आज दोपहर
अभिजीत मुहूर्त पर, अयोध्या मे,
जब प्रभु श्रीराम जी के
पुनर्निर्मित भव्य मंदिर मे
पहला श्रीरामनवमी उत्सव
संपन्न हो रहा होगा,
तब
नियति अपने देश, भारत, के भाल पर
सुवर्णाक्षरों से
इस नए युग का
सुनहरा भविष्य लिख रही होगी!
आज का दिन
सभी अर्थों में
एक ऐतिहासिक दिवस हैं.
सैकड़ों वर्षों के बाद,
इस देश के
स्वाभिमान की, आत्मगौरव की, आत्मसम्मान की
धधकती अभिव्यक्ति
प्रकट होती दिख रही हैं।
मात्र अपना भारत देश ही नहीं,
अपितु
विश्व के कोने कोने मे,
जहां भी हिन्दू बसे हैं,
वे सारे, आज अपने अपने स्थान पर
आनंदोत्सव मना रहे हैं।
उनका रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, विजयादशमी, दीवाली….
सब कुछ आज ही हैं…!
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अपने ही देश मे,
अपने ही आराध्य के, अपने ही राष्ट्रपुरुष के
स्मारक के लिए, मंदिर बनाने के लिए,
दसियों करोड़ो देशवासियों को
सैकड़ों वर्षों से संघर्ष करना पड़ा हों…
ये भारत में ही संभव हैं।
किसी जमाने में
पुरुषपुर (पेशावर) से पापुआ न्यू गिनी तक
जिन श्रीराम की गाथाएं
रोज गायी जाती थी,
रामायण, महाभारत, वेद, उपनिषद, पुरुषसूक्त, श्रीसूक्त
आदि जिनकी दिनचर्या का हिस्सा था,
आज भी
विश्व के सबसे बड़े मुस्लिम राष्ट्र
इंडोनेशिया मे,
जिन श्रीराम की कथाओं पर
रोज खेल खेले जाते हैं, उनकी लीलाएं होती हैं,
उनके गीत गाएं जाते हैं,
जिस थाईलैण्ड के राजवंश के नाम
प्रभु श्रीराम के नाम पर दिये जाते हैं,
मलेशिया, मॉरीशस, त्रिनिनाद, फ़िजी, लाओस, कंबोडिया, म्यांमार…
आदि अनेक देशों के लोकजीवन में
जो राम
रच – बस गए हैं…
उन प्रभु श्रीराम के
अस्तित्व को ही भारत में नकारा जा रहा था…
मुस्लिम आक्रांताओं का तो
उद्देश्य साफ था…
उन्हे काफिरों के श्रध्दास्थानों कों नष्ट करना था।
उन्होने किया।
पर १९४७ मे,
स्वतंत्रता मिलने के पश्चात तो,
अपने गौरवशाली इतिहास की पुनर्स्थापना
आवश्यक थी।
अनेक देशों ने ऐसा किया भी।
किसी जमाने मे,
स्पेन के एक बड़े हिस्से पर,
मुस्लिम आक्रांताओं ने
कब्जा कर लिया था।
ताकतवर ग्रेनाडा नामक मुस्लिम साम्राज्य ने
स्पेन के ५०० से ज्यादा
प्रमुख चर्चेस को तोड़कर, उन्ही स्थानों पर
मस्जिदे बनवाई।
किन्तु,
जिस वर्ष,
कोलंबस अमेरिका पहुंचा था,
उसी वर्ष, अर्थात २ जनवरी १४९२ को,
स्पेनिश शासकों ने
मुस्लिम आक्रांताओं को भगाकर,
स्पेन को पुनः इस्लाम मुक्त किया।
और उन ५०० से ज्यादा
मस्जिदों को तोड़कर,
वहां पुनः चर्चेस बनाएं गए!
यही तो,
इस विश्व का नियम हैं।
हम इस नियम को भूल गए।
इसलिए,
पहले इस्लामी शासकों से
प्रभु श्रीराम के
जन्मभूमि स्थान को मुक्त करने के लिए,
हमने अनेकों बार संघर्ष किए।
लाखों लोगों ने अपने प्राण त्यागे –
मीर बाकी और जलाल शाह से भिड़ने वाले
बाबा श्यामननंद जी,
मंदिर को बचाने के लिए
बाबर की चतुरंग सेना से लड़ते लड़ते
बलिदान देने वाले
भिटी के राजा महताब सिंह और
उनके चौहत्तर हजार वीर सैनिक…
मीर बाकी की सेना से
नब्बे हजार रामभक्तों के साथ लोहा लेकर
वीरगति प्राप्त करने वाले
पंडित देवीदीन पांडे,
हंसवर के राजा रणविजय सिंह,
उनके वीरमरण प्राप्त
चौबीस हजार सैनिक,
बीस हजार नारी शक्ति के साथ
छापामार युध्द करते हुए, मृत्यु को वरण करने वाली
राणा रणविजय सिंह की पत्नी,
जयराजकुमारी…
महेश्वरानंद, बलरामचारी, सरदार गजराज सिंह,
राजा जगदंबा सिंह, कुंवर गोपाल सिंह,
बाबा वैष्णवदास जी और उनकी
चिमटा वाली सेना….
उनकी मदत करने वाले सीख गुरु,
अमेठी के राजा गुरुदत्त, पीपरपुर के राजा राजकुमार,
बाबा रामचरण दास,
राम कोठारी, शरद कोठारी…..
कितने नाम गिनाएं…?
प्रभु श्रीराम के लिए
अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाले
इन कारसेवकों के रक्त से,
सरयू नदी पवित्र हुई हैं।
अयोध्या के कण कण मे,
इन बलिदानी राम भक्तों की अनगिनत गाथाएं
लिखी गई हैं….
आज इन सभी पुण्यात्माओं की आत्माएं,
स्वर्ग से, कृतार्थ भाव से,
नीचे अयोध्या को निहार रही हैं…!
इन सब का आशीर्वाद
हमारे देश को मिल रहा हैं!
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प्रभु श्रीरामचंद्र जी ने,
त्रेता युग में
इस भरतवर्ष में फैला हुआ
आतंक का जबरदस्त नेटवर्क,
आतंक के सरगना रावण को मारकर
समाप्त किया था।
वह एक नए युग की शुरुआत थी.
इस युग में स्थापित रामराज्य यह
स्वाभिमान का, समता, समानता का,
समरसता का,
समृध्दी का, निर्भयता का,
न्याय का राज्य था !
आज भी वैसी ही परिस्थिति बन रही हैं.
हमारी कमजोरियों ने
हमे पांच सौ वर्ष,
हमारे ही आराध्य का मंदिर बनाने,
हमे संघर्ष करने विवश किया।
किन्तु अब नहीं…
अब संक्रमण काल समाप्त हुआ हैं।
आत्मग्लानि का कोहरा छट रहा हैं।
परावलंबिता के, हीन भावना के, उपनिवेशिक मानसिकता के,
बादल हट रहे हैं…..
आत्मगौरव का सूरज चमक रहा हैं…
जी, हां !
जन्मभूमि पर पुनर्निर्मित भव्य
श्रीराम मंदिर मे
पहली बार
श्रीराम नवमी उत्सव
संपन्न हो रहा हैं…!
एक नए युग का आरंभ हो रहा हैं…!!
जय श्रीराम
(प्रशांत पोळ ऐतिहासिक विषयों पपरशोधपूर्ण लेख लिखते हैं, उनकी कई पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं।)