महानˎ पुरुष अपने महानˎ कार्यों के पदचिन्ह सदा ही समय की धूलि पर छोड़ जाते हैं| इन्हीं पदचिन्हों को देखकर उनके अनुगामी अपना मार्ग निकालते हैं| समय की धूलि पर जिन महापुरुषों ने अपने पदचिन्ह छोड़े, उनमें से एक हमारे कथानायक स्वामी श्रद्धानंद जी सरस्वती जी भी एक थे| स्वामी जी का जन्म फाल्गुन वदी १५ संवतˎ १९१३ विक्रमी के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को पंजाब के तलवन नामक स्थान पर हुआ| पिता का नाम लाला नानक चन्द जी था| पिता ने बालक का नाम ब्रह्स्पति रखा| इस बालक को ही आगे जा कर महात्मा मुंशीराम के नाम से प्रसिद्धि मिली और फिर संन्यास लेने पर इन्हें स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती जी के रूप में पहचान मिली|
मुंशीराम जी के पिता लाला नानकचंद जी सरकार नौकरी में थे| सरकारी कर्मचारियों के एक से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण होते ही रहते हैं, ऐसा नानकचंद जी के साथ भी होता था, इस कारण बालक मुंशीराम की शिक्षा सदा ही बाधित होती रही| जब घर पर आकर अध्यापक इनके बड़े भाइयो˙ को पढ़ा रहे होते थे तो उनके उपदेशों को सुनकर ही मुंशीराम जी बहुत कुछ सीख जाते थे|
आप आरम्भ से ही धर्म प्रेमी होते हुए भी तत्कालीन परचलित ढोंगों तथा गंदे आचरण को देखकर धर्म से तब तक विमुख रहे, जब तक उन्हें“ उस समय अनोखा जादूगर” के नाम से सुप्रसिद्ध स्वामी दयानंद सरस्वती जी के दर्शन नहीं हुए तथा उनके व्याख्यान नहीं सुने| स्वामी दयानंद सरस्वती जी को देख और सुनकर तो आप पूरी तरह से उन्हीं को समर्पित हो गए| अब आप पूरी दिनचर्या में स्वामी जी का साथ देने लगे|
स्वामी जी से इस प्रकार के संबंधों को देखकर अंग्रेज हाकिम बहुत तिलमिलाए किन्तु मुंशीराम जी को कभी इन हाकिमों के तिलमिलाने की कोई चिन्र्ता नहीं हुई| बरेली में जो स्वामी दयानंद जी से“ ओउम्” की चर्चा सुनी, इस चर्चा से आपके विचारों में क्रांतिकारी परिवर्तन आये| धीरे धीरे ब्रह्मसमाज और सर्वहिताकारिणी सभा के संपर्क में भी आप आये किन्तु जो शान्ति आपको आर्यसमाज में मिली, वह शान्ति और कहीं न मिल पाई| स्वामी दयानंद जी के विचारों से ही प्रभावित होकर आपने सत्यार्थ प्रकाश तथा स्वामी जी के अन्य ग्रंर्न्थों का अध्ययन कर आर्य समाज के दृढ सिद्धांतों को अपना कर अपने आप को आर्य समाज के कठोर सांचे में ढाल लिया| आपने स्वयं भी आर्य समाज के सदस्य बनकर अपने ह्रदय में धैर्य को धारण किया|
वैदिक सिद्धांतों पर पक्के
अब तक मुंशीराम जी वैदिक सिद्धांतों पर इतने पक्के हो गए थे कि पिताजी के विशेष आग्रह करने पर भी निर्जला एकादशी का व्रत नहीं रखा किन्तु पिताजी की सेवा तथा तथा आर्थिक सहायता में सदा तत्पर रहे| धीरे धीरे पिता श्री नानक चाँद जी भी वैदिक सिद्धांतों को समझने लगे| पिता जी के देहांत पर उनका अंतिम संस्कार भी वैदिक रीती से ही किया गया| मुंशीराम जी की बढती लोक प्रीयत से पुराणिक लोगों में खलबली मच गई| उन्होंने शास्त्रार्थ के लिए ललकारा, गुंडागर्दी का भी प्रयास किया किन्तु नित्य प्रति कठोर व्यायाम करने वाले मुंशीराम के सामने आने की कभी किसी की हिम्मत नहीं हुई| उन्हें जाति से बहिष्कृत करने का भी भय दिखाया गया किन्तु यह भय भी उस समय भाग गया जब मुंशी राम जी ने सत्य को सब के सामने लाकर रख दिया| जालंधर के लाला देवराज जी का समर्थन तथा सहयोग मुंशीराम जी को सदा मिलता रहता था| उनका कथन था कि “कोई भी ढोंगी व्यक्ति कभी भी सुधारोर्न्मुखी व्यक्ति का बाला भी बांका नहीं कर सकता|” आपके अत्यधिक प्रभाव के कारण ईसाइयों का प्रभाव भी फीका पड़ने लगा था|
आटा रद्दी फंड
आपने जब देखा कि सर्वहितकारी कार्यों में आर्थिक कठिनाई आ रही है तो इसे दूर करने के लिए आपने आटा रद्दी फंड आरम्भ किया| आपने लोगों को अपील की कि प्रत्येक व्यक्ति अपने घर पर एक घड़ा रखे, जिसमें वह एक मुट्ठी आटा प्रतिदिन डाले तथा रद्दी अखबार (समाचार पत्र) भी एकत्र करे| इस प्रकार संकलित हुए आटे और रद्दी को वह कुछ दिनों बाद सर्वहितकारी कार्यों के लिए दान करे| इस प्रकार के दान से आपने अछूतोद्धार तथा अन्य जनहितकारी कार्यों को आगे बढाया तथा अब से अपना पूरा समय आर्य समाज के कार्यों में देने लगे|
आप पायोनियर तथा ट्रिब्यून के नियमित पाठक थे| इस कारण आपकी राष्ट्रीय भावनाओं को बहुत बल मिला| अत: आपने गांधी जी के अफ्रिका सत्याग्रह के अवसर पर सहयोग हेतु उन्हें धन भेजकर सहायता की तथा बाद में कान्ग्रेस के मार्ग पर भी चलने लगे| आपने प्रत्येक जिले में कांग्रेस कमिटी स्थापित की| जालंधर तथा होशियारपुर से आपको अत्यधिक सहयोग मिला|
इस समय सर सैय्यद अहमद खान का विरोध भी आपके कदमों को रोक नहीं सका| पंजाब में मार्शल ला लगा, चाहे रोलेट एक्ट विरोधी आन्दोलन अथवा दिल्ली में कोई कांग्रेस का आन्दोलन हुआ, आप सदा सर्वमान्य नेता स्वरूप अग्रणी दिखाई दिए| दिल्ली में जब अंग्रेजी सेना ने निहत्थे लोगों पर गोली चलाने की तैयारी की तो आपने संगीनों के सामने अपना सीना तानकर कहा “निर्दोष जनता पर गोली चलाने से पहले मेरी छाती में संगीनों को घोंप दो|”
पत्नी को शिक्षित किया
आप जानते थे की समाज को सुधारने के लिए सब से पहले अपना घर सुधारना आवश्यक होता है| अत: स्त्री शिक्षा का नारा लगाने से पूर्व अपनी पत्नी को शिक्षित किया| उसका घुंघट हटवाया, सैर करते समय उसे साथ ले जाने लगे| इस प्रकार स्त्री को समान अधिकार दिए|
कन्या विद्यालय की स्थापना
आपकी बेटी ईसाई स्कूल में पढ़ती थी| एक दिन स्कूल से लौटकर आपकी कन्या इस प्रकार गाती हुई मिली:-
एक बार ईसा ईसा बोल, तेरा क्या घटेगा मोल|
ईसा मेरा राम रमैया, ईसा मेरा कृष्ण कन्हैया||
इन पंक्तियों को सुनकर मुंशीराम जी के ह्रदय को भारी चोट लगी| आप तत्काल लाला देवराज जी के पास गए और उनके ही सहयोग से एक अपील की, जिससे प्राप्त धन से १९४७ विक्रमी को जालंधर में कन्या वियालय की स्थापना की| यही कन्या विद्यालय आज जालंधर के कन्या महाविद्यालय के नाम से विख्यातˎ होकर आज स्त्री शिक्षा की एक अग्रणी संस्था बन चुका है| इस विद्यालय की स्थापना से ही आपका बृहस्पति नाम सार्थक हुआ|
सद्धर्म प्रचारक उर्दू पत्र
अब आपने वैदक धर्म के प्रचार के लिए एक समाचार पत्र की आवश्यकता को अनुभव किया| अत: शीघ्र ही साथियों के सहयोग से “सद्धर्म प्रचारक” उर्दू पत्र को आरम्भ किया| आपने उर्दू की भाषा भी हिंदी जैसी ही बना दी| चाहे मुसलमानों ने इसका विरोध किया किन्तु बाद में सभी ने आप ही का अनुसरण किया| इस शोधित उर्दू में संस्कृत शब्द अधिक होते थे| इसे उस समय आर्य समाजी उर्दु कहा जाने लगा| बाद में इसी से ही आपको राहू केतु का खंडन करने वाले पहलवान चिरंजीलाल सरीखे सहयोगी मिले|
आपने मंदिरों के अनुचित प्रयोग का सदा ही विरोध किया किन्तु सर्वप्रिय बनने के लिए कभी नाम पट्ट का प्रयोग नहीं किया| सब प्रकार की ऐषनाओं से सदा दूर रहे| यदि कार्य क्षेत्र में कभी संस्थाओं के अधिकारी आड़े आये तो उनकी भी परवाह नहीं की| इस कारण ही आपकी धर्मवीर पंडित लेखराम तथा गुरुदत्त विद्यार्थी जी से अत्यधिक घनिष्ठता थी|
आप स्वाध्याय तथा धर्म प्रचार के स्रोत थे| इस कारण आपको आर्य प्रतिनिधि सभा का प्रधान बनाया गया| आपकी प्रधानगी में शास्त्रार्थों की खूब धूम मची| आप नवयुवकों के लिए साहस तथा उत्साह का स्रोत थे| जब आपकी पत्नी का देहांत हुआ तो आपने अपने चारों बच्चों की देखरेख का भार अपने भाई के कन्धों पर डाल दिया और स्वयं वेद प्रचार तथा अन्य सार्वजनिक कार्यों में पूरा समय देने लगे|
गुरुकुल की स्थापना
मुंशीराम जी ने मांस भक्षण का डटकर विरोध किया| सत्य सिद्धांतो पर चलते समय कष्टों तथा विरोध की चिंता नहीं की| डी.ए.वी, आन्दोलन में कमियों को देख, विशेषरूप से संस्कृत शिक्षण की कमीं के कारण पंडित लेखराम, स्वामी पूर्णानंद आदि के सहयोग से वैदिक शिक्षनालय खोलने का निर्णय लिया, जिस के लिए चार वर्ष तक निरंतर कार्य किया| आपने इसमें आश्रम पद्धति, गुरुकुल स्थापना के लिए तीन सहस्र स्थापना कोष स्थापित किया तथा नगर से दूर जंगली क्षेत्रों में हरिद्वार के पास कांगड़ी नामक स्थान पर गुरुकुल की स्थापना की, जो आज विश्वविद्यालय बन गया है| इसके लिए कभी सरकारी सहायता की कोई मांग नहीं की गई|
आपकी कार्यशैली तथा गुरुकुल की स्वतन्त्र शिक्षा पद्धति के कारण आपको अनेक कठिन परीक्षाओं से भी निकलना पडा| जैसे गुरुकुल के ब्रह्मचारियों को धनुर्विद्या तथा घुड़सवारी की शिक्षा देने के प्रावधान से सरकार की क्रूर दृष्टि तथा आप के लिए संदेह बढ़ गया| लाला लाजपत राय जी के निर्वासन पर तथा सरकारी नौकरी के समय भी निर्भीक व्यवहार के कारण आप पर सरकार का संदेह लगातार बढ़ता ही चला गया किन्तु आपने कभी इसकी चिन्ता नहीं की|
पटियाला में आर्यों पर विद्रोह के आरोप में सब आर्य समाजियों को गिरफ्तार किया जाने लगा| आपने आगे आकर उनके बचाव के लिए मुकद्दमा लड़ा तथा सब आर्यों को सम्मान के साथ बरी करवाया|
इस प्रकार पंद्रह वर्ष तक निरंतर समाज सेवा करने के तदन्तर आपने संन्यास की दीक्षा ली तथा अब आप स्वामी सश्रद्धानंद सरस्वती जी के नाम से सर्वविख्यातˎ हुए| आपने अपनी पूरी की पूरी संपत्ति दान कर दी तथा घर का त्याग कर अब दिल्ली को केंद्र बनाकर कार्य करने लगे|
आपने जामा मस्जिद दिल्ली के मुसलमानों द्वारा पवित्र कहे जाने वाले(मिम्बर)मंच से वेद मन्त्रों से व्याख्यान देते हुए एकता का सन्देश दिया| मुसलमान आपके दीवाने होकर आपकी रक्षा करना अपना कर्तव्य समझने लगे|
असहयोग आन्दोलन के समय आपने खूब कार्य किया| जलियांवाला बाग़ कांड के बाद जब चालीस हजार लोग जेलों में थे, मार्शल ला लगा हुआ था| इस समय ही अमृतत्सर में कांग्रेस का अधिवेशन करने का निर्णय लिया गया| ऐसे भयंकर अवसर पर आपने पंजाब में आकर लोगों को पुन: उत्साहित किया| स्वयं अधिवेशन की स्वागत समिति के प्रधान बने| यह कांग्रेस का पहला अवसर था जब किसी संन्यासी ने प्रधान का पद प्राप्त किया|
आप अछूतों के उद्धार के लिए तो मानो मसीहा ही थे| कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में इस के लिए एक प्रस्ताव भी पेश किया गया| यह कार्य छोड़ने के लिए ईसाइयों का दिया गया प्रलोभन भी आपको रोक न सका|
आगरा, मथुरा, भरतपुर क्षेत्र के पांच लाख मलकाना राजपूत मुसलमान बन गए थे| आर्य समाज ने इन्हें शुद्ध करने का निर्णय लिया| इस कार्य के लिए सब अधिकार आपको दे दिए गए| आपके सुप्रयास से पंडित लोगों में भी सहानुभूति की भावना पैदा हुई| अंत में उन सब पर गंगाजल छिड़ककर उन सब को वापिस अपने धर्म में लौटा लिया गया|
आपने भारतीय हिन्दू शुद्धि सभा की भी स्थापना की| मालाबार में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध भी आप अड़ गए| मोपला विद्रोह में भी आपने महत्वपूर्ण कार्य किया|
स्वामी जी ने हिन्दू संगठन का नाद बजाया, हिन्दू रक्षार्थ महावीर दलों का आन्दोलन तथा अन्य अनेक सभाएं गठित कीं| इन सब कारणों से मुसलमान आपकी जान के प्यासे बन गए| आप सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान बनाए गए| पंद्रह वर्ष तक गुरुकुल कांगड़ी के अधिष्ठाता रहे| मथुरा में स्वामी दयानंद शताब्दी, हिन्दू शुद्धि सभा तथा दलितोद्दर के आप कार्यशील प्रधान रहे| अत्यधिक परिश्रम करने के कारण जीवन के अंतिम सात वर्ष अस्वस्थ रहते हुए भी लम्बी लम्बी प्रचार यात्राएं करने से पुराने रोग भी पुन: जाग उठे| इसी अवस्था में जब आप श्रद्धानंद बाजार, दिल्ली के भवन में रोग शैय्या पर पड़े थे तो एक धर्मांध मुसलमान ने गोलियां मारकर आपका बलिदान कर दिया|
इस प्रकार आजीवन आर्य समाज के लिए तन, मन, धन, सब कुछ धर्म के लिए, देश के लिए न्यौछावर करने वाले स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती जी ने अपना बलिदान देकर आर्यों को एक नया मार्ग दिखाया, नया साहस तथा नयी प्रेरणा दी| इतना ही नहीं उन्होंने वेद प्रचार के लिए मार्ग भी प्रशस्त कर दिया|
डॉ. अशोक आर्य
पॉकेट १/ ६१ रामप्रस्थ ग्रीन से, ७ वैशाली
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