होली पर मुस्लिम शायरों ने भी खूब कलम चलाई है, होली के अवसर पर पेश है उर्दू शायरी में होली पर लिखी गई शायरी….
नज़ीर बनारसी की होली
कहीं पड़े न मोहब्बत की मार होली में
अदा से प्रेम करो दिल से प्यार होली में
गले में डाल दो बाँहों का हार होली में
उतारो एक बरस का ख़ुमार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में
लगा के आग बढ़ी आगे रात की जोगन
नए लिबास में आई है सुब्ह की मालन
नज़र नज़र है कुँवारी अदा अदा कमसिन
हैं रंग रंग से सब रंग-बार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में
हवा हर एक को चल फिर के गुदगुदाती है
नहीं जो हँसते उन्हें छेड़ कर हंसाती है
हया गुलों को तो कलियों को शर्म आती है
बढ़ाओ बढ़ के चमन का वक़ार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में
ये किस ने रंग भरा हर कली की प्याली में
गुलाल रख दिया किस ने गुलों की थाली में
कहाँ की मस्ती है मालन में और माली में
यही हैं सारे चमन की पुकार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में
तुम्हीं से फूल चमन के तुम्हीं से फुलवारी
सजाए जाओ दिलों के गुलाब की क्यारी
चलाए जाओ नशीली नज़र से पिचकारी
लुटाए जाओ बराबर बहार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में
मिले हो बारा महीनों की देख-भाल के ब’अद
ये दिन सितारे दिखाते हैं कितनी चाल के ब’अद
ये दिन गया तो फिर आएगा एक साल के ब’अद
निगाहें करते चलो चार यार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में
बुराई आज न ऐसे रहे न वैसे रहे
सफ़ाई दिल में रहे आज चाहे जैसे रहे
ग़ुबार दिल में किसी के रहे तो कैसे रहे
अबीर उड़ती है बन कर ग़ुबार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में
हया में डूबने वाले भी आज उभरते हैं
हसीन शोख़ियाँ करते हुए गुज़रते हैं
जो चोट से कभी बचते थे चोट करते हैं
हिरन भी खेल रहे हैं शिकार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में
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सागर ख़य्यामी की होली
छाई हैं हर इक सम्त जो होली की बहारें
पिचकारियां ताने वो हसीनों की क़तारें
हैं हाथ हिना-रंग तो रंगीन फुवारें
इक दिल से भला आरती किस किस की उतारें
चंदन से बदन आब-ए-गुल-ए-शोख़ से नम हैं
सौ दिल हों अगर पास तो इस बज़्म में कम हैं
मेहराब-ए-दर-ए-मै-कदा हर आबरू-ए-ख़मदार
बल खाने से शोख़ी में बने जाते हैं तलवार
कहता है हर इक दिल कि फ़िदा-ए-लब-ओ-रुख़्सार
सब इश्क़ के सौदाई हैं माशूक़ ख़रीदार
सूरज भी परस्तार है बिंदिया की चमक का
हर ज़ख़्म मज़ा लेता है चेहरे के नमक का
रंगीन फुवारें हैं कि सावन की झड़ी है
बूँदों के नगीनों ने हर इक शक्ल जड़ी है
चिल्लाते हैं आशिक़ कि मुसीबत की घड़ी है
वो शोख़ लिए रंग जो हाथों में खड़ी है
तस्कीन मिलेगी जो गले आन लगेगी
पानी के बुझाए से न ये आग बुझेगी
तस्वीर बनी जाती है इक नाज़-ओ-अदा से
पानी हुई जाती है कोई शर्म-ओ-हया से
रेशम सी लटें रुख़ पे उलझती हैं हवा से
बुड्ढे भी दुआ करते हैं जीने की ख़ुदा से
माशूक़ कोई रंग जो चेहरे पे लगा दे
हम क्या हैं फ़रिश्ते को भी इंसान बना दे
हैं गंदुमी चेहरे तो बदन सब के हरे हैं
रंगीन फुवारों से चमन दिल के भरे हैं
उस दिल को ही दिल कहिए क़दम जिस पे धरे हैं
दिल पाँव-तले शोख़ जो पामाल करे हैं
है जश्न-ए-बहाराँ तो चलो होली मनाएँ
इस रंग के सैलाब में सब मिल के नहाएँ
नफ़रत के तरफ़-दार नहीं साहिब-ए-इरफ़ाँ
देते हैं सबक़ प्यार के गीता हो कि क़ुरआँ
त्यौहार तो त्यौहार है हिन्दू न मुसलमाँ
हम रंग उछालें तो पकाएँ वो सिवय्याँ
रंजीदा पड़ोसी जो उठा दार-ए-जहाँ से
ख़ुशियों का गुज़र होगा न फिर तेरे मकाँ से
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नज़ीर अकबराबादी की होली
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की
ख़ुम, शीशे, जाम, झलकते हों तब देख बहारें होली की
महबूब नशे में छकते हों तब देख बहारें होली की
हो नाच रंगीली परियों का बैठे हों गुल-रू रंग-भरे
कुछ भीगी तानें होली की कुछ नाज़-ओ-अदा के ढंग-भरे
दिल भूले देख बहारों को और कानों में आहंग भरे
कुछ तबले खड़कें रंग-भरे कुछ ऐश के दम मुँह-चंग भरे
कुछ घुंघरू ताल छनकते हों तब देख बहारें होली की
सामान जहाँ तक होता है उस इशरत के मतलूबों का
वो सब सामान मुहय्या हो और बाग़ खिला हो ख़्वाबों का
हर आन शराबें ढलती हों और ठठ हो रंग के डूबों का
इस ऐश मज़े के आलम में एक ग़ोल खड़ा महबूबों का
कपड़ों पर रंग छिड़कते हों तब देख बहारें होली की
गुलज़ार खिले हों परियों के और मज्लिस की तय्यारी हो
कपड़ों पर रंग के छींटों से ख़ुश-रंग अजब गुल-कारी हो
मुँह लाल, गुलाबी आँखें हों, और हाथों में पिचकारी हो
उस रंग-भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो
सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की
उस रंग-रंगीली मज्लिस में वो रंडी नाचने वाली हो
मुँह जिस का चाँद का टुकड़ा हो और आँख भी मय के प्याली हो
बद-मसत बड़ी मतवाली हो हर आन बजाती ताली हो
मय-नोशी हो बेहोशी हो ”भड़वे” की मुँह में गाली हो
भड़वे भी, भड़वा बकते हों तब देख बहारें होली की
और एक तरफ़ दिल लेने को महबूब भवय्यों के लड़के
हर आन घड़ी गत भरते हों कुछ घट घट के कुछ बढ़ बढ़ के
कुछ नाज़ जतावें लड़ लड़ के कुछ होली गावें अड़ अड़ के
कुछ लचके शोख़ कमर पतली कुछ हाथ चले कुछ तन भड़के
कुछ काफ़िर नैन मटकते हों तब देख बहारें होली की
ये धूम मची हो होली की और ऐश मज़े का झक्कड़ हो
उस खींचा-खींच घसीटी पर भड़वे रंडी का फक्कड़ हो
माजून, शराबें, नाच, मज़ा, और टिकिया सुल्फ़ा कक्कड़ हो
लड़-भिड़ के ‘नज़ीर’ भी निकला हो, कीचड़ में लत्थड़-पत्थड़ हो
जब ऐसे ऐश महकते हों तब देख बहारें होली की
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उर्दू के अन्य पमरमुख शायरों की कलम से होली
है दिन आए हैं रंग और राग के
हम से तुम कुछ माँगने आओ बहाने फाग के
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
मुँह पर नक़ाब-ए-ज़र्द हर इक ज़ुल्फ़ पर गुलाल
होली की शाम ही तो सहर है बसंत की
माधव राम जौहर
मुहय्या सब है अब अस्बाब-ए-होली
उठो यारो भरो रंगों से झोली
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
साक़ी कुछ आज तुझ को ख़बर है बसंत की
हर सू बहार पेश-ए-नज़र है बसंत की
उफ़ुक़ लखनवी
सजनी की आँखों में छुप कर जब झाँका
बिन होली खेले ही साजन भीग गया
मुसव्विर सब्ज़वारी
साभार- https://www.rekhta.org/ से