सरकार के अपने तर्क हैं, विपक्ष के अपने तेवर और छात्रों की अपनी परेशानियां। लेकिन सवाल यह है कि आखिर यह तय कौन करेगा कि क्या जरूरी है, एक साल या लाखों छात्रों की पूरी जिंदगी? कोरोना संकटकाल में जब बहुत कुछ बंद है, फिर भी केंद्र सरकार परीक्षा करवाने पर तुली है, तो विवाद तो होना ही था।
देश भर के छात्र परेशान हैं। कोरोना में देश के हालात खराब है। सब कुछ बंद बंद सा है। आने जाने के साधन नहीं है। इसलिए छात्र जेईई और नीट की परीक्षाएं सरकाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन सरकार चुप है और सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया हैं, कई सरकारों ने रिव्यू पिटीशन की अपील की है। ऐसे में सरकार से यह जरूर पूछा जाना चाहिए कि क्या जरूरी है। छात्रों की परीक्षा या छात्रों की जिंदगी? जेईई और नीट परीक्षा पर बवाल थमता नजर नहीं आ रहा है। केंद्र सरकार के रुख से लग रहा है कि परीक्षाएं हर हाल में होंकर रहेंगी। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के रुख से लग रहा है कि उन्होंने छात्रों के समर्थन में सरकार से भिड़ने का मन बना लिया है। इन दोनों परीक्षाओं को लेकर देश भर में नए सिरे से सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है।
जिस हिंदुस्तान में 2 लोगों में किसी एक बात पर सहमति बनना भी आसान नहीं है, वहां पर एक साथ 100 शिक्षाविद मिलकर सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर जेईई-नीट की परीक्षाएं सितंबर में वक्त पर ही कराने की मांग करे, तो शक होना वाजिब है कि यह मांग प्रायोजित तो नहीं है। जबकि देश के लाखों छात्र नहीं चाहते कि परीक्षा ऐसे समय में हो, जब कोरोना का कहर संक्रमण फैलने और मौतों के रोज नए रिकॉर्ड बना रहा है। फिर कई प्रदेश बाढ़ की समस्या से भी जूझ रहे हैं। छात्रों की मांग यह है कि परीक्षा की तारीख़ को आगे बढ़ाया जाना चाहिए ताकि स्थितियां सामान्य होने पर वे ठीक से परीक्षा दे सकें। लेकिन सरकार का रुख है कि ऐसा करने से युवाओं का पूरा एक साल ख़राब हो जाएगा।
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या सरकार ने बच्चों की जान दांव पर लगाने का फैसला कर लिया है। वैसे, हमारे ज्यादातर पाठकों को पता नहीं होगा, कि जेईई और नीट आखिर होते क्या हैं, जिसकी परीक्षाएं होने जा रही हैं और उन पर इतना बवाल क्यों है। तो, सबसे पहले जान लीजिए कि इन परीक्षाओं में पास होकर छात्र डॉक्टर व इंजीनियर की पढ़ाई करने हैं। भारत में आईआईटी और मेडिकल क्षेत्र की पढ़ाई करने के लिए हर साल राष्ट्रीय स्तर की दो परीक्षाएं आईआईटी जेईई यानी इंजीनियरिंग और नीट यानी मेडीकल के आयोजन किये जाते है।
देश भर में आईआईटी जेईई की परीक्षा 1 से 6 सितंबर के बीच और नीट की परीक्षा 13 सितंबर को होनी है। देशभर में आईआईटी के लिए 11 लाख छात्रों ने फ़ॉर्म भरे हैं और नीट के लिए 16 लाख छात्रों ने आवेदन किया है। कुल 26 लाख छात्र परीक्षा देंगे। उनमें से 16 लाख ग्रामीण क्षेत्रों के हों और उन 16 में से भी लगभग 6 लाख छात्र ऐसे रिमोट इलाकों से हैं, जहां से परीक्षा देने के लिए उन्हें कमसे कम 200 से 500 किलोमीटर की यात्रा करनी होगी। देश भर में कोरोना फैला हुआ है, लोग मर रहे हैं और आवाजाही के साधन बहुत ही सीमित है। ऊपर से बिहार, बंगाल, उत्तराखंड, आदि में बाढ़ का कहर है। सरकार ने कोरोना वायरस संक्रमण की रफ़्तार थामने के लिए कई जगहों पर यातायात साधनों पर प्रतिबंध लगाए हुए हैं। इसके साथ ही ट्रेन सेवाएं अब तक सामान्य नहीं हुई हैं।
यही कारण है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत, पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह, छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेंद्र सिंह बघेल, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और डीएमके अध्यक्ष एम के स्टालिन आदि ये परीक्षाएं ऐसे विपरीत हालात में करवाने के सख्त विरोध में हैं। देश के कई नेताओं ने भी छात्रों के हितों को देखते हुए परीक्षाएं आगे सरकाने की अपील की है। इन नेताओं न मुख्यमंत्रियों ने केंद्र सरकार इन परीक्षाओं को कोरोना और बाढ़ की स्थिति सुधरने के बाद कराने का सुझाव दिया है।
देश में हर रोज मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। सरकार लगातार चेतावनी दे रही है। जब सब ठप है, एक शहर से दूसरे शहर जाना मुश्किल है। तो, लेकिन नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए), जो आईआईटी और नीट परीक्षा करवाती है, उसका तर्क है कि परीक्षा करवाने के लिए भी तैयारी करने में तीन महीने का वक़्त लगता है, सो टाले जाने से समय बरबाद होगा। लेकिन देश गंभीर हालात में है। फिर भी सरकार परीक्षा करवाने पर उतारू है, तो सवाल ये है कि छात्र इन परीक्षाओं में बैठने के लिए बाढ़ग्रस्त राज्यों से, बारिश प्रभावित इलाकों से, ट्रेन सी सामान्य सेवाओं के अभाव में छात्र परीक्षा केंद्रों तक कैसे पहुंचेंगे? छात्र चीख चीख कर मांग कर रहे हैं कि परीक्षाएं सरका दीजिए, लेकिन सरकार सुने तब न!
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं व समसामयिक विषयों पर भी लिखते हैं)