Sunday, November 24, 2024
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ऐसे अदभुत हैं, शेख नाह्यान

पिछले चार-पांच दिन दुबई और अबू धाबी में ऐसे बीते, जिनकी याद मुझे जिंदगी भर बनी रहेगी। यों तो दुबई में कई बार आ चुका हूं लेकिन इस बार यहां मैं दिल्ली की ‘दिया फाउंडेशन’ के कार्यक्रम में भाग लेने आया था। यह कार्यक्रम देश के प्रसिद्ध हृदयरोग विशेषज्ञ डा. एस.सी. मनचंदा ने चला रखा है। वे विकलांग गरीब बच्चों के हृदय के आपरेशन मुफ्त करवाते हैं। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे- शेख नाह्यान बिन मुबारक।

शेख साहब इस देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। भारतीयों का कोई भी बड़ा समारोह उनके बिना पूरा नहीं होता। वे हमारे कार्यक्रम में तो आए ही, उन्होंने दो बार मुझे अपने महल में भोजन के लिए आमंत्रित किया। उनके साथ भोजन में लगभग 200 आदमी रोज बैठते हैं। अतिथियों में देश-विदेश के नेता, उद्योगपति, राजदूत और अन्य विशिष्ट लोग होते हैं। पहले दिन उन्होंने अपने पास के सोफे पर सिर्फ मुझे बिठाया और भारत-अमारात संबंधों के बारे में अंतरंग बात की। कल उन्होंने मुझे दुबारा निमंत्रित किया। उनके अबू धाबी के महल में पहुंचने के लिए बहुत ही शानदार कार उन्होंने मेरे लिए दुबई भिजवाई। भोजन शुरु हो चुका था। हमारी कार 10 मिनिट देर से पहुंची। मैंने देखा कि मंच पर छह-सात मेहमान बैठे हैं। शेष 2-3 सौ लोग नीचे भोजन की मेज-कुर्सियों पर बैठे हैं।

मेरे जाते ही शेखजी उठकर खड़े हुए और पास की कुर्सी पर बैठे एक अन्य मंत्री को हटाकर वे उसकी कुर्सी के पीछे खड़े हो गए। मुझे उन्होंने अपनी कुर्सी पर बिठा दिया। मेरे दांए श्री श्री रविशंकर बैठे थे और बाएं शेख नाह्यान। मैं बीचों-बीच। मुझे आश्चर्य हुआ। बाकी सभी लोगों को भी! शेखजी के एक मित्र ने पूछ लिया, ‘आप डा. वैदिक को कब से जानते हैं ?’ उन्होंने कहा ‘‘पिछले जन्म से’’! रविशंकरजी ने पूछा तो मैंने कहा कि शेख नाह्यान इस्लाम की शान हैं तो शेखजी ने कहा कि ”डा. वैदिकजी इंसानियत की शान हैं।” मैं तो दंग रह गया। शेख नाह्यान भारतीयों के मंदिरों, गुरुद्वारों, आश्रमों और उनके घरों पर भी अक्सर जाते रहते हैं। वे सर्वधर्म समभाव की साक्षात प्रतिमूर्ति हैं।

वे हिंदी और अंग्रेजी भी धाराप्रवाह बोलते हैं। उन्होंने अपना पूरा भोजन एकदम शाकाहारी रखा। जब मैं उनके महल में ठहरता हूं तो वे मेरे खातिर सारा भेाजन शुद्ध शाकाहारी रखते हैं। वे हैं तो अरब लेकिन मुझे लगता है कि पिछले जन्म में वे भारतीय ही रहे होंगे। उन्होंने अपने मंत्रालय का नाम ‘सहिष्णुता मंत्रालय’ रखा है। वे सब धर्मों, सब जातियों और सब देशों के बीच सदभावना, सहिष्णुता और सहकार का भाव जगाने की कोशिश करते हैं। इस यात्रा के दौरान पड़ौसी देशों के अन्य बड़े नेताओं और कूटनीतिज्ञों के साथ प्रीति-भोज और संवाद भी हुए। मुझे लगता है कि अचानक हुए इन संवादों से अगले दो—तीन वर्ष में दक्षिण एशिया की राजनीति को एकदम नया स्वरुप देने में हमें काफी मदद मिलेगी।

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