एक तरफ जहां केंद्र सरकार भारत की प्राचीनतम भाषा संस्कृत को लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने के प्रयासों में जुट रही है, वहीं मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के कुछ युवा भी इस कार्य में अपना योगदान देने आगे आए हैं।
भोपाल के कुछ संस्कृत प्रेमी युवाओं ने रॉकबैंड 'ध्रुवा' बनाया है। देश में अपनी तरह का पहला ये संस्कृत रॉकबैंड अपनी अनोखी अवधारणा के चलते भारतीय संस्कृति प्रेमियों को लुभा रहा है।
रॉकबैंड के सदस्य भारतीय वांगमय में शामिल आदिशंकराचार्य के स्तोत्रों और ऋग्वेद की ऋचाओं को सरल रूप में संगीतबद्ध तरीके से लोगों के सामने प्रस्तुत करते हैं।
बैंड का उद्देश्य आधुनिकता के दौर में पीछे छूटती जा रही संस्कृत को युवा पीढी के बीच लोकप्रिय बनाना है, जिसमें वह काफी हद तक सफल होता दिख रहा है।
बैंड के संयोजक और पूरी अवधारणा के'मास्टरमाइंड' डॉ संजय द्विवेदी ने बताया कि संस्कृत के प्रति लोगों के बीच का'हौवा' खत्म करने और लोगों को सहज भाषा में अपनी संस्कृति को समझाने के लिए उन्होंने ये प्रयोग किया है।
डॉ द्विवेदी पिछले 10 साल से संस्कृत गायन की एकल तौर पर प्रस्तुति दे रहे हैं और अपने इन्हीं अनुभवों का निचोड उन्होंने बैंड में समाहित किया है।
बैंड ने हाल ही में अपनी पहली प्रस्तुति भोपाल में दी, जिसमें आदिशंकराचार्य के'भज गोङ्क्षवदम्', शिव तांडव और देश के प्रख्यात संस्कृत विशेषज्ञ प्रो राधावल्लभ त्रिपाठी रचित धीवर (मल्लाह) गीतों पर अपनी प्रस्तुति से बैंड सदस्यों ने श्रोताओं को दांतो तले अंगुली दबाने पर मजबूर कर दिया।
आम तौर पर क्लिष्ट मानी जाने वाली संस्कृत भाषा के मंत्रों को समझाने के लिए बैंड के सदस्य प्रस्तुति के दौरान मंत्रों की पृष्ठभूमि से जुडा माहौल तैयार करते हैं और फिर बैंड के सदस्यों का गायन उस कथानक को श्रोताओं के सामने पेश करता है।
साभार- पत्रिका से