Sunday, April 6, 2025
spot_img
Home Blog

राजस्थान का गोड़वाड़ अब इंटरनेशनल टूरिस्ट डेस्टिनेशन

जवाई से मिली नई पहचान, राजस्थान पर्यटन में अब वक्त गोड़वाड़ का

जयपुर। राजस्थान के पाली, जालौर और सिरोही जिलों के बिल्कुल मध्य में फैले गोड़वाड़ और जवाई इलाके को इंटरनेशनल ट्रेवल डेस्टिनेशन के रुप में नई पहचान मिल रही है और राजस्थान पर्यटन में आने वाला वक्त गोड़वाड़ का दिख रहा है। जवाई टूरिज्म सर्किट का यह इलाका अपनी ऐतिहासिक समृद्धि, प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक वैभव के लिए भी प्रसिद्ध है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सरकार इस इलाके को विश्व पर्यटन मानचित्र पर लाने के लिए व्यापक प्रचारित कर रही है, तो सरकारी स्तर पर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कार्यकाल में गोड़वाड़ में पर्यटन विकास के काफी प्रयास हुये। पाली के सांसद पीपी चौधरी केन्द्र सरकार से सहयोग के प्रयास कर रहे है, तो राज्यसभा सांसद नीरज डांगी भी बीते 5 साल से इस काम में लगे हैं। राजस्थान पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष के रुप में धर्मेन्द्र राठौड सहित राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार और पर्यटन व्यवसायी अभिमन्यु सिंह के लगभग एक दशक से गोड़वाड़ में पर्यटन विकास हेतु किए जा रहे प्रयास अब रंग ला रहे हैं।

जवाई पर्यटन के आईने में गोड़वाड़ के चमकदार भविष्य की संभावनाओं को रेखांकित करते हुए राज्यसभा सांसद नीरज डांगी का कहना है कि विभिन्न सहायक व्यावसायिक पहलुओं का भी तेजी से विस्तार और विकास हुआ है और आगे भी होता रहेगा। राजस्थान पर्यटन विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड कहते हैं कि गोड़वाड़ और जवाई को अब वैश्विक स्तर पर पहचान मिल रही है। दुनिया के विभिन्न देशों से गोड़वाड़ में पर्यटकों की आवाजाही बढ़ रही है, शानदार होटल और रिसॉर्ट्स विकसित हो रहे हैं और जंगलों की रौनक बढ़ रही है। राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत को गोड़वाड़ के पर्यटन विकास का श्रेय देते हुए राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार कहते हैं कि जवाई इलाके में पर्यटन विकास से यहां की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला है, डेस्टिनेशन वेडिंग के लिए भी यह इलाका नया आकर्षण बनकर उभरा है। परिहार बताते हैं कि पर्यटन विभाग ने भी जवाई को इंटरनेशनल लेवल पर हाल ही में तोजी से प्रचारित करना शुरू किया है। पर्यटन व्यवसायी और कांग्रेस नेता ठाकुर अभिमन्यु सिंह फालना कहते हैं कि गोड़वाड़ ऐतिहासिक स्थलों और मंदिरों का इलाका है, जहां विकसित होते होटल और रिसॉर्ट्स तथा पर्यटकों के आवास में तब्दील होते हवेलियां और ठाकुरों के राजपूती शान के रावळों के साथ साथ जवाई लेपर्ड सफारी ने गोड़वाड़ को नई पहचान दी है।

अरावली पर्वत श्रृंखलाओं से घिरे गोड़वाड़ में पर्यटन बहुत तेजी से उभरा है। यहां के ऐतिहासिक स्थल, मंदिर, हवेलियां, और जवाई इलाके के जंगल और लेपर्ड सफारी पर्यटकों को आकर्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। सादड़ी, राणकपुर, सांडेराव, सुमेरपुर, शिवगंज, कांबेश्वरजी, बेड़ा, भंदर, बीजापुर, पैरवा, दांतीवाड़ा, फालना, व बाली इलाकों में आधुनिक सुविधाओं वाले होटल तथा रिसॉर्ट्स तथा कैंप से विकसित हो रहे नए पर्यटन रुझानों ने गोड़वाड़ को एक लोकप्रिय गंतव्य के रूप में स्थापित किया है। इसी कारण अक्षय कुमार, आलिया भट्ट, रणबीर कपूर, कटरीना कैफ, विकी कोशल, अल्लू अरविंद, शाहरुख खान, उर्फी जावेद जैसे नामी फिल्मी सितारे भी लगातार जवाई और गोड़वाड़ की तरफ आकर्षित हो रहे हैं।

गोड़वाड़ को भारत के सबसे महंगे टैंट कॉटेजेज वाली टूरिस्ट डेस्टिनेशन के रूप में भी हाल ही में नई पहचान मिली है। राणकपुर – सादड़ी में द ग्रांड अरावली रिसॉर्ट्स के संस्थापक लालसिंह राजपुरोहित आने वाले कुछ सालों में इस इलाके को टूरिस्ट के लिए शानदार इंटरनेशनल डेस्टिनेशन के रूप में विकसित होने को लेकर काफी आश्वस्त हैं। राजपुरोहित कहते हैं कि बॉलीवुड सितारों की आवाजाही से जवाई व राणकपुर इलाके को नया बूस्ट अप मिला है। सांसद पीपी चौधरी का कहना है कि  इस इलाके के पर्यटन विकास में जो पिछली सरकार ने जो भूमिका निभाई, उससे भी आगे बढकर भजनलाल सरकार जवाई और गोड़वाड़ पर ध्यान दे रही है, एवं वे स्वयं भी प्रयासरत हैं, इससे पर्यटन विकास को नई गति मिल रही है एवं रोजगार के अवसर भी बड़े पैमाने विकसित हो रहे है।

फिल्मी दुनिया का ‘भारतीय चेहरा’ नहीं रहा

जाने माने फिल्म अभिनेता और राष्टरवादी फिल्मों से अपनी पहचान बनाने वाले मनोज कुमार का आज  87 वर्ष की आयु में  मुंबई में निधन हो गया।   वे 87 साल के थे। वे विशेष रूप से अपनी देशभक्ति फिल्मों के लिए जाने जाते थे। उन्हें भारत कुमार के नाम से भी जाना जाता था। उपकार, पूरब-पश्चिम, क्रांति, रोटी-कपड़ा और मकान उनकी बेहद कामयाब फिल्में रहीं।

मनोज कुमार, जिनका असली नाम हरिकृष्ण गिरि गोस्वामी था, भारतीय सिनेमा के एक प्रतिष्ठित अभिनेता, निर्देशक, और लेखक थे। उनका जन्म 24 जुलाई 1937 को ब्रिटिश भारत के उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत (अब खैबर पख्तूनख्वा, पाकिस्तान) के एबटाबाद शहर में हुआ था। देश के विभाजन के बाद, उनका परिवार दिल्ली आकर बस गया।

मनोज कुमार का असली नाम हरिकृष्ण गोस्वामी था। 24 जुलाई 1937 को एबटाबाद, ब्रिटिश इंडिया (अब खैबर पख्तूनख्वा, पाकिस्तान) में उनका जन्म हुआ। एबटाबाद वही जगह है, जहां 2 मई 2011 को अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को मारा था। मनोज कुमार जब 10 साल के थे तब 1947 में उनके छोटे भाई कुक्कू का जन्म हुआ। तबीयत बिगड़ने पर 2 माह के भाई और मां को अस्पताल में भर्ती करवाया गया था कि तभी दंगे भड़क गए। हर तरफ अफरा-तफरी मची और अस्पताल का स्टाफ जान बचाकर भागने लगा।जैसे ही सायरन बजता था तो जो डॉक्टर और नर्स बचे हुए थे वो अंडरग्राउंड हो जाया करते थे। ऐसे में सही इलाज ना मिल पाने के चलते मनोज कुमार के 2 माह के भाई ने अस्पताल में ही दम तोड़ दिया। मां की हालत भी उस समय गंभीर थी। वो तकलीफ में चिल्लाती रहती थीं, लेकिन कोई डॉक्टर या नर्स उनका इलाज नहीं करता था।

एक दिन ये सब देखकर मनोज इस कदर नाराज हुए कि उन्होंने लाठी उठाई और अंडरग्राउंड जाकर डॉक्टर्स और नर्स को पीटना शुरू कर दिया। मनोज तब सिर्फ 10 साल के थे, लेकिन उनसे मां की तकलीफ देखी नहीं जा रही थी। पिता ने उन पर काबू पाया और परिवार ने जान बचाने के लिए पाकिस्तान छोड़ने का फैसला कर लिया।  उनका परिवार जंडियाला शेर खान से पलायन कर दिल्ली पहुंचा। यहां उन्होंने 2 महीने रिफ्यूजी कैंप में बिताए। समय बीता और दंगे कम होने लगे। पूरा परिवार जैसे-तैसे दिल्ली में बस गया, जहां मनोज की पढ़ाई हो सकी। उन्होंने स्कूल के बाद हिंदू कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा किया और नौकरी की तलाश शुरू कर दी।

मनोज कुमार ने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से कला में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। फिल्मों में उनकी रुचि बचपन से ही थी, और उन्होंने अभिनेता दिलीप कुमार से प्रेरित होकर अपना नाम ‘मनोज कुमार’ रखा, जो दिलीप कुमार के फिल्म ‘शबनम’ के किरदार का नाम था।

1957 में फिल्म ‘फैशन’ से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद, मनोज कुमार ने ‘हरियाली और रास्ता’ (1962), ‘वो कौन थी?’ (1964), ‘हिमालय की गोद में’ (1965), ‘शहीद’ (1965), ‘उपकार’ (1967), ‘पूरब और पश्चिम’ (1970), ‘रोटी कपड़ा और मकान’ (1974), और ‘क्रांति’ (1981) जैसी सफल फिल्मों में अभिनय किया। विशेष रूप से, ‘उपकार’ में उन्होंने ‘भारत’ नामक किरदार निभाया, जिससे उन्हें ‘भारत कुमार’ का उपनाम मिला।

अपने करियर में, मनोज कुमार को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें 1992 में पद्म श्री और 2015 में दादासाहेब फाल्के पुरस्कार शामिल हैं। उन्होंने 1999 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड भी प्राप्त किया।

मनोज कुमार के बेटे कुणाल गोस्वामी ने बताया, ‘उन्हें लंबे समय से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां थीं। यह भगवान की कृपा है कि उन्हें आखिरी समय में ज्यादा परेशानी नहीं हुई, शांतिपूर्वक उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनका अंतिम संस्कार शनिवार 5 अप्रैल को  सुबह 11 बजे मुंबई के पवनहंस श्मशान घाट पर होगा।’

मनोज कुमार काफी समय से लिवर सिरोसिस से जूझ रहे थे। उनकी हालत बिगड़ने के बाद उन्हें 21 फरवरी 2025 को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

मनोज कुमार को 7 फिल्म फेयर पुरस्कार मिले थे। पहला फिल्म फेयर 1968 में फिल्म उपकार के लिए मिला था। उपकार ने बेस्ट फिल्म, बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट स्टोरी और बेस्ट डायलॉग के लिए चार फिल्म फेयर जीते। 1992 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 2016 में उन्हें दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से नवाजा गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मनोज कुमार को श्रद्धांजलि दी है। पीएम ने ‘एक्स’ पर लिखा: ‘महान अभिनेता और फिल्म निर्माता श्री मनोज कुमार जी के निधन से बहुत दुख हुआ। वह भारतीय सिनेमा के प्रतीक थे, जिन्हें विशेष रूप से उनकी देशभक्ति के उत्साह के लिए याद किया जाता था, जो उनकी फिल्मों में भी झलकता था। मनोज जी के कार्यों ने राष्ट्रीय गौरव की भावना को प्रज्ज्वलित किया और यह पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। दुख की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति।’

प्रेम चोपड़ा के साथ मनोज कुमार। फिल्म उपकार में प्रेम ने मनोज के छोटे भाई का किरदार निभाया था। हालांकि, प्रेम, मनोज से उम्र में दो साल बढ़े हैं। एक दिन मनोज कुमार काम की तलाश में फिल्म स्टूडियो में टहल रहे थे कि उन्हें एक व्यक्ति दिखा। मनोज ने बताया कि वो काम की तलाश कर रहे हैं, तो वो आदमी उन्हें साथ ले गया। उन्हें लाइट और फिल्म शूटिंग में लगने वाले दूसरे सामानों को ढोने का काम मिला। धीरे-धीरे मनोज के काम से खुश होकर उन्हें फिल्मों में सहायक के रूप में काम दिया जाने लगा।फिल्मों के सेट पर बड़े-बड़े कलाकार अपना शॉट शुरू होने से बस चंद मिनट पहले पहुंचते थे। ऐसे में सेट में हीरो पर पड़ने वाली लाइट चेक करने के लिए मनोज कुमार को हीरो की जगह खड़ा कर दिया जाता था।

एक दिन जब लाइट टेस्टिंग के लिए मनोज कुमार हीरो की जगह खड़े हुए थे। लाइट पड़ने पर उनका चेहरा कैमरे में इतना आकर्षक लग रहा था कि एक डायरेक्टर ने उन्हें 1957 में आई फिल्म फैशन में एक छोटा सा रोल दे दिया। रोल छोटा जरूर था, लेकिन मनोज कुछ मिनट की एक्टिंग में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे। उसी रोल की बदौलत मनोज कुमार को फिल्म कांच की गुड़िया (1960) में लीड रोल दिया गया। पहली कामयाब फिल्म देने के बाद मनोज ने बैक-टु-बैक रेशमी रुमाल, चांद, बनारसी ठग, गृहस्थी, अपने हुए पराए, वो कौन थी जैसी कई फिल्में दीं।

1965 में मनोज कुमार देशभक्ति पर बनी फिल्म शहीद में स्वतंत्रता सेनानी शहीद भगत सिंह के रोल में नजर आए थे। फिल्म जबरदस्त हिट रही और इसके गाने ‘ऐ वतन, ऐ वतन हमको तेरी कसम’, ‘सरफरोशी की तमन्ना’ और ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ काफी पसंद किए गए थे।

ये फिल्म लाल बहादुर शास्त्री को बेहद पसंद आई। शास्त्री जी ने नारा था- जय जवान, जय किसान। शास्त्री जी ने मनोज को इस नारे पर फिल्म बनाने की सलाह दी। इस पर मनोज ने फिल्म उपकार (1967) बनानी शुरू कर दी, हालांकि उन्हें फिल्म लेखन या डायरेक्शन का कोई अनुभव नहीं था।

एक दिन मनोज कुमार ने मुंबई से दिल्ली जाने के लिए राजधानी ट्रेन की टिकट खरीदी और ट्रेन में चढ़ गए। ट्रेन में बैठे-बैठे ही उन्होंने आधी फिल्म लिखी और लौटते हुए आधी। इस फिल्म से उन्होंने बतौर डायरेक्टर करियर की दूसरी पारी शुरू की। आगे उन्होंने पूरब और पश्चिम, रोटी कपड़ा और मकान जैसी देशभक्ति पर कई फिल्में बनाईं।

फिल्म ने मनोज कुमार को दिया भारत कुमार नाम उपकार 1967 की सबसे बड़ी फिल्म थी। फिल्म का गाना मेरे देश की धरती सोना उगले.. आज भी सबसे बेहतरीन देशभक्ति गानों में गिना जाता है। फिल्म में मनोज कुमार का नाम भारत था। फिल्म के गाने की पॉपुलैरिटी देखते हुए मनोज कुमार को मीडिया ने भारत कहना शुरू कर दिया और फिर उन्हें भारत कुमार कहा जाने लगा। मनोज कुमार ने अपने निर्देशन में बनी फिल्म क्रांति (1981) में दिलीप कुमार को डायरेक्ट किया था।

लाल बहादुर शास्त्री नहीं देख पाए उपकार उपकार लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर बनी थी, लेकिन वे इसे देख नहीं सके। 1966 में शास्त्री जी ताशकंद (उज्बेकिस्तान) के दौरे पर गए थे। वे लौटने के बाद फिल्म उपकार देखते, लेकिन ताशकंद में ही इंडो-पाकिस्तान वॉर में शांति समझौता साइन करने के अगले दिन 11 जनवरी 1966 को उनकी मौत हो गई। उनकी मौत के एक साल बाद 11 अगस्त 1967 को फिल्म रिलीज हुई। शास्त्री जी को फिल्म न दिखा पाने का अफसोस ताउम्र मनोज कुमार को रहा।

1966 की फिल्म दो बदन में मनोज कुमार ने पहली बार प्राण के साथ काम किया और दोनों दोस्त बन गए। प्राण को तब फिल्मों में निगेटिव रोल मिला करते थे। ऐसे में उनकी छवि बदलने के लिए मनोज कुमार ने उन्हें अपनी फिल्म आह में पॉजिटिव रोल दिया। ये फिल्म फ्लॉप रही और लोगों ने प्राण को नापसंद किया।  मनोज कुमार ने हार नहीं मानी। उसी समय मनोज उपकार फिल्म पर काम कर रहे थे। मनोज ने इस फिल्म में उन्हें मलंग बाबा का रोल देने का फैसला किया। इस सिलसिले में दोनों की मुलाकात हुई।

मनोज कुमार ने प्राण ने कहा- क्या आप मेरी फिल्म में मलंग बाबा का रोल करेंगे? प्राण ने कहा- पंडित जी, लाइए स्क्रिप्ट पढ़ लूं। प्राण, मनोज को पंडितजी कहते थे।

स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद प्राण ने कहा- पंडित, फिल्म की स्क्रिप्ट और मलंग का किरदार दोनों बहुत खूबसूरत हैं, लेकिन एक बार सोच लो, क्योंकि मेरी छवि खूंखार, शराबी, जुआरी और बलात्कारी की है। क्या दर्शक मुझे किसी साधु के रोल में अपना सकेंगे।

इरादों के पक्के मनोज कुमार ने उन्हें वो रोल दिया और शूटिंग शुरू कर दी। प्राण साहब समय के बेहद पाबंद थे। एक दिन वो सेट पर पहुंचे तो मनोज कुमार को लगा कि वे बीमार हैं। उन्होंने पास जाकर पूछा- आपकी तबीयत तो ठीक है ना? जवाब मिला- हां, मैं एकदम फिट हूं। उस दिन दोनों ने एक्शन सीन शूट किए। जब पैकअप हुआ तो फिर मनोज ने गौर किया कि प्राण साहब कुछ ठीक नहीं लग रहे। वो तुरंत मेकअप रूम में पहुंचे और कहा- आप कुछ छिपा रहे हैं। आप आज मुझे ठीक नहीं लग रहे। अगर कुछ बात है तो बताइए।

जवाब में प्राण साहब ने कहा- नहीं कुछ नहीं, दरअसल कल शाम को मेरी बड़ी बहन की अचानक मौत हो गई। उस चक्कर में मैं रातभर सो नहीं पाया। ये सुनकर मनोज कुमार दंग रहे है कि अपनी बड़ी बहन को खोने पर भी वे सेट पर पहुंच गए थे। मनोज ने फिर कहा- अगर ऐसा कुछ था तो आपने मुझे फोन करके बताया क्यों नहीं, मैं आज की शूटिंग कैंसिल कर देता। प्राण ने कहा- अगर मैं बता देता तो तुम शूटिंग कैंसिल कर देते और नुकसान होता।

मनोज ने राज कपूर से कहा था- मेरा नाम जोकर की स्क्रिप्ट कमजोर थी मनोज कुमार और राज कपूर अच्छे दोस्त थे। एक बार जब राज कपूर ने मनोज कुमार के घर कॉल किया तो नौकर ने फोन उठाकर कह दिया कि ये रॉन्ग नंबर है। दरअसल उस समय वो घर पर नहीं थे। राज कपूर इससे नाराज तो हुए, लेकिन कुछ समय बाद दोनों ने बात कर ये गलतफहमी दूर कर ली।

जब मनोज कुमार ने अनाउंस किया कि वो उपकार फिल्म से डायरेक्शन में कदम रखने जा रहे हैं, तो राज कपूर ने उन्हें तीखे शब्दों में सलाह दी। या तो एक्टिंग कर लो या डायरेक्शन, क्योंकि हर कोई राज कपूर नहीं है, जो हर काम एक साथ कर ले।

राज कपूर की ‘मेरा नाम जोकर’ में मनोज कुमार भी थे। राज कपूर डायरेक्टर के अलावा राजू जोकर के किरदार में थे। मनोज ने डेविड के रोल में थे।

जब उपकार फिल्म जबर्दस्त हिट रही तो राज कपूर ने अपनी बात पर पछतावा करते हुए मनोज कुमार से कहा था, मुझे लगता था कि सिर्फ खुद से कॉम्पिटीशन है, लेकिन अब मुझसे मुकाबला करने के लिए तुम आ गए हो।

राज कपूर के निर्देशन में बनी फिल्म मेरा नाम जोकर (1970) में मनोज कुमार ने काम किया। ये फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हो गई, तो मनोज कुमार ने राज कपूर को समझाया कि फिल्म की लेखनी बेहद कमजोर थी। अगर स्क्रिप्ट पर काम होता तो फिल्म हिट होती। राज कपूर ने भी इस बात को कबूल कर लिया।

भारतीय जनता पार्टी :शून्य से शिखर तक का सफर

 स्थापना दिवस 6 अप्रैल पर विशेष
व्यक्ति या संस्था जब शिखर पर होता है तब उसकी विजयगाथा गायी जाती है और यह स्वाभाविक भी है. आज की भारतीय जनता पार्टी की बुनियाद में उसके संघर्ष के दिनों की यात्रा उसकी नींव है. 1951 में जनसंघ के रूप में यात्रा शुरू हुई और जनता पार्टी के रूप में विस्तार मिला और 6 अप्रेल 1980 को स्वयं की पहचान के साथ भारतीय जनता पार्टी की यात्रा आरंभ हुई तो अविरल चल रही है. कभी दो सांसदों के साथ लोकसभा में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने वाली भारतीय जनता पार्टी आज देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में उपस्थित है.
यहां यह जान लेना जरूरी है कि भारतीय जनता पार्टी की यात्रा का आरंभ कहां से शुरू होता है. वैसे तो यह सबको पता है कि 6 अप्रेल 1980 को भाजपा का एक राजनीतिक पार्टी के रूप में गठन हुआ लेकिन भाजपा की रीति-नीति हिन्दुत्व की रही है और इसी आधार पर तब 1951 में हिंदू समर्थक समूह की राजनीतिक शाखा के रूप में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नींव डाला था. ध्येय था हिंदू संस्कृति के अनुसार भारत के पुनर्निर्माण की वकालत की और एक मजबूत एकीकृत राज्य के गठन का आह्वान। यात्रा आहिस्ता आहिस्ता आगे बढऩे लगा और 1967 तक भारतीय जनसंघ ने उत्तर भारत के हिंदी भाषी क्षेत्रों में अपनी मजबूत पकड़ बना ली थी। दस साल बाद, पार्टी ने हिंदी भाषी क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत कर ली।
देश में 1977 में आपातकाल की समाप्ति के बाद जनसंघ का अन्य दलों के साथ विलय हो गया और इसके साथ ही जनसंघ के स्थान पर नया नाम मिला जनता पार्टी.  जनता पार्टी के गठन के बाद नयी ताकत दिखी और जनता पार्टी ने 1977 में कांग्रेस को पराजित कर दिया. जनता पार्टी में विलय हुई जनता पार्टी की रीति-नीति से अन्य दलों का मेल नहीं खाया और उनके रास्ते अलग अलग हो गए. पूर्व जनसंघ के पदचिह्नों को पुनर्संयोजित करते हुये अटल बिहारी वाजपेयी ने तीन अन्य राजनीतिक दलों के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। जनता पार्टी से अलग होकर सरकार की बागडोर अपने हाथ में ले ली। हालांकि, गुटबाजी और आंतरिक विवादों से त्रस्त होकर जुलाई 1979 में सरकार गिर गई। जनता गठबंधन के भीतर असंतुष्टों द्वारा विभाजन के बाद 1980 में औपचारिक रूप से भाजपा की स्थापना हुई।
यद्यपि शुरुआत में पार्टी असफल रही और 1984 के आम चुनावों में केवल दो लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही।  इसके बाद राम जन्मभूमि आंदोलन ने पार्टी को ताकत दी। कुछ राज्यों में चुनाव जीतते हुये और राष्ट्रीय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करते हुये 1996 में पार्टी भारतीय संसद में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। इसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया जो 13 दिन चली। 1998 में आम चुनावों के बाद भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का निर्माण हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी जो एक वर्ष तक चली। इसके बाद आम-चुनावों में राजग को पुन: पूर्ण बहुमत मिला और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार ने अपना कार्यकाल पूर्ण किया। इस प्रकार पूर्ण कार्यकाल करने वाली पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी। 2004 के आम चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा और अगले 10 वर्षों तक भाजपा ने संसद में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभाई।
उल्लेखनीय है कि भाजपा हिन्दुत्व के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त करती है और नीतियाँ ऐतिहासिक रूप से हिन्दू राष्ट्रवाद की पक्षधर रही हैं। इसकी विदेश नीति राष्ट्रवादी सिद्धांतों पर केन्द्रित है। जम्मू ृऔर कश्मीर के लिए विशेष संवैधानिक दर्जा खत्म करना, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करना तथा सभी भारतीयों के लिए समान नागरिकता कानून का कार्यान्वयन करना भाजपा के मुख्य मुद्दे हैं।
भाजपा को 1989 में चुनावी सफलता मिलनी शुरू हुई, जब उसने अयोध्या में हिंदुओं द्वारा पवित्र माने जाने वाले एक क्षेत्र में हिंदू मंदिर के निर्माण की मांग करके मुस्लिम विरोधी भावना को भुनाया , लेकिन उस समय बाबरी मस्जिद (बाबर की मस्जिद) का कब्जा था। 1991 तक भाजपा ने अपनी राजनीतिक अपील में काफी वृद्धि की थी, लोकसभा (भारतीय संसद के निचले सदन) में 117 सीटों पर कब्जा कर लिया और चार राज्यों में सत्ता संभाली। 1998 में भाजपा और उसके सहयोगी दल वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के साथ बहुमत वाली सरकार बनाने में सफल रहे। उस वर्ष मई में, वाजपेयी द्वारा आदेशित परमाणु हथियार परीक्षणों की व्यापक अंतरराष्ट्रीय निंदा हुई। 13 महीने के कार्यकाल के बाद, गठबंधन सहयोगी ऑल इंडिया द्रविड़ प्रोग्रेसिव फेडरेशन (अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कडग़म ) ने अपना समर्थन वापस ले लिया और वाजपेयी को लोकसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए बाध्य होना पड़ा, जिसमें वे एक वोट के अंतर से हार गये।
भाजपा ने 1999 के संसदीय चुनावों में एनडीए के आयोजक के रूप में चुनाव लड़ा, जो 20 से अधिक राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों का गठबंधन था। गठबंधन ने सत्तारूढ़ बहुमत हासिल किया, जिसमें भाजपा ने गठबंधन की 294 सीटों में से 182 सीटें जीतीं। गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी के नेता के रूप में वाजपेयी फिर से प्रधानमंत्री चुने गए।
हालाँकि वाजपेयी ने कश्मीर क्षेत्र को लेकर पाकिस्तान के साथ देश के लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष को सुलझाने और भारत को सूचना प्रौद्योगिकी में विश्व नेता बनाने की कोशिश की, लेकिन गठबंधन ने 2004 के संसदीय चुनावों में कांग्रेस पार्टी के संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) गठबंधन के सामने अपना बहुमत खो दिया और वाजपेयी ने पद से इस्तीफा दे दिया। 2009 के संसदीय चुनावों में लोकसभा में पार्टी की सीटों का हिस्सा 137 से घटकर 116 रह गया क्योंकि यूपीए गठबंधन फिर से प्रबल हो गया ।

2014 के आम चुनावों में राजग को गुजरात के लम्बे समय से चले आ रहे मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारी जीत मिली।  2014 के लोकसभा चुनाव कांग्रेस शासन के प्रति असंतोष बढऩा था.  मोदी को भाजपा के चुनावी अभियान का नेतृत्व करने के लिए चुना गया. उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार पार्टी ने घोषित किया। भाजपा ने 282 सीटें जीतीं, जो सदन में स्पष्ट बहुमत था, और इसके एनडीए सहयोगियों ने 54 और सीटें जीतीं। मोदी ने 26 मई, 2014 को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली.

दो सीटों पर विजय प्राप्त करने वाली भाजपा ने 2014 से जो विजय यात्रा आरंभ की तो पीछे पलट कर नहीं देखा. लोकसभा के साथ ज्यादतर राज्यों में भाजपा की सरकार बनती गई. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आइकॉन बनकर उभरे. वे समाज के सभी वर्गों में लोकप्रिय हो गए. वे अपने सख्त फैसले से अलग पहचान बना लिया. अयोध्या में राममंदिर निर्माण, जम्मू कश्मीर में बदलाव, तीन तलाक कानून खत्म करने, गोवध रोकने कानून, जीएसटी लागू कर देश में परिवर्तन की नयी बयार ला दी. भाजपा को बनाने और विस्तार देने में अटलविहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवानी और मुरली मनोहर जोशी का नाम लिया जा सकता है तो एक दशक में भाजपा को मजबूती देने वालों में नरेन्द्र मोदी के नाम का ही उल्लेख मिलेगा. भाजपा ने अपने संकल्प और दूरदृष्टि से आज वैकल्पिक नहीं बल्कि लोकतांत्रिक भारत में मुखर और प्रखर राजनीतिक दल के रूप में सशक्त उपस्थिति दर्ज करायी है.
 (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

क्या है झिबली या घिबली पढ़ें पूरा इतिहास

हाल ही में, स्टूडियो घिबली-शैली की कला ऑफ़लाइन तेजी से वायरल हो रही है, जिसमें एआई-जनित वर्ग इस प्रसिद्ध एनीमेशन स्टूडियो की विशिष्ट शैली की नकल कर रही है। OpenAI के GPT-4o ने इतिहास को खुद की, प्रसिद्ध वर्गीकरण की, और यहां तक कि ऐतिहासिक घटनाओं के स्टूडियो घिबली-शैली में चित्र बनाने की सुविधा दी है। इस नई एआई तकनीक ने एक डिजिटल लहर का जन्म किया है, जिससे सोशल मीडिया पर घिबली-डुबकी कला की बाढ़ आ गई है।
स्टूडियोज़ घिबली और उनकी अनोखी विक्रय संरचना
स्टूडियो घिबली दुनिया भर में अपनी सुंदर हस्तनिर्मित एनिमेटेड शैली, सादृश्य कथा चित्रण, और विस्तृत काल्पनिक शैल दुनिया के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन “घिबली” शब्द की अपनी एक अलग ऐतिहासिक उत्पत्ति है।
“घिबली” शब्द की उत्पत्ति
“घिबली” शब्द लीबियाई अरबी से आया है, जिसका अर्थ एक गर्म रेगिस्तानी हवा होता है। इस शब्द का उपयोग ऐतिहासिक रूप से इतालवी पायलटों द्वारा स्मारक सागर की गर्म हवा को देखने के लिए किया गया था। हयाओ मियाज़ाकी, स्टूडियो घिबली के सह-संस्थापक, ने इस नाम को इसलिए चुना ताकि यह स्टूडियो एनीमेशन की दुनिया में एक नई ताजगी और क्रांतिकारी बदलाव लाए।
स्टूडियो घिबली: एनीमेशन की दुनिया में क्रांति
स्टूडियो घिबली की स्थापना 1985 में हयाओ मियाज़ाकी, इसाओ ताकाहाता और तोशियो सुजुकी की थी। यह स्टूडियो अपने हस्तनिर्मित एनिमेटेड कला, अलौकिक से दैत्य दृश्य, और गहराई वाले आर्किटेक्चर के लिए प्रसिद्ध है।
घिबली की विशिष्ट कला शैली
स्टूडियो घिबली की कला-शैली में निम्नलिखित विशेषताएं निर्दिष्ट हैं:
कोमल, पेस्टल रंग की छत्ता, जो एक सपनिला और सजीव स्वभाव का है।
विस्तृत पृष्ठभूमि, जो वास्तविक जीवन के परिदृश्य और पारंपरिक जापानी सौंदर्यशास्त्र से प्रेरित है।
साम्यवादी चरित्र डिजाइन, जो प्रतीकात्मक को भारी जीवंतता और निर्माण करता है।
हस्त निर्मित एनीमेशन तकनीक, जिसमें गति और वास्तविकता का संतुलन होता है।
जादुई यथार्थवाद (जादुई यथार्थवाद), जिसमें साधारण जीवन और कल्पना से लेकर सुंदरता तक के सिद्धांत शामिल हैं।
स्टूडियो घिबली की प्रसिद्ध फ़िल्में और उनका प्रभाव
स्टूडियो घिबली की कई फ़िल्में विश्वभर में अत्यंत लोकप्रिय रही हैं, जिनमें शामिल हैं:
माई नेबर तोतोरो (1988) – दो भाई और एक जादुई वन स्पिरिट (तोतोरो) की दिल को छू लेने वाली कहानी।
प्रिंसेस मोनोसोके (1997) – इंसानों और प्रकृति के बीच पर आधारित एक शक्तिशाली कहानी।
स्पिरिटेड अवे (2001) – ऑस्कर विजेता फिल्म, जिसमें एक लड़की एक रहस्यमय स्नानघर में फंस जाती है।
हॉल्स मूविंग स्टूडियो (2004) – जादू, प्रेम और युद्ध-विरोधी विचारधारा से भरपूर एक रोमांचक फंतासी कहानी।
घिबली-शैली की कला और मूर्ति
हाल ही में, OpenAI के GPT-4o ने घिबली-शैली की मूर्तिकला-जनित कला को वायरल बना दिया है। यह टूल स्टूडियोज को स्टूडियो घिबली-शैली की सुंदर और छवियाँ बनाने की मात्रा देता है, जिससे सोशल मीडिया पर निजी पोर्टफोलियो, सार्वजनिक कैटलॉग और काल्पनिक स्टाइल्स की घिबली-शैली की छवियां साझा की जा रही हैं।
मियाज़ाकी का फ़िल्म पर नजरिया
हालाँकि, हयाओ मियाज़ाकी ने फिल्म-जेनिट एनीमेशन के प्रति अपनी वफादारी जाहिर की है। उनका मानना है कि वास्तविक एनीमेशन में मानवता की भावना और कला की आत्मा होनी चाहिए, जो मशीन कभी भी पूरी तरह से पकड़ नहीं पाती है। वे प्रौद्योगिकी के बजाय पारंपरिक कला सिद्धांतों को स्वदेशी कहते हैं।
स्टूडियो घिबली-शैली की नाटकीय कला की यह नई लहर एक दिलचस्प प्रवृत्ति है, लेकिन यह भी बहस है कि क्या फिल्म कभी वास्तविक कला निर्माण की जगह ले सकती है या नहीं।
साभार –

https://www.facebook.com/share/p/1ByuCnB99c/ से

एक हीरो हीरोईन की प्रेम कहानी जो चलती लोकल में शुरु हुई और फिल्म स्टुूडियो में अंजाम तक पहुँची

“आपकी बेटी इतनी खूबसूरत नहीं है कि मैं उसे देखूं। मैं तो मोगरे की खुशबू सूंघने के लिए यहां आकर बैठा हूं। अगर ज़्यादा बोलोगी तो आपकी बेटी के बराबर में बैठ जाऊंगा। क्योंकि इस सीट पर तीन लोग बैठ सकते हैं।” एक लड़के ने सीमा देव जी की मां से मुंबई की एक लोकल ट्रेन में कहा। सीमा जी की मां उस लड़के की बात सुनकर अवाक रह गई। वो चुप हो गई। लेकिन उन्होंने सीमा जी को निर्देश दिया कि इस लड़के की तरफ़ बिल्कुल भी मत देखना।

साथियों सालों पहले की ये एक बहुत दिलचस्प घटना आज किस्सा टीवी के माध्यम से आप जानेंगे। ये हुआ था एक्ट्रेस सीमा देव जी के साथ। और सीमा देव जी की मां के साथ उस दिन बदमिजाज़ी से बात करने वाला वो लड़का भी आगे चलकर नामी एक्टर बना था। ये कहानी आज इसलिए क्योंकि आज सीमा देव जी का जन्मदिवस है। 27 मार्च 1942 को सीमा जी का जन्म हुआ था। सीमा जी बहुत उत्कृष्ट अदाकार थी। सीमा जी को नमन करते हुए ये कहानी शुरू करते हैं।

उस वक्त सीमा जी के घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब चल रही थी। किसी ने सीमा जी से कहा कि तुम्हें फ़िल्मों में काम करना चाहिए। फ़िल्म लाइन में अच्छा पैसा है। सीमा जी को बताया गया कि फ़िल्मिस्तान में बहुत सारी फ़िल्में बनती हैं। उन लोगों को हमेशा कलाकारों की ज़रूरत रहती है। सीमा जी ने अपनी मां से बात की। लेकिन उनकी मां ने मना कर दिया। क्योंकि उस दौर में जल्दी से लोग अपनी बेटी को फ़िल्म लाइन में भेजने को तैयार नहीं होते थे।

सीमा जी ने अपनी मां से कहा कि अगर फ़िल्म में काम मिल गया तो शायद घर चलाने में बहुत मदद हो जाए। उस दौर में फ़िल्मिस्तान में मराठी फ़िल्में बनना भी शुरू हो चुकी थी। और उन्हें अच्छी तादाद में मराठी कलाकारों की ज़रूरत पड़ती थी। सीमा जी को यही उम्मीद थी कि उन्हें मराठी होने के चलते फ़िल्मों में काम मिल सकता है। घर-परिवार के गुज़ारे की बात थी। तो ना चाहते हुए भी सीमा जी की मां उनके साथ फ़िल्मिस्तान चलने को तैयार हो गई।

एक-दो दिन बाद सीमा जी और उनकी मां लोकल ट्रेन से फ़िल्मिस्तान स्टूडियो की तरफ़ चल दी। रास्ते में ग्रांट रोड स्टेशन आया। गाड़ी वहां रुकी तो एक नौजवान लड़का भी उसी बोगी में आ गया जिसमें सीमा देव जी व उनकी मां बैठी थी। सुबह का समय था, तो गाड़ी लगभग खाली पड़ी थी। फिर भी वो लड़का सीमा जी के सामने वाली सीट पर आकर बैठ गया। उस वक्त सीमा जी ने अपने बालों में मोगरे के फूलों वाला एक गजरा लगा रखा था। और गजरे में से अच्छी-खासी खुशबू उठ रही थी।

उस लड़के को मोगरे की खुशबू बहुत पसंद थी। मगर सच तो ये है कि उस लड़के को सीमा जी पसंद आ रही थी। इसलिए वो सामने बैठकर बार-बार सीमा जी को घूरे जा रहा था। सीमा जी की मां को जब आभास हुआ कि ये लड़का उनकी बेटी को घूरे जा रहा है तो उन्हें बहुत खराब लगा। जब उस लड़के को काफ़ी देर हो गई तो सीमा जी की मां के सब्र का बांध टूट गया। उन्होंने उस लड़के को टोकते हुए कहा,”ऐ मिस्टर, क्यों तुम मेरी बेटी को ऐसे घूरे जा रहे हो? तुम्हें शर्म नहीं है क्या?”

चूंकि वो लड़का नौजवान था तो उसे सीमा जी की मां का बात करने का अंदाज़ बड़ा ख़राब लगा। उसने सीमा जी की मां को लगभग अकड़ते हुए जवाब दिया,”मैं आपकी बेटी को नहीं घूर रहा हूं। इतनी खूबसूरत नहीं है आपकी बेटी कि मैं इसे घूरूं। मैं तो मोगरे की खुशबू के लिए यहां बैठा हूं। अगर आप ज़्यादा बक-बक करेंगी तो मैं आपकी लड़की के बगल में बैठ जाऊंगा। क्योंकि उस सीट पर तीन लोगों के बैठने की जगह है।”

उस लड़के का वो अक्खड़ सा जवाब सीमा जी की मां को बहुत खराब लगा। हालांकि वो चुप ही रही। उन्होंने सीमा जी से कहा कि इसकी तरफ़ बिल्कुल भी मत देखना। जबकी उसी वक्त सीमा जी के मन में ये ख्याल चल रहा था कि फ़िल्मिस्तान स्टूडियो तक पहुंचा कैसे जाएगा। अगर इस लड़के से फ़िल्मिस्तान का पता पूछ लिया जाए तो कुछ गलत होगा? सीमा जी को ये तो मालूम था कि फ़िल्मिस्तान पहुंचने के लिए उन्हें गोरेगांव स्टेशन पर उतरना है। मगर वहां से कहां जाना है, उन्हें मालूम नहीं था।

कुछ देर बाद गोरेगांव स्टेशन आ गया। सीमा जी और उनकी मां गोरेगांव स्टेशन पर उतर गए। वो लड़का भी उसी स्टेशन पर उतरा। जब वो लड़का गोरेगांव स्टेशन पर उतरा तो सीमा जी को अंदाज़ा हो गया कि ज़रूर ये लड़का भी फ़िल्मिस्तान स्टूडियो ही जा रहा है। सीमा जी और उनकी मां उस लड़के के पीछे-पीछे चल दी। कुछ आगे चलने के बाद जब उस लड़के ने देखा कि ये दोनों मां-बेटियां भी उसके पीछे-पीछे आ रही हैं तो उसे भी यकीन हो गया कि हो ना हो, ये दोनों भी फ़िल्मिस्तान ही जा रही हैं।

उस लड़के ने सोचा कि अगर वाकई में ये लड़की फ़िल्मिस्तान जा रही है तो वो इससे दोस्ती ज़रूर करेंगे। उस लड़के को लग रहा था कि ये लड़की(सीमा देव) फ़िल्मिस्तान में आर्टिस्ट होगी। उसे नहीं पता था कि सीमा देव जी काम की उम्मीद में फ़िल्मिस्तान जा रही हैं। यहां आपको ये बताना भी ज़रूरी है साथियों की वो लड़का उस वक्त तक कुछ मराठी फ़िल्मों में हीरो व विलेन के तौर पर काम कर चुका था। उस दिन वो लड़का फ़िल्मिस्तान स्टूडियो में एक्टर की नौकरी के लिए जा रहा था।

उस लड़के के पीछे-पीछे चलते हुए सीमा देव और उनकी मां आखिरकार फ़िल्मिस्तान पहुंच गए। वो लड़का फ़िल्मिस्तान के अधिकारियों से मिला, और उसे फ़िल्मिस्तान में सात सौ रुपए महीना की नौकरी मिल गई। जबकी उससे पहले वो लड़का 1200 रुपए में पूरी फ़िल्म में काम कर रहा था। फ़िल्मिस्तान वालों ने उस लड़के को रहना-खाना भी मुफ़्त देने का वादा किया। इस तरह उस दिन उस लड़के को फ़िल्मिस्तान में एक जैकपॉट डील मिल गई।

वो लड़का जब रिसेप्शन पर कॉन्ट्रैक्ट साइन करने आया तो उसने देखा कि सुबह ट्रेन में जिस लड़की की मां से उसकी बहस हुई थी, वो लड़की भी कॉन्ट्रैक्ट साइन कर रही है। उस लड़के ने मान लिया कि ये लड़की(सीमा देव जी) तो उसके लिए शुभ है। इस लड़की के मिलने से ही उसे इतना बढ़िया कॉन्ट्रैक्ट मिला है। समय बीता, फ़िल्मिस्तान स्टूडियो में काम करते हुए सीमा जी और उस लड़के के बीच बढ़िया दोस्ती हो गई। दोनों ने कुछ फ़िल्मों में साथ काम भी किया।
एक फ़िल्म, जिसमें सीमा जी ने उस लड़के के साथ काम किया था, उसमें वो लड़का विलेन बना था। एक सीन उस फ़िल्म का कुछ यूं था कि वो लड़का सीमा जी को छेड़ता है। और सीमा जी उसे एक ज़ोरदार थप्पड़ मारती हैं। लेकिन वो सीन सही से शूट नहीं हो पा रहा था। लगभग छह टेक हो चुके थे। यानि सीमा जी उस लड़के को छह थप्पड़ मार चुकी थी। इस पर डायरेक्टर सीमा जी पर भड़क गया और उसने सीमा जी को सबके सामने डांटना शुरू कर दिया।

आखिरकार तब सातवां टेक लिया गया और सीमा जी ने उस टेक में उस लड़के के गाल पर इतना ज़ोर का थप्पड़ मारा कि वो लड़का गिरते-गिरते बचा। सीमा जी का वो थप्पड़ देख डायरेक्टर तो बड़ा खुश हुआ। लेकिन वो लड़का दंग रह गया। और सीमा जी को दुख हो रहा था कि उन्होंने कितनी ज़ोर से उसे थप्पड़ मार दिया है।। थोड़ी देर बाद वो लड़का खुद को संभालते हुए सीमा जी के पास आया और बोला,”इन सात थप्पड़ों का बदला मैं तुमसे ज़रूर लूंगा। मैं तुमसे सात फेरे लूंगा।”

यानि उस दिन उस लड़के ने सीमा जी को शादी के लिए प्रपोज़ कर दिया। और चूंकि अब तक सीमा जी भी उस लड़के को पसंद करने लगी थी तो उन्होंने भी उस लड़के के प्रपोज़ल को स्वीकार कर लिया। फिर बिना किसी परेशानी के सीमा जी और उस लड़के की शादी हो गई। जानते हैं वो लड़का कौन था? वो थे रमेश देव। रमेश देव जी से शादी करके ही इनका नाम सीमा देव हुआ था। वैसे सीमा इनका फ़िल्मी नाम था। इनका वास्तविक नाम नलिनी सराफ़ था। शादी के बाद भी सीमा देव जी व रमेश देव जी ने कई फ़िल्मों में संग काम किया था। इनमें हिंदी व मराठी भाषा की फ़िल्में थी। सीमा देव जी को किस्सा टीवी का नमन।

#SeemaDeo #RameshDeo

साभार- https://www.facebook.com/kissatvreal से

रतन टाटा की वसीयतः रसोइयों को ₹80 लाख, ₹12 लाख पालतू जानवरों को, ₹350 करोड़ सामाजिक कार्यों के लिए

सौतेली बहन शिरीन और डिनना जेजीभॉय को एक अन्य वित्तीय संपत्ति का लगभग एक तिहाई हिस्सा मिला है।

दिवंगत उद्योगपति रतन टाटा की लगभग 3,800 करोड़ रुपए की वसीयत का एक बड़ा हिस्सा रतन टाटा एंडोमेंट फाउंडेशन (RTEF) और रतन टाटा एंडोमेंट ट्रस्ट (RTET) को दिया जाएगा. संपत्ति का शेष हिस्सा उनके परिवार, दोस्तों और करीबी सहयोगियों को मिलेगा. मीडियी की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है. RTEF और RTET यह दोनों फाउंडेशन मानव सेवा और चैरिटी करती हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि टाटा की संपत्ति में टाटा संस के ऑर्डिनरी और प्रेफरेंस शेयर के अलावा अन्य फाइनेंशियल एसेट्स भी शामिल हैं. रतन टाटा की वसीयत में हर किसी के लिए कुछ न कुछ सौगात शामिल है। यहाँ तक कि वसीयत में रसोइया राजन शॉ और सुब्बैया और उनके पालतू कुत्ते टीटो का भी हिस्सा तय किया गया है। उनकी वसीयत 23 फरवरी, 2022 को ही तैयार कर ली गई थी। वसीयत में परिवार, दोस्त, चैरिटिबल फाउंडेशन समेत सभी का हिस्सा तय है।रतन टाटा की वसीयत के अनुसार, मुंबई के जुहू में स्थित 13 हजार वर्गफुट का दो मंजिला घर, अलीबाग में समुद्र किनारे का बँगला और 350 करोड़ रुपए से अधिक के फिक्स्ड डिपॉजिट को परोपकारी कार्यों में लगाया जाएगा।

‘इकोनॉमिक टाइम्स‘ की रिपोर्ट के अनुसार, रतन टाटा ने अपनी संपत्ति का लगभग एक तिहाई हिस्सा, यानी लगभग 3800 करोड़ रुपए दान कर दिए हैं। इसके अलावा ‘रतन टाटा एडोमेंट फाउंडेशन’ (RTEF) जैसी चैरिटी संगठनों के लिए भी अपनी व्यक्तिगत संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा रतन टाटा ने दिया है। इसमें ‘टाटा संस’ की 0.82% हिस्सेदारी शामिल है।

रतन टाटा की 10,000 करोड़ रुपए की अनुमानित संपत्ति के बँटवारे के लिए प्रोबेट की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। प्रोबेट का अर्थ है कि मृत व्यक्ति की वसीयत की वैधता को न्यायालय में प्रमाणित करना और उसके बाद वसीयत के अनुसार संपत्ति के लिए नामित व्यक्ति को उसका अधिकार देना। उनकी मृत्यु 9 अक्टूबर, 2024 को हुई थी।

रतन के भाई जिम अविवाहित हैं। उन्हें जुहू बँगले का एक हिस्सा दिया गया है। उनकी हिस्सेदारी काफी महत्वपूर्ण है। इसके अलावा सौतेली बहन शिरीन और डिनना जेजीभॉय को एक अन्य वित्तीय संपत्ति का लगभग एक तिहाई हिस्सा मिला है। इसके तहत लगभग 800 करोड़ रुपए की वैल्यू के बैंक की FD व पेंटिंग्स समेत अन्य चीजें शामिल हैं।

रिपोर्ट्स के अनुसार, वसीयत में टाटा समूह की पूर्व कर्मचारी मोहिनी दत्ता को भी एक तिहाई हिस्सा मिला है। सौतेले भाई नोएल टाटा को ‘टाटा ट्रस्ट’ का चेयरमैन बनाया गया है। इसके अलावा रतन टाटा के सबसे करीबी सहयोगी और दोस्त शांतनु नायडू को स्टार्टअप ‘गुडफेलोज’ में टाटा की हिस्सेदारी मिली है। शांतनु, रतन टाटा के निजी सहायक रहे और ‘टाटा ट्रस्ट्स’ में डिप्टी जनरल मैनेजर हैं। रतन टाटा की सेक्रेटरी दिलनाज गिल्डर को ₹10 लाख रुपए मिलेंगे।

रतन टाटा की संपत्ति में से उनके रसोइए सुब्बैया को ₹30 लाख मिलेंगे, वहीं रसोई के ही राजन शॉ और उनके परिवार के लिए ₹50 लाख की राशि नामित की गई है। राजन को ही पालतू कुत्ते टीटो की देखभाल का जिम्मा भी दिया है। इसके अलावा ₹12 लाख रुपए की राशि उनके सभी पालतू जानवरों की देखभाल के लिए दिए हैं। इसमें से हर तीन महीने ₹30 हजार रुपए का खर्च निर्धारित किया गया है।

पश्चिम बंगाल में आतंक अत्याचार और हिंसा के साये में जी रहे हैं हिंदू परिवार

कहीं जलाई तो कहीं खंडित की प्रतिमाएँ, कहीं बच्चों समेत छिपा हिन्दू परिवार तो कहीं फूँक दिए खेत: बंगाल में मार्च में हिन्दुओं पर हमले के 8 बड़े मामले

हाल के दिनों में पश्चिम बंगाल में कानून-व्यवस्था की स्थिति गंभीर रूप से बिगड़ गई है, और हिंदू समुदाय पर हमले बढ़ते जा रहे हैं। सत्तारूढ़ ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कॉन्ग्रेस सरकार हिंदू पूजा स्थलों, दुकानों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों और घरों को निशाना बनाकर की जाने वाली हिंसा, आगजनी और तोड़फोड़ को रोकने में विफल रही है। ममता बनर्जी की तुष्टिकरण की राजनीति और अपराधियों के खिलाफ पुलिस की ढिलाई व निष्क्रियता ने स्थिति को और खराब कर दिया है। अकेले मार्च 2025 में पश्चिम बंगाल में हिंदू समुदाय पर 8 हमले हुए।

नाओदा में हिंदुओं की दुकानों और संपत्तियों पर हमला (9 मार्च)

भाजपा विधायक सुवेंदु अधिकारी ने X (पूर्व में ट्विटर) पर जानकारी दी थी कि पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के नाओदा ब्लॉक के पटिकाबारी बाजार में हिंदू समुदाय की दुकानों और संपत्तियों पर हमला किया गया। अधिकारी ने ट्वीट किया, “कुछ घंटे पहले, बदमाशों ने मुर्शिदाबाद जिले के नाओदा ब्लॉक के पटिकाबारी बाजार में हिंदुओं की दुकानों और संपत्तियों में तोड़फोड़ की और आग लगा दी।” उन्होंने पश्चिम बंगाल पुलिस और राज्य के मुख्य सचिव से तत्काल हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया था। भाजपा नेता ने कानून और व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए सशस्त्र बलों की तैनाती की माँग की।

सुवेंदु अधिकारी ने स्थिति को शांत करने के लिए सीमा सुरक्षा बल (BSF) की तैनाती की भी माँग की। उन्होंने कहा, “यदि आप स्थिति को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं हैं, तो कृपया माननीय बंगाल के राज्यपाल से BSF कर्मियों की तैनाती के लिए अनुरोध करें ताकि कानून और व्यवस्था की स्थिति बहाल हो सके।” भाजपा प्रवक्ता अमित मालवीय ने भी हिंदुओं की दुकानों और संपत्तियों पर हमले का वीडियो साझा किया। उन्होंने ममता बनर्जी के समर्थकों पर तोड़फोड़ और आगजनी की साजिश रचने का आरोप लगाया।

बरुईपुर में देवी शीतला की मूर्ति में आग लगाई गई (7 मार्च )

पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के बरुईपुर शहर में शेख इंदु नाम के एक मुस्लिम व्यक्ति ने देवी शीतला की मूर्ति को तोड़ दिया और उसमें आग लगा दी। सोशल मीडिया पर कई पोस्ट में जली हुई मूर्तियों और क्षतिग्रस्त हिंदू मंदिर के दृश्य देखे जा सकते हैं।

स्थानीय लोगों ने आरोपित को पकड़ लिया, जो तोड़फोड़ और आगजनी में शामिल था। बरुईपुर पुलिस ने 7 मार्च को ट्वीट कर दावा किया कि आरोपित ‘मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं’ से ग्रस्त है और उसे हिरासत में ले लिया गया है। पुलिस ने बताया कि मामले की जाँच जारी है और आरोपी बाहरी व्यक्ति है।

बशीरहाट में काली मंदिर पर हमला (9 मार्च)

भाजपा नेता दिलीप घोष ने एक्स पर जानकारी दी कि पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के बशीरहाट शहर के शंखचूरा बाजार में काली मंदिर पर हमला हुआ और हिंदू देवता की मूर्ति को तोड़ दिया गया। भाजपा नेता ने कहा कि मंदिर पर हमला स्थानीय टीएमसी नेता शाहनूर मंडल के नेतृत्व में हुआ।

नंदीग्राम में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ तोड़ी गईं (14 मार्च)

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अमित मालवीय ने एक्स पर एक वीडियो साझा किया, जिसमें पश्चिम बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर जिले के नंदीग्राम ब्लॉक 2 के कमालपुर गाँव में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को अपवित्र अवस्था में देखा जा सकता है। उन्होंने आरोप लगाया कि पूजा और राम नारायण कीर्तन को कुछ लोगों ने बर्दाश्त नहीं किया और स्थल पर तोड़फोड़ की गई।

एक वीडियो में एक व्यक्ति को यह कहते हुए सुना गया कि “पुलिस की प्रतिक्रिया मौन है, आप देख सकते हैं कि पुलिस कुछ नहीं कर रही है।” वीडियो में एक पुलिसकर्मी को घटना को रिकॉर्ड कर रहे व्यक्ति को धमकाते हुए भी देखा गया।

मालदा के मोथाबारी में हिंसा गुरुवार (27 मार्च 2025)

मालदा जिले के मोथाबारी गाँव में हिंसक भीड़ ने हिंदुओं के स्वामित्व वाले व्यापारिक प्रतिष्ठानों और घरों को निशाना बनाया। एक हिंदू महिला ने बताया कि कैसे हिंदुओं के घरों को नष्ट कर दिया गया और लोग अपने बच्चों के साथ बिस्तरों के नीचे छिपने को मजबूर हुए।

एक पीड़िता ने कहा, “मुस्लिमों ने हिंदुओं के घर और दुकानें बर्बाद कर दीं और हमारा सामान लूट लिया। अब हम कैसे जिएँगे?” महिलाओं को अपनी धार्मिक पहचान छिपाने के लिए मजबूर किया जा रहा है, और उन पर हिजाब जैसा सिर ढकने का दबाव डाला जा रहा है।

झाउबोना में हिंदुओं के स्वामित्व वाले पान के खेतों में आग लगाई गई शनिवार (29 मार्च 2025)

भाजपा नेता सुकांत मजूमदार ने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के झाउबोना में हिंदू समुदाय पर लक्षित हमलों के वीडियो साझा किए। उन्होंने कहा कि ‘जिहादी भीड़‘ ने हिंदुओं के स्वामित्व वाले पान के खेतों में आग लगा दी, दुकानों को लूट लिया और निर्दोष हिंदुओं पर हमले किए। उन्होंने ममता बनर्जी की तुष्टिकरण नीति को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया।

पूर्व मेदिनीपुर में पूजा पंडाल पर हमला शनिवार (29 मार्च 2025)

भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने आरोप लगाया कि पूर्व मेदिनीपुर जिले के दक्षिण बरबरिया गाँव में ‘हिंसक मुस्लिम भीड़‘ ने माँ चंडी के पूजा पंडाल पर हमला किया और धारदार हथियारों से 10 हिंदू भक्तों को घायल कर दिया। घायलों को इलाज के लिए मुगबेरिया अस्पताल ले जाया गया।

दक्षिण दिनाजपुर में शीतला माता की मूर्ति तोड़ी गई रविवार (30 मार्च 2025)

भाजपा नेता सुकांत मजूमदार ने सोशल मीडिया पर जानकारी दी कि दक्षिण दिनाजपुर जिले के केशबपुर गाँव में श्री शीतला माता मंदिर में तोड़फोड़ की गई और देवी की मूर्ति को क्षतिग्रस्त किया गया। उन्होंने इस घटना की तत्काल जाँच और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की माँग की।

पश्चिम बंगाल में हालिया घटनाएँ कानून-व्यवस्था की चिंताजनक स्थिति को उजागर करती हैं। भाजपा नेताओं ने हिंसा और हमलों के लिए राज्य सरकार की नीति को जिम्मेदार ठहराया है और BSF की तैनाती की माँग की है। इन घटनाओं ने हिंदू समुदाय के बीच असुरक्षा की भावना को और गहरा कर दिया है।

साभार- https://hindi.opindia.com/ से

न्यायाधीशों के पास कितनी है संपत्ति, सार्वजनिक होगी जानकारी

सुप्रीम कोर्ट के सभी न्यायाधीशों ने मंगलवार (1 अप्रैल 2025) को फुल-कोर्ट मीटिंग में अपनी संपत्ति की घोषणा करने पर सहमति जताई। बैठक में न्यायाधीशों ने निर्णय लिया कि वे अपनी-अपनी संपत्तियों को का ब्यौरा भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के समक्ष करेंगे। इसके बाद इसे सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा, जिसे कोई भी देख सकेगा।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की परिसंपत्तियों की घोषणाओं को सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करने के खास तौर-तरीकों को जल्दी ही अंतिम रूप दिया जाएगा। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों ने अपनी संपत्ति की डिटेल दे दी है। हालाँकि, इन घोषणाओं को सार्वजनिक नहीं किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट के जजों का यह निर्णय न्यायपालिका की पारदर्शिता में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। बता दें कि कुछ दिन पहले ही दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर आग लगी थी। वहाँ एक कमरे में करोड़ों रुपए नकदी जल कर खाक हो गए थे। इसके बाद कई तरह के सवाल उठ रहे थे। उन सवालों के बीच यह निर्णय लिया गया है।

हरिद्वार के सभी कसाईखानों को हटाया जाएगा, मांस की दुकानें शराब की बिक्री पर भी प्रतिबंध

हरिद्वार नगर निगम द्वारा 2024 में पारित आदेश को लागू करने के लिए नगर निगम क्षेत्र में संचालित सभी कसाईखानों को जल्द ही या तो स्थानांतरित किया जाएगा या बंद कर दिया जाएगा। वर्तमान में नगर निगम की सीमा के भीतर लगभग 100 कसाई की दुकानें चल रही हैं, लेकिन रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से केवल कुछ ही दुकानों के पास वैध लाइसेंस हैं।

नगर निगम प्रशासन ने फैसला लिया है कि वैध परमिट वाली दुकानों को सराय गाँव में बनाए गए नए क्षेत्र में स्थानांतरित किया जाएगा, जबकि अवैध रूप से संचालित दुकानों को पूरी तरह से बंद कर दिया जाएगा। हरिद्वार नगर आयुक्त नंदन कुमार के अनुसार, अब तक सराय गाँव में 60 दुकानें बनाई जा चुकी हैं, जहाँ वैध दुकानों को स्थानांतरित किया जाएगा।

ज्वालापुर और जगजीतपुर को छोड़कर, हरिद्वार को एक शुष्क ऐसा घोषित किया गया है, जहाँ मांस और शराब की बिक्री पर रोक है। यह कदम स्वच्छता सुनिश्चित करने और आवारा कुत्तों की समस्या को नियंत्रित करने के लिए उठाया गया है।

नगर निगम की इस कार्रवाई से हरिद्वार की धार्मिक एवं सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में भी मदद मिलेगी।

दिल्ली का भविष्य: नई सरकार के सामने चुनौतियाँ और संभावनाएँ

दिल्ली की नई चुनी हुई सरकार के सामने अपने चुनावी वादे पूरे करने के साथ साथ राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासन की मुश्किल चुनौती है

फ़रवरी 2025 में हुए दिल्ली विधानसभा के चुनावों के ज़रिए राजधानी में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी है. दिल्ली के मतदाताओं ने मौजूदा सरकार को जो जनादेश दिया है, वो बिल्कुल स्पष्ट और भारी भरकम है. दिल्ली की सरकार के लिए अच्छी बात ये है कि केंद्र में उसकी दोस्ताना हुकूमत है और इस तरह जैसा कि कहा जाता है, दिल्ली में ‘डबल इंजन’ की सरकार है. यही नहीं, दिल्ली में चुनाव के कुछ दिनों बाद, दिल्ली नगर निगम के तीन पार्षद भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए, जिससे एमसीडी में भी बीजेपी को बहुमत हासिल हो गया है. इसका मोटे तौर पर मतलब यही है कि राजनीतिक रूप से दिल्ली में अब ‘ट्रिपल इंजन की सरकार’ है, क्योंकि केंद्र, राज्य और नगर निकाय के स्तर पर एक ही पार्टी सत्ता में है और अब दिल्ली की जनता से किए गए वादे पूरे करने के लिए भारतीय जनता पार्टी की राह में कोई बाधा नहीं है.

दिल्ली राज्य तीन तरफ़ से हरियाणा और पूरब में उत्तर प्रदेश से घिरा है. इसका भौगोलिक क्षेत्र 1483 वर्ग किलोमीटर है. इसमें से 369.35 वर्ग किलोमीटर इलाक़े को ग्रामीण (24.90 फ़ीसद) क्षेत्र घोषित किया गया है. वहीं, 1113.65 वर्ग किलोमीटर (75.1 प्रतिशत) क्षेत्र शहरी कहा जाता है. 1961 में दिल्ली में जहां 300 गांव थे, वहीं 2001 में इनकी तादाद घटकर 165 और 2011 में और भी कम होकर सिर्फ़ 112 रह गई. ये बात भी महत्वपूर्ण है कि दिल्ली की आबादी बड़ी तेज़ी से बढ़ रही है. 1951 में दिल्ली की आबादी 17.4 लाख थी, जो 2011 में बढ़कर 1.678 करोड़ पहुंच चुकी थी. वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू के मुताबिक़ 2024 में दिल्ली की आबादी 3.380 करोड़ पहुंच चुकी थी, जो सबसे ज़्यादा आबादी वाले दुनिया के शहरों में केवल टोक्यो से कम थी. 2030 तक दिल्ली की जनसंख्या 3.893 करोड़ पहुंचने का अनुमान लगाया गया है, जिससे वो दुनिया का सबसे ज़्यादा आबादी वाला शहर बन जाएगी. ऐसे में दिल्ली सरकार के सामने राष्ट्रीय राजधानी के प्रबंधन की भारी चुनौती है. क्योंकि जब मौजूदा सरकार का कार्यकाल ख़त्म होगा, तब तक दिल्ली दुनिया का सबसे बड़ा शहर बन चुकी होगी.

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने अपने घोषणापत्र का नाम ‘विकसित दिल्ली संकल्प पत्र 2025’ रखा था, जिसमें दिल्ली की आबादी के अलग अलग तबक़ों के लिए मुफ़्त की योजनाओं का ऐलान किया गया था.

विचित्र बात ये है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने अपने घोषणापत्र का नाम ‘विकसित दिल्ली संकल्प पत्र 2025’ रखा था, जिसमें दिल्ली की आबादी के अलग अलग तबक़ों के लिए मुफ़्त की योजनाओं का ऐलान किया गया था. हालांकि, बीजेपी के संकल्प पत्र में उन प्रशासनिक लक्ष्यों का अभाव दिखा था, जो शहर की समस्याओं का समाधान करने वाले हों. बीजेपी के घोषणापत्र में जिन 16 वादों का ज़िक्र किया गया है, उनमें पूर्ववर्ती सरकार द्वारा चलाई जा रही 16 योजनाओं को जारी रखने, ग़रीब परिवारों की महिलाओं को 2500 रुपए प्रति महीने देने, हर गर्भवती महिला को 21 हज़ार रुपए की सहायता और छह पोषण किट देने, ग़रीब परिवारों की महिलाओं को 500 रुपए में रसोई गैस का सिलेंडर देने के साथ साथ होली और दिवाली पर मुफ़्त में गैस सिलेंडर देने के वादे किए गए हैं. यही नहीं, आयुष्मान भारत योजना के तहत ग़रीब परिवारों को पांच लाख रुपए की मेडिकल सहायता दी जानी है.

 इसके अलावा, राज्य सरकार ने अपनी तरफ़ से भी पांच लाख रुपए के मेडिकल कवर की गारंटी देने की घोषणा की है. 70 साल से ऊपर के वरिष्ठ नागरिकों को मुफ़्त में ओपीडी और जांच की सेवाएं दी जाएंगी. इसके अलावा 60 से 70 साल आयु वर्ग के लोगों को ढाई हज़ा रुपए पेंशन, 70 साल से ज़्यादा उम्र वालों, विधवाओं, बेसहारा लोगों और दिव्यांगों को तीन हज़ार रुपए महीने पेंशन दी जानी है.

‘अटल कैंटीन’ में पांच रुपए में खाना मुहैया कराया जाएगा, दिल्ली सरकार के संस्थानों में ग़रीबों के बच्चों को केजी से लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की सुविधा मुफ़्त में दी जाएगी. वहीं, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वालों को एक बार में 15 हज़ार रुपए की सहायता देने के वादे भी बीजेपी ने किए हैं. इसी तरह, तकनीकी संस्थानों में तकनीकी और पेशेवर पढ़ाई कर रहे दलित वर्ग के छात्रों को एक हज़ार रुपए महीने स्टाइपेंड दिया जाना है. वहीं, ऑटो रिक्शा चलाने वालों, टैक्सी ड्राइवरों और घरेलू काम-काज करने वालों के लिए कल्याणकारी बोर्ड का गठन करने का वादा भी किया गाय है.

इन सबको सरकार की तरफ़ से दस लाख रुपए तक का जीवन बीमा, पांच लाख रुपए तक का दुर्घटना बीमा, उनके बच्चों को उच्च शिक्षा की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति और सभी घरेलू काम-काजी महिलाओं को छह महीने की मैटरनिटी लीव, तनख़्वाह के साथ दी जानी है. सरकार, सड़क पर रेहड़ी पटरी लगाने वाले लाभार्थियों की संख्या दो गुनी करेगी और ये सुनिश्चित करेगी कि सभी पात्र किसानों का नौ हज़ार रुपए सालाना मिलने वाली किसान सम्मान निधि के लिए रजिस्ट्रेशन हो सके. इन 16 वादों में से सिर्फ़ एक जगह नाम मात्र के लिए नागरिक सेवाओं का ज़िक्र किया गया है. सरकार, पड़ोसी राज्यों, दिल्ली नगर निगम, नई दिल्ली म्युनिसिपल कमेटी और केंद्र सरकार के साथ सहयोग के ज़रिए, दिल्ली की स्वास्थ्य, यातायात, बिजली, पानी और परिवहन की समस्याओं का प्रभावी समाधान निकालेगी.

जहां तक बीजेपी के संकल्प पत्र की बात है, तो ये मुफ़्त की राजनीति वाली संस्कृति का ही एक व्यापक विस्तार था. हालांकि, ये भी सही है कि घोषणापत्र में नागरिक सेवाओं, सामाजिक और भौतिक ढांचे का भी ज़िक्र किया गया है. घोषणापत्र में सस्ते इलाज और सबको साफ़ पानी देने का ज़िक्र है. दिल्ली को प्रदूषण मुक्त बनाने का वादा है. सुरक्षा और हिफ़ाज़त के साथ साथ नगर निगम की बुनियादी सुविधाओं का भी प्रावधान किया गया है. घोषणापत्र में दिल्ली के भयंकर प्रदूषण की समस्या को स्वीकार किया गया है और ये भी माना गया है कि दिल्ली में यमुना नदी एक बड़े नाले में तब्दील हो चुकी है.

बीजेपी के संकल्प पत्र में सत्ता से बेदख़ल की गई सरकार के प्रशासनिक कुप्रबंधन, विश्व स्तरीय मूलभूत ढांचे के वादे, स्वच्छ पर्यावरण और शानदार शहरी सेवाओं की बातें भी लिखी हैं. संकल्प पत्र में बीजेपी ने जनता को विश्वास दिया है कि वो अच्छा प्रशासन देगी. इसके साथ साथ बीजेपी ने दिल्ली की 1700 अवैध कॉलोनियों को नियमित करने और वहां रहने वालों को पूरा मालिकाना हक़ देने का वादा भी किया गया है. घोषणापत्र में महिलाओं के सशक्तिकरण का विशेष रूप से ज़िक्र किया गया है. इसके साथ साथ वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण, स्वास्थ्य, शिक्षा और युवा सशक्तिकरण का भी घोषणा पत्र में ज़िक्र किया गया है. बीजेपी ने ट्रांसजेंडर्स, दिव्यांगों, पूर्व सैनिकों और सिख समुदाय की विशेष ज़रूरतों की भी अनदेखी नहीं की है.

दिल्ली की नई सरकार के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती होगी वो दिल्ली में वायु प्रदूषण और यमुना नदी को बहाल करने की शक्ल में होगी. दिल्ली ने लगातार दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर होने का दर्जा हासिल करने की अभूतपूर्व उपलब्धि दर्ज कराई है

हालांकि, दिल्ली की नई सरकार के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती होगी वो दिल्ली में वायु प्रदूषण और यमुना नदी को बहाल करने की शक्ल में होगी. दिल्ली ने लगातार दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर होने का दर्जा हासिल करने की अभूतपूर्व उपलब्धि दर्ज कराई है और सांस और दिल की बीमारियों की वजह से दिल्ली की हवा मौत का एक बड़ा कारण बन चुकी है. हालांकि, पिछले कुछ वर्षों के दौरान कुछ उपलब्धियां तो हासिल की गई हैं. लेकिन, 2024 में किए गए एक अध्ययन में एक बार फिर से दिल्ली में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के ख़तरनाक होने का हवाला देते हुए चेतावनी दी गई थी कि शहर में बढ़ते वायु प्रदूषण की वजह से जान का जोखिम बढ़ता जा रहा है. इस स्टडी में इस बात की वकालत की गई थी कि दिल्ली प्रशासन, सर्दियों में जब हवा का प्रदूषण सबसे ख़राब स्तर पर होता है, तब प्रतिक्रिया स्वरूप आपातकालीन उपाय करने के बजाय उसके आगे की सोचे.

अध्ययन में सुझाव दिया गया था कि उत्सर्जन को कम करने और अनुपालन के मज़बूत ढांचे के लिए पूरे साल संस्थागत बदलाव के क़दम उठाए जाएं. दिल्ली के भयंकर रूप से ख़तरनाक हो चुके वायु प्रदूषण से निपटने की फ़ौरी ज़रूरत उस वक़्त और उजागर हो गई थी, जब सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल नवंबर में पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के स्कूल बंद करने और ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) स्टेज IV के तहत प्रदूषण से निपटने के सख़्त क़दम उठाने के निर्देश दिए थे. अगर दिल्ली की नई सरकार अभी से प्रदूषण कम करने के ठोस उपाय नहीं करती, तो फिर 2025 की सर्दियां आते ही उसकी भयंकर आलोचना होगी. इस समस्या का पूरी गहराई से अध्ययन किया जा चुका है और निदान के उपाय क्या किए जाने हैं, वो भी सबको पता हैं. ज़रूरत राजनीतिक और प्रशासनिक तौर पर मज़बूत इच्छाशक्ति की है, जिसके ज़रिए ठोस और कड़े फ़ैसले लागू किए जाने हैं. क्योंकि, इनमें से कुछ उपाय प्रदूषण पैदा करने वालों पर चोट करेंगे.

यमुना नदी की सफ़ाई का काम तो और भी चुनौती भरा होने वाला है. पिछले कई दशकों से यमुना में सीवेज जाने से यमुना एक नाले में तब्दील हो चुकी है और लगभग मृतप्राय हो गई है. हालांकि, चुनाव के दौरान यमुना की सफ़ाई का वादा, दिल्ली के नागरिकों से किए गए बीजेपी के प्रमुख वादों में से एक था. ख़बरों के मुताबिक़ भारत सरकार ने ‘यमुना मास्टर प्लान’ के तहत यमुना की सफ़ाई के तीन साल के कार्यक्रम की शुरुआत कर दी है. इस योजना के तहत चार चरणों की रणनीति लागू की जानी है. जिसके पहले चरण में नदी से कचरा और तलछट साफ़ करना, प्रमुख नालों की सफ़ाई, सीवेज ट्रीटमेंट के मौजूदा प्लांटों (STPs) का पूरी क्षमता से उपयोग और जो सीवज अभी शोधित नहीं होता, उसके ट्रीटमेंट के लिए नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STPs) का निर्माण करना है.

इन वादों को पूरा करने के लिए लगातार वृहद प्रयास करने होंगे और सही समय पर पर्याप्त मात्रा में फंड उपलब्ध कराने होंगे. निगरानी के लिए प्रशासन की अलग अलग शाखाओं को आपस में नज़दीकी तालमेल से काम करना होगा और शीर्ष स्तर पर हर परियोजना की नियमित रूप से समीक्षा की ज़रूरत होगी. ट्रिपल इंजन की सरकार के सत्ता में होने की वजह से बहानेबाज़ी और छुपने की कोई गुंजाइश नहीं होगी.

 
(लेखक आईएएस अधिकारी हैं  महाराष्ट्र सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं व ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन मुंबई में शोधार्थी हैं  और शहरी विकास मामलों के विशेषज्ञ हैं) 
 
साभार https://www.orfonline.org/ से