भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा अपने आप में कई रोचक और रहस्यमयी तथ्य समाए हुए हैं। रथ यात्रा का कार्य बसंत पंचमी से शुरू किया जाता है। बसंत पंचमी के दिन वृक्ष की लकड़ी का चुनाव करने के लिए कुछ विशेष शिल्पकारों का चयन किया जाता है। जिन्हें महाराणा कहा जाता है।
आठ तरह के शिल्पकार इन रथों का निर्माण करते हैं। इन्हें यह रथ निर्माण का ज्ञान अपने पूर्वजों से प्राप्त हुआ है। रथ बनाने वाले कारीगरों को विश्वकर्मा सेवक कहा जाता है। तीन रथों के लिए तीन मुख्य विश्वकर्मा नियुक्त किए जाते हैं। रथ का निर्माण नारियल और नीम के पेड़ की लकडी से किया जाता है। इस लकड़ी का चयन करने के लिए दसपल्ला जिले के जंगलों में जाना पड़ता है। पेड़ों को काटने से पहले उस गांव की देवी की पूजा की जाती है। तभी लकड़ियां पुरी के मंदिर में लाई जाती हैं। रथ बनाने का कार्य अक्षय तृतीया से किया जाता है। उसी दिन से चंदन यात्रा भी शुरू की जाती है। कटे हुए तीन तनों को मंदिर में रखा जाता है। उसके बाद मंत्रोच्चार के साथ उनका पूजन किया जाता है। और उन पर भगवान जगन्नाथ जी पर चढ़ाई गई तीन मालाएं डाली जाती हैं।
एक छोटे से यज्ञ के बाद चांदी की कुल्हाड़ी से तीनों लकड़ियों को सांकेतिक तौर पर काटा जाता है। इस संपूर्ण विधि के बाद रथ का निर्माण कार्य आरंभ होता है। 200 शिल्पकार रथ निर्माण का कार्य करते हैं। जहां रथों का निर्माण किया जाता है, उस स्थान को रथखला कहते हैं। उसे नारियल के पत्तों और बांस से तैयार किया जाता है। इस विशेष पंडाल में किसी भी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित होता है।
बलभद्र जी के रथ का नाम तालध्वज है। रथ पर महादेवी जी का प्रतीक होता है। इसके रक्षक वासुदेव और सारथी मातली हैं। रथ के ध्वज को उनानी कहते हैं। यह रथ 763 लकड़ी के टुकड़ों से बना है। रथ की ऊंचाई 13.2 मीटर है, और यह रथ 14 पहियों वाला होता है। इस में लाल और हरे रंग के कपड़े का उपयोग किया जाता है। रथ के अश्व का रंग नीला होता है। इस रथ के अश्व के नाम है त्रिब्रा, घोरा, दीर्घशर्मा, एवं स्वर्णनावा।
देवी सुभद्रा के रथ का नाम देव दलन है। इस रथ के ऊपर देवी दुर्गा का प्रतीक होता है। इस रथ की रक्षक जय दुर्गा है, एवं सारथी अर्जुन है। इस रथ के ध्वज को नदंबिक कहा जाता है। इस रथ के अश्व है रोचिक, मोचिक, जीता व अपराजिता। इस रथ को खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचूड़ा कहा जाता है। यह रथ 12.9 मीटर ऊंचा है, और इस रथ में 12 पहिए हैं। इस रथ की सजावट में लाल एवं काले कपड़े का उपयोग किया जाता है। इस रथ को बनाने के लिए 593 लकड़ी के टुकड़ों का उपयोग किया जाता है। इस रथ के अश्व भूरे रंग के हैं।
श्री जगन्नाथ जी के रथ का नाम गरुड़ध्वज, कपिलध्वज या नंदीघोष है।
इस रथ में 16 पहिए हैं, तथा यह रथ 13.5 मीटर ऊंचा है। इस रथ के अश्व का नाम शंख, बलाहक, श्वेत एवं हरिदश्व है। यह अश्व श्वेत रंग के होते हैं। इस रथ के सारथी का नाम दारुक है तथा इस रथ के रक्षक गरूड़ है। इस रथ के ध्वज को त्रिलोक्यवाहिनी कहा जाता है। इस रथ को खींचने वाली रस्सी को शंख चूङ कहा जाता है। इस रथ की सजावट में लाल एवं पीले वस्त्र का उपयोग किया जाता है। इस रथ के निर्माण कार्य में 832 लकड़ी के टुकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है।
रथ यात्रा का महोत्सव 10 दिनों का होता है जो शुक्ल पक्ष के 11वें दिन समाप्त होता है। इस महोत्सव में देवों की प्रतिमाओं को रथों में बैठाया जाता है, जिस प्रक्रिया को महेंद्र महोत्सव कहा जाता है। इस महोत्सव के दौरान जगन्नाथ पुरी उड़ीसा में लाखों की संख्या में भक्त एकत्रित होते हैं जो इस महा आयोजन का हिस्सा बनना चाहते हैं। इस यात्रा में भगवान श्रीकृष्ण अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथों में बैठकर गुंडिचा मंदिर पहुंचते हैं। कुछ लोगों का यह मानना है कि श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा ने अपने भाइयों से नगर भ्रमण की इच्छा व्यक्त की थी।
तब श्री कृष्ण और बलराम अपनी बहन सुभद्रा के साथ रथों पर सवार होकर नगर भ्रमण को निकले थे। वहीं कुछ लोग उन लोगों का यह भी मानना है कि गुंडिचा मंदिर में स्थापित देवी भगवान श्री कृष्ण की मौसी है जो तीनों को अपने घर आने का निमंत्रण देती है। इसीलिए श्री कृष्ण बलराम और उनकी बहन सुभद्रा अपनी मौसी के घर रहने के लिए जाते हैं। स्कंद पुराण में कहा जाता है कि जो व्यक्ति रथ यात्रा में शामिल होकर गुंडिचा नगर तक जाता है वह जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।
इस वर्ष रथ यात्रा का आयोजन आज 12 जुलाई 2021 को पुरी उड़ीसा में किया जा रहा है।
साभार- https://www.facebook.com/avanishd100/ से