भारतीय नारियों ने इस देश पर आये संकट काल में सदा ही आगे बढकर कार्य किया है । इसने न केवल पुरूषों के कन्धे से कन्धा मिलाकर कार्य किया है अपितु अनेक बार तो पुरुष से भी आगे निकल कर देश के लिए बलिदान दिया है । एसी नारियों में ही छत्रपति शिवाजी महाराज की पुत्रवधु ताराबाई भी एक थी । शिवाजी ने जिस बुद्धिमता तथा कौशल से औरंगजेब का मुकाबला कर जिस हिन्दू पद्पादशाही की स्थापना की थी , वह शिवाजी के साथ ही समाप्त हो जाती यदि रण कौशल में पारंगत , नीति मता,बुधिमान व साहसी ताराबाई आगे न आती । शिवाजी के दूसरे पुत्र राजारम की पत्नी ताराबाई ने शिवाजी के ही मार्ग का अनुसरण कर शिवाजी की राज्य परम्परा को कायम रखा ।
शिवाजी की अकस्मात् मृत्यु से उनका स्थापित किया राज्य क्षीण होने लगा । शिवाजी के देहावसान पर उनका ज्येष्ट पुत्र गद्दी पर आसीन हुआ तथा फ़िर उनका पुत्र साहु जी गद्दी पर आया । इसके विलासी व व्यसनी होने से यह अयोग्य शासक औरंगजेब के हाथ लगा तथा साहू को जेल में डाल दिया गया । इस अवसर पर शिवाजी के दूसरे पुत्र राजाराम, ने गद्दी सम्भाली । राजाराम भी शिवाजी के ही समान दूरदर्शी , साहसी , व देशभक्त था । मुगल इससे सदा भयभीत रहते थे । यह देश का दुर्भाग्य ही था कि सन् १७०० ईस्वी में राजाराम का भी देहान्त हो गया । अब शिवाजी के स्थापित राज्य में इस सता को सम्भालने वाला कोई न रह गया था । एसा लगने लगा था कि किसी भी समय यह राज्य पुन: मुगल सता का अंग बन जावेगा । जब देश पर ऐसे आन्धी भरे बादल मंडरा रहे थे ऐसी अवस्था में राजाराम की पत्नी तथा शिवाजी की पुत्रवधु ताराबाई ने इस सत्ता को अपने हाथों में लिया ।
ताराबाई एक योग्य व कुशल नेत्री थी । उसने सत्ता स्म्भालते ही मन्त्री रामचन्द्र पन्त जी की सहायता से मराठा सैनिकों को फ़िर से एक छत्र के नीचे लाना आरम्भ किया । साथी अमात्यों व सैनिकों को शिवाजी के मार्ग पर चलने को प्रेरित करने लगी । उन्हें राज्य की रक्षा के साथ ही साथ देश , धर्म व सम्मान की रक्षा के लिए उत्साह देने लगी । यह ही कारण था कि सब अमात्य व सैनिक न केवल उसका सम्मान करते अपितु उसके एक इशारे पर अपना सब कुछ बलिदान देने को भी तैयार थे ।
एक नारी को यहां की सत्ता का अधिकारी देख व उसे कमजोर समझ कर औरंगजेब ने विशाल सेना के साथ उस पर आक्रमण किया तथा पुरन्दर , सिंह्गढ व पुना आदि अनेक किलों पर अपना अधिकार जमा लिया। अब वह बीजापुर की ओर बढ रहा था । इस समय अकस्मात् ताराबाई ने अपने कौशल से सिंह्गढ तथा पूना के किलों पर अधिकार कर अपने विश्वस्त सेनापति को पुरन्दर पर फ़तह के लिए रवाना किया तथा शीघ्र ही यह भी उसके अधिकार में आ गया ।
अब पराजित हो रहे मुगल सम्राट ने अपने बस से बाहर हो रहे युद्ध को अपने पक्ष में करने के लिए मराठों में फ़ूट डालने की चाल चली । इससे पुना किले का रक्षक अमात्य धनजी शाह बादशाह की चाल में आ गया तथा विश्वास घात कर मुगलों से मिल गया । इस प्रकार चाल से पूना पर कब्जा करने का यत्न मुगल बादशाह ने किया किन्तु दूरदर्शी रानी ताराबाई के सामने उसकी एक न चली । जेल में बन्द शाहूजी को भी लालच दिया गया कि यदि वह ताराबाई के विरोध का वातावरण तैयार कर देगा तो जेल से छुट्कारा दे दिया जावेगा । साहू जी भी इस चाल में फ़ंस गये । उसने भी अपने विश्वासपात्र मराठाओं के माध्यम से ताराबाई को हटाने का यत्न किया किन्तु ताराबाई की कूटनीति के आगे उसकी भी एक न चली तथा ताराबाई को शासक पा मुगल मुंह ही ताकते रह गये ।
१७४९ ईस्वी में अपनी मृत्यु को निकट देख शाहू जी सत्ता के कुछ अधिकार पेशवा बाला जी को सोंप गये । शाहू जी के देहान्त पर ताराबाई के प्रपौत्र गद्दी पर आसीन हुए । किन्तु बाला जी पेशवा ने शाहू जी से मिले अधिकार का प्रयोग करते हुए पूना पर आक्रमण कर दिया । मराठा राजा रामराज को बन्दी बना लिया गया। अब पूना के किले पर बाला जी पेशवा का अधिकार था । इससे सतरवर्षीय ताराबाई की उलझनें बढ गईं। अब जहां उसने मुगलों से लोहा लेना था वहां अपनों का भी सामना करना था किन्तु इस प्रौढ वय में भी न तो वह घबराई तथा न ही किसी प्रकार के समझोते के लिए झुकी । इस आयु में भी उसके साहस में कहीं कोई कमीं न दिखाई देती थी ।
वीरांगना ने फ़िर से अपनी सेना को शक्ति सम्पन्न कर पूना पर जा डटी तथा घबराया हुआ पेशवा भाग खडा हुआ ओर पूना पर ताराबाई का आधिपत्य हो गया । उसने तत्काल रामराज को कैद से मुक्त कराया । इस प्रकार निरन्तर संघर्ष करते हुए उसने शिवाजी की परम्पराओं को अक्षुण बनाए रखा तथा मराठा सत्ता को निरन्तर आगे बढाने में लगी रही । देश के संगठन में ताराबाई का महत्व्पूर्ण योगदान रहा तथा इस का जीवन आज भी भारतीय नारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है ।
ताराबाई की वीरता व दूरदर्शिता की शत्रु भी प्रशंसा करते थे । इस कारण ही मुगल इतिहासकार खाईखां ने इस विरांगना की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि ” ताराबाई एक रणकुशल , कूट्नीतिज्ञ, बुद्धिमती ओर दूरदर्शी महिला थी । उस का राज्य प्रबन्ध ओर सैन्य संचालन बहुत ही कुशलता पूर्ण था । महाराष्ट्र में ताराबाई को शक्ति के अवतार के रुप में माना जाता है ।” एसी नारियों ने ही सदा भारत को संकट से निकाला है । हम सब को इस नारी के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिये ।
डॉ.अशोक आर्य
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