हरियाणा के यमुनानगर के मुगलवाली में जल की धारा फूटने से सरस्वती नदी के अस्तित्व से जुड़ी तमाम किवदंतियों और इसके मिथकीय प्रसंग से परदा उठ गया है। अब इस प्राचीन नदी का अस्तित्व प्रामाणिक हो गया है।
देश-दुनिया के तमाम वैज्ञानिक और शोध संस्थाएं अब इस चमत्कारिक साक्ष्य से नदी के अस्तित्व को मान रहे हैं। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के भू-विज्ञान विभाग के अध्यक्ष और भूगर्भशास्त्री डॉ एआर चौधरी ने बुधवार को बिलासपुर के गांव मुगलवाली का दौरा किया।
उन्होंने बताया कि सरस्वती के प्राचीन चैनल इस क्षेत्र से निकलते हैं। यहां से मंगलवार को निकला पानी प्राथमिक जांच के बाद सरस्वती का लगता है। हालांकि अभी डेटिंग का कार्य बाकी है, पर कहा जा सकता है कि यहां से बहने वाली धारा आगे चलकर सरस्वती में मिलती होगी।
इससे पहले भी सरस्वती की खोज को लेकर देश-विदेश के संस्थान इसके अस्तित्व संबंधी सकारात्मक रिपोर्ट दे चुके थे। नासा के सेटेलाइट चित्रों ने बताया था कि जैसलमेर इलाके में खास पद्धति में भूजल जमा है। बाद में इसरो व ओएनजीसी ने अपने तरीके से इसकी प्रामाणिकता के संकेत दिए थे।
विशालकाय नदी
पूर्व में हुए तमाम शोध नतीजों के अनुसार ऋग्वेद में वर्णित सरस्वती एक बहुत विशाल नदी थी जो करीब पांच हजार साल पहले अपने समय से पूर्व ही विलुप्त हो गई। अब यह नदी जमीन में साठ मीटर नीचे विलुप्त हो गई है। इसके खोजे गए अब तक सभी चैनलों के मैप यह बताते हैं कि यह नदी करीब 1500 किमी लंबी थी। तीन से 15 किमी चौड़ी थी। औसतन इसकी गहराई 5 मीटर थी।
इन राज्यों से होकर बहती थी
यह नदी संभवतः मौजूदा राज्यों हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से होकर बहती है।
सरस्वती को खोजने की उम्मीद को तब बल मिला जब अमेरिकी सेटेलाइट लैंडसेट ने डिजीटल तस्वीरें भेजी। तमाम वैज्ञानिकों को हतप्रभ करने वाली इन तस्वीरों में जैसलमेर इलाके में एक निश्चित पैटर्न में भूजल के मौजूद होने की बात दिखी। इसके बाद ही वैज्ञानिक अनुमान लगाने लगे कि हो न हो यह कोई बड़ा प्राचीन जल चैनल है जो किसी बड़ी नदी का हिस्सा है।
साभार- दैनिक जागरण से