एक नई परियोजना के तहत देश के विभिन्न समुदाय के लोगों की संपूर्ण जीनोम सीक्वेंसिंग की गई है। भारतीय शोधकर्ताओं द्वारा शुरू की गई इस पहल के अंतर्गत 1008 लोगों के जीनोम का अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग दुर्लभ आनुवांशिक बीमारियों के निदान, कैंसर जैसी जटिल बीमारियों के उपचार, नई दवाओं के विकास और विवाह पूर्व भावी जोड़ों के अनुवांशिक परीक्षण में किया जा सकता है।
इंडिजेन नामक यह परियोजना इस वर्ष अप्रैल में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) द्वारा शुरू की गई थी। इस परियोजना का संचालन सीएसआईआर से संम्बद्ध जीनोमिकी और समवेत जीव विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली एवं कोशकीय और आणविक जीव विज्ञान केंद्र, हैदराबाद के वैज्ञानिकों ने किया है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ हर्ष वर्धन ने इस परियोजना के बारे में बताते हुए कहा कि “प्रिसिजन मेडिसिन के उभरते क्षेत्र में तकनीकी जानकारी, आधारभूत आंकड़ों और घरेलू क्षमता के विकास में संपूर्ण जीनोम सीक्वेंसिंग महत्वपूर्ण हो सकती है। यह पहल बीमारियों की सटीक एवं त्वरित पहचान व उपचार के लिए आनुवांशिक लक्षणों तथा संवेदनशीलता आदि का निर्धारण करने में बेहद उपयोगी साबित हो सकती है।”
जीनोमिकी और समवेत जीव विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक श्रीधर शिवासुब्बु ने बताया कि “इस परियोजना के अंतर्गत देश के अलग-अलग समुदायों के करीब 1400 लोगों के नमूने एकत्रित किए गए थे। इनमें से 1008 नमूनों का जीनोमिक विश्लेषण किया गया है।”
” प्रिसिजन मेडिसिन के उभरते क्षेत्र में तकनीकी जानकारी, आधारभूत आंकड़ों और घरेलू क्षमता के विकास में संपूर्ण जीनोम सीक्वेंसिंग महत्वपूर्ण हो सकती है। यह पहल बीमारियों की सटीक एवं त्वरित पहचान व उपचार के लिए आनुवांशिक लक्षणों तथा संवेदनशीलता आदि का निर्धारण करने में बेहद उपयोगी साबित हो सकती है। ”
आणविक जीव विज्ञान केंद्र के निदेशक डॉ राकेश मिश्रा ने बताया कि “एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होने वाली अनुवांशिक बीमारियों के कुशल एवं किफायती परीक्षण और दवाओं के प्रतिकूल प्रभाव से बचाव के लिए फार्माकोजेनेटिक परीक्षण इस परियोजना के अन्य लाभों में शामिल हैं।”
विश्व स्तर पर, कई देशों ने बीमारी के लिए अद्वितीय आनुवंशिक लक्षण, संवेदनशीलता (और लचीलेपन) का निर्धारण करने के लिए अपने नागरिकों के नमूने के जीनोम सीक्वेंसिंग का कार्य किया है। यह पहली बार है कि भारत में इतने बड़े स्तर पर संपूर्ण जीनोम विस्तृत अध्ययन किया गया है।
डॉ हर्ष वर्धन ने इस मौके पर इंडीजीनोम कार्ड और उसके साथ संलग्न इंडिजेन मोबाइल ऐप के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि इसकी मदद से प्रतिभागी और चिकित्सक दोनों चिकित्सीय दृष्टि से उपयोगी जानकारी का उपयोग कर सकते हैं। उन्होंने जोर दिया कि यह ऐप गोपनीयता और डेटा सुरक्षा को सुनिश्चित करता है, जो वैयक्तिक जीनोमिक्स को बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।
सीएसआईआर के महानिदशेक डॉ. शेखर सी. मांडे ने कहा कि “यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि भारत अपनी अनूठी मानव विविधता के जीनोमिक डेटा का पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व करता है। यह भी कम अहम नहीं है कि भारत बड़े पैमाने पर जीनोम डेटा उत्पादन, प्रबंधन, विश्लेषण, उपयोग और उसके संचार में स्वदेशी क्षमता विकसित कर सकता है।”
साभार- इंडिया साइंस वायर