परिस्थितियों की अनुकूलता कभी भी, किसी के भी लिए अनिवार्य नहीं रही है। अक्सर हालात विपरीत रूप में हमारे सामने आते हैं। लेकिन यदि ऐसे समय का भी सदुपयोग कर लिया जाए तो बात ही अलग होती है। ऐसा ही मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया है। कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद जो बदलाव उन्होंने अपनाए, उनके चलते शिवराज इस रोग से पीड़ितों के लिए एक मिसाल माने जा सकते हैं। कोरोना का मामला हो या कोई भी और रोग, उससे निपटने की सबसे पहली शर्त पीड़ित की खुद को पीड़ित न माने जाने से होती है। इसका अर्थ बीमारी को नजरंदाज करने से नहीं है। बात को ऐसे समझ सकते हैं। कोरोना के शुरूआती लक्षण का भान होते ही शिवराज ने तत्काल खुद की जांच कराई। संक्रमण की पुष्टि होने के बाद बिना समय गंवाए वह अस्पताल में भर्ती हो गए। उपचार के बीच ही वह स्वयं के लिए चाय बनाने और अपने कपड़े खुद धोने जैसे काम भी कर रहे हैं। इस सब के बीच सभी जरूरी सावधानियों का पालन करते हुए उन्होंने खुद को काम में व्यस्त रखा है।
डाक्टरों से बात कीजिए। वह बताते हैं कि कोरोना के मामले बिगड़ने की वजह में इस रोग के लक्षणों की अनदेखी करना सबसे बड़ा तथ्य है। इसके बाद ज्यादातर लोग डर के चलते इसकी जांच से कतराते हैं। नतीजा अक्सर यह होता है कि संक्रमण की पुष्टि होने तक मामला बिगड़ चुका होता है। डाक्टर यह भी बताते हैं कि रोग का पता लगने के बाद उन मरीजों की रिकवरी में अधिक दिक्कत आती है, जो नकारात्मक विचारों के शिकार रहते हैं। वह लगातार यही सोचते रहते हैं कि अब उनका ठीक हो पाना असंभव होगा। इससे भी बीमार की स्थिति बिगड़ने का और खतरा होता है। शिवराज स्वाभाविक लीडर हैं। शिवराज ने ऐसे सभी मरीजों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया है। अव्वल तो खुद के कपड़े धोना संक्रमण के प्रसार की आशंका को कम करने का एक समझदारी वाला कदम है। उस पर मुख्यमंत्री ने बीमारी के बीच भी लगातार काम करते हुए खुद को नकारात्मक विचारों से पूरी तरह दूर कर लिया है। अस्पताल में भर्ती होने के केवल दो दिन के अंदर मुख्यमंत्री की खांसी और बुखार का बंद होना इस बात का पुख्ता संकेत है कि किस तरह कुछ समझदारी और सावधानी से कोरोना का भी सरल तरीके से निदान किया जा सकता है।
जाहिर है परिवर्तन अच्छा हो या बुरा, किन्तु अपने पीछे कुछ न कुछ सृजन छोड़ जाता है। जिस कोरोना वायरस ने सारी दुनिया की जीवन शैली सहित सोच को भी बदल कर रख दिया है, इसी कोरोना वायरस से यही लड़ाई मध्यप्रदेश में एक नयी शुरूआत की सकारात्मक वजह बन गई है। इस वायरस के असर और इससे निपटने के तौर तरीकों ने राज्य के सरकारी और प्रशासनिक कामकाज को अलग दिशा प्रदान की है। कोरोना से यह लड़ाई उसे सूचना प्रौद्योगकी के व्यापक एवं सुलभ इस्तेमाल से जोड़ गई है। शिवराज सरकार की पहली वर्चुअल केबिनेट ने इसमें एक नई कड़ी जोड़ दी है। वैसे गौर करें, 23 मार्च को शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का शायद ही कोई ऐसा दिन बीता होगा जब उन्होंने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से प्रदेश भर में कोरोना से लड़ाई में लगी अपनी प्रशासनिक टीम या जनप्रतिनिधियों से संवाद स्थापित नहीं किया हो। कोरोना को लेकर मध्यप्रदेश में चल रहे व्यापक युद्ध में सूचना प्रौद्योगिकी ने जो भूमिका अदा की है, वो अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रशासन का स्थायी अंग हो जाएगा। प्रशासन में इस नवाचार का श्रेय वाकई मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की चौथी पारी की पहली बड़ी उपलब्धि के तौर पर उन्हें दिया जा सकता है।
अब बात कैबिनेट की पहली वर्चुअल मीटिंग की। कोरोना से उपजे हालत के बीच फसल बीमा योजना की आखिरी तारीख को 15 से 31 जुलाई तक बढ़ाना किसानों की बहुत बड़ी जरूरत को पूरा करने की दिशा में अहम कदम है। आज ही इस योजना का प्रशासकीय अनुमोदन भी कर दिया गया। यह समय रोजगार के लिहाज से भी बहुत संकट वाला है। ऐसे में मुख्यमंत्री ग्रामीण पथ विक्रेता ऋण योजना का प्रत्येक जनपद में हाथठेला चलाकर जीवनयापन करने वालों को फायदा देने का निर्णय भी बहुत महत्व रखता है। बता दें कि यह केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है, जिसके तहत पथ विक्रेताओं को 10 हजार रुपए का लोन दिया जाता है। योजना का दायरा बढ़ाने से इसका लाभ अब प्रदेश के हरेक हाथ ठेला चलाकर कामधंधा करने वाले को मिल सकेगा।
कैबिनेट में लिया गया वह निर्णय भी बहुत अहम है जिसमें कोविड संक्रमित व्यक्तियों के इलाज की व्यवस्था का फैसला किया गया। इसमें यह भी विशेष रहा कि कोरोना के चलते राज्य में बंदियों की वर्चुअल पेशी का फैसला किया गया है। मंत्रिमंडल ने एक और बड़ा फैसला लेते हुए चंबल एक्सप्रेस-वे के भारतमाला परियोजना के अंतर्गत निर्माण की स्वीकृति दे दी। आज ही राज्य में नवगठित 22 नगरपरिषदों को डीनोटिफिकेशन संबंधी अधिसूचना निरस्त कर उन्हें यथावत नगरपरिषद रखने का निर्णय होने के साथ ही मध्यप्रदेश कैम्पा निधि उपयोग के लिये निर्णय- कैम्पा निधि से वार्षिक प्रबंधन योजना के लिए प्राथमिकता का निर्धारण एवं क्रियान्वयन का अनुसमर्थन भी कैबिनेट ने कर दिया।
अस्पताल से अपने अनुभव साथी मंत्रियों और अफसरों को बांटने और वर्चुअल केबिनेट का मध्यप्रदेश में नया उदाहरण है। इसे टेक्नोलॉजी के नए स्वरुप के प्रति शिवराज की ललक और गंभीरता दोनों कहा जा सकता है। कोरोना के इन पांच महीनों में महज एक क्लिक के माध्यम से सारे प्रदेश को मुख्यमंत्री सचिवालय से चौबीसों घंटे, सातों दिन के लिए जोड़ दिया है। इसी तकनीकी के प्रयोग ने यह भी संभव कर दिया है कि सरकारी दफ्तरों में कम स्टाफ की उपस्थिति एवं शेष अमले के ‘वर्क फ्रॉम होम’ के माध्यम से भी सरकारी कामकाज को बखूबी एवं निर्धारित समय में अंजाम दिया जा सकता है। कोविड-19 या कोरोना वायरस से दुनिया की लड़ाई लंबी चलती दिख रही है। लिहाजा, सोशल डिस्टेंसिंग का लम्बे समय तक पालन करना बहुत बड़ी जरूरत बन चुका है। इसलिए मौजूदा आॅनलाइन व्यवस्था के जरिए सामाजिक दूरी की अवधारणा का पालन करते हुए ही राज्य एवं यहां की जनता से जुड़े जरूरी सरकारी कामकाज को सफलतापूर्वक अंजाम देने का रास्ता भी अब साफ हो चुका है। सबसे बड़ी बात अब कोरोना महामारी का चाहे जो हो, लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी का यह इस्तेमाल प्रशासनिक व्यवस्थाओं को चाकचौबंद करने और इनके लंबे इस्तेमाल के लिए हमें तैयार कर रहा है। कामकाज की वर्चुअल शैली के लिए आखिर शिवराज का हौंसला तो वाकई एक्चुअल है।