एक ऐसी अभिनेत्री जिन्होंने अपने दौर में सबसे अधिक फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड जीते – लीला मिश्रा: सिल्वर स्क्रीन की मशहूर चरित्र अभिनेत्री – लीला मिश्रा का नाम बॉलीवुड के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। वह एक ऐसी अभिनेत्री थीं जिन्होंने अपने शानदार अभिनय और बहुमुखी प्रतिभा से दर्शकों का दिल जीत लिया। फिल्मों में उन्होंने 60 से भी अधिक वर्षों तक अपना जलवा बिखेरा और अनगिनत यादगार किरदार निभाए। उनकी जीवनी का हर पन्ना उनके अद्वितीय कौशल और समर्पण की कहानी कहता है।
लीला का जन्म 1 जनवरी 1908 में आगरा की जमींदार फैमिली में हुआ। लीला की पढ़ाई लिखाई नहीं हुई इसलिए उनके मां-बाप ने जल्द ही उनकी शादी मात्र 12 साल की उम्र में ही कर दी थी। उनके पति का नाम रामप्रसाद मिश्र था और 18 साल की आयु में वह दो बच्चों की मां भी बन चुकी थी। लीला भले ही रूढ़ीवादी फैमिली से संबंध रखती थी, लेकिन उनके पति रामप्रसाद आजाद ख्यालों वाले व्यक्ति थे। उनका अक्सर मुंबई में आना जाना होता रहता था। वह सिनेमा को काफी पसंद करते थे, इसलिए उन्हें जब भी मौका मिलता वह कई फिल्मों में साइलेंट रोल्स किया करते थे। ऑर्थोडोक्स फैमिली से नाता रखने वाली लीला शुरू से ही काफी धार्मिक ख्यालों वाली रही है। एक बार की बात है जब रामप्रसाद के एक मित्र मामा सिंदे उनके घर गए तब उन्होंने लीला को पहली बार देखते ही कह दिया कि इन्हें फिल्मों में काम करना चाहिए लेकिन लीला ने उनकी इस बात को साफ मानने से इंकार कर दिया। ऐसे में जब उनके पति ने उनको फिल्मों में काम करने के लिए समझाया तब वह फिल्मों में काम करने के लिए राजी हुई।
यह स्पष्ट है कि उनका बचपन और युवावस्था किसी न किसी तरह फिल्मी दुनिया से जुड़ने की लालसा से भरी रही होगी। 1930 के दशक की शुरुआत में उन्होंने बॉलीवुड में कदम रखा, जहाँ उन्हें छोटे-मोटे रोल मिलने लगे।
शुरुआती दौर में लीला मिश्रा को बतौर सहायक कलाकार या पृष्ठभूमि कलाकार ही फिल्में मिलती थीं। यह वह दौर था जहाँ उन्होंने फिल्म निर्माण की बारीकियों को सीखा और अपने अभिनय को निखारा। पर्दे पर भले ही उनकी छोटी सी भूमिका होती थी, लेकिन वह उसे बखूबी निभाती थीं। उनकी निष्ठा और लगन किसी से छिपी नहीं रह सकी। धीरे-धीरे फिल्म निर्देशकों को उनकी प्रतिभा का एहसास हुआ और उन्हें मां, पड़ोसी, बुआ जैसी सहायक भूमिकाएं मिलने लगीं। 1940 के दशक तक आते-आते वह एक जानी-मानी चरित्र अभिनेत्री के रूप में स्थापित हो चुकी थीं।
1950 और 1960 का दशक लीला मिश्रा के लिए सुनहरा दौर साबित हुआ। उन्हें हिंदी सिनेमा के बड़े पर्दे पर खूब सराहनीय भूमिकाएं मिलीं। उन्होंने हर तरह के किरदार को बड़ी सहजता से निभाया, फिर चाहे वह एक सख्त माँ का किरदार हो या फिर एक प्यारी दादी का। उनकी आँखों में एक अलग ही चमक थी जो दर्शकों को अपने से जोड़ लेती थी।
1936 में आई एक फिल्म ‘सति सिलोचना’ में दोनों (लीला और उनके पति रामप्रसाद) ने एक साथ काम किया। इस फिल्म के लिए रामप्रसाद को एक महीने के 150 रुपए मिलते थे, जबकि लीला को इस फिल्म में एक महिने के पूरे 500 रुपए मिलते थे। लीला को रामप्रसाद से दोगुने रुपया इसलिए मिलता करता था, क्योंकि उन दिनों फिल्मों में फीमेल कलाकार कम होती थीं। उन्होंने ‘चित्रलेखा’, ‘रामबाण’, ‘शीशमहल’, ‘अवारा’, ‘दाग’, ‘प्यासा’, ‘लावंती’, ‘लीडर’, ‘बहु बेगम’ और ‘अमर प्रेम’ जैसी कई बेहतरीन फिल्मों में काम किया।
लीला मिश्रा के शानदार अभिनय को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें दो फिल्मफेयर पुरस्कार – सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री और सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेत्री मिले। 1972 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। 2001 में, भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया, जो कला के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान के लिए दिया जाने वाला चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।
लीला मिश्रा ने बॉलीवुड में 60 से अधिक वर्षों तक अपनी अमिट छाप छोड़ी। वह एक बहुमुखी प्रतिभा की धनी अभिनेत्री थीं, जिन्होंने हर तरह के किरदार को बखूबी निभाया। उनकी जीवनी आने वाली पीढ़ी के कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
लीला मिश्रा को अपनी शानदार कॉमिक टाइमिंग के लिए जाना जाता था। वह एक कुशल गायिका भी थीं और उन्होंने कुछ फिल्मों में गाने भी गाए थे। वह अपने निजी जीवन में भी बहुत सरल और सहज स्वभाव की महिला थीं। 80 साल की उम्र में हॉर्टअटैक की वजह से उनका निधन हो गया। अपनी बेहतरीन अदाकारी से हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगी।
लीला मिश्रा भारतीय सिनेमा की एक महान अभिनेत्री थीं। उन्होंने अपने अभिनय से दर्शकों का मनोरंजन किया और उन्हें प्रेरित किया। उनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा।
(लेखक फिल्मी दुनिया के जाने अनजाने किस्से लिखते हैं।)