चीन को लगता है कि आदत हो गई है कि कोई न कोई मसला लेकर भारत को धमकाता रहे । कम से कम अब तक तो चीन को यह अहसास हो जाना चाहिए कि उसकी धमकियों से भारत की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। डोकलाम विवाद पर चीन के विचित्र व्यवहार से यही स्पष्ट हो रहा है कि उसे यह बुनियादी समझ भी नहीं कि पड़ोसी देशों से संवाद कैसे किया जाता है? चीन के गर्जन-तर्जन से तो ऐसा लगता है कि उसका नेतृत्व अभी भी सदियों पुरानी मानसिकता में जी रहा है। बेहतर हो कि चीनी नेता और खासकर उसके विदेश मंत्रालय के नीति-निर्माता अपनी आम जनता से कुछ सबक सीखें। क्या यह अजीब नहीं कि जिस डोकलाम विवाद पर चीनी विदेश मंत्रालय के साथ-साथ सुरक्षा एवं विदेश मामलों के कथित विशेषज्ञ आपे से बाहर होकर अशिष्ट बयानबाजी कर रहे हैं ।
यदि चीन यह चाहता है कि वह दुनिया में एक बड़ी ताकत के रूप में आदर के साथ देखा जाए तो उसे अपनी आक्रामक विदेश नीति का परित्याग करना होगा। वह जिस तरह छोटे-छोटे मसलों पर जरूरत से ज्यादा तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है और कई बार संबंधित देश को धमकाने या फिर उससे संबंध तोड़ने पर आमादा हो जाता है उससे वह एक अड़ियल, गैर जिम्मेदार और मनमानी करने वाले देश के रूप में ही उभर रहा है। दुनिया केवल यही नहीं देख रही कि वह डोकलाम विवाद पर किस तरह भारत को धमकाने में लगा हुआ है। विश्व बिरादरी इससे भी परिचित है कि वह दक्षिण चीन सागर पर अपना आधिपत्य कायम करने के लिए अपने तमाम पड़ोसी देशों को आतंकित करने में लगा हुआ है।
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ASHOK BHATIA
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