Sunday, November 17, 2024
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संवेदना के गंगाजल के साथ साकार हुआ 2500 साल पुराना अतीत

मुंबई का अंधेरी स्थित भुवंस कल्चरल सेंटर मुंबई का ऐसा पहला गौरवशाली केंद्र है, जहाँ पूरे साल साहित्य, कला, संस्कृति, योग, दर्शन, धर्म, अध्यात्म, मनोरंजन से नृत्य, संगीत, फिल्म प्रदर्शन आदि के श्रेष्ठतम कार्यक्रम होते हैं। हर शुक्रवार से रविवार तक शाम को तो कार्यक्रमों का आयोजन होता ही है कई कार्यक्रम तो सुबह 5 बजे भी होते हैं और रसिक श्रोता इन कार्यक्रमों का भरपूर आनंद लेते हैं। इसका श्रेय जाता है अपने नाम को सार्थक करने वाले ललित वर्मा और ललित शाह को, दोनों ही ‘ललित’ कला और संस्कृति के प्रति इतने समर्पित हैं कि हर बार श्रेष्ठतम कार्यक्रमों से दर्शकों और श्रोताओँ को तृप्त करते हैं। भुवंस का अपना एक समर्पित और अनुशासित दर्शक वर्ग भी है जो पूरी शालीनता और सहजता के साथ इन कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है।

इस बार भुवंस के सहयोग से हरिद्वार के दिव्य प्रेम सेवा मिशन के सहयोग के लिए चाणक्य नाटक का मंचन किया गया।

दिव्य प्रेम सेवा मिशन के श्री आशीष गौतम ने जब इस संस्थान की स्थापना और संस्थान द्वारा कुष्ठ रोगियों के बच्चों के लिए किए जा रहे सेवा कार्यों के बारे में जानकारी दी, तो सभाग्रह में मौजूद हर व्यक्ति संवेदना के गंगाजल से अंदर तक भीग गया। श्री आशीष गौतम जब कुष्ठ रोगियों और उनके बच्चों की दुर्दशा, उनके सामाजिक तिरस्कार आदि के बारे में बता रहे थे तो ऐसा लग रहा था मानो समाज में रहते हुए भी हम समाज की सच्चाईयों से या तो मुँह मोड़े हुए हैं या हमें ऐसी क्रूर सच्चाईयों का पता ही नहीं है। श्री आशीष गौतम ने बताया कि किस तरह उन्होंने कुष्ठ रोगियों के बच्चों के लिए ये दिव्य प्रेम सेवा मिशन खड़ा किया और समाज के हर वर्ग ने आगे आकर उनके इस अभियान को गति प्रदान की।

श्री आशीष गौतम के बारे में बताया गया कि कैसे वे हिमालय पर साधना करने के बाद जब लौटे तो अचानक एक कुष्ठ रोगी को देखकर उसकी सेवा सुश्रुषा में लग गए और फिर उन्होंने अपने जीवन का उद्देश्य ही कुष्ठ रोगियों और उनके बच्चों की सेवा का बना लिया।

इस अवसर पर दिव्य प्रेम सेवा मिशन की गतिविधियों की एक फिल्म भी दिखाई गई।

कार्यक्रम में उपस्थित संन्यास आश्रम के महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 विश्वेश्वरानंदजी, जो मुंबई की किसी भी सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधि में सक्रियता से जुड़ते हैं, ने कहा, दिव्य प्रेम सेवा मिशन ने समाज के एक ऐसे वर्ग को समाज से जोड़ा है जो अपने दुर्भाग्य से संघर्ष करने या उससे उबर पाने की स्थिति में नहीं था।

वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रेम शुक्ल ने कहा कि दिव्य प्रेम सेवा मिशन को मुंबई से यह भरोसा मिलना चाहिए कि वे जिन बच्चों को पालने-पोसने के साथ उन्हें शिक्षा और रोजगार दे रहे हैं, उनका खर्च मुंबई शहर उठा सकता है।

श्री प्रेम शुक्ल की बात को समर्थन भी मिला और मारवाड़ी समाज के श्री विनोद लाठ ने घोषणा की की मुंबई का मारवाड़ी समाज इन सभी 250 बच्चों का खर्च उठाएगा।

कार्यक्रम को जाने माने उद्योगपति श्री जे कुमार ने संबोधित भी किया और अपनी ओर से संस्था को हर संभव मदद का आश्वासन भी दिया।

संवेदना, सेवा और समर्पण की इस धारा के उत्तरार्ध्द में चाणक्य का मंचन अपने आप में 2500 साल के उस अतीत को जीवंत देखना रोमांचक अनुभव था, वो अतीत जिसे हम किताबों में पढ़ते तो हैं लेकिन उसकी आत्मा को, उसकी गहराई को स्पर्श नहीं कर पाते हैं। मनोज जोशी ने अपने नाटक चाणक्य के जरिए दर्शकों को इतिहास के उसी ज्वलंत अध्याय से परिचित कराया जिसे जानना हर भारतीय के लिए जरुरी है।

कार्यक्रम में विलंब होने से चाणक्य के मंचन में अंतराल नहीं रखा गया और ढाई घंटे के इस ऐतिहासिक नाटक को देखने में दर्शक भी इतने रम गए कि ढाई घंटे तक किसी ने एक क्षण के लिए भी इससे वंचित होने का प्रयास नहीं किया। पूरे ढाई घंटे तक एक भी दर्शक कार्यक्रम के बीच में से नहीं उठा, और जब चाणक्य का मंचन खत्म हुआ तो दर्शकों की अपेक्षा यही थी, मानो नाटक का प्रसंग आगे बढ़ेगा।

मनोज जोशी ने अपनी अभिनय क्षमता के साथ ही ऐतिहासिक तथ्यों और घटनाओं के साथ चाणक्य को जिस अंदाज़ में प्रस्तुत किया है वह रंगमंचीय दुनिया का एक अद्भुत प्रयोग है। पूरे नाटक में संस्कृतनिष्ठ शुध्द हिन्दी संवादों को सुनना अपने आप में सुकुनदायक अनुभव था। हाँ, अखंडितता जैसे शब्द संवाद की गति में बाधक बन रहे थे। अखंडितता की बजाय भारत की अखंडता जैसे शब्द को प्रयोग में लाया जाता तो प्रस्तुति में शुध्द हिन्दी का प्रवाह बना रहता।

कुल मिलाकर भुवंस के मंच पर कुष्ठ रोगियों के प्रति संवेदना की जल धारा के बाद भारत के 2500 साल पहले अखंड भारत के स्वप्न को साकार करने वाले चाणक्य जैसे महानायक की जीवंत प्रस्तुति एक विलक्षण, रोचक, यादगार और प्रेरक अनुभव था।

दिव्य प्रेम सेवा मिशन की वेब साईट www.divyaprem.org

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