पंजाब के सियालकोट मे सन् 1724 मे जन्में वीर हकीकत राय जन्म से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। उनके पिता भाई भागमल खत्री और माता गोरान थी। उनके नाना-नानी सिक्ख थे और वह सरदार किशन सिंह की बेटी दुर्गा लक्ष्मी देवी से बाल विवाहित थे ।
बालक हकीकत राय ने अपनी माँ के प्रभाव की वजह से शुरू से अपने जीवन में एक सिक्ख पंथ अपनाया। बालक हकीकत ने 5 वर्ष की आयु मे ही वेद, इतिहास तथा संस्कृत आदि विषय का पर्याप्त अध्ययन कर लिया था।
मुगल शासन के दौरान फारसी पढ़ना अनिवार्य था और सारा सरकारी काम काज भी फारसी में ही होता था। अधिकाशं बच्चे मौलवी से फारसी का अध्ययन करने के लिए मदरसों के साथ-साथ मस्जिदों में भी जाया करते थे।
बालक हकीकत को 10 वर्ष की आयु में फारसी पढ़ने के लिये मौलबी के पास मस्जिद भेजा गया। वहां उनके सभी साथी मुसलमान थे, जबकि वह ही केवल सिक्ख थे। वहां के मुसलमान छात्र वैदिक धर्म का मजाक उड़ाने के साथ-साथ उसके इष्ट देवताओं को अपशब्द भी कहते थे ।
बालक हकीकत उन सब के कुतर्को का प्रतिवाद करता और सब मुस्लिम छात्रों को वाद-विवाद मे पराजित कर देता। एक दिन मौलवी की अनुपस्थिति में मुस्लिम छात्रों ने हकीकत राय को दुर्गा माता को गाली देते हुए खूब मारा पीटा।
बाद मे मौलवी के आने पर उन्होने हकीकत की झुठी शिकायत कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दिया है।
यह बात सुन कर मौलवी बहुत नाराज हुऐ और उन्होंने बालक हकीकत राय की पिटाई शुरू कर दी। बालक हकीकत राय बेहोश हो कर गिर पड़े पर मौलवी का क्रोध शान्त हुआ। उसने हकीकत राय को सियालकोट शहर के काजी आमिर बेग, के सामने प्रस्तुत किया।
बालक के परिजनो के द्वारा लाख सही बात बताने के बाद भी काजी ने एक न सुनी और हकीकत राय को दोषी पाया। आमिर बेग के आदेश पर, बालक हकीकत राय को एक पेड़ पर पैर से लटका कर पीटा गया। उससे कहा गया कि वो मुसलमान बन जाए तो उसे माफ़ कर दिया जाएगा। लेकिन वह इस्लाम को गले लगाने के लिए सहमत नहीं हुआ।”
आख़िर क़ाज़ी आमिर बेग ने थक कर बालक को लाहौर प्रान्त के मुग़ल राज्यपाल जकारिया खान की अदालत में भेजा।
वही फ़ैसला सुनाया गया कि आपने बीबी फातिमा को अपशब्द कह कर मुसलमानों की भावनाओं को चोट पहुँचाई है। इस पाप के लिए आप को गंभीर सजा दी जानी चाहिए।लेकिन अगर आप इस्लाम को गले लगाले तो आपके पाप माफ़ किया
जा सकते है। ”
माँ गोरान ने बालक हकीकत राय से कहा “बेटा! कोई शक नहीं है कि तेरी मौत से मेरी एक बेटा खो जाएगा, लेकिन अपने धर्म को छोड़ देने से उसे एक भगोड़ा और विश्वासघाती बेटे की माँ बुलाया जाएगा”
भाई हकीकत राय को शहर काजी के आदेश पर आगे भी बहुत यातना दी गई पर बालक हकीकत इस्लाम को गले लगाने के लिए सहमत नहीं हुए।
बालक को सगे सम्बन्धियों ने समझाया कि तु मुसलमान बन जा कम कम जिन्दा तो रहेगा। किन्तु बालक अपने निश्चय पर अड़िग रहा और बंसत पंचमी के दिन 23 जनवरी 1735 ईस्वी को ज़ालिम शहर काजी के आदेश पर एक गाली के झूठे आरोप के कारण १० वर्ष के बालक हकीकत राय पर तेल डाल कर जिंदा जला दिया गया। फिर इनको अदजली अवस्था में जीवित ही कुत्तों को खिलाया गया।
इस प्राकर एक 10 वर्ष का बालक अपने धर्म और देश के लिये शहीद हो गया। वीर हकीकत राय को शत शत प्रणाम ।।
ईस्वी 1782 में अगर सिंह नाम के एक कवि ने बालक हकीकत राय की शहादत पर एक पंजाबी लोक गीत लिखा। महाराजा रणजीत सिंह के मन में बालक हकीकत राय के लिए एक सिक्ख शहीद के रूप में विशेष रूप से श्रद्धा थी।
बीसवीं सदी (1905-10) के पहले दशक में, तीन बंगाली लेखकों ने निबंध के माध्यम से हकीकत राय की शहादत की कथा को लोकप्रिय बनाया। आर्य समाज, ने हकीकत राय हिंदू धर्म के लिए गहरी वफादारी के एक नाटक धर्मवीर प्रस्तुत किया। इस कथा की मुद्रित प्रतियां नि:शुल्क वितरित की गयी।
1947 में भारत के विभाजन से पहले, हिंन्दु समाज बसंत पंचमी महोत्सव पर लाहौर में उनकी समाधि पर इकट्ठा होता था। सियालकोट में उनकी समाधि हिंन्दुओ के लिए भी पूजनीय स्थल थी और आज भी है।
विभाजन के बाद हकीकत राय के लिए समर्पित एक और समाधी होशियारपुर जिले के “ब्योली के बाबा भंण्डारी” में स्थित है। यहाँ पर बसंत पंचमी के दिन इकट्ठा हो कर हकीकत राय को श्रद्धा देते है।
गुरदासपुर जिले में, हकीकत राय को समर्पित एक मंदिर बटाला में स्थित है। इसी शहर में हकीकत राय की पत्नी सती लक्ष्मी देवी को समर्पित एक समाधि भी है।
भारत के कई इलाक़ों का नाम शहीद हकीकत राय के नाम पर रखा गया जहाँ विभाजन के शरणार्थियों बसे। इसका उदाहरण दिल्ली में स्थित हकीकत नगर है।
बसंत पंचमी के दिन ही उस वीर बालक हकीक़त राय को मुसलमान न बनने के कारण कत्ल कर दिया गया। वह शहीद हो गया। उसने बलिदान कर दिया लेकिन धर्म से डिगा नही।
आइए वीर हकीकत राय को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए अपने व अपनी मातृभूमि के स्वाभिमान व सम्मान की रक्षा का संकल्प लें ।