सिर्फ सहमा है/ चुप रहने की कोशिश करता आदमी /कब्र मे जाने से पहले तेजी से चुप हो रहा हमेशा के लिये/
फिर भी आदत से मजबूर/ बांट रहा मौत का पैगाम चुप होने से पहले/ पेड़/नदी/ पंछी/ हवा/ झरने/ समन्दर/ चुप नहीं/
खौफजदा नहीँ/ आदमी सचमुच खौफ में है.
डर आदमी का आदमी से /पैदा किया आदमी ने ही / आदमी के लिये / अब डर डर कर मर रहा है / जीने के लिए /
खुद से डरकर कहां जायेगा /जब डर लगने लगा है अपनी ही परछाई से/ इस कठिन समय में/
डर के कमरे के दरवाजे पर/ दस्तक देता है आदमी.
बहुत दिनो के बाद / उतरी गौरेय्या आंगन में बेखौफ /एक खौफजदा के/ खिड़की से बेधड़क घुस आया /
हवा का ताजा झोंका/ अब मास्क लगाने का कारण बदल गया है/
इन दिनों सुबह सुबह कॉल बेल जागने की वजह नहीं/ पंछियों का कलरव है/
आकाश नीला झक दिखता है/ सूरज की किरणें ज्यादा सुनहली हैं/
ओजोन परत की तुर पाई में जुटी है प्रकृति/ नदियों में फेंके गये सिक्के अब साफ दिखने लगे हैं/
हैरत है जंगल /समन्दर के बहुतेरे वासी बेखौफ करने लगे हैं विचरण/ अपनी पुरानी रिहाइश की तलाश में /
रात में तारे गिन भी सकती हैं आंखे / चांद छत पर आया मालूम होता है हाल पूछने/
शुक्र कितना चमकदार/ जैसे उम्मीद का यही सितारा हो आदमी के लिए / इन कठिन दिनो में.
डर कैसा करोना से / माना तन से तन की दूरी है जरुरी
/पर मन से मन की दूरी क्यों/ इस कठिन समय में / मकान को घर बनाना है जरुरी /
माँ से जी भर बात कर / पिता को सुन/ भाई से कह सुन/ बच्चों को पढ़/ उन्हें गढ़ / पत्नी से नेह कर/
प्रेम का दीप रख घर के आले में/ जब तक घर में है/ सुरक्षित है/ बाहर के खतरे कम होने तक .
प्रतिरोध का समय है/विचलित होता मन/ बार बार होता है सशक्त्त /
तन निरंतर प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने में मशगूल / धैर्य रखने का वक्त है/
खुद को अलग थलग / घर में रखने का वक्त है/ जीने के लिए/ बाहर आजादी है/
तफरी के लिए मन ललचाता है/ पर मौत अदृश्य/ मंडरा रही निरंतर
/जिन्दगी से आजादी के लिए/ बेहतर है थमना/
अपना घर/ अपना ही होता है/ भले ही कैसा भी हो/ कवच ही है.
(लेखक छत्तीसगढ़ में पदस्थ वरिष्ठ आईएएस अधिकारी हैं व प्रमुख सचिव के रूप में कार्यरत हैं)