहने गांव की नदी या तालाब में डुबकी लगाते हुए; कहीं वह किसी बूढ़ी औरत को साष्टांग प्रणिपात करते हुए नज़र आते हैं तो कहीं किसी के घर भोजन करते हुए.
दिन की शुरुआत होती है ‘चकुली’ (डोसा का ओडिया संस्करण) और ‘घुगुनी’ (मटर की सब्जी) से. फिर दिन भर जहाँ जो मिला, वो खा लिया- कहीं ‘पखाल’ भात तो कहीं ‘चुडा’ के साथ केला.
पुरी से प्रचार के लिए निकलने से पहले मैं जब पात्र से मिला तो मुझे भी ‘चकुली’ और ‘घुगुनी’ परोसा गया. मेरा उनसे पहला सवाल यह था कि सोशल मीडिया में वे हमेशा किसी के घर खाते हुए या किसी को खाना खिलाते हुए क्यूं नज़र आते हैं?
पात्रा ने इसका यूँ जवाब दिया, “चुनाव प्रचार के लिए मैंने एक नियम बनाया हुआ है. गांव में ही रहना है. गांव में जो दिनचर्या है, उसी का पालन करना है और इसे सोशल मीडिया पर शेयर करना है.”
डॉ. संबित पात्र ने कहा, “मैं नाश्ता, खाना सबकुछ जनता के बीच, जनता के साथ करता हूँ. जनता जो भी देती है, मैं वही खाता हूँ क्योंकि हर दिन किसी नए गांव में होता हूँ.”
“मैं उन्हें एक सन्देश देना चाहता हूँ कि हम ग़रीबों के साथ, जनता के साथ हैं. खाना तो बस एक बहाना है. इससे आप एक घर की पूरी कहानी जान पाते हैं. और मेरा मानना है कि अपने क्षेत्र में रहनेवाले लोगों के दुःख और कष्ट जानना हर प्रत्याशी का कर्तव्य है.”
लोगों के घरों में खाना, तालाब में नहाना- क्या ये सब एक सोची, समझी रणनीति का हिस्सा है या चुनाव प्रचार के दौरान ही उन्होंने यह शैली अपनाया? इस सवा पर संबित ने कहा, “कैम्पेन का मतलब क्या होता है? लोगों के बीच जाना. चुनाव को एक त्योहार कहा जाता है और मैं इस त्योहार में पूरे जोश से शामिल हूँ. लेकिन मेरे दोनों प्रतिद्वंदी इसमें हैं कहाँ?”
सीधे सवालों के टेढ़े जवाब
तस्वीरों और वीडियो के ज़रिये जो लोग संबित पात्रा की ख़बर रखते हैं, उन्हें लगता है जैसे कोई आदमी एक बिल्कुल किसी नई दुनिया में आ गया है और हर चीज़ वह टटोल कर देख रहा है. कुछ का कहना है कि यह कुछ-कुछ ‘एलिस इन वंडरलैंड’ की तरह लगता है.
इस बात के ज़िक्र पर पात्रा भड़कते हुए कहते हैं, “बीबीसी लंदन वालों को ओडिशा की झोपड़ियां एलिस इन वंडरलैंड की तरह लगती होंगी लेकिन यह ओडिशा के लोगों की हक़ीक़त है. और मेरे लिए ये कोई नया तजुर्बा नहीं है. मैं यहीं पैदा हुआ हूँ, लंदन में नहीं. मैं झोपड़ी में रहा हूँ. ‘पखाल’ खा कर बड़ा हुआ हूँ. मैं भी बचपन में गांव में शौच के लिए बाहर जाता था. अभी पांच छः साल पहले ही हमारे घर में टॉयलेट बना है.”
लेकिन क्या उन्हें लगता है कि उनके इस अनोखे प्रचार स्टाइल से चुनाव परिणाम पर कोई असर पड़ेगा?
इसपर पात्र कहते हैं, “असर पड़ चुका है. मैं किसी के ख़िलाफ़ बोलना नहीं चाहता लेकिन जिन्होंने इस चुनाव क्षेत्र का 15 साल तक प्रतिनिधित्व किया है (बीजू जनता दल के पिनाकी मिश्र), वे इस दौरान मुश्किल से चार, पांच बार यहाँ आए हैं और वह भी हेलिकॉप्टर से. जो काम उन्होंने 15 साल में नहीं किया, मैंने 15 दिन में कर दिखाया है. गणतंत्र का मतलब यही तो होता है- लोगों के बीच होना.”
चुनाव प्रचार के लिए संबित पात्रा ने जो धोती, गमछा का पहनावा अपनाया है, कितने सहज हैं वे उसमें?
इस सवाल के जवाब में उन्होने मेरी टांग खींचने की कोशिश करते हुए कहा, “बिलकुल सहज हूँ. गर्मी है और पसीना ख़ूब निकलता है. ओडिशा का गमछा काफी प्रसिद्ध है और पसीना पोंछने में अच्छा काम आता है. अब नहाऊंगा तो गमछा पहनकर ही तो नहाऊंगा न? और कैसे नहाऊंगा? घर में भी गमछा पहनकर नहाता था लेकिन तब आप फ़ोटो नहीं खींचते थे.”
जब मैंने उन्हें याद दिलाया कि ऐसे फ़ोटो तो वे ख़ुद ही सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं तो पात्रा बातचीत को एक दूसरी दिशा में ले गए.
उन्होंने कहा, “सोशल मीडिया इस जेनेरेशन का सबसे शक्तिशाली माध्यम है. ओडिशा का युवा बहुत स्मार्ट है और उनके पास पहुँचने के लिए, उनके पास अपनी बात पहुंचाने के लिए यह एक कारगर ज़रिया है. यह भी प्रचार है .”
साभार – https://www.bbc.com/hindi/ से