भारत देश तीन-त्यौहारों, मेलों, उत्सवों एवं विभिन्न पर्वों का देश है। यहां पर विभिन्न धर्मों के लोग निवास करते हैं और विभिन्न प्रकार के धार्मिक एवं सामाजिक त्यौहार मनाये जाने की परम्परा रही है। सभी अपने-अपने पर्वों को धार्मिक परम्परा के अनुसार मनाते हैं तथा एक-दूसरे के पर्वों में सौहार्द्र के साथ शामिल होते हैं।
धार्मिक मेलों की श्रेणी में भारत की द्वितीय काशी के नाम से विख्यात बूंदी नगर अपनी स्थापना के समय से ही विद्वानों, वीरों और संतों के आश्रय की त्रिवेणी रही है। हर मोड़ पर बल खाती, अंगडाईयां लेती अरावली की तलहटी में बसी बूंदी जिसने अपने विशाल वक्ष में शोर्य व जमीन की मान की रक्षा के लिए प्राणों को हथेली पर रखकर झूमने वाले वीरों की अमर गाथाएं छुपा रखी हैं। प्रसिद्ध पुष्कर मेले की भव्यता के समकक्ष ही बूंदी जिले के केशवराय पाटन में भी कार्तिक माह में कार्तिक मेले का भव्य आयोजन होता है। हाड़ौती अंचल में विविध प्रसंगों में बूंदी जिला महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
चम्बल नदी के तट पर बने केशवराय पाटन भगवान के मंदिर की ऊंचाई का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह मंदिर मीलों दूर से ही नजर आने लगता है। इसके एक और चम्बल की अथाह गहराई है और दूसरी और मंदिर की आकाश को छू लेने वाली बनावट का बहुत ही सुन्दर, मनोहारी और मन को लुभाने वाला दृश्य है। नदी तट से 59 सीढ़ियां चढने पर मुख्य मंदिर आता है। मंदिर में केशवराय भगवान की भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित है। पृष्ट भाग के एक अन्य छोटे मंदिर में भी चारभुजाजी की मूर्ति है। ऐसी कथा है कि भ्रांतिदेव ने नदी में पडी हुई इन मूर्तियों को खोजकर नदी तट पर एक मंदिर में स्थापित किया। मंदिर के चारों तरफ विशाल परिसर में भगवान गणेश, शेषनाग, अष्टभुजा दुर्ग, सूर्य और गंगा आदि के मंदिर हैं। इस मंदिर का निर्माण बूंदी नरेश छत्रासाल सिंह ने करवाया था।
ऐसी कहावत है कि महर्षि परसराम जी ने पृथ्वी से 21 शरशमैयों का विनाश करने के पश्चात इस भूमि पर कठोर तपस्या और यज्ञ किये थे। पाण्डवों की गुफा, उनके द्वारा स्थापित पंच शिवलिंग, हनुमान मंदिर, अंजनि मंदिर व यज्ञसाला, वराह मंदिर इस पावन भूमि के अन्य पवित्रा स्थल हैं। इस पवित्रा स्थल के मध्य श्रृद्धालुओं की रंग-बिरंगी छटा, आपाधापी और सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक आस्था कुल मिलाकर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर केशवराय पाटन की मोहक छटा न केवल धार्मिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण है बल्कि इसके साथ परम्परा की मर्यादा भी जुड़ी है और समाज की नैतिक निष्ठाएं भी।
भारत के विभिन्न धार्मिक स्थलों की तरह ही हाड़ौती अंचल में भी कार्तिक माह में सुबह जल्दी ही स्नान करने की प्रथा प्रचलित है। पौ फटने (अमृत बेला) के समय लोग अपने बिस्तर छोड़कर कार्तिक स्नान के लिए अपने गांव के निकट बहने वाली नदी या कुए-बावड़ियों की और चल देते हैं। वहां पर स्नान करके लौटते वक्त महिलाएं एवं बालिकाएं मधुर भजनों के साथ अपने निकटस्थ मंदिर पर पहुंचती है और वहां पर भगवान की पूर्जा अर्चना कर धार्मिक भजन गाये जाते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा महत्व
कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे। इसलिए इस दिन देवता अपनी प्रसन्नता को दर्शाने के लिए गंगा घाट पर आकर दीपक जलाते हैं। इसी कारण से इस दिन को देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन कृतिका नक्षत्र में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है। इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। मान्यता यह भी है कि इस दिन पूरे दिन व्रत रखकर रात्रि में वृषदान यानी बछड़ा दान करने से शिवपद की प्राप्ति होती है जो व्यक्ति इस दिन उपवास करके भगवान भोलेनाथ का भजन और गुणगान करता है उसे अग्निष्टोम नामक यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
मान्यता है कि इस दिन ही भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था इस पूर्णिमा को महाकार्तिकी भी कहा गया है। मान्यता यह भी है कि इस दिन भगवान विष्णु चर्तुमास की निद्रा से जागते हैं और चतुर्दशी के दिन भगवान शिव और सभी देवी देवता काशी में आकर दीप जलाते हैं। इसी कारण से काशी में इस दिन दीपदान का अधिक महत्त्व माना गया है।
कार्तिक पूर्णिमा विधान
कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीप दान, हवन, यज्ञ करने से सांसारिक पाप और ताप का शमन होता है अन्न, धन एव वस्त्र दान का बहुत महत्व बताया गया है इस दिन जो भी आप दान करते हैं उसका आपको कई गुणा लाभ मिलता है। मान्यता है कि जो भी इस दिन दान करते हैं वह स्वर्ग में संरक्षित रहता है जो मृत्यु लोक त्यागने के बाद स्वर्ग में दान करने वाले को प्राप्त होता है। शास्त्रों में वर्णित है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी व सरोवर एवं धर्म स्थान में जैसे, गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरूक्षेत्र, अयोध्या, काशी में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। कार्तिक पूर्णिमा का दिन सिख सम्प्रदाय के लोगों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था। सिख सम्प्रदाय को मानने वाले सुबह स्नान कर गुरूद्वारों में जाकर गुरूवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताये रास्ते पर चलने की सौगंध लेते है।
कार्तिक स्नान करने वाले महिला-पुरूष, बालक-बालिकाएं इस व्रत को पूरे एक माह तक नियमित रूप से करते हैं और हर रोज महिलाएं व बालिकाएं मधुर भजनों के साथ मंदिर पहुंचती तथा भगवान की आरती की जाती है। कार्तिक पूर्णिमा का दिन इस व्रतोत्सव का अखिरी दिवस होता है और इस दिन कार्तिक स्नान करने वाले सभी स्त्राी-पुरूष एवं श्रद्धालुजन अनेक पवित्रा स्थानों पर पूर्णिमा का स्नान करने जाते हैं। पुण्य स्नान के लिए हाडौती में अनेक धार्मिक स्थल हैं, जहां मेले लगते हैं। इनमें केशवराय पाटन (बूंदी), झालरापाटन (झालावाड़) के मेले प्रमुख हैं।
हाड़ौती में केशवराय पाटन का नाम ऐसे पवित्र तीर्थों तथा आंचलिक मेलों में सबसे उपर आता है। यहां कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला मेला लगभग 15 दिन तक चलता है। इस मेले में बड़ी तादाद में गाय, बैल, भैंस एवं घोड़े आदि जानवरों की खरीद फरोख्त हेतु काश्तकार आते हैं। हालांकि अब आधुनिक समय में कृषि यंत्रों की आसान उपलब्धता एवं समय की बचत के कारण बैलों का क्रय-विक्रय कम होने लगा है।
व्रत के संबंध में धारणा
जिन्होंने कार्तिक स्नान पूरे माह तक नियमित किया है एवं व्रत रखा है, इस व्रत का खण्डन हुआ है या नहीं इसका पता लगाने के लिए सभी महिलाएं-पुरूष घी का दीपक जलाकर पत्तल अथवा दोने में रखकर नदी में छोडते हैं। जिसका दीपक नदी में तैरता हुआ जाता है तो माना जाता है कि इसने व्रत खण्डित नहीं किया और जिसका दीपक नदी में छोडते ही डूब जाता है तो ऐसा माना जाता है कि उसने व्रत को खण्डित कर दिया है। यह दृश्य बहुत ही मनोहारी एवं आकर्षक होता है। उस समय जिनका दीपक पानी में डूब जाता है उनकी खूब हंसी-खिल्ली उड़ाई जाती है और जिनका दीपक तैर जाता है वह लोग समझते हैं कि मैनें पूरी तरह से नियमों का पालन करते हुए व्रत किया है और वह आनन्दित होते हैं।
केशवराय पाटन में कार्तिक पूर्णिमा के पवित्रा स्नान के लिए दूर-दराज से लोग बड़ी तादाद में पहुंचते हैं। यहां लगभग सभी पूर्णिमा के एक दिन पहले पहुंच जाते हैं ताकि पूर्णिमा के दिन प्रातः वहां ही स्नान किया जाये। साथ ही जल्दी ही केशवराय भगवान के दर्शन किये जा सकें और भीड़ से बचा जा सके। आसपास से आने वाले ग्रामीणजन यहां भोजन बनाते हैं, ब्राह्मणों को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा देते हैं।
बूंदी जिले के ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल
छोटी काशी के नाम से विख्यात बूंदी नगर अपनी स्थापना के समय से ही विद्वानों, वीरों और संतों के आश्रय की त्रिवेणी रही है। सम्पूर्ण बूंदी जिला अनेक दिव्य तीर्थों से परिपूर्ण है। बूंदी राजमहल, बूंदी का किला, चौरासी खम्भों की छतरी, रानीजी की बावडी, क्षारबाग, शिकार बुर्ज, जैत सागर, फूलसागर, नवल सागर, हिण्डोली का तालाब, बांसी दुगारी, रामेश्वर नाला, भीमलत, केशवराय पाटन, खटकड महादेव, बूंदी चित्राशैली, चौगान दरवाजा, नागर-सागर कुण्ड, धाभाईयों का कुण्ड, गेण्डोली (चांचोड़ा के बालाजी) आदि प्रमुख हैं। यहां पर अरावली पर्वत श्रृखलाएं भी अवस्थित हैं।
केशवराय पाटन मंदिर एवं आसपास के सभी स्थलों जीर्णोद्धार किया जाकर काफी सारे विकास कार्य किये गये हैं। सौन्दर्यकरण की वजह से मंदिर और भी मनोहारी लगने लगा है। मेला स्थल को भी विकसित किया गया है। मंदिर के समीप चम्बल नदी में नाव से अठखेलियां करने का अवसर भी मिलता है। एक तरफ आकाश को छू लेने वाला रोशनी में नहाते हुए भव्य मंदिर, मेले में एकत्रित जनसमूह और समीप ही चम्बल नदी में नावों की अठखेलियां, समस्त घाटों पर स्नान करते महिला-पुरूषों की भीड आनन्दित कर देने वाला दृश्य प्रस्तुत करते हैं। मेले में खरीददारी के साथ-साथ खाने-पानी की दुकानों, मनोरंजन की भरपूर व्यवस्था रहती है।
कार्तिक पूर्णिमा की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस था जिसके तीन पुत्र थे तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिक ने तारकासुर का वध किया। अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए। तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की। ब्रह्मजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो। तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा। तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके। एक हज़ार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं, और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया। तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया। तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए। इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया। इस दिव्य रथ की हर एक चीज़ देवताओं से बनीं। चंद्रमा और सूर्य से पहिए बने। इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के घोड़े बनें। हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बनें। भगवान शिव खुद बाण बनें और बाण की नोक बने अग्निदेव। इस दिव्य रथ पर सवार हुए खुद भगवान शिव। भगवानों से बनें इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया। इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा। यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा नाम से भी जाना जाने लगा।
केशवराय पाटन के लिए रेल व बस दोनों ही मार्गों से पहुंचा जा सकता है। केशवराय पाटन बूंदी जिले का प्रमुख कस्बा एवं तहसील मुख्यालय है। इस बार कार्तिक पूर्णिमा 19 नवम्बर को है।
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संपर्क
(राजेन्द्र सिंह हाड़ा)
34 गणपति आवास कॉलोनी
रेल्वे ओवरब्रिज के पास बूंदी रोड़, कोटा
मो. 9460523489