हिन्दू कालेज में ‘हस्ताक्षर’ का लोकार्पण
नई दिल्ली। साहित्य की दृष्टि से देखें तो हस्ताक्षर बहुत व्यंजक नाम है। हस्ताक्षर करने का सभी का अपना विशिष्ट अंदाज़ होता है। साहित्य भी अपने अंदाज़, अपने विशिष्ट शैली, अपने हस्ताक्षर के निर्माण की प्रक्रिया ही है। इस प्रकार ‘हस्ताक्षर’ पत्रिका पूरे देश के सभी हिंदी विभागों में सबसे विलक्षण प्रयोग है। उक्त विचार हिंदी साहित्य सभा, हिंदू विभाग, हिंदू कॉलेज में ‘हस्ताक्षर’ पत्रिका के लोकार्पण के अवसर पर आयोजित ‘हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता और हमारा समय’ विषय पर परिसंवाद सत्र में प्रो. अपूर्वानंद ने व्यक्त किए। साहित्यिक पत्रिकाओं पर बात करते हुए प्रो. अपूर्वानंद ने पत्रिकाओं और साहित्य के बीच के अंतरसंबंधों पर प्रकाश डाला। उन्होंने मूर्धन्य कवि और पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी के उदाहरण के माध्यम से स्पष्ट किया कि पत्रकारों का काम अधिक जवाबदेही वाला है। पत्रकारिता के लोगों पर साहित्य के विद्वानों से अधिक ज़िम्मेदारी है, सभी वर्ग के लोगों तक सत्य पहुंचाने की जिम्मेदारी।
कार्यक्रम में हिन्दी की लोकप्रिय साहित्य मासिकी ‘हंस’ के संपादक संजय सहाय ने किसी एक फोर्टे में न बंधकर, लेखन में नए-नए प्रयोग करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि रचनाकारों को अपनी भाषा में, अपने लेखन शैली में निरंतर नए संभावनाओं को तलाशते रहना चाहिए। जो रचनाकार जितना अधिक परिवर्तन, जितना अधिक प्रयोग करता है, वह उतना ही बड़ा रचनाकार होता है। वहीं ‘हंस’ की प्रकाशक और कथक गुरु रचना यादव ने पठन, लेखन, प्रकाशन और वितरण के क्षेत्र में विद्यमान समस्याओं और उनके समाधान पर बात की। उन्होंने कहा कि हमारे समक्ष सबसे बड़ी चुनौती नये पाठकों को तैयार करना है ताकि साहित्य की विरासत न केवल कायम रहे अपितु इसका सिलसिला निरंतर बना रहे।
परिसंवाद के दौरान अतिथियों ने ‘हस्ताक्षर’ पत्रिका की संपादक प्रो. रचना सिंह और प्रभारी प्रो. रामेश्वर राय की उपस्थिति में हस्ताक्षर के 22-23वें संयुक्तांक का लोकार्पण किया। प्रख्यात कवि नीलेश रघुवंशी की हस्तलिपि में कुछ कविताओं सहित इस अंक में ‘घर’ विषयक कविताओं का एक चयन मुख्य आकर्षण है। इससे पहले विभाग प्रभारी प्रो. रामेश्वर राय ने अतिथियों का औपचारिक स्वागत कर, भारतेंदु हरिश्चन्द्र के नाटक ‘प्रेमजोगिनी’ के उदाहरण के माध्यम से पत्रकारिता और साहित्य के बीच के संबंध को स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि पत्रकारिता में साहित्य आ जाए तो पत्रकारिता अधिक मानवीय हो जाती है और साहित्य में पत्रकारिता के तत्वों की अधिकता हो जाए तो साहित्य अधिक सूचनाखोर और तात्कालिक हो जाती है।
कार्यक्रम की शुरुआत में हिंदी साहित्य सभा की संयोजक दिशा ग्रोवर ने अतिथियों का विस्तृत परिचय दिया। कार्यक्रम के अंत में द्वितीय वर्ष के छात्र कमल नारायण ने कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों के साथ कार्यक्रम में शामिल विद्यार्थियों, शोधार्थियों एवं शिक्षकों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने किया। कार्यक्रम में विभाग के प्राध्यापक प्रो. हरींद्र कुमार, डॉ अभय रंजन, डॉ विमलेंदु तीर्थंकर, डॉ. पल्लव, डॉ. अरविंद संबल एवं श्री नौशाद अली सहित परास्नातक एवं शोध के विद्यार्थी भी उपस्थित रहे। इस अवसर पर ‘रचयिता’ समूह द्वारा लगाई गई साहित्यिक पत्रिका प्रदर्शनी को पाठकों द्वारा भरपूर सराहना मिली।
रिपोर्ट – श्रेयस
मीडिया प्रभारी, हिन्दी साहित्य सभा
हिन्दू कालेज