कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा ‘एएनआई’ की संपादक स्मिता प्रकाश के खिलाफ इस्तेमाल किए गए शब्दों पर मीडिया में नाराज़गी है। हालांकि, नाराज़गी का स्तर उतना नहीं है, जितना होना चाहिए था। महज गिने-चुने पत्रकारों ने इस पर विरोध जताया है। इस मामले को ‘ZEE न्यूज़’ के संपादक सुधीर चौधरी ने प्रमुखता से उठाया है। चौधरी ने इस मुद्दे को पाकिस्तान में हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के विडियो के जरिये उठाया है। उन्होंने इस अहम मसले पर सिर्फ ट्वीट कर प्रतिक्रिया देने के बजाय अपने शो ‘डीएनए’ में इसे जगह दी और चेताया कि भारतीय मीडिया को अब खेमेबाजी से बाहर निकलना होगा।
चौधरी ने अपने शो की शुरुआत एक पाकिस्तानी विडियो से करते हुए भारतीय पत्रकारों को एकता की सीख दी। उन्होंने यह भी कहा कि ‘डीएनए’ का यह एपिसोड पत्रकारों को बहुत चुभने वाला है। दरअसल, पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्री फैसल वावड़ा 3 जवनरी को एक प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे। इस मौके पर ‘डॉन’ अख़बार के वरिष्ठ पत्रकार भी मौजूद थे। उन्होंने एक सवाल पूछा, जो मंत्री साहब को नागवार गुजरा। इसके बाद फैसल वावड़ा ने सवाल पूछने वाले पत्रकार को अपमानित करना शुरू कर दिया। हालांकि, ये सिलसिला ज्यादा लंबा नहीं चल सका, क्योंकि प्रेस कांफ्रेंस में उपस्थित अन्य पत्रकार अपने साथी को इस तरह अपमानित होते नहीं देख पाए। उन्होंने खुलकर मंत्री का विरोध किया, जिसके बाद फैसल वावड़ा लगातार माफ़ी मांगते रहे, लेकिन पत्रकार नहीं मानें। सभी उठे और प्रेस कांफ्रेंस का बहिष्कार करते हुए बाहर निकल गए।
इस घटना को चौधरी ने राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस से जोड़ते हुए भारतीय पत्रकारों को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि राहुल की प्रेस कांफ्रेंस में तमाम पत्रकार मौजूद थे। उनकी मौजूदगी के बीच एएनआई संपादक स्मिता प्रकाश का अपमान हुआ, लेकिन किसी ने एक शब्द तक बोलने की ज़हमत नहीं उठाई। सभी ख़ामोशी से राहुल को सुनते रहे। इसके बाद उन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू की प्रेस कांफ्रेंस का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि सिद्धू ने पत्रकारों के सामने ‘ZEE न्यूज़’ को नानी याद दिलाने की धमकी दी थी, तब भी वहां उपस्थित किसी भी पत्रकार ने इस पर आपत्ति नहीं जताई थी।
सुधीर चौधरी ने मीडिया की खेमेबाजी पर दुःख जताते हुए पत्रकारों को कुछ हद तक नेताओं से सीख लेने की नसीहत दी। उन्होंने कहा कि नेता तो फिर भी कभी-कभी पार्टी लाइन से ऊपर उठकर एक साथ आ जाते हैं, लेकिन मीडिया में बंटवारे की लकीर बहुत गहरी हो चुकी है। उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से इस मुद्दे पर खामोश रहने वाले पत्रकारों पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस से हमदर्दी रखने वाले पत्रकार एक महिला संपादक के अपमान पर कुछ नहीं कहना चाहते। बहुत से कांग्रेसी पत्रकारों को पद्मश्री मिल चुका है और बहुत से लाइन में लगे हैं इस उम्मीद में कि जब कांग्रेस की सरकार आएगी तो उन्हें भी उनकी वफ़ादारी के लिए कोई न कोई पुरस्कार ज़रूर मिलेगा।
संभव है कि कई पत्रकारों को चौधरी की ‘एकता’ वाली सीख समझ न आए, लेकिन ये हकीकत है कि भारतीय मीडिया कई खेमों में विभाजित है। इसलिए अधिकांश पत्रकारों को अपने साथियों के उपहास या अपमान में कुछ भी गलत नज़र नहीं आता।
साभार- http://www.samachar4media.com/ से