वीर प्रसविनी मां आर्य समाज के प्रचार तथा प्रसार करने में अपने प्राणों तक का बलिदान देने वाले वीरों का जब स्मरण करते हैं तो हैदराबाद सत्याग्रह आंदोलन में अपना बलिदान देने वाले वीर नन्हू सिंह जी का नाम बरबस ही हमारे सामने आ जाता है | आपने अपने रक्त से वेद और आर्य समाज रूपी पौधे को अपने रक्त से सींचते हुए इसे बढ़ाकर बड़ा करने में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया | आर्य समाज के गौरव वीर नन्हू सिंह जी का जीवन परिचय सुरक्षित नहीं रह सका | तो भी जो कुछ थोडा सा जीवन परिचय उपलब्ध होता है , उस पर ही हम विचार करने का प्रयास कर रहे हैं |
नन्हू सिंह जी का जन्म बुन्देलखंड निवासी गणेश सिंह जी के यहाँ हुआ , जो अत्यंत धार्मिक प्रवृति के धनी व्यक्ति माने जाते थे | नन्हू सिंह जी इन दिनों महाराष्ट्र के अमरावती नगर में मजदूरी करते हुए अपने जीवन का किसी प्रकार निर्वाह कर रहे थे | इस मध्य ही सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा ने हैदराबाद में सत्याग्रह के लिए शंखनाद कर दिया | इस शंखनाद को सुनकर देश भर के आर्यों का खून खोल उठा और वहां के निजाम के अत्याचारों का विरोध करने के लिए आर्यों की टोलियों की टोलियाँ हैदराबाद में जा कर सत्याग्रह करने के लिए कूच करने लगीं | सार्वदेशिक सभा के आह्वान को सुनकर अन्यों की ही भाँति आपका खून भी उबलने लगा | परिवार से अति गरीब होते हुए तथा बड़ी कठिनाई से मजदूरी कर परिवार के लिय उदरपूर्ति का साधन निकालने वाले इस नन्हू सिंह को इतना जोश आया कि यह गरीबी भी आप के पग की बाधा नहीं बन सकी | अत: आपने अमरावती के वकील नाना साहिब भट्ट के साथ आन्दोलन में भाग लेने के लिए कूच कर दिया और शीघ्र ही हैदराबाद जा पहुंचे | वहाँ जाकर सत्याग्रह किया और अपने आपको निजाम की पुलिस के हाथों सौंप दिया | इस सत्याग्रह के समय आपकी आयु मात्र ५२ वर्ष की ही थी |
निजाम की पुलिस ने आपको चंचलगुडा जेल में बंद कर दिया | उस समय जेल में बन्द कैदियों पर दारुण आत्याचार किये जाते थे | निजाम हिन्दुओं पर तो सदा कुपित रहता ही था किन्तु जब किसी आर्य समाजी की चर्चा आती थी तो उस का गुस्सा आसमान छूने लगता था | उस के क्षेत्र में आर्य समाजियों ने आकर जो उसे चुनौती दी , इससे तो वह बेहद कुपित था और अपने क्रोध की सब सीमाएं पार कर गया था | इस कारण आर्य सत्याग्रहियों से जितना अधिक से अधिक गन्दा व्यवहार वह कर सकता था, कर रहा था |
जेल में बंद आर्यों को बिना किसी कारण बुरी तरह से मारना पीटना उसका नित्य का नियम था | इसे तो वह साधारण सी बात ही मानता था | निजाम की जेलों में तो आर्यों को पशुओं जैसा व्यवहार भी न मिलता था | पशुओं से भी गंदा व्यवहार करते हुए आर्यों के जीवन को नर्क बनाने की उसने कोई कसर नहीं उठा रखी थी | वह चाहता था कि जो आर्य जेल में आ गया, वह ज़िंदा वापिस नहीं लौटना चाहिए | उन्हें गन्दी गन्दी गालियाँ निकालने , मारने पीटने के अतिरिक्त उन्हें देने वाले भोजन में कंकर पत्थर मिला कर दिया जाता था ताकि वह बीमार होकर शीघ्र ही इस दुनिया से चले जावें | यदि पत्थर मिला यह भोजन कोई आर्य खाने से इन्कार करता तो भी उसकी बुरी तरह से पिटाई की जाती थी |
निजाम की इन कुचालों का ही परिणाम था कि अत्यंत मेहनत करने के आदि होते हुए भी नन्हुसिंह जी यह सब अत्याचार लम्बे समय तक न सह सके और शीघ्र ही अशक्त व अस्वस्थ हो गए | निजाम के उपलब्ध रिकार्ड से जानकारी मिलती है कि आप २६ मई को रोगग्रस्त हुए | आप को अत्यधिक बिमारी की अवस्था में अस्पताल में भर्ती का नाटक करते हुए उस्मानिया अस्पताल भेजा गया जहाँ दिनांक २९ मई सन् १९३९ को आपको निमुनिया का इतना तीव्र प्रकोप हुआ कि आप इसे सहन न कर सके और तत्काल अपनी इस सांसारिक यात्रा को समाप्त कर लम्बी यात्रा के लिए रवाना हो गए |
जब हम घटनाक्रम पर विहंगम दृष्टि डालते हैं तो हम यह अनुमान सरलता से लगाते हैं कि निमोनियां से मृत्यु होना , निजाम द्वारा गढ़ी गई एक कपोल कल्पित कथा थी | यदि निजाम की यह कथा सत्य होती तो निजाम को न तो यह घटना छुपाने की आवश्यकता थी और न ही चोरी चोरी छुप कर अंतिम संस्कार करने की ही आवश्यकता थी | इस घटना में तो हमने पाया कि आपकी मृत्यु का समाचार आर्यों को नहीं दिया गया और न ही शव सौंपा गया अपितु चुपके चुपके मृत्यु होते ही आपके शव को जला भी दिया गया |
आर्यों को नन्हुू सिंह जी की मृत्यु का समाचार नहीं मिला और न ही उनके स्वास्थ्य के सम्बन्ध में ही कोई सूचना मिल पा रही थी | परिणाम स्वरूप सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के अधिकारियों ने निजाम को कई तारें भेजकर यह जानकारी जुटाने के प्रयास आरम्भ कर दिए | इन प्रयासों के अतिरिक्त निजाम से व्यक्तिगत संपर्क स्थापित करने का प्रयास भी किया गया | हैदराबाद सत्याग्रह समिति की और से श्री हरिश्चंद्र विद्यार्थी जी भी व्यक्तिगत रूप से निजाम के अधिकारियों को मिले | इतना सब होते हुए भी नन्हुसिंह जी का कुछ भी पता नहीं चल रहा था |
यह तो सर्विविदित है कि आर्य कभी भी किसी भी अवस्था में हिम्मत नहीं हारते | परिणाम स्वरूप सत्याग्रह समिति वह स्थान खोजने में सफल हो गई जहाँ नन्हुसिंह जी के पार्थिव शरीर को जलाया गया था | इस स्थान से नन्हुसिंह जी का अधजला धड तथा खोपड़ी को अलग अलग पडा हुआ खोज लिया गया | इतना ही नहीं उनके शारीर के इन दो अलग अलग भागों के चित्र भी ले लिए गए | उनके शरीर के इन टुकड़ों को देख कर यह अनुमान हम सरलता से लगा सकते हैं कि निजाम की पुलिस ने उनकी कितने नृशंस ढंग से ह्त्या की होगी , कितना भयानक दृश्य रहा होगा यह !
सत्याग्रह समाप्ति पर निजाम की जेल से मुक्त होने वाले एक आर्य बंधू की कथनी से पता चला कि नन्हू सिंह जी जेल के नल से स्नान कर रहे थे कि जेल के एक कर्मचारी ने नल बंद कर दिया | इस कर्मचारी से जब नन्हुसिंह जी ने नल खोलने के लिए प्रार्थना की तो पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार जेल के उस कर्मचारी ने नन्हुसिंह जी के सर पर लाठी से बड़े जोर का प्रहार किया | इस जोर के प्रहार से नन्हुसिंह जी न केवल घायल ही हुए अपितु बेसुध भी हो गए | बेहोश नन्हुसिंह जी को अस्पताल में ले जाकर पटक दिया गया | उपचार के नाम पर मात्र औपचारिकाता ही पूर्ण की गई | परिणाम स्वरूप इन गहरे घावों को न सहते हुए नन्हुसिंह जी ने २९ मई १९३९ इस्वी को इस अस्पताल में ही दम तोड़ दिया |
अब सरकार ने नन्हुसिंह जी की मृत्यु के समाचार को छुपाने का क्रियाक्लाप आरम्भ किया | मृतक देह को एक कपड़े तथा कुछ टाटों से लपेटा गया | इस प्रकार छुपा कर उनके मृतक शरीर को किसी गुमनाम अँधेरे स्थान पर फैंक दिया गया ताकि किसी को नन्हू सिंह जी की मृत्यु का पता न चल सके | शहीद नन्हू सिंह जी के गुप्त रूप से किये गए अंतिम संस्कार से पता चलता है कि किस प्रकार निजाम के आदेशों पर उसकी पुलिस ने अभद्र तथा निंदनीय व्यवहार किया | यह अंतिम संस्कार की क्रिया भी शमशान में न कर किसी अन्य स्थान पर ही की गई | यहाँ तक कि गुप्त रूप से किया गया यह अंतिम संस्कार भी पूरी तरह से संपन्न नहीं किया गया | अधजला शरीर छोड़ कर निजाम ने अपनी धर्मान्धता का परिचय दिया | इस प्रकार उनके शव को भी अपमानित करने का कार्य निजाम के अधिकारियों ने किया |
निजाम की इन धूर्तता पूर्ण कार्यवाहियों का परिणाम भी जल्दी ही निजाम के सामने आ गया | आर्यों के बलिदान ने अपना रंग दिखाया | अत: आर्यों के सत्याग्रह ने निजाम को इतना कमजोर कर दिया कि वह इन सत्याग्रहियों का नाम सुनकर ही थर थर कांपने लगा और किसी प्रकार इससे पीछा छुड़ाने का रास्ता खोजने लगा | किन्तु इसके आगे आ रहे अहम ने उसे काफी समय तक एसा करने से रोके रखा किन्तु लम्बे समय तक वह अपने अहम को भी न बचा सका और अंत में एक दिन आर्यों के बलिदान के आगे उसे झुकना ही पडा | निजाम को बाध्य होकर अपनी पराजय स्वीकार कर आर्यों से समझोते के लिए हाथ बढ़ाना पड़ा | उसकी प्रार्थना पर विजेता होकर आर्यों ने अपनी सब शर्तों को मनवाने के पश्चात् हैदराबाद का यह सत्याग्रह आन्दोलन बड़ी सफलता के साथ संपन्न किया | जिस प्रकार से इस आन्दोलन में आर्यों ने अपनी आहुति दी , वैसा उदाहरण विश्व भर में कोई अन्य नहीं देखने को मिलता | धन्य हैं आर्य समाज के बलिदानी |
डॉ. अशोक आर्य
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