दो टूक : रिश्तों को सम्भालना सबको नहीं आता। उन्हें भी नहीं जो रिश्तों के लिए अपनी जान तक देने के लिए तैयार रहते हैं। उन्हें ये तब समझ आता है जब रिश्ते एक नए रास्ते चल पड़ते हैं। कंगना रानौत, आर माधवन, जिम्मी शेरगिल, स्वरा भास्कर, दीपक डोबरियाल, मोहमद जिशान अयूब, राजेंद्र गुप्ता, के के रैना और राजेश शर्मा के अभिनय वाली निर्देशक आनंद एल राय की नयी फिल्म तनु वेड्स मनु रिटर्न्स भी कुछ ऐसी ही कहानी कहती है।
कहानी : फिल्म की कहानी में तनु और मनु की शादी को चार वर्ष बीत चुके हैं। लंदन में रहकर तनु (कंगना रनौट) बोर हो चुकी है। उसे लगता है कि पति मनु (आर. माधवन) पहले जैसा रोमांटिक नहीं रहा। झगडे के बाद मनु को पागलखाने में भरती करवा कर तनु कानपुर लौट आती है। किसी तरह पागलखाने से छूटकर वह भी भारत आता है और तलाक का नोटिस भिजवा देता है। जिसका जवाब उसी शैली में तनु की ओर से दिया जाता है। लेकिन परिस्थितियां तब बदलती हैं जब दिल्ली में मनु की निगाह एक हरयाणवी लड़की कुसुम (फिर कंगना रनौट) पर पड़ती है जो दिखने में बिलकुल तनु जैसी है। मनु उसपर फ़िदा हो जाता है और दोनों की शादी की तयारी भी हो जाती है तो तनुं का दम निकल जाता है। मजा तब आता है जब एक बार फिर से राजा अवस्थी (जिमी शेरगिल) उनके रास्ते आ जाते हैं जिनकी नाक के नीचे से पिछली बार तनु को मनु ले उड़े थे। इसके बाद शुरू होती है फिर से रिश्तों को पकड़ने और छोड़ने की दौड़। रिश्तों की इसी दौड़ की कहानी है तनु वेड्स मनु रिटर्न्स।
गीत संगीत : फिल्म में एन एस चौहान, राज शंकर और वायु जैसे गीतकारों के गीत हैं और संगीत कृष्ण, तनिष्क वायु और सूरज डी बी रिदम ढोल बास का है। फिल्म में मूव ऑन,मत जा में किरदारों की मनोदशा व्यक्त होती है। घणी बावरी और बन्नो तेरा स्वैकगर…गाने कहानी को आपसे से सीधा जोड़ देते हैं।
अभिनय : फिल्म के केंद्रीय पात्र के रूप में कंगना को देखना सुखद अनुभव जैसा है।
हाल ही में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार है और कंगना रनौट का अभिनय अपनी समकक्ष अभिनेत्रियों को टक्कर दे रहा है। इस फिल्म की दोहरी भूमिका में उन्हें बिंदास, मुंहफट देखना अचरज भरा है। विशेष रूप से हरयाणवी लड़की दत्तो के रूप में उनका अभिनय लाजवाब है। आर माधवन थके हुए लगते हैं जबकि वो उनके पात्र की मांग है। जिमी शेरगिल हमेशा की तरह दमदार हैं.पर फिल्म की उपलब्धि हैं कंगना और दीपक डोब्रियाल। स्वरा भास्कर अतिरेक्ता की शिकार हैं और जीशान अय्युब प्रभावित करते हैं। राजेंद्र गुप्ता, के के रैना और राजेश शर्मा पहले पात्रों से विस्तारित हैं लेकिन वो निराश नहीं करते.
निर्देशन : निर्देशक आनंद एल. राय की कहानी में कुछ भी ऐसा नहीं जो नया हो लेकिन उनकी कल्पना शीलता और प्रस्तुतिकरण अद्भुत है। छोटे शहरों के पात्रों के चरित्र गढ़ने में वो माहिर है। उनकी भाषा और संवादों पर वो ख़ास ध्यान देते हैं पर फिल्म सिर्फ इस वजह से देखने लायक नहीं है। बल्कि उन्होंने अपनी साधारण कहानी को भी मुद्दों से जोड़कर रचा है। फिल्म में प्रेम के विरुद्ध परिस्थितियां हैं तो उन्हें सहेजने के कारण भी. फिल्म की कहानी में उलझे रिश्तों को रोचकता से सामने रखने और सुलझाने में आनंद राय खासे सिद्धहस्त हैं और शुरुआत में ही वो इसका परिचय दे देते हैं। हालांकि फिल्म में मुख्य पात्रों के संबंधों के बिखरने के पहले कारणों को को बहुत तरजीह उन्होंने नहीं दी है लेकिन उसके बाद उन्हें सँभालने और सहेजने को विस्तार से अंकित किया है।
फिल्म क्यों देखें : प्रेम और उसके अर्थ को रोचक कथ्य के साथ बरता गया है।
फिल्म क्यों ना देखें : नहीं देखेंगे तो एक मजेदार फिल्म हाथ से निकल जाएगी.