Saturday, November 23, 2024
spot_img
Homeश्रद्धांजलिधार्मिक अनुष्ठानों के साथ शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती पंचतत्व में लीन

धार्मिक अनुष्ठानों के साथ शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती पंचतत्व में लीन

चेन्नै । कांचीपुरम मठ के 82 वर्षीय शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को आखिरकार लंबी प्रक्रिया के बाद उनके गुरु के बगल में महासमाधि दे दी गई। महासमाधि से पहले परंपरागत तरीके से पूजा-पाठ और सभी जरूरी संस्कार किए गए। सरस्वती 69वें शंकराचार्य और कांची कामकोटि पीठ के पीठाधिपति थे।

देश के सबसे ताकतवर संत माने जाने वाले शंकराचार्य की महासमाधि की प्रक्रिया गुरुवार सुबह शुरू की गई। इस मौके पर देशभर से नामी संत और मठ के लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे। तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित भी शंकराचार्य के दर्शन करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे। पिछले महीने जयेंद्र सरस्वती को अचानक उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई थी, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

पार्थिव देह को दफनाने की प्रकिया जिसे वृंदावन प्रवेशम कहा जाता है, अभिषेकम (स्नान) के साथ शुरू हुई। अभिषेकम के लिए दूध और शहद जैसे पदार्थों का इस्तेमाल किया गया। अभिषेकम की प्रक्रिया श्री विजयेंद्र सरस्वती तथा परिजन की मौजूदगी में पंडितों के वैदिक मंत्रोच्चार के बीच मठ के मुख्य प्रांगण में हुई। मठ के एक अधिकारी ने कहा कि जयेंद्र सरस्वती का पार्थिव शरीर बाद में वृंदावन उपभवन ले जाया गया। वहीं उनके पूर्ववर्ती श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती के अवशेष वर्ष 1993 में रखे गए थे।

इस मौके पर महासमाधि से पहले किए जाने वाले अनुष्ठान और संस्कार भी मठ के महंतों द्वारा किए गए। कई गणमान्य लोग महासमाधि की प्रक्रिया के दौरान उपस्थित थे और भारी संख्या में भीड़ भी उमड़ पड़ी थी।

बता दें, हिंदू मान्यताओं के अनुसार शंकराचार्य कोई यूं ही नहीं बनाया जा सकता और आदि शंकराचार्य को भगवान शंकर का अवतार माना जाता है। हिंदू धर्म में शंकराचार्य सर्वोच्च पद होता है। महासमाधि की प्रक्रिया पूरी होने के बाद शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती पंचतत्व में विलीन हो गए।

हिंदू धर्म में सबसे अहम और ताकतवर समझे जाने वाली तमिलनाडु स्थित कांची पीठ के पीठाधिपति के रूप में जयेंद्र सरस्वती ने राजनीतिक रूप से भी एक ताकतवर संत का जीवन जिया। जयेंद्र सरस्वती को वेदों का ज्ञाता माना जाता था। भारत के पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी भी इनके प्रशंसकों में से एक थे। जयेंद्र सरस्वती ने अयोध्या विवाद के हल के लिए भी पहल की थी। इसके लिए वाजपेयी ने उनकी काफी प्रशंसा की। हालांकि तब जयेंद्र सरस्वती को आलोचना का भी शिकार होना पड़ा।

जयेंद्र सरस्वती ने हिंदुओं के प्रमुख केंद्र कांची कामकोटि मठ को और ताकतवर बनाया। उनके समय में इस केंद्र एनआरआई और राजनीतिक शख्सियतों की गतिविधियां बढ़ीं। कांची मठ कई स्कूल और अस्पताल भी चलाता है। देशभर में फेमस शंकर नेत्रालय मठ की तरफ से चलाया जाता है।

चित्र साभार- एएनआई से

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार