गीतकार योगेश के एक गीत का मुखड़ा है- न जाने क्यूँ होता है ये जिंदगी के साथ,अचानक ये मन,किसी के जाने के बाद,करें फिर उसकी याद, छोटी-छोटी सी बात। एक दशक से भी ज्यादा समय हो गया वे सार्वजनिक परिदृश्य से दूर थे तब उन्हें यदा कदा ही कोई याद करता था, परंतु काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं कहने वाले जब काल के साथ चल दिए तो अचानक उनकी छोटी से छोटी बातें तमाम चाहने वालों के अंतःकरण में हिलोरे मारने लगी और उन शिक्षाप्रद प्रेरणादाई प्रसंगों का निजी से सार्वजनिक करण होने लगा।यह निरंतर होना चाहिए।
राजनीति को काजल की कोठरी कहने वाले और एक साधारण कार्यकर्ता से असाधारण जननायक बन देश का नेतृत्व करने के बावजूद भी बेदाग निकलने वाले शायद वे एकमात्र महान व्यक्ति थे। उनके पूरे राजनीतिक जीवन पर कोई दाग नहीं है ऐसा होना असंभव है पर जो असंभव को संभव कर दे उन्हे ही तो अटल बिहारी वाजपेई कहते हैं। उनका होना आश्वस्ति की तरह था।राजनीति पर आम जनता के विश्वास का प्रतीक थे वे।लोगों को भरोसा था कि देश की राजनीति में अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है।
विपरीत विचारधारा वाले 25 दलों को साथ लेकर सफलता पूर्वक अपना कार्यकाल पूर्ण करने का चमत्कार जैसा अटल जी ने दिखाया, वैसा चमत्कार न तो पहले हुआ था और ना भविष्य में होगा ।देश की राजनीति में अब कोई वटवृक्ष ना तो है और ना ही पनपता दिख रहा है। कहां ममता बनर्जी कहां फारूक अब्दुल्ला और भी ऐसे कई विपरीत राजनीतिक विचारधाराओं वाले व्यक्तियों को एकजुट कर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का सफल संचालन करने का चमत्कार सिर्फ और सिर्फ अटल बिहारी वाजपेई जैसे चुंबकीय व्यक्तित्व के धनी ही कर सकते थे। भारत की बहु विविधता वाली एकता के प्रतीक थे अटल जी। इस देश में जाति धर्म भाषा और बोलियों में जितनी विविधता है वैसी विविधता पूरे विश्व में कहीं नहीं है फिर भी हम सब एक हैं इस बात का सर्वोच्च प्रमाण थी वाजपेई जी की सरकार। अब तो आलम यह है कि अपने ही दल में आपके विरोधी सर उठाने लगते हैं और आप मन मसोसकर हाथ मलते रह जाते हैं!! वाजपेई जी ने कभी भी अपने हिंदुत्व दर्शन को राजनीति और सत्ता के संकुचित दायरों में कैद नहीं होने दिया उनके लिए हिंदूवाद हमेशा ही सर्वकालीन उदारता का एक विस्तृत परिदृश्य रहा। राजनीति में अटल जी के बाद संसदीय कार्य प्रणाली में कभी भी वह गरिमा शुचिता और स्तरीयता दिखाई नहीं दी जो उनके होते संसद में थी।
अमर्यादित भाषा का प्रयोग आज संसदीय कार्य प्रणाली का हिस्सा हो गया है वाजपेई जी के साथ-साथ संसद की मर्यादा भी खत्म हो गई। संसद में उनके उद्बोधन का पक्ष-विपक्ष सहित पूरा देश इंतजार करता था,अब कौन है,जिसे सुनने के लिए लोग बेताब रहते हो? आज सार्वजनिक सभाओं के लिए भीड़ जुटाने के नाना प्रकार के प्रबंध राजनीतिक दलों द्वारा किए जाते हैं,करोड़ों रुपया खर्च किया जाता है, लेकिन जब अटल जी की सभा कहीं होती थी तब आम जनता स्वयं के खर्चे से दूर दराज से सभा स्थल पर पहुंच कर घंटो उनके उद्बोधन का इंतजार करती थी।आज के नेताओं में अटल जी के सद्गुणों का कुछ प्रतिशत भी आ जाए तो यह देश धन्य हो जाए आंखें मिचमिचाकर,गर्दन को एक विशिष्ट अंदाज में झटककर बोलने का उनका अनोखा अंदाज, कौन भुला सकता है। उनके कहे जुमले मिसाल बन जाते थे।उदाहरण के लिए -एक बार किसी भाषण में उनके द्वारा कुछ मर्तबा बोला गया जुमला- “यह अच्छी बात नहीं है।” स्टैंड अप कॉमेडियंस सहित जनमानस में आज तक लोकप्रिय है।सत्ता के शीर्ष पर रहते हुए भी जो अनासक्ति का भाव अटलजी में था वह उन्हें विशिष्ट बनाता है सच कहूं तो अटल बिहारी वाजपेई सही अर्थों में एक स्थितप्रज्ञ अजातशत्रु थे। वे सही अर्थों में भारत रत्न थे ।भविष्य का तो नहीं पता पर आज तक राजनीति में ऐसा स्थितप्रज्ञ अजातशत्रु कोई दूसरा नहीं हुआ। आज देश के तमाम राजनीतिज्ञों,पत्रकारों कलमकारों सहित जनमानस उनसे जुड़ी छोटी से छोटी यादों को विभिन्न माध्यमों से सार्वजनिक कर रहा है। यह उनकी सर्वग्राह्यता का सबसे बड़ा प्रमाण है।
ऐसे स्थितप्रज्ञ अजातशत्रु को शत-शत प्रणाम एवं विनम्र श्रद्धांजलि।
( लेखक विभिन्न समसामयिक विषयों पर लिखते हैं)