विदेशी चंदा नियमन कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले बीस हजार गैर सरकारी संगठनों को विदेश से पैसा लेने के अयोग्य करार देने का फैसला यही बता रहा है कि सेवा के नाम पर हमारे देश में किस तरह का गोरखधंधा जारी था। न केवल विदेशी चंदा बल्कि देश में ही सेवा एवं जनकल्याणकारी प्रवृत्तियों एवं धार्मिक चंदे के नाम पर धांधलियां एवं आर्थिक अनियमितताएं व्याप्त हैं। इतनी बड़ी संख्या में गैर सरकारी संगठनों को विदेश से पैसा लेने से रोके जाने के बाद भी देश में ऐसे संगठनों की सक्रियता जारी रहने वाली है। हमारे देश में कालेधन को सफेद करने का यही एक जरिया रहा है। इसके समाधान के लिये क्राउडफंडिंग एक प्रभावी प्रक्रिया है।
क्राउडफंडिंग एक आधुनिक सौगात है। इसको लेकर कुछ नये स्टार्टअप बहुत उत्साहित हैं और इसे देश में स्थापित करना चाहते हैं। विदेशों में यह लगभग स्थापित हो चुकी है। भारत में इसका प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। तमाम सार्वजनिक योजनाओं, धार्मिक कार्यों, जनकल्याण उपक्रमों और व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा करने के लिए लोग इसका सहारा ले रहे हैं। अब तो महिलाओं एवं बालिकाओं की सुरक्षा एवं बचाव के लिये भी इसे कारगर मानकर उपयोग हो रहा है। यह भारतीय चन्दे का आयात किया हुआ एक स्वरूप है, एक प्रक्रिया है। जिसमें पारदर्शिता के साथ-साथ वैधानिकता भी बनी रहती है। दरअसल यही वह उपाय है जिससे सही ढंग से काम करने वाले गैर सरकारी संगठन बदनामी से बचे रह सकते हैं। अभी हो यह रहा है कि गड़बड़ी कुछ संगठन करते हैं और संदेह की निगाह से अन्य सभी देखे जाते हैं।
भारत में ‘क्राउडफंडिंग’ का चलन तेजी से बढ़ रहा है। भ्रष्टाचार एवं कालेधन पर नियंत्रण के लिये ही नोटबंदी लागू की गयी है और उसे सफल बनाने के लिये तमाम सार्वजनिक योजनाओं, धार्मिक चंदे और जनकल्याणकारी गतिविधियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए लोगों में क्राउडफंडिंग एवं आॅनलाइन चंदे को प्रोत्साहित किया जाना जरूरी है। सामाजिक एवं जनकल्याणकारी योजनाओं के लिये भी इसी माध्यम से पैसा जुटाने से गैर-सरकारी संगठनों की आर्थिक अनियमितताएं काबू में आयेगी। हाल ही में अनेक क्षेत्रों में प्रभावी प्रस्तुति एवं हिस्सेदारी के लिये क्राउडफंडिंग मंच इम्पैक्ट गुरु ने आॅनलाइन चंदे एवं क्राउडफंडिंग के सफल उपक्रम किये हैं।
इम्पैक्ट गुरु के सह-संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी, प्रवक्ता, पीयूष जैन ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के विमुद्रीकरण से देश के युवाओं में उत्साह है। आने वाला समय ईमानदारी, पारदर्शिता एवं आर्थिक शुचिता का होगा। न केवल व्यवसाय बल्कि सेवा का क्षेत्र भी युवाओं के लिये स्वर्णिम बनकर प्रस्तुत होगा। आॅनलाइन लेन-देन से आर्थिक क्षेत्र में मजबूती आयेगी और इससे क्राउडफंडिंग को बढ़ावा मिलेगा।
पीयूष जैन के अनुसार चंदे एवं क्राउडफंडिंग में जो मूल फर्क देखने को मिलता है, वह यह है कि चन्दा प्रायः धार्मिक कार्यों के लिये ही दिया जाता रहा है जबकि क्राउडफंडिंग का क्षेत्र व्यापक है और इसमें धार्मिक कार्य के साथ-साथ अन्य सार्वजनिक कार्य या व्यावसायिक कार्य जैसे पुल बनवाना, मोहल्ले की सफाई कराना, सड़क बनवाना, महिलाओं की सुरक्षा करना या फिर फिल्म बनाने का काम हो, या पत्रकारिता से जुड़ा उपक्रम हो, इनमें क्राउडफंडिंग का इस्तेमाल अब आम हो गया है।
पीयूष जैन भारत में क्राउडफंडिंग के भविष्य को लेकर बहुत आशान्वित है। नोटबंदी का इस पर सकारात्मक प्रभाव पडेगा। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार भारत में क्राउडफंडिंग के लिए लोगों का आकर्षण बढ़ रहा है। वर्ष-2014 में 167 प्रतिशत इजाफे के साथ 16.2 करोड़ डाॅलर रहा। वर्ष-2015 में यह 34.4 करोड़ डाॅलर हो गया है जो पिछले वर्ष की तुलना में दुगुना है। इन आंकड़ों से उजागर होता है कि क्राउडफंडिंग के प्रति दुनिया में न केवल बड़े दानदाताओं में बल्कि मध्यमवर्ग में भी देने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
इम्पैक्ट गुरु की कार्ययोजना को आकार देने के लिये गंभीरता से जुटे पीयूष जैन का मानना है कि भारत में नोटबंदी से कालाधन पर अंकुश लगेगा और देश डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ेगा। लेकिन नकद रहित प्रणाली की ओर बढ़ने में थोड़ा समय लगेगा। इम्पेक्ट गुरु आॅनलाइन लेन-देन को बढ़ावा देगा और क्राउडफंडिंग भारत के लोगों में दान की परम्परा को एक नई शक्ल देगा। दान में बरती जा रही धांधली को रोका जायेगा। चंदे को आॅनलाइन किया जायेगा। बड़े दानदाता ही नहीं बल्कि छोटे-छोटे दान को प्रोत्साहन किया जा सकेगा। मध्यमवर्ग के लोगों में भी दान देने का प्रचलन बढ़ाना हमारा लक्ष्य है। विशेषतः युवकों मंे जनकल्याण एवं सामाजिक परिवर्तन के लिए दान की परम्परा के प्रति आकर्षण उत्पन्न किया जाएगा, जिसके माध्यम से सेवा और जनकल्याण के नये उपक्रम संचालित हो सकेंगे।
आर्थिक बदलावों में देश बदल रहा है। हौले-हौले नहीं, तेज रफ्तार के साथ ये परिवर्तन जारी है। बदलाव भी ऐसा, जिससे बेहतरी की उम्मीद जागी है। परिवर्तन की ये बयार महसूस की जा सकती है, क्योंकि बदलाव ढंका-छुपा नहीं है। दफ्तर, घर, बाजार, शहरों, गलियों, माॅल-सिनेमाहाॅल, धर्मस्थलों से लेकर शेयर के उतार-चढ़ाव, फिल्मों और टेलिविजन तक, हमारे व्यक्तिगत संबंधों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक रिश्तों के वितान तक परिवर्तन की छाप गहरे पड़ी है। हर कोई देश को ईमानदारी की डगर पर ले जाने को आतुर है।
हमारे देश में अभी 13 हजार ऐसे संगठन हैं जो विदेश से पैसा लेने में समर्थ हैं उसी तरह हजारों ऐसे संगठन भी हैं जो विदेशी पैसे पर निर्भर नहीं हैं। सबसे पहले तो यही समझना कठिन है कि देश में बेहिसाब संख्या में गैर सरकारी संगठन क्यों हैं? कहीं इसलिए तो नहीं कि सेवा के नाम पर गैर सरकारी संगठन बनाना एक धंधा बन गया है?
कालेधन को सफेद करने का यह सशक्त एवं बहुप्रचलित माध्यम बन गया है। कई गैर-सरकारी संगठन किसी अन्य देश या बहुराष्ट्रीय कंपनी के इशारे पर देश- विरोधी काम करते हैं। किसी भी ऐसे गैर सरकारी संगठन के अस्तित्व में होने का कोई औचित्य नहीं जो किसी भी तरह की संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त है। प्रत्येक गैर सरकारी संगठन के आय-व्यय के पूरे हिसाब की जांच-परख के साथ ही यह भी देखे जाने की जरूरत है कि वे अपना घोषित कार्य वास्तव में कर रहे हैं या नहीं? केंद्र सरकार को विदेश से पैसा पाने वाले उन संगठनों पर विशेष निगाह रखने की जरूरत है जो धार्मिक-सांस्कृतिक गतिविधियों में संलग्न रहते हैं। इस अंदेशे को दूर किए जाने की जरूरत है कि कहीं ऐसे संगठन चोरी-छिपे धर्मातरण या देश-विरोधी गतिविधि को तो बढ़ावा नहीं देते। चूंकि गैर सरकारी संगठन बड़ी आसानी से खुद को सिविल सोसाइटी में तब्दील कर लेते हैं इसलिए कई बार उनकी अनुचित गतिविधियों पर रोक लगा पाना मुश्किल होता है। बेहतर होगा कि केंद्र सरकार हर किस्म के गैर सरकारी संगठनों के नियमन और उनके कामकाज की निगरानी के लिए किसी सक्षम नियामक संस्था का गठन करे। इससे ही सेवा के नाम पर दुकान चलाने वालों पर अंकुश लग सकता है।
पीयूष जैन के अनुसार सोशल मीडिया की आम आदमी के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका है। आज हर आदमी फेसबुक से जुड़ा हुआ है और उसकी स्वतंत्र डिजिटल जीवनशैली भी है, जो उसे अधिक सामाजिक बनाती है। इम्पैक्ट गुरु दुनिया का पहला ऐसा डिजिटल मंच है जो जनकल्याणकारी कार्यों के लिए पैसा जुटाने और ऐसे ही उपक्रमों के लिए साझेदारी निभाने के लिए तत्पर है। जितनी जल्दी अर्थव्यवस्था डिजिटल अर्थव्यवस्था बनती है, बर्बादी कम होगी, उत्पादकता बढ़ेगी तथा कालाधन पर अंकुश लगेगा।
आज जबकि पूरी दुनिया भारत की ओर आशा भरी नजरों से देख रही है क्योंकि नयी दुनिया बनाने में मोदी के साथ-साथ युवाओं की हिस्सेदारी उल्लेखनीय बनकर प्रस्तुत हो रही है। जब जीवन से जुड़ा हर तार बदल रहा है तो समाज पहले जैसा कैसे रहता? नोटबंदी ने समाज को भी पूरी तरह बदल दिया है। इस बदलाव को सकारात्मक मोड़ देने में क्राउडफंडिंग का भारत में बढ़ना एवं इम्पैक्ट गुरु के नये-नये उपक्रमों में आम-जनता का आकर्षण पैदा होना जरूरी है।
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(ललित गर्ग)
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