मुंबई या पुराने जमाने का बाँबे का जन जीवन वड़ा पाव के बिना अपने अस्तित्व और अस्मिता की कल्पना नहीं कर सकता है . यहाँ के मिल मज़दूरों और श्रमिकों का फ़ास्ट फ़ूड कब महानगर की पहचान बन गया इसका ठीक ठीक पता लगाना मुश्किल है . लेकिन आज की तारीख़ में चाहे अम्बानी बंधुओं जैसे बड़े व्यवसायी हों या फिर फ़िल्मी स्ट्रगलर तक इसके दीवाने हैं . महंगाई कितनी भी बढ़ गई हो लेकिन आज भी यह आम आदमी की पकड़ के अंदर है . किस गली किस सड़क या किस लोकल स्टेशन के पास का वड़ा पाव सबसे अच्छा है इसके बारे में ज़बरदस्त बहस चलती रहती है हर एक के दावे हैं और अपने अपने कारण हैं . लेकिन छबीलदास स्कूल दादर के पास के श्री कृष्ण वड़ा पाव के बारे में सबकी एक ही राय है : इस से अच्छा कोई नहीं .
वड़ा पाव भारत के कई और शहरों में बनाने की कोशिश की गई लेकिन मुंबई की तुलना में कहीं नहीं ठहरते हैं ।
इसलिए आज जब लन्दन के हेरो के इलाक़े में श्री कृष्णा वड़ा पाव का बोर्ड लगा देखा तो पाँव खुद ब खुद उधर बढ़ गए . वड़ा पाव खाया तो सचमुच थोड़ी थोड़ी मुंबई की फ़ील आ गयी .
जब काउंटर वाले सज्जन से मराठी में बात हुई तो मेरी उत्सुकता इस बात को लेकर थी कि क्या ये दादर वाली दुकान की शाखा है , उत्तर मिला नहीं . फिर भी मुंबई से छै हज़ार किलो मीटर की दूरी पर मुंबई जैसा वड़ा पाव मिल जाए तो फिर और क्या चाहिए ? समोसा चाट , टिक्की चाट भी ट्राई करी , वाह मज़ा आ गया . ये लोग मुंबैया स्टाइल की चाइनीज़ भी बना रहे हैं, जिसे खा कर चाइनीज़ लोग गश ख़ा कर गिर जाएँ , क्योंकि ऐसी चाइनीज़ हमारे मुंबई में ही बनती है . बरहाल वड़ा पाव का जादू लन्दन के सर चढ़ कर बोल रहा है क्योंकि श्री कृष्णा वड़ा पाव की शाखाएँ स्लो ,
हानस्लो, पिनर रोड, सोलिहल, ऐसटन, इल्सलो में भी खुल चुकी हैं . 12 साल के कम अरसे में इतना विस्तार बताता है कि लन्दन को भी वड़ा पाव पसंद आ गया है !
(लेखक ब्रांड कंसल्टेंट हैं और इन दिनों लंदन की यात्रा पर हैं, लंदन में भारतीयता को तलाशकर उसे रोचक शब्दों में प्रस्तुत करते हैं) )