पहले संयुक्त परिवारों में एक इंसान ऐसा ज़रूर होता था जो हर बात पर हिंसा पर उतर आता था ( अब नई पीढ़ी ने ऐसे लोगों को झेलना बंद कर दिया है तो पलटकर ठोक देती है तो असहिष्णुता बोलकर चिल्लाया जा रहा है।)।
पूरा का पूरा घर उससे डरा – सहमा रहता था । सबसे अच्छा भोजन , सेवा , संसाधन सब उसे दिया जाता था ताकि उसका क्रोध न भड़के । लेकिन उसे भड़कना ही था तो भड़कता ही था ।कुछ़ नहीं तो खेलते हुए बच्चों को ही वो पकड़ कर पीट देता था कि हल्ला कर रहें हैं । तब भी क़ोई उसके व्यवहार पर अंगुली नहीं उठाता था , बच्चों को ही डांटा जाता था कि खेलने की जगह चुपचाप बैठ भी तो सकते थें ।
वो क़ोई काम भी नहीं करता था । अगर कहीं सारा दिन बैठकर ताश खेलकर गुजार दे तो भी लोग यही सोचकर खुश हो लेते थें कि आहा ! आज का दिन शांति से गुज़रा , उसने कहीं- किसी को मारा- पीटा नहीं । वो हर तरह से परिवार पर बोझ होता था । कितना भी ओवर पैम्परिंग के बाद वो गाँव – जवार में घूमकर रोना भी रोता था खासकर परिवार के दुश्मनों के पास । जिस घर से अभी- अभी बढ़ियां खा- पीकर निकला होगा उसी परिवार पर दुश्मन के घर से एक चुटकी खैनी पाकर अपने उसी परिवार प्रतिष्ठा को थूक रहा होगा।
चूँकि गाँव – जवार में परिवार का प्रतिष्ठा नहीं उछाले इसलिए लोग उसका सब अत्याचार सहकर भी उसे पुचकारने में लगे रहते थें। फ़िर उसे संभालने के लिए एक लड़की खोज़कर ब्याह कर दिया जाता था कि उसे संभाल सके । लड़की संभालेगी क्या , पति का डर दिखाकर वह बाघिन बनकर डराने लगती थी । उसके बाद उसके बच्चे भी डराने लगते थें। उसने ज़िन्दग़ी भर काम नहीं किया लेकिन प्रॉपर्टी में बाक़ी लोगों के तुलना में थोड़ा ज़्यादा हिस्सा ही लेकर अलग हो जाएगा ( क़ोई लड़ाई के डर से बोलेगा नहीं।)
अब बँटवारा के बाद भी उसका जब मन करेगा वो किसी के यहाँ से कुछ़ ले जाता है । बगीचा का सबसे अच्छा आम – जामुन- कटहल , तालाब का सबसे अच्छा मछली सब वो ले जाएगा । बाक़ी में बराबर – बराबर ( सबका प्राण कूहकेगा लेकिन मारपीट के डर से क़ोई कुछ नहीं बोलेगा ।)
मान लिजिए क़ोई सर पर बांस लेकर आ रहा है तो उसके आगे या पीछे जो आएगा वो खोदा ही जाएगा । अधिकतर लोग ये समझते है और थोड़ा खोदा भी जाए तो क़ोई बात नहीं , अपना रास्ता बनाकर आगे- पीछे, अगल- बगल हो लेते हैं । अब यही बांस उस व्यक्ति विशेष को लग जाए तो समझ जाइए कि वो व्यक्ति विशेष उस बांस ढ़ोने वाले को घायल करके ही छोड़ेगा भले ही बांस ढ़ोने वाले शख्स उसके हाथ जोड़े – पैर पड़े वो मारेगा ही ।
पंचायत (देश के संदर्भ में पत्रकार ) मारने वाले से नहीं पूछेगी कि भाई तुम बांस देखकर थोड़ा अगल- बगल एडजस्ट क्यों नहीं हो लिएं क्योंकि उसे भी उस बिगड़े हुए उत्पाती शख़्स से डर लगता है कि वहीं का वहीं पंच साहब को कूटकर उनका इज्जत उतार देगा। पंच साहब बांस वाले से कहेंगें कि उसे देखते ही अपने सर से बांस गायब क्यों नहीं कर दिया ? उसको रास्ता देने के लिए बगल वाले दलदल में कूद क्यों नहीं गएं ? अगली बार जब भी बांस काटकर ले आना हवा में उड़ते हुए ले आना क्योंकि धरती पर वो चलता है । बाक़ी लोग भले ही तकलीफ़ से मर जाए लेकिन किसी भी हाल में उसे गुस्सा नहीं आना चाहिए।
उसका गलत होना इतना नेचुरल हो जाता है कि क़ोई उस बारे में बात ही नहीं करता लेकिन उसके द्वारा प्रताड़ित शख्स पर ही हर बार बात होता है कि उस प्रताड़ित शख्स ने क्या गलती की कि उसका गुस्सा भड़क गया…
जानते हैं , ये इंसान जिससे सब क़ोई डरता रहा है और बचकर निकलता है वही ये जमाती जिहादी है…
वो थूक भी दे तो चुपचाप साफ़ कर लो , कुछ़ मत बोलो , उसे गुस्सा आ जाएगा……