मथुरा की एक संकरी गली में पुष्टिमार्ग की अमूल्य संपदा का भंडार छिपा है। भारत में बल्लभ कुल की प्रथम हवेली सतघरा में कभी सातों निधियां बिराजी थीं। पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक वल्लभाचार्य जी के पुत्र गोस्वामी विट्ठालनाथ जी ने मथुरा में सर्वप्रथम इसी भवन वास किया था। गुजरात व विदेशों से आने वाले वैष्णवों के लिए सतघरा सबसे बड़ा तीर्थ है पर पर्यटन विभाग के लिए नहीं। धार्मिक पर्यटन के नक़्शे में दूर-दूर तक सतघरा का नाम नहीं है। पांच सौ वर्ष की विरासत को संजोए खड़ी यह गली एक हेरीटेज है। इसके संरक्षण व प्रचार प्रसार की ज़रूरत है। इसी गली को सतघरा के नाम से ही जाना जाता है। सात घरों की हवेली का स्वरूप बहुत छोटा रह गया है।
गली के आख़िर में गुसाई विट्ठलनाथ जी का प्राचीन स्थान है। प्रातः काल इस स्थान तक पहुँचे तो सेवायत शृंगार सेवा मिले।
सतघरा श्रीनाथ जी की प्रथम चरण चौकी है। गुसाईं जी कौ घर है, सातौ निधि स्वरूप की हवेली है। गुसाईं जी अपने परिवार संग अडैल सों यहाँ पधारें और तीन कमरा बनवाय कै विराजे। यहाँ पुष्टिमार्ग की सात निधि और नवनीत प्रिया जी विराजे। ख़ुद श्री जी बाबा नै याए सतघरा नाम दियौ। यहाँ श्रीजी बाबा (श्रीनाथजी) पधारे तो बालकन नै बिनकी ख़ूब सेवा करी। यह सत्य स्वरूप नारायण कौ घर है। अकबर की बेगम ताज बीवी यहीं पै सेवक भई। अकबर नै आय कै विट्ठलनाथ जी कू गोस्वामी की उपाधि दई। तबही ते गोस्वामी परम्परा प्रारम्भ भई। यहीं पै गुसाँई जी के घनश्याम जी कौ प्राकट्य भयो। तबही ते पुष्टिमार्ग मै ब्रज भाषा शुरू भई। सातों बालकन कू एक-एक निधि की सेवा सौंप के गुसाँई जी गोकुल चले गए। वहाँ उन्होंने बस्ती बसाई। सतघरा मैं सातो बालकन की गद्दी है।
देश-विदेश से वैष्णवजन सतघरा को आते हैं। वर्तमान में सप्त निधियां अलग-अलग स्थानों पर विराजमान हैं।
पुष्टि मार्ग की सात निधि
१- मथुराधीश (कोटा)
२- विट्ठलनाथ जी (नाथद्वारा)
३- द्वारकाधीश (कांकरौली)
४- गोकुलनाथ (गोकुल)
५- गोकुल चंद्रमा (कामवन)
६- बालकृष्ण जी (सूरत)
७- मदन मोहन जी (कामवन)
इतिहास
वल्लभाचार्य के पुत्र गुसाई विट्ठलनाथ अपने अड़ैल स्थित निवास स्थान को छोड़कर सन् १५६६ में स्थाई रूप से ब्रज में वास करने लगे। उन्होंने अपने परिवार सहित मथुरा में जिस विशाल भवन में सर्वप्रथम निवास किया, उसे सतघरा कहा गया। बल्लभ सम्प्रदायी वार्ता में लिखा है कि गोंडवाना, मध्यप्रदेश की रानी दुर्गावती ने विट्ठलनाथ जी के लिए सतघरा का निर्माण करवाया था। गुसाई जी सन् १५७० तक इस भवन में रहे।
उसके बाद उन्होंने गोकुल में नई बस्ती बसा कर वहाँ भवनों व मंदिरो का निर्माण कराया। प्राचीन विशाल भवन नहीं रहा पर उनकी जगह छोटा मकान है जहाँ श्रीनाथजी की चरण चौकी स्थापित है। वार्ता साहित्य के अनुसार संवत १६२३ की फाल्गुन कृष्ण सप्तमी को श्रीनाथ जी मथुरा आए। वह दो माह २२ दिन तक सतघरा में विराजमान रहे। उस समय यहाँ श्रीनाथ जी के उत्सवों की नित्य नई झाँकिया लगती थीं।
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