अगर हमारी संस्कृति, परंपराएँ और अतीत का गौरव जीवित है तो हम अपनी जड़ों से भी जुड़े रह सकते हैं। मध्य प्रदेश शासन द्वारा मध्य प्रदेश में चार स्थानों से आदि गुरू शंकराचार्य को समर्पित एकात्म यात्रा से यही संदेश देने का प्रयास किया जा रहा है। एकात्म यात्रा 35 दिनों तक चलेगी जिसमे प्रमुख रूप से गाँव और शहर सम्मिलित होंगे. इन 35 दिनों के दौरान 140 जन संवाद कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जा रहा है। इसके साथ ही हर पड़ाव पर बच्चो के लिए चित्र कला प्रतियोगिता, और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे है।. जहां जहां से यात्रा निकलेगी वहां से धातु भी इक्कठा की जा रही है। 22 जनवरी 2018 को ओंकारेश्वर में यात्रा का समापन होगा, यहाँ प्रदेश भर में जनसहयोग से इकठ्ठी की गई धातु से 108 फीट ऊँची शंकराचार्य की प्रतिमा का निर्माण किया जाएगा।
मुंबई से आकर मध्य प्रदेश के निमाड़ के भीकनगाँव, ऊन, खरगोन और इनके आसपास के गाँवों में यात्रा में शामिल होना मेरे लिए एक अद्भुत अनुभव था। यात्रा के संयोजक एवं मध्य प्रदेश जनअभियान परिषद के उपाध्यक्ष श्री प्रदीप पाण्डेय के साथ इस यात्रा के रोमांच, गाँव के लोगों का उत्साह, उनकी भक्ति भावना और सहज सरल श्रध्दा को साक्षात देखना अपने आप में रोमांचक था।
यह यात्रा जहाँ से भी गुजरती गाँव के लोग पूरे उत्साह, श्रध्दा और भक्ति के साथ यात्रा का नेतृत्व कर रहे बीकानेर के संत श्री सोमगिरी जी महाराज का स्वागत करते, महिलाएँ श्रध्दा से सिर पर कलश लेकर यात्रा की अगवानी करती और फिर ये कलश शंकराचार्य की अष्ट धातु प्रतिमा के लिए समर्पित कर दिए जाते। यह क्रम हर गाँव और शहर में अनवरत चल रहा है। प्रतिदिन हजारों महिलाएँ और गाँव के लोग अपनी-अपनी श्रध्दा के अऩुसार तांबे के कलश शंकराचार्य की प्रतिमा के लिए समर्पित कर रहे हैं।
यात्रा के संयोजक श्री प्रदीप पाण्डेय बताते हैं कि एकात्म यात्रा के लिये चार दल बनाए गए हैं। यह यात्रा उन चार स्थानों से शुरु हुई है जहाँ शंकराचार्य अपने जीवनकाल में गए थे। ओंकारेश्वर, खण्डवा यात्रा दल का नेतृत्व संत स्वामी समवित् सोनगिरीजी कर रहे हैं। उज्जैन यात्रा दल का नेतृत्व संत स्वामी परमात्मानंद सरस्वती कर रहे हैं ओर समन्वयक राघवेन्द्र गौतम हैं। पचमठा, रीवा यात्रा दल का नेतृत्व संत स्वामी अखिलेश्वरानंद जी कर रहे हैं और समन्वयक शिव चौबे हैं और चौथी अमरकंटक यात्रा दल का नेतृत्व संत स्वामी हरि हरानंद जी कर रहे हैं एवं समन्वयक हैं डॉ. जितेन्द्र जामदार।
चार जगह से शुरु हुई इस यात्रा के चारों दलों द्वारा प्रतिदिन जनसंवाद कार्यक्रम का भी आयोजन किया जा रहा है, जिसके माध्यम से आम लोगों से सीधा संवाद कर राष्ट्र के निर्माण में शंकराचार्जी की भूमिका और उनके अद्वैत दर्शन के बारे में जानकारी दी जा रही है। एकात्म यात्रा के 35 दिनों में 140 जिला स्तरीय जनसंवाद आयोजित किये जाएंगे एकात्म यात्रा के आखिरी दिन 22 जनवरी 2018 को ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य जी की 108 फीट ऊंची अष्ट धातु की विशाल प्रतिमा का शिलान्यास किया जाएगा।
यह एकात्म यात्रा इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि आज के दौर में हम जिस तेजी से अपने अतीत के गौरव, राष्ट्र के निर्माण और बौध्द धर्म के व्यापक प्रचार प्रसार में सनातन हिन्दू धर्म के समक्ष उत्पन्न संकट का सामना अकेले शंकराचार्य ने जिस साहस, संकल्प और दूरदृष्टि से किया वह अपने आप में एक ऐतिहासिक घटना है।
हमारा शहरी समाज जिस तेजी से अपने अतीत के गौरव को भुलाने में लगा है उसके विपरीत ग्रामीण समाज ने आज भी अपने अतीत, सभ्यता, संस्कृति और गौरव से अपने आपको किस तरह जोड़ रखा है, इस यात्रा के दौरान यह साक्षात अनुभव हुआ। गाँव वासी भले ही शंकराचार्य के दर्शन को गहराई से न जानते और समझते हों लेकिन उन्हें इस बात का गहराई से एहसास है कि शंकराचार्य का इस राष्ट्र के नवनिर्माण में कितना अहम योगदान रहा है।
जनसंवाद में स्वामी समवेत् सोमेश्वर गिरी भी शंकराचार्य के जीवन और उनकी अध्यात्मिक उपलब्धियों को लेकर चर्चा कर आण लोगों को शंकराचार्य के व्यक्तित्व के उन अनजाने पहलुओँ से परिचित कराते हैं जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। जन संवाद में स्थानीय जन प्रतिनिधियों से लेकर समाज के सभी वर्गों के लोग शंकराचार्य के दर्शन से जुड़े विविध पहलुओँ पर आम नागरिकों से संवाद करते हैं तो जन संवाद और भी रोचक और सार्थक प्रतीत होने लगता है।
कुल मिलाकर इस यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि इसने शंकराचार्य को लेकर जनजागरण ही नहीं किया है बल्कि लोगों को शंकराचार्य की प्रतिमा के लिए धातु संग्रह में अपने अपने स्तर पर योगदान के लिए प्रेरित भी किया है। यह एकात्म यात्रा मध्य प्रदेश में एक तरह से अध्यात्मिक, धार्मिक, वैचारिक और सामाजिक समरसता के संदेश की वाहक बनकर लोगों में चेतना जगा रही है। यात्रा के मंच से आम लोगों को बेटी बचाओ से लेकर, पर्यावरण संरक्षण, सामुदायिकता की भावना, पारिवारिक जीवन मूल्यों के संदेश भी दिए जा रहे है, कुल मिलाकर इस यात्रा के माध्यम से जनजागरण का अभियान भी चल रहा है।
एकात्म यात्रा जिस शहर या गाँव में पहुँचती है वहाँ रात्रि विश्राम के पूर्व एकता यात्रा में शामिल 50 से अधिक सदस्य, स्थानीय कार्यकर्ता जब एक साथ भोजन करते हैं। गाँव के ही लोग एकात्म यात्रा से जुड़े सभी साथियों के लिए रातिर् विश्राम की वयवस्था करते है। अगले दिन सुबह 9 बजे यात्रा अलगे पड़ाव के लिए रवाना हो जाती है।