Wednesday, December 25, 2024
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श्रीपुरी धाम में देवस्नान पूर्णिमा 22 जून को

कहते हैं कि इस धरती पर तीन ही रत्न हैः जल,अन्न और मीठी वाणी और श्रीजगन्नाथ पुरी धाम के श्रीमंदिर में अपने रत्नसिंहासन पर विराजमान चतुर्धा देवविग्रह रुप भगवान जगन्नाथ को एक साधारण मानव के रुप में अन्न,जल,मधुर संगीत,साल के 12 महीनों में कुल 13 उत्सव,प्रतिदिन अपनी अभिरुचि के वस्त्रधारण करना,मधुर गीतगोविंद गायन सुनना आदि बहुत प्रिय है। वे प्रतिदिन 56 प्रकार के भोगग्रहण करते हैं।उनको जल भी बहुत प्रिय है इसीलिए वे अपनी रथयात्रा के क्रम कुल 42 दिन जलक्रीड़ा करते हैं।

10मई,2024 को(अक्षयतृतीया के दिन से) वे 21 दिनों के लिए पुरी के नरेन्द्र तालाब में बाहरी चंदन यात्रा किये और अब वे श्रीमंदिर के अंदर के पवित्रतम तथा शीतलतम तालाब में 21 दिवसीय जलक्रीड़ा कर रहे हैं जो ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा अर्थात् आगामी 22 जून,2024 को देवस्नान पूर्णिमा के रुप में श्रीमंदिर के स्नानमण्डप पर पूरी रीति-नीति के साथ संपन्न होगी।देवस्नान पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ के जन्मोत्सव के रुप में भी मनाया जाता है। उस दिन वे गजानन वेश धारण करते हैं। देश-विदेश के लाखों -करोडों जगन्नाथ भक्त उस दिन उनके जन्मोत्सव के दर्शन करते हैं।

श्रीपुरी धाम के श्रीमंदिर के स्नानमण्डप पर चतुर्धा देवविग्रहों के देवस्नान पूर्णिमा मनाये जाने की बड़ी ही सुदीर्घ परम्परा रही है जो लगभग एक हजार वर्षों की परम्परा मानी जाती है। गौरतलब है कि आगामी 22 जून को श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर विराजमान चतुर्धा देवविग्रहों को भोर में (लगभग साढे चार बजे) पहण्डी विजय कराकर श्रीमंदिर के देव स्नानमण्डप पर लाया जाएगा जहां पर देवी विमलादेवी के कूप से कुल 108 कलश पवित्र तथा शीतल जल लाकर उन्हें महास्नान कराया जाएगा।

35 स्वर्ण कलश जल से जगन्नाथ जी को,33 स्वर्ण कलश जल के बलभद्रजी को,22 स्वर्ण कलश जल से सुभद्राजी को तथा 18 स्वर्ण कलश जल से सुदर्शन जी को महास्नान कराया जाएगा। भगवान जगन्नाथ के प्रथम सेवक पुरी के गजपति महाराजा श्री श्री दिव्य सिंहदेव जी अपने राजमहल श्रीनाहर से पालकी में पधारकर भगवान जगन्नाथ जी के प्रथम सेवक के रुप में स्नानमण्डप पर चंदनमिश्रित जल और पुष्प छिड़ककर छेरापंहरा करेंगे। भगवान जगन्नाथ समेत सभी देवविग्रहों को गजानन वेष में सुशोभित किया जाएगा।

गौरतलब है कि देवस्नान मण्डप श्रीमंदिर के सिंह द्वार के समीप ही निर्मित है इसलिए इसलिए चतुर्धा देवविग्रहों को बडदाण्ड से ही समस्त जगन्नाथ भक्त उन्हें मलमलकर महास्नान करते हुए दर्शन करेंगे। गौरतलब है कि एक समय में महाराष्ट्र के एक गाणपत्य भक्त (विनाय भट्ट) देवस्नान पूर्णिमा के दिन पुरी आया और जगन्नाथ भगवान को गजानन वेश में दर्शन की उनसे कामना की और तभी से प्रतिवर्ष देवस्नान पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ ही नहीं समस्त चतुर्धा देवविग्रहों को गजानन वेश में सुशोभितकर उनके दर्शन कराया जाता है।

कहते हैं कि अत्यधिक स्नान करने के चलते देवविग्रह बीमार प़ड़ जाते हैं और तब उन्हें उनके बीमार कक्ष में लाकर 15 दिनों तक उनको एकांतवास कराया ताता है तथा उनका वहां पर आयुर्वेदसम्मत इलाज होता है। उस दौरान श्रीमंदिर का मुख्य कपाट बन्द कर दिया जाएगा। उस दौरान जो भी जगन्नाथ भक्त पुरी धाम आते हैं वे भगवान जगन्नाथजी के दर्शन ब्रह्मगिरि अवस्थित भगवान अलारनाथ के दर्शन के रुप में करते हैं। ब्रह्मगिरि पुरी से लगभग 23 किलोमीटर की दूरी पर प्रकृति के खुले वातावरण में अवस्थित है जहां पर भगवान अलारनाथ की काले प्रस्तर की भगवान विष्णु की चार भुजाओंवाली मूर्ति है और जो बहुत ही सुंदर और आकर्षक है।वहां आगत समस्त जगन्नाथ भक्तगण भगवान अलारनाथ के दर्शनकर जगन्नाथ जी के दर्शन का लाभ 15 दिनों तक करते हैं(देवस्नान पूर्णिमा के उपरांत)उठाते हैं।

भगवान अलारनाथ को प्रतिदिन निवेदित किए जानेवाले खीर भोग को समस्त जगन्नाथ भक्त बडे चाव से भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद के रुप में ग्रहण करते हैं। भक्तों की आस्था और विश्वास के जीवंत और साक्षात प्रमाण हैं भगवान जगन्नाथ।पुरी धाम एक धर्मकानन है जो अपने आप में एक धाम भी है,एक तीर्थ भी है और एक श्रेत्र भी है जहां पर भगवान जगन्नाथ के जन्मोत्सव और उनके गजानन वेष में दर्शन का समस्त जगन्नाथ भक्तों के जीवन में अति विशिष्ट महत्त्व माना गया है।

आध्यात्मिक महत्त्व के रुप में श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर विराजमन चतुर्धा देवविग्रह साक्षात चारों वेदों के जीवंत स्वरुप हैं।जगन्नाथ जी साक्षात ऋग्वेद हैं,बलभद्र जी साक्षात सामवेद हैं,देवी सुभद्रा माता साक्षात यजुर्वेद हैं तथा सुदर्शनजी साक्षात अथर्वेद के जीवंत प्रतीक हैं।महास्नान के उपरांत लगातार 15 दिनों तक आर्युवेदसम्मत इलाज के उपरांत चतुर्धा देवविग्रह पूरी तरह से स्वस्थ होकर आषाढ शुक्ल प्रतिपदा तिथि को अपने भक्तों को अपने नवयौवन वेष में दर्शन देंगे और उसके अगले दिन आषाढ शुक्ल द्वितीया के दिन अर्थात् 07 जुलाई,2024 को जगत के नाथ श्री श्री जगन्नाथ भगवान अपनी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा करेंगे। वे रथारुढ होकर अपनी मौसी के घर गुण्डीचा मंदिर जाएंगे। प्राप्त जानकारी के अनुसार श्रीपुरी धाम में श्रीमंदिर प्रशासन की ओर से देवस्नान पूर्णिमा के विराट आयोजन की तैयारी सुचारु रुप से चल रही है।

(लेखक भुवनेश्वर में रहते हैं और ओड़िशा की साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक व धार्मक गतिविधियों पर शोधपूर्ण लेखन करते हैं)

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