भोपाल । कथाकार पंकज सुबीर के बहु प्रशंसित उपन्यास ‘अकाल में उत्सव’ पर केन्द्रित विचार संगोष्ठी का आयोजन स्पंदन द्वारा किया गया। कार्यक्रम में उपन्यास के दूसरे संस्करण का विमोचन भी किया गया। हिन्दी भवन के महादेवी वर्मा सभागार में सोमवार शाम आयोजित विचार संगोष्ठी की अध्यक्षता हिन्दी के वरिष्ठ कहानीकार, उपन्यासकार श्री महेश कटारे ने की। उपन्यास पर वरिष्ठ पत्रकार श्री ब्रजेश राजपूत, तथा प्रशासनिक अधिकारी द्वय श्री राजेश मिश्रा तथा श्री समीर यादव ने अपना वक्तव्य दिया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में स्पंदन के अध्यक्ष डॉ. शिरीष शर्मा, सचिव गायत्री गौड़ तथा संयोजक उर्मिला शिरीष ने पुष्प गुच्छ भेंट कर अतिथियों का स्वागत किया। तत्पचश्चात उपन्यास अकाल में उत्सव के दूसरे संस्करण का लोकार्पण किया गया। शिवना प्रकाशन के प्रकाशन शहरयार खान ने अतिथियों के हाथों उपन्यास का विमोचन करवाया। उपन्यास पर चर्चा की शुरुआत करते हुए श्री समीर यादव ने कहा कि उपन्यास की सफलता से यह बात सिद्ध होती है कि आज भी पाठक गांव की कहानियां पढ़ना चाहते हैं। गांव से हम सब किसी न किसी रूप में जुड़े रहे हैं। यह उपन्यास इस मायने में महत्तवपूर्ण है कि इसने वर्तमान समय की एक बड़ी समस्या की न केवल पड़ताल की है बल्कि उसके मूल में जाने की और उसका हल तलाशने की भी कोशिश की है।
राजेश मिश्रा ने अपने वक्तव्य में कहा कि उपन्यास का सबसे सशक्त पक्ष इसकी भाषा है। यह उपन्यास कहावतों, मुहावरों, लोक कथाओं और श्रुतियों की भाषा में बात करता हुआ चलता है। पाठक को अपने साथ बहा ले जाता है। कहावतों और मुहावरों का जिस प्रकार इस उपन्यास में उपयोग किया गया है वह उपन्यास की भाषा को विशिष्ट बना देता है। लोक की भाषा और शैली का इतना सुंदर उपयोग बहुत समय बाद किसी उपन्यास में पढ़ने को मिला है।
पत्रकार ब्रजेश राजपूत ने अपने वक्तव्य में कहा कि आमतौर पर अखबारों में गाहे बगाहे और पिछले दिनों तो तकरीबन रोज छपने वाली किसानों की आत्महत्या की खबरें हम शहरी पाठकों को उतनी ज्यादा परेशान नहीं करतीं जितनी सरकार और विपक्षी दलों को। अकाल में उत्सव पढने के बाद किसानों की ऐसी आत्महत्या की दुर्भाग्यपूर्ण खबरों को आप सरसरी तौर पर नहीं पढ पायेंगे। इसके बाद आप किसानों की मौत की सिंगल कालम खबर को पढकर बैचेन हो जायेंगे और पंकज के इस उपन्यास की घटनाएं याद आयेंगी आप समझेंगे कि किसान पागलपने में आकर आत्महत्या नहीं करता। कितने सारे मुसीबतों के पहाड उस पर जब लगातार टूटते हैं तब वो ये भारी कदम उठाता है। इसे पढने के बाद आप को उन छोटे और मंझोले खेतिहर किसानों से सहानुभूति हो जायेगी जो हर साल फसल खराब होने की तय परंपरा और संवेदनाहीन सरकारी तंत्र होने के बाद भी खेती से जुडे हैं और जिनकी तस्वीरें हमें सरकारी विज्ञापनों में अन्नदाता के रूप में दिखती हैं।
वरिष्ठ कहानीकार तथा उपन्यासकार श्री महेश कटारे ने अपनी अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हिन्दी की युवा साहित्यकार तथा पाठक का गांव की ओर मुड़ना स्वागत योग्य कदम है। अकाल में उत्सव केवल एक उपन्यास नहीं है, यह एक यात्रा है, यात्रा उस त्रासदी की जो भारतीय किसान के हिस्से में आई है। पंकज सुबीर ने बड़े विश्वसनीय तरीके से किसान के जीवन का पूरा चित्र प्रस्तुत कर दिया है। और उतने ही अच्छे से प्रशासनिक व्यवस्था की भी कलई खोली है। उपन्यास समस्या की भी बात करता है और समस्या के कारणों की भी बात करता है। प्रेमचंद के होरी के बाद पंकज सुबीर के उपन्यास के रामप्रसाद को भी बरसों याद रखा जाएगा। श्री कटारे ने कहा कि उपन्यास को पढ़ते समय लेखक का शोध पर किया गया श्रम साफ महसूस होता है और वही कारण है कि इतने कम समय में इस उपन्यास को इतनी लोकप्रियता प्राप्त हुई है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए स्पंदन की संयोजक डॉ. उर्मिला शिरीष ने जानकारी दी कि किसानों की समस्या पर केंद्रित पंकज सुबीर का यह उपन्यास इस वर्ष की सबसे चर्चित कृति है, हिन्दी के सभी वरिष्ठ साहित्यकारों ने न केवल इसे पसंद किया है बल्कि अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया भी व्यक्त की है। जनवरी में नई दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले में उपन्यास का पहला संस्करण आया था तथा चार माह के अंदर प्रथम संस्करण के समाप्त होने का रिकार्ड इस उपन्यास ने रचा है। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शहर के साहित्यकार, पत्रकार तथा बुद्धिजीवी उपस्थित थे।
उर्मिला शिरीष
संयोजक स्पंदन