Wednesday, January 15, 2025
spot_img
Home Blog

दुल्ला भट्टी की याद में मनाया जाता है लोहड़ी का पर्व

लोहड़ी का पर्व एक राजपूत योद्धा दुल्ला भट्टी कि याद में पtरे पंजाब और उत्तर भारत में मनाया जाता है। लोहड़ी की शुरुआत के बारे में मान्यता है कि यह राजपूत शासक दुल्ला भट्टी द्वारा गरीब कन्याओं सुन्दरी और मुंदरी की शादी करवाने के कारण शुरू हुआ है. दरअसल दुल्ला भट्टी पंजाबी आन का प्रतीक है. पंजाब विदेशी आक्रमणों का सामना करने वाला पहला प्रान्त था ।ऐसे में विदेशी आक्रमणकारियों से यहाँ के लोगों का टकराव चलता था .
दुल्ला भट्टी का परिवार मुगलों का विरोधी था.वे मुगलों को लगान नहीं देते थे. मुगल बादशाह हुमायूं ने दुल्ला के दादा सांदल भट्टी और पिता का वध करवा दिया..
दुल्ला इसका बदला लेने के लिए मुगलों से संघर्ष करता रहा. मुगलों की नजर में वह डाकू था लेकिन वह गरीबों का हितेषी था. मुगल सरदार आम जनता पर अत्याचार करते थे और दुल्ला आम जनता को अत्याचार से बचाता था.
दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था। उस समय पंजाब में स्थान स्थान पर हिन्दू लड़कियों को यौन गुलामी के लिए बल पूर्वक मुस्लिम अमीर लोगों को बेचा जाता था।
दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न सिर्फ मुक्त करवाया बल्कि उनकी शादी भी हिन्दू लडको से करवाई और उनकी शादी कि सभी व्यवस्था भी करवाई।
सुंदर दास नामक गरीब किसान भी मुगल सरदारों के अत्याचार से त्रस्त था. उसकी दो पुत्रियाँ थी सुन्दरी और मुंदरी. गाँव का नम्बरदार इन लडकियों पर आँख रखे हुए था और सुंदर दास को मजबूर कर रहा था कि वह इनकी शादी उसके साथ कर दे.
सुंदर दास बाह्मण  ने अपनी समस्या दुल्ला भट्टी को बताई. दुल्ला भट्टी ने इन लडकियों को अपनी पुत्री मानते हुए नम्बरदार को गाँव में जाकर ललकारा. उसके खेत जला दिए और लडकियों की शादी वहीं कर दी।जहाँ सुंदर दास बाह्मण चाहता था. इसी के प्रतीक रुप में रात को आग जलाकर लोहड़ी मनाई जाती है.!!
दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया। कहते हैं दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी।  वैसे तो हिन्दु शादी मे 7 फेरे होते है पर उस वख्त जब सुन्दर मुन्दरी की चौथा फेरा हो रहा था तो मुगलो ने दूल्ले को गोली मरवा दी थी और लोगो ने इसी 4 फेरे वाली शादी को ही सम्पूर्ण मान लिया था, तभी से पँजाबी हिन्दु शादी मे 4 फेरे लेते है और बाकी भारत मे 7 फेरे ली जाती है ।इसी कथा की हमायत करता लोहड़ी का यह गीत है, जिसे लोहड़ी के दिन गाया जाता है :
सुंदर मुंदरिए – हो तेरा कौन विचारा-हो
दुल्ला भट्टी वाला-हो
दुल्ले ने धी ब्याही-हो
सेर शक्कर पाई-हो
कुडी दे बोझे पाई-हो
कुड़ी दा लाल पटाका-हो
कुड़ी दा शालू पाटा-हो
शालू कौन समेटे-हो
चाचा गाली देसे-हो
चाचे चूरी कुट्टी-हो
जिमींदारां लुट्टी-हो
जिमींदारा सदाए-हो
गिन-गिन पोले लाए-हो
इक पोला घिस गया जिमींदार वोट्टी लै के नस्स गया – हो!
दुल्ला भट्टी मुगलों कि धार्मिक नीतियों का घोर विरोधी था। वह सच्चे अर्थों में धर्मनिरपेक्ष था.उसके पूर्वज संदल बार रावलपिंडी के शासक थे जो अब पकिस्तान में स्थित हैं। वह सभी पंजाबियों का नायक था। आज भी पंजाब(पाकिस्तान)में बड़ी आबादी भाटी राजपूतों की है जो वहां के सबसे बड़े जमीदार हैं।
लोहड़ी दी लख लख बधाईया..

वर्ष 1979, जनवरी का महीना था। पश्चिम बंगाल के दलदली सुंदरबन डेल्टा में मरीचझापी नामक द्वीप पर बांग्लादेश से भागे करीब 40,000 शरणार्थी एकत्रित हो चुके थे। मुख्यतः नामशूद्र दलित हिंदुओं का यह समूह उस महापलायन के क्रम में छोटी-सी एक कड़ी थी जिसमें बंग्लादेश बन जाने के बाद से लगभग 1 करोड़ उत्पीड़ित हिंदू भारत आकर विभिन्न स्थानों पर बस चुके हैं।

जिन विस्थापितों की पैरवी कर कम्युनिस्टों ने पश्चिम बंगाल में अपनी राजनीतिक ज़मीन मज़बूत की थी, सत्ता में आने के बाद उन्हीं शरणार्थियों के प्रति वामपंथी सरकार का रवैया उपेक्षा से हटकर क्रूरता तक पहुँच गया।

लोहड़ी का पर्व एक राजपूत योद्धा दुल्ला भट्टी कि याद में पुरे पंजाब और उत्तर भारत में मनाया जाता है। लोहड़ी की शुरुआत के बारे में मान्यता है कि यह राजपूत शासक दुल्ला भट्टी द्वारा गरीब कन्याओं सुन्दरी और मुंदरी की शादी करवाने के कारण शुरू हुआ है. दरअसल दुल्ला भट्टी पंजाबी आन का प्रतीक है. पंजाब विदेशी आक्रमणों का सामना करने वाला पहला प्रान्त था ।ऐसे में विदेशी आक्रमणकारियों से यहाँ के लोगों का टकराव चलता था।

दुल्ला भट्टी का परिवार मुगलों का विरोधी था.वे मुगलों को लगान नहीं देते थे. मुगल बादशाह हुमायूं ने दुल्ला के दादा सांदल भट्टी और पिता का वध करवा दिया..
दुल्ला इसका बदला लेने के लिए मुगलों से संघर्ष करता रहा. मुगलों की नजर में वह डाकू था लेकिन वह गरीबों का हितेषी था. मुगल सरदार आम जनता पर अत्याचार करते थे और दुल्ला आम जनता को अत्याचार से बचाता था.
दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था। उस समय पंजाब में स्थान स्थान पर हिन्दू लड़कियों को यौन गुलामी के लिए बल पूर्वक मुस्लिम अमीर लोगों को बेचा जाता था।
दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न सिर्फ मुक्त करवाया बल्कि उनकी शादी भी हिन्दू लडको से करवाई और उनकी शादी कि सभी व्यवस्था भी करवाई।
सुंदर दास नामक गरीब किसान भी मुगल सरदारों के अत्याचार से त्रस्त था. उसकी दो पुत्रियाँ थी सुन्दरी और मुंदरी. गाँव का नम्बरदार इन लडकियों पर आँख रखे हुए था और सुंदर दास को मजबूर कर रहा था कि वह इनकी शादी उसके साथ कर दे.
सुंदर दास बाह्मण  ने अपनी समस्या दुल्ला भट्टी को बताई. दुल्ला भट्टी ने इन लडकियों को अपनी पुत्री मानते हुए नम्बरदार को गाँव में जाकर ललकारा. उसके खेत जला दिए और लडकियों की शादी वहीं कर दी।जहाँ सुंदर दास बाह्मण चाहता था. इसी के प्रतीक रुप में रात को आग जलाकर लोहड़ी मनाई जाती है.!!
दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया। कहते हैं दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी।  वैसे तो हिन्दु शादी मे 7 फेरे होते है पर उस वख्त जब सुन्दर मुन्दरी की चौथा फेरा हो रहा था तो मुगलो ने दूल्ले को गोली मरवा दी थी और लोगो ने इसी 4 फेरे वाली शादी को ही सम्पूर्ण मान लिया था, तभी से पँजाबी हिन्दु शादी मे 4 फेरे लेते है और बाकी भारत मे 7 फेरे ली जाती है ।इसी कथा की हमायत करता लोहड़ी का यह गीत है, जिसे लोहड़ी के दिन गाया जाता है :
सुंदर मुंदरिए – हो तेरा कौन विचारा-हो
दुल्ला भट्टी वाला-हो
दुल्ले ने धी ब्याही-हो
सेर शक्कर पाई-हो
कुडी दे बोझे पाई-हो
कुड़ी दा लाल पटाका-हो
कुड़ी दा शालू पाटा-हो
शालू कौन समेटे-हो
चाचा गाली देसे-हो
चाचे चूरी कुट्टी-हो
जिमींदारां लुट्टी-हो
जिमींदारा सदाए-हो
गिन-गिन पोले लाए-हो
इक पोला घिस गया जिमींदार वोट्टी लै के नस्स गया – हो!
दुल्ला भट्टी मुगलों कि धार्मिक नीतियों का घोर विरोधी था। वह सच्चे अर्थों में धर्मनिरपेक्ष था.उसके पूर्वज संदल बार रावलपिंडी के शासक थे जो अब पकिस्तान में स्थित हैं। वह सभी पंजाबियों का नायक था। आज भी पंजाब(पाकिस्तान)में बड़ी आबादी भाटी राजपूतों की है जो वहां के सबसे बड़े जमीदार हैं।
लोहड़ी दी लख लख बधाईया..

महाकुंभ में भव्य लेज़र वॉटर स्क्रीन शो का शुभारम्भ

उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में तथा पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्री जयवीर सिंह की पहल पर महाकुम्भ-2025 में लगभग 22 करोड़ रूपये की लागत से श्रद्धालुओं के मनोरंजन के लिए पर्यटन विभाग द्वारा स्थापित लेजर शो एवं एक विशेष लेज़र वॉटर स्क्रीन प्रोजेक्शन लाइट और साउंड शो का उद्घाटन आज  शाम किया गया। जिसे टेमफ्लो सिस्टम्स, गाज़ियाबाद ने आधुनिक तकनीक के माध्यम से महाकुंभ की प्राचीन गाथाओं को प्रभावशाली और सजीव रूप में प्रस्तुत किया।

यह जानकारी पर्यटन विभाग के प्रवक्ता ने दी। उन्हांेने बताया कि यमुना नदी के तट पर बोट क्लब के पास स्थित काली घाट पर प्रदर्शित इस शो के दौरान पानी की स्क्रीन पर उभरती अद्भुत छवियों ने प्रयागराज और महाकुंभ की ऐतिहासिक और धार्मिक गाथाओं को जीवंत कर दिया। दर्शकों को इन पवित्र स्थलों की दिव्यता और ऐतिहासिक महत्व का अनुभव करने का अनूठा अवसर प्राप्त हुआ। शो में दिखाए गए दृश्य और ध्वनि ने श्रद्धालुओं को महाकुंभ के गौरवशाली अतीत में खो जाने का अवसर दिया। आम नागरिक इस शो का बिना किसी टिकिट के मुफ्त में आनंद ले सकते हैं। रोज़ शाम 7 से 9 बजे के बीच दो शो दिखाए जायेंगे और हर शो कि अवधि 45 मिनट होंगी।

कार्यक्रम के दौरान सभी आगंतुक लोगों ने इस अभिनव पहल की सराहना की और इसे संस्कृति व परंपरा के संरक्षण का उत्कृष्ट उदाहरण बताया।

यह शो, जो आधुनिक तकनीक और सांस्कृतिक महत्व का संगम है, महाकुंभ 2025 के मुख्य आकर्षणों में से एक बन गया।

महाकुंभ में संस्कृति मंत्रालय का कलाग्राम

अद्वितीय सांस्कृतिक उत्सव: लगभग 15,000 प्रख्यात कलाकार महाकुंभ में प्रस्तुति देंग

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी, 2025 तक आयोजित होने वाला महाकुंभ एक ऐतिहासिक आयोजन होगा, जिसमें दुनिया भर से 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालु आएंगे। आध्यात्मिकता, परंपरा और सांस्कृतिक विरासत का यह पवित्र संगम एक बार फिर भारत की एकता और भक्ति की चिरस्थायी भावना की पुष्टि करेगा। यूनेस्को द्वारा मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के हिस्से के रूप में मान्यता प्राप्त महाकुंभ, केवल एक आयोजन नहीं है, बल्कि एक गहन अनुभव है जो सीमाओं को पार करता है और दुनिया भर के लोगों को एकजुट करता है।

4,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला यह मेला भारत की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं और उन्नत संगठनात्मक क्षमताओं के सामंजस्यपूर्ण मिश्रण का प्रतिनिधित्व करता है। इसके केंद्र में शाही स्नान है, जो गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती के संगम पर किया जाने वाला एक अनुष्ठानिक स्नान है , जिसे पापों को धोने और आध्यात्मिक मुक्ति प्रदान करने वाला माना जाता है। ज्योतिषीय रूप से महत्वपूर्ण, महाकुंभ सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति से जुड़े दुर्लभ खगोलीय संरेखण द्वारा निर्धारित किया जाता है , जो भारत के प्राचीन ज्ञान की गहराई को दर्शाता है। पौराणिक कथाओं में निहित और लाखों लोगों द्वारा पूजी जाने वाली यह कालातीत परंपरा ब्रह्मांडीय शक्तियों और मानवीय आध्यात्मिकता के बीच संबंध को रेखांकित करती है।

महाकुंभ में कलाग्राम: सीमाओं से परे एक उत्सव

महाकुंभ में संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा स्थापित कलाग्राम, भारत की विविधता में एकता को दर्शाता है, कला, आध्यात्मिकता और संस्कृति को एक अविस्मरणीय अनुभव में पिरोता है। उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से, यह पहल भक्तों और आगंतुकों के लिए एक परिवर्तनकारी यात्रा की पेशकश करते हुए अपनी विरासत को संरक्षित करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है।

महाकुंभ 2025 में कलाग्राम एक आयोजन से कहीं अधिक है – यह भारत के गौरवशाली अतीत और जीवंत वर्तमान का जीवंत कैनवास है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करने के लिए तैयार है।

शिल्प, भोजन और सांस्कृतिक प्रदर्शनों के माध्यम से कलाग्राम राष्ट्र की कालातीत परंपराओं को प्रदर्शित करने तथा कलात्मक प्रतिभा के साथ आध्यात्मिकता का सम्मिश्रण करने की संस्कृति मंत्रालय की प्रतिबद्धता का प्रमाण है।

आगंतुकों का स्वागत 35 फुट चौड़े तथा 54 फुट ऊंचे भव्य प्रवेश द्वार से होगा, जो 12 ज्योतिर्लिंगों के जटिल चित्रण और भगवान शिव द्वारा हलाहल का सेवन करने की पौराणिक कथा से सुसज्जित है , जो आंतरिक यात्रा के लिए एक राजसी माहौल तैयार करता है।

जीवंत कलाग्राम में 10,000 क्षमता वाला भव्य गंगा पंडाल होगा, साथ ही एरियल, झूंसी और त्रिवेणी क्षेत्रों में तीन अतिरिक्त मंच होंगे, जिनमें प्रत्येक में 2,000 से 4,000 दर्शकों के बैठने की व्यवस्था होगी।

अनुभूति मंडपम : एक अद्भुत 360° दृश्य और ध्वनि अनुभव गंगा अवतरण के दिव्य अवतरण को जीवंत करता है तथा एक आध्यात्मिक और संवेदी चमत्कार का सृजन करता है।
अविरल शाश्वत कुंभ प्रदर्शनी क्षेत्र : एएसआई , आईजीएनसीए और इलाहाबाद संग्रहालय जैसी संस्थाओं द्वारा क्यूरेट किया गया यह क्षेत्र कलाकृतियों , डिजिटल डिस्प्ले और पोस्टर प्रदर्शनियों के माध्यम से कुंभ मेले के समृद्ध इतिहास और महत्व को बयां करता है ।

संस्कृति मंत्रालय और उत्तर प्रदेश सरकार एक उल्लेखनीय सहयोग के तहत एक अद्वितीय सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे हैं। इस भव्य कार्यक्रम में लगभग 15,000 कलाकार शामिल होंगे, जिनमें प्रतिष्ठित पद्म पुरस्कार विजेता और संगीत नाटक अकादमी के सम्मानित कलाकार शामिल होंगे, जो ऐतिहासिक शहर प्रयागराज में कई मंचों पर प्रस्तुति देंगे।

चार धाम की अद्भुत पृष्ठभूमि से सुसज्जित 104 फुट चौड़ा और 72 फुट गहरा मंच इस उत्सव का मुख्य आकर्षण होगा।
इस कार्यक्रम में हमारे समय के कुछ सर्वाधिक प्रसिद्ध कलाकार प्रस्तुति देंगे, जिनमें शामिल हैं:

शंकर महादेवन
मोहित चौहान
कैलाश खेर
हंस राज हंस
हरिहरन
कविता कृष्णमूर्ति
मैथिली ठाकुर

दर्शकों को राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और श्रीराम भारतीय कला केंद्र द्वारा भव्य कलाग्राम मंच पर एक सप्ताह तक विशेष प्रस्तुतियों का भी आनंद मिलेगा।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र और इलाहाबाद संग्रहालय सहित प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा संग्रहित सांस्कृतिक और ऐतिहासिक खजानों का अन्वेषण किया जा सकेगा।

शास्त्रीय नृत्यों से लेकर जीवंत लोक परंपराओं तक, ये प्रदर्शन कला और आध्यात्मिकता का एक ऐसा ताना-बाना बुनने का वादा करते हैं, जो संस्कृति की सार्वभौमिक भाषा के माध्यम से भक्तों और आगंतुकों को एकजुट करता है। यह अद्वितीय उत्सव लाखों लोगों पर एक अमिट छाप छोड़ेगा, उनकी आध्यात्मिक यात्रा को समृद्ध करेगा और भारत की कालातीत विरासत का सम्मान करेगा।

एनजेडसीसी (हरिद्वार) : लकड़ी की मूर्तियाँ, पीतल के शिवलिंग, ऊनी शॉल।
डब्ल्यूजेडसीसी (पुष्कर) : मिट्टी के बर्तन, कठपुतलियां, लघु चित्रकारी।
ईजेडसीसी (कोलकाता) : टेराकोटा मूर्तियाँ, पट्टचित्र, कांथा कढ़ाई।
एसजेडसीसी (कुंभकोणम) : तंजौर चित्रकारी, रेशमी वस्त्र, मंदिर आभूषण।
एनसीजेडसीसी (उज्जैन) : जनजातीय कला, चंदेरी साड़ियाँ, पत्थर की नक्काशी।
एनईजेडसीसी (गुवाहाटी) : बाँस शिल्प, असमिया रेशम, आदिवासी आभूषण।
एससीजेडसीसी (नासिक) : पैठानी साड़ियाँ, वर्ली कला, लकड़ी की कलाकृतियाँ।

दिव्य चमत्कार और बौद्धिक संलग्नता

एस्ट्रोनाइट स्काई : आकाशीय तारों के अवलोकन सत्र चुनिंदा रातों में मंत्रमुग्ध कर देने वाला ब्रह्मांडीय संबंध प्रदान करेंगे।
पुस्तक प्रदर्शनियाँ : साहित्य अकादमी और क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्रों द्वारा आयोजित इन प्रदर्शनियों में कालातीत साहित्यिक कृतियाँ प्रदर्शित की जाएँगी।
सांस्कृतिक वृत्तचित्र : आईजीएनसीए , एसएनए और जेडसीसी द्वारा निर्मित ये फिल्में भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत की गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करेंगी।

प्रौद्योगिकी और प्रभावशाली व्यक्तियों के माध्यम से वैश्विक पहुँच

# महाकुंभ2025 की वैश्विक पहुँच को बढ़ाने के लिए, संस्कृति मंत्रालय प्रभावशाली लोगों के साथ सहयोग कर रही है और डिजिटल प्लेटफॉर्म का लाभ उठा रही है। आकर्षक सामग्री, काउंटडाउन पोस्ट और केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत और टेक्निकल गुरुजी के बीच एक विशेष बातचीत ने परंपरा और प्रौद्योगिकी के मिश्रण को उजागर किया है, जिसने दुनिया भर के दर्शकों के बीच उत्साह पैदा किया है।

महाकुंभ 2025 न केवल भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का उत्सव होगा, बल्कि देश की संगठनात्मक क्षमताओं, सुरक्षा उपायों और स्थिरता के प्रति प्रतिबद्धता में भी एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा। यह लाखों लोगों के लिए एक परिवर्तनकारी अनुभव होने का वादा करता है, जो कालातीत परंपराओं को प्रदर्शित करता है, जिससे महाकुंभ भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक नेतृत्व का प्रतीक बन जाता है।

पडीफ डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें

उपराष्ट्रपति ने कहा, हम अपने देश में बहुत जल्दी, बिना कोई सवाल पूछे, किसी को भी आदर्श मान लेते हैं

गुरुग्राम। उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने कहा कि, “मानव संसाधन की अपरिहार्यता एक मिथक है। यह विचार कि “आपके बिना चीजें काम नहीं कर सकतीं” सत्य नहीं है। ईश्वर ने आपकी दीर्घायु की सीमा पहले ही निर्धारित कर दी है। इसलिए, उन्होंने यह भी तय कर दिया है कि आप अपरिहार्य नहीं हो सकते।”

युवाओं से स्वयं पर विश्वास करने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा, “…स्वयं पर विश्वास रखें। कोई भी जीवित प्राणी तब तक आपके सम्मान का हकदार नहीं है, जब तक आप उनमें कोई गुण न देखें। चापलूस या पाखंडी बनने की इच्छा कभी नहीं होनी चाहिए। हमें अपने सोचने के तरीके की सराहना करनी चाहिए। हो सकता है कि हम सही हों, हो सकता है कि हम गलत हों। हमेशा दूसरे के दृष्टिकोण को सुनें। यह सोचकर निर्णयात्मक न बनें कि आप अकेले ही सही हैं। हो सकता है कि आपको सुधार की आवश्यकता हो। हो सकता है कि दूसरे के दृष्टिकोण से आपको पता चले कि क्या हो सकता है।”

गुरुग्राम में मास्टर्स यूनियन के चौथे दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में छात्रों और संकाय सदस्यों को संबोधित करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा, “यह हमारे देश में एक बहुत ही सरल चीज है। हम बहुत जल्दी किसी को आदर्श मान लेते हैं और उसे किसी का प्रतीक बना देते हैं और हम कभी अपने से नहीं पूछते कि वह एक महान वकील क्यों हैं, वह एक महान नेता क्यों हैं, वह एक महान डॉक्टर क्यों हैं, वह एक महान पत्रकार क्यों हैं। हम बस यह मान लेते हैं कि यह है…आपको सवाल पूछना चाहिए, क्यों? एक समय था, जब कौन व्यापार करता था? व्यापारिक परिवार थे, व्यापारिक खानदान थे, उनके गढ़ थे, केवल वे ही इसे करते थे, ठीक वैसे ही जैसे सामंती प्रभु शासन करते थे। लोकतंत्र ने राजनीति को लोकतांत्रिक बनाया। अब, आप देश के आर्थिक, औद्योगिक, वाणिज्यिक और व्यावसायिक परिदृश्य का लोकतंत्रीकरण करने जा रहे हैं। आज, आप एक बड़ी छलांग लगा रहे हैं – मेरे शब्दों पर ध्यान दें, आपको वंश की आवश्यकता नहीं है, आपको परिवार के नाम की आवश्यकता नहीं है, आपको पारिवारिक पूंजी की आवश्यकता नहीं है, आपको एक विचार की आवश्यकता है और वह विचार किसी का विशेष क्षेत्र नहीं है।”

देश की नौकरशाही की क्षमता को रेखांकित करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा कि, “दुनिया की आबादी का छठा हिस्सा भारत में रहता है और इसका सबसे बड़ा लाभ इसकी नौकरशाही है। हमारे पास बेहतरीन मानव संसाधन, नौकरशाही है, जो कोई भी बदलाव ला सकती है, बशर्ते उसका नेतृत्व सही कार्यपालिका करे, जो काम करने में सुगमता प्रदान करे और बाधा न डाले।”

लोकतंत्र को प्रभावी बनाने में युवाओं की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए तथा सांसदों और जन प्रतिनिधियों के कर्तव्यों को दोहराते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “आप मुझे संविधान सभा की याद दिलाते हैं, क्योंकि दो वर्ष, 11 महीने और कुछ दिनों तक संविधान सभा ने 18 सत्रों में विवादास्पद मुद्दों, विभाजनकारी मुद्दों, कठिन मुद्दों पर विचार किया। आम सहमति बनाना आसान नहीं था, लेकिन वे बहस, संवाद, विचार-विमर्श और चर्चा में विश्वास करते थे। उन्होंने कभी व्यवधान और गड़बड़ी में भाग नहीं लिया। और इसलिए, जब मैं यहां अनुशासन की बात करता हूं, तो मुझे संसदीय माहौल की कमी महसूस होती है। लेकिन मुझे यकीन है कि हमारे युवाओं के पास अब सोशल मीडिया के माध्यम से यह कमांड है कि वे हमारे सांसदों और जनप्रतिनिधियों के लिए यह मजबूरी बना देंगे कि वे अपनी शपथ का पालन करें। उन्हें अपने संवैधानिक कार्यों का पालन करना चाहिए। उन्हें अपने दायित्वों का निर्वहन करना चाहिए।”

एक दशक में हुए आर्थिक विकास और लोगों की अपेक्षाओं में हुई वृद्धि का उल्लेख करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा, “लोगों ने 10 वर्षों में विकास का स्वाद चखा है। 50 करोड़ लोग बैंकिंग समावेशन में शामिल हो रहे हैं, 17 करोड़ लोगों को गैस कनक्शन मिल रहा है, 12 करोड़ घरों में शौचालय बन रहे हैं। अब उनकी प्यास और बढ़ गई है। उनकी अपेक्षाएं धीरे-धीरे नहीं, बल्कि तेजी से बढ़ रही हैं, हमारा भारत बदल रहा है। हमारे भारत ने मेरे जैसे लोगों के लिए इतना कुछ बदल दिया है, जिसकी हमने कभी कल्पना नहीं की थी, सपना नहीं देखा था, सोचा नहीं था। हमारा भारत आज दुनिया के लिए एक मिसाल बन गया है। दुनिया में किसी भी देश ने पिछले एक दशक में भारत जितना स्थिर विकास नहीं किया है…अब लोगों की अपेक्षाएं बहुत अधिक हैं। उन अपेक्षाओं को पूरा करना होगा। आपको लीक से हटकर सोचना होगा।”

उन्होंने आगे कहा, “आप शासन के सबसे प्रभावशाली हितधारक हैं। आप विकास के इंजन हैं। अगर भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनना है, तो हमें विकसित भारत बनना होगा। चुनौती बहुत बड़ी है। हम पहले से ही पांचवीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था हैं… लेकिन आय को आठ गुना बढ़ाना होगा। यह एक बड़ी चुनौती है।”

इस अवसर पर लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के चांसलर श्री अशोक कुमार मित्तल, मास्टर्स यूनियन के संस्थापक श्री प्रथम मित्तल, बोर्ड मास्टर्स यूनियन के बोर्ड सदस्य श्री विवेक गंभीर, छात्र, संकाय और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी मौजूद थे।

पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के गरपंचकोट क्षेत्र में पंचेट पहाड़ी के ऊपर नई वेधशाला

पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के गरपंचकोट क्षेत्र में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान एस.एन. बोस सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज (एस.एन.बी.सी.बी.एस.) की ओर से पंचेट पहाड़ी के ऊपर स्थापित नई वेधशाला खगोलीय पिंडों के वैज्ञानिक अवलोकन में महत्वपूर्ण रूप से सहायक होगी। यहां पर छात्रों को दूरबीनों के संचालन और आंकड़ों को रिकॉर्ड करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा। साथ ही, इस वेधशाला के माध्यम से खगोलीय अनुसंधान में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शुरु किया जाएगा और सबसे महत्वपूर्ण रूप से दो ध्रुवों के बीच इस क्षेत्र में अध्ययन की कमी को दूर किया जाएगा ।

यह वेधशाला जमीन से 600 मीटर की ऊंचाई पर और लगभग 86 डिग्री पूर्वी देशांतर पर स्थित है। यह पूर्वी भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया की एक प्रमुख वेधशाला होगी। उत्तर में आर्कटिक महासागर से लेकर दक्षिण में अंटार्कटिका तक फैले 86 डिग्री पूर्वी देशांतर पर बहुत कम वेधशालाएं हैं। यह वेधशाला उस कमी को दूर करेगी। प्रसिद्ध खगोल भौतिक विज्ञानी और अशोका विश्वविद्यालय के कुलपति का मानना है कि कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक चलने वाली अस्थायी खगोलीय घटनाओं के अवलोकन के लिए दुनिया के सभी देशांतरों पर अच्छी वेधशालाओं का होना आवश्यक है। इसलिए, पंचेट वेधशाला रणनीतिक रूप से स्थित है।

एसएन बोस केंद्र ने वेधशाला को मिलकर चलाने और संसाधनों को साझा करने के उत्तरदायित्व के लिए सिद्धू कानू बिरसा विश्वविद्यालय के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।

एसकेबी विश्वविद्यालय में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए उद्घाटन के अवसर पर एसएन बोस सेंटर की निदेशक डॉ. तनुश्री साहा-दासगुप्ता ने कहा कि यह इस केंद्र के लिए गौरव का पल है और उन्हें उम्मीद है कि यह केंद्र अवलोकन संबंधी खगोल विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने में सक्षम होगा।

उद्घाटन समारोह में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के वित्तीय सलाहकार श्री विश्वजीत सहाय ने कहा कि एक वेधशाला सदैव अपने आसपास के क्षेत्र में अपना तंत्र निर्मित करती है और पंचेट वेधशाला से भी यही उम्मीद है।

एसकेबी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. पवित्र कुमार चक्रवर्ती ने कहा कि पश्चिम बंगाल का पिछड़ा जिला माने जाने वाले पुरुलिया में इस स्तर की वेधशाला विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए प्रोत्साहन का एक बड़ा स्रोत हो सकती है।

एस.एन. बोस सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज के खगोल भौतिकी विभाग के डॉ. रामकृष्ण दास, डॉ. सौमेन मंडल और डॉ. तपस बाग ने 2018 में औपचारिक रूप से भूमि के अधिग्रहण के बाद वेधशाला की अवधारणा, लेआउट और इसको चालू करने का काम शुरू किया था। इसके निर्माण स्थल की तैयारी, खगोलीय ‘दृश्य’ और मौसम के मापदंडों का निर्धारण तथा वैज्ञानिक अवलोकन के लिए 14 इंच की दूरबीन लगाना उनके कार्यों में शामिल था।

एसएनबीसीबीएस के शासी निकाय के अध्यक्ष डॉ. बीएन जगताप, रघुनाथपुर के एसडीओ श्री विवेक पंकज और इस केंद्र के वैज्ञानिकों ने उपस्थित रहकर और वर्चुअल तरीके से वेधशाला के उद्घाटन में भाग लिया।

स्वामी विवेकानंद: बस वही जीते हैं, जो दूसरों के लिए जीते हैं

‘ओ मेरे बहादुरों इस सोच को अपने दिल से निकाल दो की तुम कमजोर हो। तुम्हारी आत्मा अमर,पवित्र और सनातन है। तुम केवल एक विषय नहीं हो, तुम केवल एक शरीर मात्र नहीं हो’। यह कथन है लाखों – करोड़ों दिलों की धड़कन व प्रेरणा स्त्रोत स्वामी विवेकानंद का। ऊर्जा, उमंग, उत्साह के साथ देशहित सपनों को जीने वाले युवाओं से देश का वर्तमान व भविष्य लिखा जाता है। काल, परिस्थिति व समाज की आवश्यकता के अनुसार जीवन की दिशा को तय करने का नाम ही युवा है। आज चारों ओर जिस प्रकार का बौद्धिक विमर्श दिखाई दे रहा है, उसमें युवा होने के नाते अपनी मेधा व बौद्धिक क्षमता का परिचय हम को देना ही होगा। यही वास्तव में आज हमारी ओर से सच्ची आहुति होगी। इसके लिए अपनी सर्वांगीण तैयारी कर देश के लिए जीना तथा विकसित भारत @2047 के सपनों को अपनी आँखों में बसा उसे पूरा करने के संकल्प को ओर अधिक बलवान बनाना होगा।

युवा दिलों की धड़कन: उम्र महज 39 वर्ष, अपनी मेधा से विश्व को जीतने वाले, युवाओं को अंदर तक झकझोर कर रख देने वाले, अपनी संस्कृति व गौरव का अभिमान विश्व पटल पर स्थापित करने वाले स्वामी विवेकानंद का यह 159वां जयंती वर्ष है। कल्पना कीजिए विवेकानंद के रुप में उस एक नौजवान की। गुलामी की छाया न जिसके विचार में थी, न व्यवहार में थी और न वाणी में थी। भारत माँ की जागृत अवस्था को जिसने अपने भीतर पाया था। ऐसा एक महापुरुष जो  पल- दो पल में विश्व को अपना बना लेता है। जो पूरे विश्व को अपने अंदर समाहित कर लेता है। जो विश्व को अपनत्व की पहचान दिलाता है और जीत लेता है। वेद से विवेकानंद तक, उपनिषद से उपग्रह तक हम इसी परंपरा में पले बढ़े हैं। उस परंपरा को बार-बार स्मरण करते हुए, सँजोते हुए भारत को एकता के सूत्र में बांधने के लिए सद्भावना के सेतु को जितना बल हम दे सकते हैं, उसे देते रहना होगा।

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी: विवेकानंद के जीवन को पढ़ने से ही रोंगटे खड़े हो जाते है। कैसे एक बालक विवेकानंद, योद्धा सन्यासी विवेकानंद के रुप में पूरे विश्व की प्रेरणा बन गया। स्वामी विवेकानंद का सम्पूर्ण जीवन बहुआयामी व्यक्तित्व और कृतित्व का धनी रहा है। हमारे आज के जो सरोकार हैं, जैसे शिक्षा, भारतीय संस्कृति का सही रूप, व्यापक समाज सुधार, महिलाओं का उत्थान, दलित और पिछड़ों की उन्नति, विकास के लिए विज्ञान की आवश्यकता, सार्वजनिक जीवन में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता, युवकों के दायित्व, आत्मनिर्भरता, स्वदेशी का भाव, भारत का भविष्य आदि। भारत को अपने पूर्व गौरव को पुनः प्राप्त व स्थापित करने के लिए, समस्याओं के निदान के लिए स्वामी विवेकानंद के विचारों का अवगाहन करना होगा।

चिर पुरातन नित्य नूतन के वाहक: अतीत को पढ़ो, वर्तमान को गढ़ो और आगे बढ़ो यही विवेकानंद जी का मूल संदेश रहा। जो समाज अपने इतिहास एवं वांग्मय की मूल्यवान चीजों को नष्ट कर देता है, वह निष्प्राण हो जाते हैं और यह भी सत्य है कि जो समाज इतिहास में ही डूबे रहते हैं, वह भी निष्प्राण हो जाते हैं। वर्तमान समय में तर्क और तथ्य के बिना किसी भी बात को सिर्फ आस्था के नाम पर आज की पीढ़ी के गले नहीं उतारा जा सकता। भारतीय ज्ञान को तर्क के साथ प्रस्तुत करने पर पूरी दुनिया आज उसे स्वीकार करती हुई प्रतीत भी हो रही है। विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 शिकागो भाषण में इस बात को चरितार्थ भी करके दिखाया था। जहां मंच पर संसार की सभी जातियों के बड़े – बड़े विद्वान उपस्थित थे। डॉ. बरोज के आह्वान पर 30 वर्ष के तेजस्वी युवा का मंच पर पहुंचना। भाषण के प्रथम चार शब्द ‘अमेरिकावासी भाइयों तथा बहनों’ इन शब्दों को सुनते ही जैसे सभा में उत्साह का तूफान आ गया और 2 मिनट तक 7 हजार लोग उनके लिए खड़े होकर तालियाँ बजाते रहे। पूरा सभागार करतल ध्वनि से गुंजायमान हो गया।

शब्दों के जादूगर:  विवेकानंद के संवाद का ये जादू शब्दों के पीछे छिपी चिर –पुरातन भारतीय संस्कृति, सभ्यता, अध्यातम व उस युवा के त्यागमय जीवन का था। जो शिकागो से निकला व पूरे विश्व में छा गया। उस भाषण को आज भी दुनिया भुला नहीं पाती। इस भाषण से दुनिया के तमाम पंथ आज भी सबक ले सकते हैं। इस अकेली घटना ने पश्चिम में भारत की एक ऐसी छवि बना दी, जो आजादी से पहले और इसके बाद सैकड़ों राजदूत मिलकर भी नहीं बना सके। स्वामी विवेकाननंद के इस भाषण के बाद भारत को एक अनोखी संस्कृति के देश के रूप में देखा जाने लगा। अमेरिकी प्रेस ने विवेकानंद को उस धर्म संसद की महानतम विभूति बताया था। और स्वामी विवेकानंद के बारे में लिखा था, उन्हें सुनने के बाद हमें महसूस हो रहा है कि भारत जैसे एक प्रबुद्ध राष्ट्र में मिशनरियों को भेजकर हम कितनी बड़ी मूर्खता कर रहे थे। यह ऐसे समय हुआ, जब ब्रिटिश शासकों और ईसाई मिशनरियों का एक वर्ग भारत की अवमानना और पाश्चात्य संस्कृति की श्रेष्ठता साबित करने में लगा हुआ था।

शरीर धर्म का मुख्य साधन: अपनी प्रथम विदेश यात्रा से लौटने के बाद भारत की दुर्दशा पर स्वामीजी ने गहन चिंतन किया। उनके अनुसार इसके मुख्य कारण थे अत्यधिक आस्तिकता और शारीरिक कमजोरी। वो अक्सर कहते थे ‘हे भगवान’, ‘हे भगवान’ की रट लगाना और नाक पकड़कर मोक्ष की कामना करना, इसी कारण भारतीयों के मन मरे हुए और कलाईयां सिकुड़ी हुई हैं। ‘होई है सोई जो राम रचि राखा’, इस भाग्यवाद के भरोसे रहकर ही भारतीय बंधुओं ने पराधीनता की बेड़ियों से अपने हाथों को जकड़ रखा है। इसलिए स्वदेश लौटते ही स्वामीजी ने अपने प्रत्येक भाषण में ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ के इस महामंत्र का मजबूती से उद्घोष किया। कर्म की प्रधानता का महत्व बताते हुए, युवाओं को विवेकानंद छाती ठोककर कहते थे, व्यायाम के आगे भगवतगीता का पाठ करना भी बेकार है। व्यायाम कीजिए, खेल खेलिए, फुटबाल को जोर से किक कीजिए, आसमान में गेंद जितनी ऊंचाई पर पहुंचेगी, उतनी ही दूर तक आप आकाशस्थ ईश्वर के पास पहुंचेंगे, गीता पाठ से कभी भी नहीं।

भारत बोध की प्रेरणा: दुनिया में लाखों-करोड़ों लोग उनके विचारों से प्रभावित हुए और आज भी उनसे प्रेरणा  प्राप्त कर रहे हैं। सी राजगोपालाचारी के अनुसार “स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म और भारत की रक्षा की”। सुभाष चन्द्र बोस के कहा “विवेकानंद  आधुनिक भारत के निर्माता हैं”।  महात्मा गाँधी मानते थे कि ‘विवेकानंद ने उनके देशप्रेम को हजार गुना कर दिया । स्वामी विवेकानंद ने खुद को एक भारत के लिए कीमती और चमकता हीरा साबित किया है। उनके योगदान के लिए उन्हें युगों और पीढ़ियों तक याद किया जायेगा’। जवाहर लाल नेहरु ने ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ में लिखा है- “विवेकानंद दबे हुए और उत्साहहीन हिन्दू मानस में एक टॉनिक बनकर आये और उसके भूतकाल में से उसे आत्मसम्मान व अपनी जड़ों का बोध कराया”।

हिन्दुस्थान नौजवान है, युवाशक्ति से भरा हुआ है। युवा के मन में व आँखों में सपने होते हैं, नेक इरादे होते हैं। मजबूत संकल्प शक्ति होती है, युवा पत्थर पर भी लकीर खींचने का सामर्थ्य रखते हैं। और इन्हीं युवाओं के भरोसे स्वामी विवेकानंद ने आह्वान किया था की मैं मेरी आँखों के सामने भारत माता को पुनः विश्व गुरु के स्थान पर विराजमान होते हुए देख रहा हूँ। कुल मिलाकर यदि यह कहा जाए कि स्वामी विवेकानंद आधुनिक भारत के निर्माता थे, तो उसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह इसलिए कि स्वामीजी ने भारतीय स्वतंत्रता हेतु भारतवासियों के मनों में एक स्वाभिमान का  माहौल निर्माण किया। आज के समय में विवेकानंद के मानवतावाद के रास्ते पर चलकर ही भारत एवं विश्व का कल्याण हो सकता है। वे बराबर युवाओं से कहा करते थे कि हमें ऐसे युवकों और युवतियों की जरूरत है जिनके अंदर ब्राह्मणों का तेज तथा क्षत्रियों का वीर्य हो। आज विवेकानंद जयंती पर उनके जीवन को पढ़ने के साथ ही उसे गुनने की भी जरूरत है। हम भाग्यवान है कि हमारे पास एक महान विरासत है। तो आईए, उस महान विरासत के गौरव को आधार बना युवा मन के साथ संकल्पबद्ध हो विकसित भारत @2047 के लिए अपनी भूमिका को तय करें होकर आगे बढ़े।

(लेखक मीडिया विभागजे. सी. बोस विश्वविद्यालयफरीदाबाद में एसोसिएट प्रोफेसर है)

Regards,

Dr. Pawan Singh  | डॉ. पवन सिंह

Chairperson | अध्यक्ष

Associate Professor | सह-प्राध्यापक

Department of Communication & Media Technology | संचार एवं मीडिया प्रौद्योगिकी विभाग

J.C.Bose University of Science & Technology, YMCA, Faridabad |जे. सी. बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, वाईएमसीए, फरीदाबाद

Haryana  |हरियाणा

Mobile |चल दूरभाष +91 8269547207, 8103581648

बाल काव्य संग्रह : एक बच्चा और उसका घर

” जीवन मूल्यों का संदेश देती कृति “
एक बच्चा और उसका घर, बाल काव्य संग्रह साहित्यकार जितेंद्र निर्मोही की कृति बच्चों में मनोरंजन के सर –  साथ जीवन मूल्यों को स्थापित करती है। कृति में स्वरचित 74 बाल कविताएं बच्चों के आसपास की दुनिया का जीवंत दर्पण है। प्रेम,भाईचारे, सहयोग ,  अनुशासन, जल संरक्षण, वृक्ष लगाओ पर्यावरण बचाओ, वन्यजीव संरक्षण, प्रकृति प्रेम जैसे संदेश के साथ – साथ देश की महान विभूतियों, पर्यटन स्थलों आदि पर लिखी बाल कहानियां सीधी बच्चों के मन को छू लेने वाली हैं। सरल भाषा में रोचक कविताओं की यह कृति पंडित जवाहरलाल नेहरू बाल अकादमी ,राजस्थान के सहयोग से प्रकाशित है।
 हाल ही में नाथद्वारा की साहित्यिक यात्रा के दौरान लेखक ने यह बाल कृति मुझे भेंट की। एक बयां ने तिनका – तिनका जोड़ कर अपना सुंदर घर बनाया और बच्चे उसमें प्रेम से रहते थे, अपना घर कहते थे पर लिखी कविता “एक बयां और उसका घर” पर ही कृति का नामकरण किया गया है। कविता के कुछ भाव यूं हैं……
एक बयां ने जोड़ – जोड़ कर/ खूब बनाया अपना घर/ कैसे जाने यह बंदर/ बयां एक और उसके बच्चे/ बड़े प्रेम से रहते थे/ बच्चें भी उस सुंदर घर को/ अपना घर ही कहते थे।
आदमी हो या पशु पक्षी आज़ादी सबको प्यारी होती है, कोई भी अपनी आजादी खोना नहीं चाहता है। खासकर वो पंछी जो खुले आसमान में उड़ान भरते हैं, प्रकृति से अपना दाना – पानी लेते हैं, उन्हें पिंजरे में अपने मनोरंजन के लिए कैद कर करना कदापि उचित नहीं है। यही संदेश देती है कविता ” तोता और पिंजरा”…….
उड़ना भूल गए पिंजरे में/ गगन चूमते मिठ्ठू लाल/ मैं कहता पिंजरे का पंछी/ बुरा फंसा यहां आ कर, पिंजरा पिंजरा ही होता है/ बात कही ये समझा कर।
“दीदी और लैपटॉप” बच्चों को आधुनिक शिक्षा साधनों से परिचय कराती है। ” मम्मी और काम” का संदेश है मम्मी घर का खूब काम करती है, दादी फिर भी आंख दिखाती है। बच्चे की  मम्मी के प्रति प्रेम की मनोभावना को दर्शाती  यह कविता मां के ममत्व को बताती है कि बच्चे अपनी मां से कितना प्रेम करते हैं।
 ” फूल और तितली” कविता में बच्चों को फूल और तितली के जन्म जन्म के संबंध को बताया गया है।  बच्चों संसार के देशों से परिचय करवाती है” ग्लोब और देश” कविता।  ” बच्चे और चिड़ियाघर ” में चिड़ियाघर की सैर कर “बच्चें और रणथंभोर” कविता बच्चों को रणथंभोर अभ्यारण्य की सैर करवाती है। बाघ दिख जाए तो बच्चों की खुशी का ठिकाना नहीं रहता……..
कोलाहल और करते शोर/बच्चें पहुंचे रणथंभोर/और यकायक बाघ जो दिखे/
लोग खुशी से खूब उछलते/ लोग खुशी से फोटो लेते/ और खुशी से इसे दिखाते।
 ” कार और पेट्रोल “तथा ” पेड़ और प्रदूषण” में वायु प्रदूषण से बचने के लिए पेड़ लगाने से बच्चों को जोड़ते हुए, जंगल और वन संरक्षण तथा अधिक से अधिक  वृक्ष लगा कर पर्यावरण बचाने की चिता को संदेश बना कर  ” वन और जीवन” कविता के माध्यम से नई पीढ़ी के बच्चों तक पहुंचाने का प्रयास किया है…………
जल से जीवन जीवन से जल/ कटते बन से जीवन घटता/ उपवन शहर खेत में बतता/जहां जहां बगिया लाओ/ सब से पहले वृक्ष लगाओ/ मत काटो पर्वत के पत्थर/इसके अंदर जीवन का स्वर/ मिट्टी का दोहन मत करना/ वृक्ष काटने से तुम डरना/ सर्दी गर्मी या बरसात/ वृक्ष रहे मनुज के साथ।
” जवान और किसान” में इन दोनों का महत्व, ” ईश्वर और प्रार्थना” में जीवन और सम्मान का महत्व, ” मोबाइल और किताब”, बस्ता और बच्चा” कविताओं के साथ ” भारत और हम” बच्चों को अच्छा कम कर आत्मनिर्भर बनने का संदेश देती है……….
सबको करना अपना काम/ कभी न लेंगे हम आराम/ विश्व गुरु इसको बनाना है/ अच्छा कम हमें चुनना है/ रहे बोझ न  सब के ऊपर/ हमको बनना आत्मनिर्भर।
 हर स्थिति में धैर्य रखना, बाधाओं से नहीं डरना, नेहरू,शास्त्री और कलाम,देते हैं यही पैगाम का संदेश देती कविता ” धीरज और धैर्य” तथा भाईचारे का संदेश देती ” ईद और महमूद” के साथ – साथ  कविता ” दादाजी और दुनिया” सहयोग, प्रेम, दया का सुंदर संदेश बच्चों को देती दिखाई देती है………..
दादाजी का है यह कहना/ हेल मेल से रहना सीखे/ निर्धन का दुख भी हम देखें/ कभी कष्ट है कभी खुशी है/ दुनिया ऐसे ही चलती है।
अनुशासन और सीख, इंद्रा गांधी, चाचा नेहरू और गुलाब, कवि और गीत, सादा जीवन और उच्च विचार, राजस्थान और गौरव, बच्चें और शिक्षक दिवस, चिंटू – पिंटू और मिंटू,डब्बू और हरा रंग आदि कविताएं भी बच्चों को खूब भाएंगी।
पुस्तक के प्रारंभ में लेखक अपनी बात में पुस्तक में महत्व पर रोशनी डालते हुए अपने बाल साहित्य लिखने के रोचक प्रसंगों का उल्लेख करते हुए बाल साहित्य लिखने के लिए प्रेरित करता है। पुस्तक देश की नन्ही पीढ़ी को समर्पित है।
पुस्तक : एक बच्चा और उसका घर ( बाल काव्य संग्रह )
लेखक : जितेंद्र निर्मोही, कोटा
प्रकाशक : साहित्यागार, जयपुर
संस्करण : 2023
पृष्ठ : 86
मूल्य : 200₹
————-
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक और पत्रकार, कोटा

विजय जोशी “राष्ट्रीय गौरव सम्मान-2025” से सम्मानित

कोटा।  हिन्दी अकादमी, मुंबई द्वारा ‘मुंबई प्रेस क्लब’ में शनिवार को आयोजित आठवें “राष्ट्रीय गौरव सम्मान समारोह” में साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय एवं सराहनीय कार्य हेतु कोटा राजस्थान से कथाकार एवं समीक्षक विजय जोशी को “राष्ट्रीय गौरव सम्मान-2025” से सम्मानित किया गया।
 समारोह में देश के विभिन्न राज्यों की तेईस प्रतिभाओं को उनके द्वारा समाज, शिक्षा तथा साहित्य के क्षेत्र में किए जा रहे सराहनीय कार्यों को देखते हुए सम्मान – पत्र, उपाधि – पत्र तथा पदक के साथ शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार, समाजसेवी तथा शिवसेना नेता श्री संजय निरुपम ने साहित्य और समाज के अंतर्संबंधों को विवेचित करते हुए सृजन की मूल संवेदना के साथ रचनात्मक लेखन करने पर बल दिया और कहा कि वह जन – जन तक पहुँचे।
हिन्दी अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ.आलोक चौबे तथा कार्यक्रम संयोजक एवं हिन्दी अकादमी के समन्वयक उमेश पाण्डे ने अकादमी के उद्देश्य और कार्यों का संक्षिप्त विवरण दिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. आलोक चौबे ने किया। आरम्भ में अकादमी के अध्यक्ष डॉ. प्रमोद पाण्डेय ने सभी सम्मानित व्यक्तित्व का परिचय दिया तथा अन्त में उपस्थित गणमान्य नागरिकों का आभार ज्ञापित किया।
————

5 वर्षों में 834 बेस्ट दुर्घटनाओं में 88 नागरिकों की मौत

बेस्ट ने 42.40 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया
12 बर्खास्त और 24 कर्मचारी निलंबित
मुंबई। पिछले 5 वर्षों में, 834 बेस्ट बस दुर्घटनाएँ हुई हैं और 88 लोगों की जान चली गई है। इस बात को बेस्ट प्रशासन ने स्वीकार किया है। मृत और घायल नागरिकों को 42.40 करोड़ रुपये का आर्थिक मुआवजा दिया गया है। जबकि 14 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया गया है और 24 कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया है। यह जानकारी बेस्ट प्रशासन ने आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को दी है।
आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने बेस्ट प्रशासन से पिछले 5 वर्षों में दुर्घटनाओं, जानमाल के नुकसान और वित्तीय मुआवजे के बारे में पूछा था। बेस्ट के वरिष्ठ परिवहन अधिकारी ईगल बेंजामिन ने अनिल गलगली को पिछले 5 वर्षों के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
पिछले 5 वर्षों में, बेस्ट और निजी ठेकेदारों से जुड़ी 834 बेस्ट बस की दुर्घटनाएँ हुई हैं। बेस्ट द्वारा 352 दुर्घटनाएँ हुईं जिनमें 51 मौतें हुईं, जबकि बेस्ट सेवा में निजी ठेकेदारों में 482 दुर्घटनाओं में से 37 मौतें हुईं। वर्ष 2022-23 और वर्ष 2023-24 में सबसे अधिक 21 मौतें दर्ज की गईं।
पिछले 5 वर्षों में मृतकों और घायलों को 42.40 करोड़ का आर्थिक मुआवजा दिया गया और 494 मामले सामने आए। सबसे अधिक राशि वर्ष 2022-23 में दी गई। उस वर्ष 107 मामलों में उच्चतम मौद्रिक मुआवजा राशि 12.40 करोड़ थी।वर्ष 2019-20 में 9.55 करोड़, वर्ष 2020-21 में 3.44 करोड़, वर्ष 2021-22 में 9.45 करोड़, वर्ष 2023-24 में 7.54 करोड़ यह मुआवजा राशि की रकम है।
पिछले 5 वर्षों में घातक दुर्घटनाओं में कर्मचारियों की बर्खास्तगी की संख्या 12 है और 2 कर्मचारियों को व्यक्तिगत चोट के मामलों में बर्खास्त किया गया है। व्यक्तिगत चोट के मामले में 24 कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया है. अन्य कार्यवाही में चेतावनी, समझाइश, कड़ी चेतावनी, वसूली, दोहरी श्रेणी में कमी की गई है।
ये आँकड़े बेस्ट प्रशासन की सुरक्षा जिम्मेदारी को उजागर करते हैं। अनिल गलगली का कहना है कि इससे पता चलता है कि प्रशासन और कर्मचारियों को अधिक सावधानी बरतने की जरूरत है।

शारदा शरण चतुर्वेदी “मौलिक” एवँ स्व.डा.मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस’

सुकवि शारदा शरण चतुर्वेदी ‘मौलिक’ का जन्म फाल्गुन शुक्ल एकादशी सं०1979 वि० में धनघटा के निकट मलौली नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता पंडित राम नारायण चतुर्वेदी रंगयुग के प्रतिष्ठित कवि थे तथा उनके बड़े भाई सुकवि ब्रज बिहारी ‘व्रजेश’ जनपद के उच्चस्तरीय छंदकार है। जूनियर हाई स्कूल की शिक्षा के बाद मौलिक जी ने नार्मल की परीक्षा पास करने के बाद अपने गाँव मलौली के प्राइमरी पाठशाला के सहायक अध्यापक नियुक्त हुये । कुछ दिनों के बाद जब उन्हें बँटवारे में बकौली की सम्पत्ति मिली तो यह मलौली से बकौली के गांव में रहने लगे और बैंडा बाजार के प्राइमरी स्कूल मे सहायकअध्यापक के पद पर स्थानान्तरित हो गये। मौलिक जी सुकवि रामदेव सिंह “कलाधर” के योग्य शिष्यों में से थे। यह बड़े ही प्रतिभाशाली छन्दकार थे।समस्या- पूर्तिया इनकी जबान पर रहती थीं। हिन्दी के लोकगीत के ये अच्छे गायक थे। पहली जून 1957 को एक भयंकर आंधी आई और मौलिक जी के ऊपर एक पेड़ की डाल गिर पड़ी । उसी दिन से बेहोशी की हालत में ये मरणासन्न हो गये और दिनांक 07-6-1957 ई को वे दिवंगत हो गये।

– (सुकवि कलाधर के प्रदत्त अभिलेखों के आधार पर।)

असामयिक निधन :-

     मौलिक जी के साहित्य के संदर्भ में मुझे बकौली जाना पड़ा। किन्तु वहां पर मौलिक जी के साहित्य से सम्बन्धित कोई भी सामग्री नहीं मिल सकी। उनका कारण था कि मौलिक जी के निधन के समय उनके दो अबोध बच्चों पर विपत्ति का पहाड़ गिर पड़ा। मौलिक जी के छन्दों की सुरक्षा कौन करता? इनके सारे छन्द जिस मिट्टी निकले थे उसे उसी में विलीन हो गये।

काव्य यात्रा:-

पुन: प्रयास करने पर मौलिक जी के कुछ छन्द तत्त्कालीन साहित्य पत्रिका ‘रसराज’ प्रकाशन स्थल, कानपुर संपादक सुदर्शन जी  की पुरानी कापियों के रूप में सुकवि कलाधर जी के सौजन्य से प्राप्त हुए हैं। उन कापियों है कुछ छन्द यहाँ प्रस्तुत हैं-

घर घर  झोपडी पड़ी है मन मारे हुये,

दीनता से दबी वृत्ति रासै ना छदाम की।

अति दृष्टि अनावृष्टि आधि-व्याधियों से,

व्यथित विकल दुहाई  रही राम की ।

घर के उजाले को स्नेह के हैं लाले पड़े,

लज्जा लूटी जा रही है बस बिनु दाम की।

सारे ये सुधार भी बेकार बने जा रहे हैं,

मौलिक ना पूछो दशा भारतीय ग्राम की।

– (रसराज” पूर्तिपटल, नवम्बर, 1956)

 ग्राम के ऊपर यह समस्यापूर्ति बढी अनूठी है। इसी ही प्रकार से मौलिक जी के दो और छन्द युगानुरूप देखे जा सकते हैं-

शान्ति के घेरे मैं पूर्ण ज्वलन्त,

अशान्ति की दिखती ज्वाला है देख लो ।

होता सुधार विकार किये,

अब भी गले में पड़ी माला है देख लो।

हा अधिकार में ही प्रतिकार ही,

का खड़ा रूप वो काला है देख लो।

होती समृद्धि की वृद्धि ये” मौलिक”,

वृद्धि का होता दिवाला ये देख लो।।

पुन: एक और छन्द भी पठनीय है –

जो बलिदान की रक्त की बूंदों से,

मौलिक पाला गया गणतन्त्र है।

मान्यता से अति दूर वही,

भ्रमजाल में डाला गया गणतन्त्र है।

रूप ना कोई उड़ा करें जो

उसी साँचे में ढाला गया गणतन्त्र है।

कुण्ड में डाला गया अभी कूप से,

जो कि निकाला गया गणतन्त्र है ।।

– ( रसराज, सितम्बर अक्टूबर, 1956-)

देश के प्रति कवि की आत्माभिव्यक्ति युगानुरूप थी। उसके स्वर में हजारों भारतीय जनजीवन का स्वर था। मौलिक जी ने अपने दो दुर्मिल सवैया छन्द रसराज के सम्पादक के पास भेजा। सम्पादक जी ने इन दोनों छन्दों को बहुत पसन्द किया और इसे “रसराज” के मुख्यपृष्ठ पर छापा है –

दुख गाथा मेरी सुनि के हंसी खेल में

नित्य ही टालने वाले बता।

यह मेरा भी कष्ट हटेगा कभी,

भ्रमजाल में डालने वाले बता ।

समता कभी आयेगी “मौलिक” केवल,

पेट के पालने वाले बता ।

कभी लेगा स्वराज्य भान मुझे भी,

स्वराज्य के ढालने वाले बता ।।1।।

कमनीय कलेवर से कभी प्रेम की,

धारा बहेगी अरे कहो तो ।

कभी शान्ति का शासन पा जनता,

सुखी नग्न रहेगी अरे कहो तो ।

अथवा कितने दिन और दबी हुई,

कष्ट सहेगी अरे कहो तो ।

यदि एक नहीं सुनता फिर दूसरे,

से भी कहेगी अरे कभी तो ।।2।।

 – (स्वराज, नवम्बर, 1956)

 मौलिक जी के इन छन्दों में तत्कालीन आवश्यकताओं की मौलिकता है। देश को आजादी एक तरफअपनी दसवीं वर्ष में प्रवेश कर चुकी थी दूसरी तरफ भुखमरी,शोषण, महंगाई, अशिक्षा असुरक्षा आदि पराधीनता का स्मरण करा रहे थे। कविगण समस्या-पूर्तियों में अपने विचारों को छन्दों  के माध्यम से प्रस्तुत करने के होड़ मे लगे हुये थे। मौलिक जी के सशक्त छन्द पत्र-पत्रिकाओं में छप करके उनके कवि रूप को निखार रहे थे । मौलिक जी छन्दों को पत्रिकाएं धड़ल्ले से छाप देती थी। मौलिक जी ऐसा स्पष्टवादी कवि बस्ती के रंगमंच पर देखते ही देखते छा गया । इन्हें अपने साहित्य संरचना के समय अच्छी ख्याति मिलने लगी किन्तु माँ भारती के लाडले इसके छन्दों को इस धरती ने अपने अंक में समेटते हुये रंचमात्र भी संकोच नहीं किया। उनका एक छंद यहां प्रस्तुत है जिसमें उन्होंने पुग पर करारा व्यंग किया है-

अभिशापों से थे भयभीत परन्तु, हमें वरदानों ने लूट लिया

किया पापों से मुक्ति के हेतु जिन्हें, उन्हें “मौलिक” दानों ने लूट लिया ।

रजनी भर प्राची की ओर थी दृष्टि, वे स्वर्ण बिहानों ने लूट किया।

बचा जो था अरे उन वचकों से, घर के भगवानो नै लूट लिया ।।

– ( उपहार पृष्ठ 34)

मौलिक जी केन्द्रों ने भविष्य का बढ़ा सटीक संकेत है। यह छन्द जीवन का अंतिम छंद बनकर रसराज के पन्ने को एक कवि की कहानी देकर अमर हो गया। इस छन्द में कवि का अन्तस्वर बोल उठा है, इसी के साथ जुड़ा हुआ है इसका जीवन दर्शन भी।

क्षण-क्षण क्षीर्णआयु होती चली जा रही है,

भूल मत समझो जवानी रह जायेगी।

काल का कुचक्र चक्र चलता रहेगा सदा,

राजा रह जायेगा ना रानी रह जायेगी ।

धन- धाम  वैभव समृ‌द्धि वृद्धि नश्वर है,

मौलिक मनोहर ये बानी रह जायेगी ।

अच्छे बुरे कर्म अनुसार ही जगत बीचः

कहने को कैवल कहानी रह जायेगी।

– (रसराज” पूर्तिपटल, मई, 1957)

 मौलिक जी ब्रजभाषा, खड़ी बोली और भोजपुरी के अच्छे कवि थे।समस्या-पूर्ति के ये बड़े जादूगर थे। सनेही जी ने इनके छन्दों  की प्रशंसा किया था। घनाक्षरी और सवैया इनके प्रधान छन्द थे। “उपहार” तथा “पूर्वाचला” के अनुसार “अमूल्या” और “स्वर्गीय संगीत” इनकी अनूठी कृतिया थीं जो अनुपलब्ध है।

लेखक का परिचय

 

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास   करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर + 91 9412300183)