एक महाशय सुबह से इसी बात पे नाराज थे कि जिसे देखो वो सेल्फी खींच कर डालने पर अड़ा है, पड़ा है सड़ा है . सेल्फी देख देखकर कुढा रहे थे.’
मैंने भी पूछ ही लिया -“क्या हुआ भाई क्यों बडबडा रहे हो… बैठे बैठे.’
‘क्या बताएं मैडम जिसे देखो वो सेल्फी लेकर फेसबुक और व्हाट्सअप पर चिपकाने पर तुला हुआ है. कोई अपने घर के बाहर तो कोई अपनी कार के आगे, कोई नए कपड़ों के साथ तो बीवी बच्चो के साथ.’
‘फिर तो भैया आपने किसान को अपनी नई फसल के साथ सेल्फी लेते भी देखा होगा और जब वो फसल सूखा और बाढ़ की चपेट में आती होगी तो उसके साथ भी सेल्फी लेते देखा होगा? मरते किसानों की अंतिम सेल्फी जरुर देखी होगी आपने ‘
‘नहीं, मैडम किसान लोग सेल्फी नहीं लेते.’
‘तो तुमने किसी मजदूर को अपने द्वारा बनाये एक नए मकान के साथ सेल्फी लेते तो जरूर देखा होगा?’
‘मैडम आप भी न , वो कैसे सेल्फी लेंगे.’
‘तो फिर आपने गोबर पाथती महिला को उपलों के साथ सेल्फी लेते तो जरूर देखा होगा?’
‘नहीं मैडम, मैं उनकी बात नहीं कर रहा हूँ .’
‘ तब तो जरूर आपने भीख मांगते बच्चो को सेल्फी लेते तो देखा होगा. उन्हें नहीं तो मिड डे मील खाते बच्चो को सेल्फी लेते जरुर ही देखा होगा? ‘
‘ अरे ये भी कोई बात हुई .’
‘ अच्छा छोड़ो, किसी मजदूरिन को तो अपने बच्चे के साथ सेल्फी लेते तो देखा होगा. ‘
‘ मैडम भला वो लोग भी सेल्फी कैसे डाल सकते हैं ?’
‘ फिर तो तुमने किसी आदिवासी को अपने जंगल बचाते हुए सेल्फी लेते तो जरुर ही देखा होगा? ‘
‘क्या कहती हो आप वो लोग क्यों लेने लगे सेल्फी…’
‘तब तो तुमने उन बेरोजगार युवाओं को आत्महत्या करने से पहले तो सेल्फी लेते जरुर देखा होगा?’
‘ओहो कितनी बार कहा नहीं, नहीं , नहीं… ‘
लेकिन अभी अभी तो तुम्ही कह रहे थे कि जिसे देखो वो सेल्फी लेने पर तुला हुआ है.’
लेकिन…. वो तो मैं दूसरों लोगों की बात कर रहा था .’
अच्छा तुम डिजीटल इण्डिया के लोगों की बात कर रहे थे. गरीब भारत के लोग लोगों की नहीं ‘
पहले नहीं बता सकते थे कि तुम्हारा चिंतन सिर्फ डिजीटल इण्डिया के लोगों के लिए था .