जैसी कि अपेक्षा थी, रेलवे बजट में आम लोगों की कुछ चिंताओं-समस्याओं पर ध्यान दिया गया है। रेल बजट में सरकार ने लोकलुभावन तौर-तरीकों से हटते हुए एक बड़ा बदलाव किया है और जुलाई 2014 में लाई गई कुछ अव्यावहारिक परियोजनाओं के मद्देनजर नई योजनाओं से परहेज करते हुए कोई नई ट्रेन शुरू नहीं करने का निर्णय लिया है। ऐसा इसलिए, ताकि पूर्व घोषित योजनाओं को पूरा किया जा सके और अनावश्यक घोषणाओं से बचा जा सके। रेल किरायों को यथावत रखा गया है। इनमें कुछ कटौती की अपेक्षा थी, क्योंकि वर्ष 2014 में जुलाई से दिसंबर के बीच तेल कीमतों में गिरावट आई है। इस मामले में एक स्पष्ट वक्तव्य ज्यादा अच्छा रहता। ऐसा प्रतीत होता है कि किराये में आठ प्रतिशत की वृद्धि की जा सकती थी, लेकिन तेल की कीमतों में कमी के कारण इससे बचा गया और कुल मिलाकर यह रहा कि किराये में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। वैसे आने वाले दिनों में किराये में कमी की मांग उठ सकती है और तब हो सकता है कि रेलमंत्री को उस पर विचार करना पड़े।
रेल बजट में सरकार ने गंभीरता दिखाई है और क्षमता निर्माण की चुनौती पर ध्यान देकर सही काम किया है। इसके परिणामस्वरूप परिवहन लागत को घटाने में रेलवे को काफी मदद मिलेगी। अवमूल्यन में कमी लाने के लिए 10,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है, जो कि एक मुश्किल लक्ष्य है। रेलमंत्री ने योजना बजट में 52 फीसद से अधिक की वृद्धि की है। इसी तरह कुल बजटीय समर्थन 33 प्रतिशत बढ़ गया है। इसके अलावा आंतरिक राजस्व सृजन का लक्ष्य 50 फीसद से भी अधिक रखा गया है, जबकि न तो यात्री किराए और न ही माल भाड़े में उल्लेखनीय वृद्धि की गई है। सीमेंट, कोयला, खाद्यान्न्, कच्चे लोहे आदि की ढुलाई के लिए मामूली वृद्धि की घोषणा की गई है।
रेलवे के आधुनिकीकरण और उसकी क्षमता को बढ़ाने और मजबूत करने के लिए कई बड़े कदम उठाए गए हैं। खर्च मूल्यांकन की शुरुआत किए जाने से जहां बर्बादी को रोकने में मदद मिलेगी, वहीं दूसरी ओर इससे रेलवे को अतिरिक्त आंतरिक राजस्व जुटाने में भी मदद मिलने की उम्मीद की जा सकती है। रेल मंत्री ने आगामी 5 वर्षों में रेलवे में 8,56,000 करोड़ रुपए निवेश किए जाने की बात कही है। रेलवे की आवश्यकताओं और उसकी प्राथमिकताओं को पूरा करने के लिए यह सही दिशा में कदम है। आगामी दो वर्षों में 9 रेलवे रूट पर 200 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से ट्रेन चलाए जाने की योजना कोई आसान काम नहीं है। रेल रूटों और कोचों की स्थिति को देखते हुए यह व्यावहारिक नहीं दिखता। हां, इतना अवश्य है कि यदि ऐसा हो पाता है तो देश की तरक्की की दिशा में यह एक बड़ा कदम होगा।
जम्मू-कश्मीर में चालू परियोजनाओं में आंशिक सफलता मिलने के बावजूद परियोजनाएं बहुत विलंबित है और आने वाले समय के संदर्भ में इन्हें पूरा कर पाना कठिन चुनौती है। इसलिए और भी, क्योंकि ये परियोजनाएं उस स्तर पर पहुंच गई हैं, जहां काम पूरा करना सबसे कठिन है।
देश के विभिन्न हिस्सों और लोगों को जोड़ने में रेलवे एक बहुत ही महत्वपूर्ण और गतिशील भूमिका का निर्वहन कर रही है। भारत में औद्योगीकरण की दिशा में इसकी महती भूमिका है। यह भारत सरकार की सर्वाधिक उत्पादक इकाई कही जा सकती है जिसमें लाखों की संख्या में लोगों को रोजगार मिला हुआ है। यह देश की विशाल आबादी की दिन-प्रतिदिन की जरूरतों और आम लोगों की परिवहन आवश्यकताओं के मद्देनजर बड़ी भूमिका निभाती है। भूमि उपयोग और ऊर्जा के कुशल उपयोग के मामले में रेलवे सबसे बेहतर है।
इन सबके बावजूद रेलवे कुछ विरोधाभासों से भी घिरी हुई है। पिछले रेलमंत्री के शब्दों में, ऐसा शायद ही कोई बिजनेस हो, जिसके पास 125 करोड़ की संख्या में ग्राहक आधार हो और जिसकी शत प्रतिशत बिक्री अग्रिम भुगतान के आधार पर होती हो, लेकिन बावजूद इसके रेलवे आज भी फंड के अभाव से जूझ रही है। अभी हाल की ही बात करें तो सैम पित्रोदा और अनिल काकोदकर समिति ने आगामी दस वर्षों में इसमें 7-8 लाख करोड़ रुपए की राशि निवेश किए जाने की आवश्यकता जताई थी। वर्ष 2008-09 में जहां कुल बजटीय समर्थन 7,600 करोड़ रुपए था, वहीं 2014-15 में यह बढ़कर 30,100 करोड़ रुपए पहुंच गया। गत पांच वर्षों में रेलवे के पास मौजूद अतिरिक्त राशि लगभग खत्म हो गई और नए राजस्व का सृजन भी नहीं हो सका। संपत्तियों के अवमूल्यन के कारण रेलवे की आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही है।
रेलवे के समक्ष अपनी सामाजिक बाध्यताएं पूरी करने की चुनौती हमेशा रहती है। रेलवे की जिम्मेदारी सस्ता परिवहन उपलब्ध कराना है। इसके लिए तीस हजार करोड़ रुपए की सब्सिडी की जरूरत होती है। अपने देश में चीन और जापान की तुलना में यात्री किराए की दरें क्रमश 2.8 तथा 9.3 गुना कम हैं। पिछले सात वर्ष में कामकाजी खर्च तीन गुना तक बढ़ गए हैं।
रेलवे से एक सामान्य व्यक्ति की सुनिश्चित सीट, सुरक्षा, साफ-सफाई की अपेक्षा होती है। पुख्ता आर्थिक संसाधनों के बिना यह सब उपलब्ध कराना आसान काम नहीं है। डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के माध्यम से ट्रैक क्षमता का सही इस्तेमाल वर्षों पहले अपेक्षित था। अब जब 2019 में यह योजना धरातल पर उतर आएगी तो भी बात नहीं बनेगी। आठ प्रतिशत की विकास दर से कदमताल मिलाने के लिए रेलवे को इसके अलावा भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। एफडीआई उन योजनाओं-परियोजनाओं में मददगार हो सकती है, जहां से लाभ की आशा है, लेकिन दीर्घकाल में रेलवे को अपना बुनियादी ढांचा खुद ही मजबूत करना होगा। हमारा चयन इस तरह होना चाहिए कि रेलवे और निवेशक, दोनों के लिए लाभ की स्थिति उभरे। आधुनिकीकरण, तकनीक का समावेश, संपत्तियों के इस्तेमाल में सुधार और उत्पादकता में वृद्धि वे क्षेत्र हैं, जिनके बिना काम नहीं चलने वाला। मानवशक्ति सबसे बड़ा संसाधन है, पर उसे और कार्यकुशल बनाने की जरूरत है।
-लेखक रेलवे बोर्ड के पूर्व सदस्य हैं।
साभार- दैनिक नईदुनिया से