मुंबई। शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) फिल्म महोत्सव में पैनल डिस्कशन शानदार तरीके से खत्म हुआ। चर्चा के आखिरी सत्र में एससीओ देशों में फिल्म फेस्टिवल को बढ़ावा देने की चुनौतियों और संभावनाओं पर चर्चा हुई। विचार-विमर्श में भाग लेने वालों में सुनील दोशी, निर्माता, एलायंस मीडिया एंड एंटरटेनमेंट प्रा. लिमिटेड; अश्विनी शर्मा, डिस्ट्रिब्यूटर, इम्पैक्ट फिल्म्स; स्वरूप चतुर्वेदी, फिल्म निर्माता और सलाहकार- लाइसेंसिंग सिंडिकेशन और कजाकिस्तान से एमेली एंटरटेनमेंट के संस्थापक यरीस एस्सेल शामिल थे।
सुनील दोशी ने फेस्टिवल फिल्मों को प्रभावित करने वाली चुनौतियों को रेखांकित करते हुए सिनेमा साक्षरता, बुनियादी ढांचे और दर्शकों की पसंद को जांचने की चुनौती का हवाला दिया। चूंकि भारतीय संदर्भ में कोई भी कहानी पूरे देश के परिप्रेक्ष्य में सच नहीं होती है, इसलिए उन्होंने समुदाय पर केंद्रित फिल्में बनाने का सुझाव दिया। आधुनिक युग में फेस्टविल फिल्मों के लिए प्रौद्योगिकी एक बड़ी मददगार साबित हो सकती है।
पैनलिस्टों ने नए बाजारों के खुलने के साथ फेस्टिवल फिल्मों को मिल रही संभावनाओं के बारे में भी बात की। यरीस एस्सेल ने पूरे क्षेत्र में सिनेमा को लोकप्रिय बनाने में ओटीटी प्लेटफार्मों के आगमन पर एक आशावादी तस्वीर पेश की। इसके अलावा, उन्होंने कजाकिस्तान में भारतीय टीवी धारावाहिकों की लोकप्रियता के बारे में भी बात की।
स्वरूप चतुर्वेदी ने एससीओ देशों में खूबसूरत लोकेशन्स के चलते अपार संभावनाओं के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि यह फेस्टिवल फिल्मों को लोकप्रिय बनाने के लिए एक गेम चेंजर के रूप में काम कर सकता है। उन्होंने बताया कि फिल्म बाजार लगातार बदल रहा है और इसलिए इसमें लाभ की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। इसके अलावा, अश्विनी शर्मा का यह भी मानना था कि एक अच्छी तरह से बनाई गई फिल्म के लिए किसी भी फिल्म समारोह में चुने जाने के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं।
आगे की संभावनाओं पर बात करते हुए सुनील दोशी ने ऑडियो-विजुअल अनुभवों को बढ़ाने में प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि लोग अब और अधिक जानने के इच्छुक हैं क्योंकि अब ट्रेवल काफी किफायती हो गया है। पैनलिस्टों की यह चर्चा इस आशावादी नोट पर समाप्त हुई कि आने वाले दशक में स्वतंत्र फेस्टिवल्स और फिल्मों का उदय होगा।