केरल की विश्वव्यापी और समेकित संस्कृति है। वह भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। केरल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत आर्य और द्रविड़ संस्कृतियों का मेल है जो भारत के अन्य हिस्सों और विदेशी प्रभावों के तहत सहस्राब्दियों में विकसित हुई है। केरल की संस्कृति राज्य की सहिष्णु भावना का जीता-जागता उदाहरण है।
यहां सदियों से विभिन्न समुदाय और धार्मिक समूह पूरी समरसता से रहते हैं और इन सब ने मिल-जुलकर सामाजिक प्रक्रियाओं के तहत समृद्ध संस्कृति का विकास किया है। यहां पारम्परिक और आधुनिकता के बीच ताल-मेल के जरिये लोग एक-दूसरे के साथ सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं, जो अनेकता में एकता का जीवंत उदाहरण है।
केरल में आधी से अधिक आबादी हिंदू धर्म का पालन करती हैं, और उसके बाद इस्लाम और ईसाई धर्म को मानने वाले लोग हैं। भारत के अन्य स्थानों की तुलना में केरल में साम्प्रदायिकता और वर्गवाद कम है। केरल भारत के कुछ ऐसे स्थानों में आता है जहां विभिन्न खाद्य पदार्थों के मद्देनजर कोई साम्प्रदायिक दुराव नहीं है। सभी धर्मों के लोग समान आहार वाले हैं। राज्य में मुख्य भोजन चावल है, जिसके साथ शाकाहार और मांसाहार व्यंजन शामिल हैं। केरल (केरलम्) नाम केरा (नारियल का वृक्ष) + अलम (स्थान) से बना है।
अन्य राज्यों की तरह केरल में शहरी और ग्रामीण विभाजन नजर नहीं आता। केरल के लोग न सिर्फ एक दूसरे से एकरस हैं, बल्कि ये सब प्रकृति के प्रति जागरूक हैं और ‘प्रदूषण से नुकसान, प्रकृति का संरक्षण’ के सिद्धांत का पालन करते हुए पर्यावरण को सुरक्षित बनाने और उसके रख-रखाव का प्रयास करते हैं। यहां के लोग शिक्षित और बहुत सभ्य हैं तथा उच्चस्तरीय राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से सावधान एवं जागरूक है तथा एक नागरिक होने के नाते देश के प्रति अपने कर्तव्यों को समझते हैं। आमतौर पर यहां के लोगों को पढ़ने का बहुत शौक है और वे मीडिया, खासतौर से अखबारों को पढ़ने में बहुत रुचि रखते हैं।
केरल में लोकतंत्र अपनी पराकाष्ठा पर है क्योंकि यहां सत्ता का विकेन्द्रीकरण मौजूद है, यहां का बुनियादी ढांचा मजबूत है और मैदानी स्तर पर काम होता है। बजट का 40 प्रतिशत हिस्सा राज्य सरकार द्वारा ग्राम पंचायतों को दिया जाता है ताकि वे विकास कार्य के लिए स्वयं निर्णय कर सकें। इन विकास गतिविधियों के सीधे वित्तपोषण में सांसदों और विधायकों की कोई भूमिका नहीं होती तथा सारे निर्णय स्थानीय स्तर पर ग्राम पंचायतों द्वारा किये जाते है। भारत के अन्य राज्यों में केरल के विकेन्द्रीकरण का बहुत सम्मान किया जाता है। स्थानीय निकाय क्षेत्र के विकास में अहम भूमिका निभाते है और पारदर्शी तरीके से जनता की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। इससे न केवल जनप्रतिनिधि जिम्मेदार और उत्तरदायी होते हैं, बल्कि वे जनता के कामों के प्रति सावधानी से कार्यवाही करते हैं। केरल स्थानीय प्रशासन संस्थान (केआईएलए), त्रिशूर के नेतृत्व में क्षमता निर्माण गतिविधियां शुरू की गई हैं। यह इस संबंध में नोडल संस्थान है। केरल में त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था काम करती है। जहां 14 जिलों में 1209 स्थानीय निकाय संस्थान मौजूद हैं, जिनके तहत ग्रामीण इलाकों के लिए 14 जिला पंचायतें, 152 ब्लॉक पंचायतें और 978 ग्राम पंचायतें तथा शहरी इलाकों के लिए 60 नगर परिषदें और 5 नगर-निगम चल रहे हैं।
केरल में काली मिर्च और प्राकृतिक रबड़ का उत्पादन होता है जो राष्ट्रीय आय में अहम योगदान करते हैं। कृषि क्षेत्र में नारियल, चाय, कॉफी, काजू और मसाले महत्वूपर्ण हैं। केरल में उत्पादित होने वाले मसालों में काली मिर्च, लौंग, छोटी इलायची, जायफल, जावित्री, दालचीनी, वनीला शामिल हैं। केरल का समुद्री किनारा 595 किलोमीटर लम्बा है। यहां उष्णकटिबंधीय जलवायु है और इसे ‘मसालों का बाग’ या ‘भारत का मसालों का बाग’ कहा जाता है। कोच्चि स्थित नारियल विकास बोर्ड भारत को विश्व में अग्रणी नारियल उत्पादक देश और स्पाइसेज बोर्ड इंडिया भारत को मसालों के व्यापार में अग्रणी बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
1986 में केरल सरकार ने पर्यटन को महत्वपूर्ण उद्योग के रूप में घोषित किया और ऐसा करने वाला वह देश का पहला राज्य था। केरल विभिन्न ई-गवर्नेंस पहलों को लागू करने वाला भी पहला राज्य है। 1991 में केरल को देश में पहले पूर्ण साक्षर राज्य की मान्यता प्राप्त हुई है, हालांकि उस समय प्रभावी साक्षरता दर केवल 90 प्रतिशत थी। 2011 की जनगणना के अनुसार 74.04 प्रतिशत की राष्ट्रीय साक्षरता दर की तुलना में केरल में 93.91 प्रतिशत साक्षरता दर है।
केरल ने सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। यहां सभी 14 जिलों में 100 प्रतिशत मोबाइल सघनता, 75 प्रतिशत ई-साक्षरता, अधिकतम डिजिटल बैंकिंग, ब्रॉडबैंड कनेक्शन, ई-जिला परियोजना और बैंक खाते आधार कार्ड से जुड़े हुये है, जिसकी वजह से डिजिटल केरल के लिए मजबूत बुनियाद पड़ी है। इन संकेतों के आधार पर केरल को पूर्ण डिजिटल राज्य घोषित करने की घोषणा की गई है।
सभी पंचायत में आयुर्वेदिक उपचार केन्द्रों के शुरूआत के साथ ही केरल आयुर्वेद राज्य बनने के लिए तैयार है। 77 नये स्थायी केन्द्र शुरू किये गये और 68 आयुर्वेद अस्पतालों का जीर्णोद्धार किया गया। 110 होम्योपैथिक डिस्पेंसरी शुरू की हैं। केरल में खाद्य वस्तुओं गुणवत्ता मानदंड की है और यहां की ‘अच्छे स्वास्थ्य के लिये भोजन बचायें’ परियोजना देश के लिये एक आदर्श है। सूचना शक्ति है। केरल में लोगों को लगभग सभी विषयों की ताजा जानकारी है। केरल ने वास्तव में राह दिखायी है, यह विकास का प्रकाश स्तंभ है। केरल में विकास के मजबूत अवसर है तथा सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त समाज है।
‘ईश्वर का अपना देश’ के नाम से प्रसिद्ध केरल को बेटियों से प्रेम करने की भूमि के रूप में भी कहा जा सकता है। यहां बेटों के मुकाबले बेटियों की संख्या अधिक है और 2011 की जनगणना के अनुसार 1000 पुरूषों के मुकाबले 1084 महिलाओं के साथ ही यह देश का एकमात्र राज्य है, जहां सबसे उच्च लिंग अनुपात है। केरल में बालिका का जन्म पवित्र और ईश्वर का उपहार माना जाता है। असल में, 22 जनवरी, 2015 को हरियाणा के एतिहासिक स्थान पानीपत से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किये गये ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ (बीबीबीपी) अभियान के सपने को साकार करने में केरल वास्तविक उदाहरण है।
भारत के प्रमुख राज्य के रूप में केरल ने विशेष रूप से प्रजातांत्रिक प्रणाली की सुरक्षा और उसको मजबूत करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है और इसकी बुनियाद धर्म निरपेक्षता, लैंगिक समानता और महिलाओं तथा बच्चों के सशक्तिकरण पर आधारित है। राज्य में सबसे उच्च 93.91 प्रतिशत साक्षरता दर और 74 वर्ष उच्च जीवन प्रत्याशा है। सबसे अधिक मीडिया की उपस्थिति इस राज्य में है, यहां से 9 विभिन्न भाषाओं में समाचार पत्र प्रकाशित होते हैं, जिनमें से अधिकतर अंग्रेजी और मलयालम भाषा के हैं।
पूर्ववर्ती मातृ प्रभुत्व प्रणाली के चलते केरल में महिलाओं की उच्च सामाजिक स्थिति है। देश के अन्य हिस्सों में बालक को प्राथमिकता देने के मुकाबले केरल में बालिका के जन्म को बोझ नहीं समझा जाता, जिसके कारण यह राज्य देशभर में लैंगिक अनुपात में समानता लाने में भूमिका निभा सकता है। केरल में लगभग सभी जाति, धर्म, सम्प्रदाय या क्षेत्र में लड़कियों की जन्म और जीवित रहने की दर के साथ ही बालिका की शिक्षा को अधिक महत्व दिया जाता है।
अब तक केरल इकलौता ऐसा राज्य है, जहां पर ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान सबसे आगे है। केरल ने असल में काफी तरक्की की है और यह सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास के सभी क्षेत्रों में नजर आता है।
संयुक्त राष्ट्र के बच्चों के लिए कोष (यूनिसेफ) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने फार्मूला दूध की तुलना में माताओं द्वारा दूध पिलाने को प्रभावी रूप से बढ़ावा देने के लिए केरल को दुनिया का पहला ‘शिशु अनुकूल राज्य’ का दर्जा दिया है। 95 प्रतिशत से अधिक बच्चों का जन्म अस्पताल में होता है और इस राज्य में सबसे कम नवजात शिशु मृत्युदर है। केरल को ‘संस्थागत प्रसव कराने’ के लिए पहला स्थान दिया गया है। यहां पर 100 प्रतिशत जन्म चिकित्सा सुविधाओं में होता है।
केरल की ‘शानदार उपलब्धि’ या विकास के केरल मॉडल को देश के अन्य राज्यों द्वारा अपनाने की आवश्यकता है। यह विश्वास है कि जनता की भागीदारी से केरल देश के प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी होगा। केरल कई मायनों विशेष रूप से राज्य के बजट से 40 प्रतिशत निधि के जरिये मूल स्तर पर महिला सशक्तिकरण, उच्च साक्षरता दर और पंचायती राज संस्थानों की मजबूती के लिए देश का मॉडल राज्य है, जिससे दूसरे राज्यों को प्रेरणा लेनी चाहिए। हाल ही में सरकार द्वारा शुरू की गई विकास योजनाओं में केरल के लोग अपनी दिनचर्या के रूप में पहले से ही इन्हे अपना रहे हैं, जिन्हें देशभर के विभिन्न राज्यों के सभी वर्गों और क्षेत्रों में बड़े संतुलित प्रयास कर बढ़ावा दिया जा रहा है।
पवित्र सिंह, पत्र सूचना ब्यूरो, चंडीगढ़ में उपनिदेशक (मीडिया और संचार) है। उन्होंने चंडीगढ़ से केरल के लिए प्रेस दौरा किया।